ग्रामीण मजदूरों की दैनिक मजदूरी में अलग अलग राज्यों में काफी असमानता है. महंगाई दर के लगातार ऊंची रहने के बावजूद कई राज्यों में मजदूरों को दिन भर काम के बदले सिर्फ करीब 200 रुपये दिए जा रहे हैं.
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आरबीआई ने भारतीय राज्यों से जुड़े अलग अलग आंकड़ों की अपनी हैंडबुक का सातवां संस्करण निकाला है. इसमें 2021-22 के आंकड़ों को शामिल किया गया है. आर्थिक क्षेत्र की कई गतिविधियों से संबंधित आंकड़ों को इस हैंडबुक में जगह दी गई है, जिसमें ग्रामीण इलाकों में दी जाने वाली दैनिक मजदूरी भी शामिल है.
20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सामान्य कृषि मजदूरों को मिलने वाली दैनिक मजदूरी का मूल्यांकन किया गया है. आंकड़े अलग अलग राज्यों में दी जाने वाली मजदूरी में बड़ी खाई दिखा रहे हैं. 20 में से कम से कम 10 राज्य राष्ट्रीय औसत जितनी भी मजदूरी नहीं देते.
आरबीआई ने बताया है कि इन आंकड़ों का स्रोत केंद्र सरकार का श्रम ब्यूरो है. सभी राज्यों में केरल सबसे आगे है. यहां सामान्य कृषि मजदूरों को 2021-22 के दौरान 726.8 रुपये दैनिक मजदूरी मिली. 2014-15 में इस श्रेणी के लिए दिहाड़ी 575.1 रुपए थी.
उसके बाद हर साल इसमें 20-25 रुपयों की वृद्धि हुई. कोरोना वायरस महामारी के दौरान 2020-21 में इसमें सिर्फ छह रुपए की वृद्धि हुई. इस श्रेणी में दैनिक मजदूरीका राष्ट्रीय औसत 323.32 रुपए है. यानी केरल की दर राष्ट्रीय औसत के दुगुने से भी ज्यादा है.
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अधिकांश राज्यों में 500 रुपयों से कम
केरल के बाद स्थान है जम्मू और कश्मीर का, हालांकि वह भी केरल से काफी पीछे है. जम्मू-कश्मीर में सामान्य कृषि मजदूरों को 2021-22 में 524.6 रुपए दैनिक मजदूरी दी गई. 2014-15 में यह 367.7 रुपये थी. इसमें हर साल 15-20 रुपये का इजाफा होता आया है. 2020-21 में इसमें करीब 50 रुपए की बढ़ोतरी हुई.
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बाकी सभी राज्यों में दिहाड़ी की दर 500 रुपये से नीचे ही है. हिमाचल प्रदेश में 457.6 और तमिलनाडु में 445.6 रुपये है. सबसे कम मजदूरी देने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार शामिल हैं.
मध्य प्रदेश में सिर्फ 217.8 रुपए मजदूरी दी जाती है, जो देश में सबसे कम है. पिछले एक साल में इसमें सिर्फ लगभग 20 पैसों की बढ़ोतरी हुई है. 2014-15 से भी इसमें सिर्फ 67 रुपयों का इजाफा हुआ है.
2020-21 में इसे 19 रुपए बढ़ाया गया था. गुजरात में दैनिक मजदूरी 220.3 रुपए है. 2014-15 के मुकाबले इसमें सिर्फ 60 रुपयों की बढ़ोतरी हुई है. 2020-21 में इसे पांच रुपयों से भी कम बढ़ाया गया था.
निर्माण में ज्यादा मजदूरी
कृषि के अलावा दूसरे तरह का काम करने वालों को मिलने वालीदैनिक मजदूरी की भी लगभग ऐसी ही तस्वीर है. 681.8 रुपए दिहाड़ी के साथ केरल इस श्रेणी में भी आगे है.
क्यों पैदल जा रहे हैं मजदूर
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जम्मू-कश्मीर में दिहाड़ी 500.8 है, तमिलनाडु में 462.3 और हिमाचल प्रदेश में 389.8 है. सबसे निचला स्थान पाने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश में 230, त्रिपुरा में 250, गुजरात में 252.5 और महाराष्ट्र में 277.2 रुपए दिहाड़ी है.
निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर कृषि के मुकाबले थोड़ा ज्यादा कमा लेते हैं. केरल में इन श्रमिकों को 2021-22 में 837.7 रुपए दैनिक मजदूरी मिली. जम्मू-कश्मीर में 519.8 और तमिलनाडु में 478.6 रुपये मिले. त्रिपुरा में 250, मध्य प्रदेश में 266.7 और गुजरात में 295.9 रुपए दिए गए.
कैसी है रोज कमाने खाने वालों की आर्थिक हालत
कोरोना महामारी के कारण बंद आर्थिक गतिविधियां तो शुरू हो गईं हैं, लेकिन जो लोग रोज कमाते और खाते हैं उनकी आर्थिक स्थिति पहले जैसी नहीं हो पाई है. उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
कम ग्राहक, कम कमाई
दीवाली के मौके पर कमला देवी और उनके परिवार ने इस सोच के साथ दिया, मूर्ति और अन्य सजावट के सामान खरीदे कि इस बार उनकी अच्छी कमाई होगी. कमला देवी 20 रुपये में मिट्टी के चार दिये बेच रही हैं लेकिन उनका कहना है कि फिर भी माल नहीं बिक पा रहा है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
सुस्त बाजार
आम तौर पर देश में त्योहारों के समय में लोग मिट्टी के कारीगरों की मेहनत और लगन को ध्यान में रखते हुए तोल-मोल नहीं करते हैं लेकिन इस बार ग्राहक भी कम संख्या में आ रहे हैं. कुछ लोग हैं जो मिट्टी की आकर्षक मूर्तियां खरीदने जरूर आ रहे हैं और बिना पैसे कम कराए उन्हें खरीद भी रहे हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
देसी उत्पाद
बाजार में इस साल चीनी उत्पाद कम बिक रहे हैं. ज्यादातर सामान देसी हैं. कमलपन्ना कहती हैं उनके पास पूजा सामग्री से लेकर मोमबत्ती और सजावट के सामान हैं लेकिन कोरोना की वजह से बाजार पहले जैसा गुलजार नहीं है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
मोल-भाव
पूजा के लिए फूल और माला बेचने वाले गोविंद कहते हैं वे 50 रुपये में गेंदे के फूलों की माला बेच रहे हैं. हालांकि वे कहते हैं इसमें उनकी बचत सिर्फ 5 से 10 रुपये ही होगी. लोग उनसे दाम करने के लिए कहते हैं तो वे बेचने से इनकार कर देते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
कमाई का मौका
सड़क पर त्योहारों के मौके पर पूजा सामग्री और अन्य चीजें बेचने वाले परीक्षण सिंह यूपी के बलिया के रहने वाले हैं. वे हर साल इसी तरह लाई, बताशे और चीनी से बने मीठे खिलौने बेचते हैं, लेकिन वे भी कम ग्राहकों के आने से निराश हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
रंगोली के रंग
यूपी के मैनपुरी के शाहजहां हर साल नोएडा आकर रंगोली बनाने के लिए रंग बेचते हैं. उनका कहना है कि वे लॉकडाउन खत्म होने के बाद पहली बार नोएडा आए हैं. उनकी तरह कुछ और लोग भी हैं जो पास में ही रंगोली बनाने के रंग बेच रहे हैं. ग्राहकों को अपनी ओर खींचने के लिए वे थोड़े कम पैसे लेने को तैयार हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
सोने-चांदी की बिक्री भी कम
आर्थिक सुस्ती का असर सिर्फ बड़े उद्योगों पर ही नहीं हुआ बल्कि सोने के गहने बेचने वाले ज्वैलर्स पर भी हुआ. कोरोना काल में शादियां बहुत फीकी रहीं और अब उन्हें उम्मीद है कि इन त्योहारों में वे नुकसान से उबर पाएंगे.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
मात्र दो सौ रुपये कमाई
लॉकडाउन के पहले तक सत्ते सिंह मोबाइल कवर, मोबाइल के लिए स्क्रीन कवर और ईयर फोन बेचते थे लेकिन उनके पास अब कोई ग्राहक नहीं आता है. वे कहते हैं कि मेट्रो के गेट बंद होने की वजह से उनके पास लोग नहीं आते हैं और इसी कारण वे मास्क भी बेचने लगे हैं. उनकी एक दिन की कमाई पहले जहां 800 से लेकर 1,000 रुपये होती थी वह घटकर 200 रुपये पर आ गई है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
चाय पीने वाले कहां
धीरज मंडल सड़क किनारे चाय और मट्ठी बेचते हैं. उनके मकान का किराया पिछले कुछ महीनों से बकाया है. धीरज बताते हैं कि कमाई बस इतनी हो पाती है जिससे उनका घर किसी तरह से चल पाए.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
सवारी का इंतजार
ऑटो चालक सुनील हर रोज सवेरे-सवेरे काम पर निकलते हैं और कई बार दोपहर तक कुछ ही पैसे कमा पाते हैं. वे बताते हैं कि कोरोना के पहले सारे खर्च अलग कर रोजाना एक हजार रुपये घर ले जाया करते थे लेकिन अब खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है.