केरल अब सितंबर के अंत तक 18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक व्यक्ति को कोविड के खिलाफ टीकाकरण करने की योजना बना रहा है. राज्य में ओणम के बाद मामले तेजी से बढ़े हैं.
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केरल में कोविड-19 के मामलों की संख्या पिछले 24 घंटों में लगभग 30 प्रतिशत बढ़कर 31,455 से अधिक हो गई. केरल सरकार ने कोरोना के मामलों में उछाल के लिए 'ओणम' को जिम्मेदार ठहराया है. राज्य में 19.03 प्रतिशत की पॉजिटिविटी दर के साथ 215 मौतें दर्ज की गई हैं.
केरल में पिछली बार 20 मई को एक दिन में संक्रमण के मामले 30,000 के पार चले गए थे और उस दिन 30,491 नए कोविड-19 रोगियों की पहचान हुई थी.
एर्नाकुलम में सबसे ज्यादा मामले
बुधवार को राज्य के 14 जिलों में से सात- एर्नाकुलम, त्रिशूर, कोझीकोड, मलप्पुरम, पलक्कड़, कोल्लम और कोट्टायम में दो हजार से अधिक मामले सामने आए. एर्नाकुलम ने सबसे अधिक ताजा संक्रमण (4000 से अधिक मामले) दर्ज किए, त्रिशूर, कोझीकोड और मलप्पुरम में तीन हजार से अधिक मामले दर्ज किए गए.
केरल के मामले में कहा जा रहा है कि ओणम के उत्सव के सप्ताह बाद राज्य में एक बार फिर से महामारी बढ़ी है. ये बढ़े मामले भी तब दर्ज किए गए हैं जब केरल में ओणम के चलते अभी कम टेस्टिंग हो रही हैं. सरकार ने ओणम और मोहर्रम के दौरान पाबंदियों में ढील दी जिसका नतीजा यह रहा कि राज्य में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े.
कोविड काल में रूप बदलती बार्बी
1959 में दुनिया में आने के बाद से उसने दर्जनों रूप बदले हैं. आजकल वह कोविड से जूझती दुनिया के रूप अपना रही है. मिलिए, कोविड में बार्बी से...
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कोविड में बार्बी, एक वैज्ञानिक
दुनियाभर में मशहूर गुड़िया बार्बी के बनानेवालों ने इसे एक नए रूप में पेश किया है. कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे वैज्ञानिकों के सम्मान में बार्बी को एक ब्रिटिश वैज्ञानिक का रूप दिया गया है. यह वैज्ञानिक हैं सारा गिल्बर्ट जिन्होंने वैक्सीन बनाने में अहम भूमिका निभाई.
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पहली बार्बी
9 मार्च 1959 को पहली बार्बी गुड़िया बाजार में आई थी. मैटल कंपनी की यह गुड़िया सुनहरे बालों और पतली कमर वाली थी, जिसे यूरोपीय लड़कियों जैसा बनाया गया था.
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प्यारी यादें
बार्बी ने दशकों से अनगिनत बच्चों के बचपन को यादों से भरा है. जाने कितने ही बच्चों के कमरों का यह अहम हिस्सा रही है. बार्बी के साथ उसका बॉयफ्रेंड केन भी एक अहम किरदार रहा है.
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कोई मुकाबला नहीं
बार्बी और केन 1980 के दशक में बड़ी हुईं तमाम लड़कियों की जिंदगी का अहम हिस्सा रहे. कई कंपनियों ने बार्बी का मुकाबला करने की कोशिश की, जैसे जर्मनी में बनी पेट्रा जो काफी कोशिशों के बाद भी बार्बी की जगह नहीं ले पाई.
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बदलते रूप
1980 के दशक में ही बार्बी का मेकओवर भी हुआ. उसे बनाने वाली कंपनी मैटल ने करियर लाइन के रूप में बार्बी के कई अलग-अलग अवतार उतारे जैसे कि एस्ट्रोनॉट, डॉक्टर, टीचर, आर्किटेक्ट आदि.
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विविधता
साल 2000 के बाद बार्बी में बड़ा बदलाव आया. अब उसका रूप एक मॉडल जैसा ना होकर एक मध्यवर्गीय कामकाजी महिला जैसा हो गया. उसके कपड़े भी चकमदार नहीं बल्कि व्यवहारिक हो गए. 2016 में मैटल ने बार्बी को चार अलग-अलग आकारों में भी पेश किया जिनमें दुबले पतले से लेकर सामान्य तक शामिल थे.
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बदलता वक्त
2017 में बार्बी ने पहली बार हिजाब पहना. वह रियो ओलंपिक में शामिल हुईं अमेरिका की तलवारबाज इब्तिहाज मुहम्मद के रूप पर बनाई गई थी.
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दुनियाभर में चाहने वाले
केन्या में बार्बी कोई शहरी आधुनिक लिबास वाली लड़की नहीं बल्कि अफ्रीका के पारंपरिक लिबास पहने एक लड़की थी.
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विफल भी रही बार्बी
बार्बी के कई रूप विफल भी रहे. जैसे फ्रीडा काल्हो वाला रूप जिस कारण मैटल को अदालत भी जाना पड़ा, जब उस पर कॉपीराइट के उल्लंघन का आरोप लगा. मैटल को उसे वापस लेना पड़ा.
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2019 के बाद
बार्बी के विशेषांक भी लोकप्रिय रहे हैं. जैसे 2019 में बार्बी को व्हील चेयर पर या एक नकली टांग लगाए बनाया गया.
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देश में सबसे ज्यादा केस
पिछले दिनों केरल में संक्रमण की उच्च संख्या की जांच के लिए केंद्र द्वारा नियुक्त छह सदस्यीय टीम ने राज्य का दौरा किया था. उसने पाया था कि होम आइसोलेशन प्रोटोकॉल, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और आरटी-पीसीआर जांच की संख्या में लापरवाही बरती जा रही है.
राज्य की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार की योजना अधिक से अधिक लोगों का परीक्षण करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू करने की है ताकि उन्हें जल्द से जल्द अलग-थलग किया जा सके और वायरस को दूसरों में फैलने से रोका जा सके. उन्होंने कहा कि राज्य में जैसे-जैसे मामले बढ़ते जाएंगे, जांच भी तेज की जाएगी.
केरल में बढ़े हुए मामले तब आए हैं, जब एक दिन पहले ही केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने अगले चार हफ्तों तक "सतर्कता" बढ़ाने का आह्वान किया था.
कितना खर्च हुआ कोविड के इलाज पर
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भारत में कोविड के इलाज पर हुआ औसत खर्च आम आदमी की सालाना आय से परे है. आइए जानते हैं आखिर कितना खर्च सामने आया इस अध्ययन में.
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भारी खर्च
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इंस्टिट्यूट के इस अध्ययन में सामने आया कि अप्रैल 2020 से जून 2021 के बीच एक औसत भारतीय परिवार ने जांच और अस्पताल के खर्च पर कम से कम 64,000 रुपए खर्च किए. अध्ययन के लिए दामों के सरकार द्वारा तय सीमा को आधार बनाया गया है.
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महीनों की कमाई
भारत में एक औसत वेतन-भोगी, स्वरोजगार वाले या अनियमित कामगार के लिए कोविड आईसीयू का खर्च कम से कम उसके सात महिने की कमाई के बराबर पाया गया. अनियमित कामगारों पर यह बोझ 15 महीनों की कमाई के बराबर है.
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आय के परे
आईसीयू में भर्ती कराने के खर्च को 86 प्रतिशत अनियमित कामगारों, 50 प्रतिशत वेतन भोगियों और स्वरोजगार करने वालों में से दो-तिहाई लोगों की सालाना आय से ज्यादा पाया गया. इसका मतलब एक बड़ी आबादी के लिए इस खर्च को उठाना मुमकिन ही नहीं है.
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सिर्फ आइसोलेशन भी महंगा
सिर्फ अस्पताल में आइसोलेशन की कीमत को 43 प्रतिशत अनियमित कामगार, 25 प्रतिशत स्वरोजगार वालों और 15 प्रतिशत वेतन भोगियों की सालाना कमाई से ज्यादा पाया गया. अध्ययन में कोविड की वजह से आईसीयू में रहने की औसत अवधि 10 दिन और घर पर आइसोलेट करने की अवधि को सात दिन माना गया.
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महज एक जांच की कीमत
निजी क्षेत्र में एक आरटीपीसीआर टेस्ट की अनुमानित कीमत, यानी 2,200 रुपए, एक अनियमित कामगार के एक हफ्ते की कमाई के बराबर पाई गई. अमूमन अगर कोई संक्रमित हो गया तो एक से ज्यादा बार टेस्ट की जरूरत पड़ती है. साथ ही परिवार में सबको जांच करवानी होगी, जिससे परिवार पर बोझ बढ़ेगा.
अध्ययन में कहा गया कि इन अनुमानित आंकड़ों को कम से कम खर्च मान कर चलना चाहिए, क्योंकि सरकार रेटों में कई अपवाद हैं और इनमें से अधिकतर का पालन भी नहीं किया जाता. इनमें यातायात, अंतिम संस्कार आदि पर होने वाले खर्च को भी नहीं जोड़ा गया है.