राजशाही और गुलामों के सौदे की जांच के लिए खुलेगा अर्काइव्स
७ अप्रैल २०२३
ब्रिटिश राजशाही के गुलामी से संबंध खोजने वाली स्वतंत्र रिसर्च को ब्रिटेन के राजा चार्ल्स थर्ड ने मंजूरी दी. राज महल बकिंघम पैलेस ने इसकी पुष्टि की है.
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आधिकारिक राज्याभिषेक से एक महीने पहले पैलेस ने कहा कि अकादमिक शोधकर्ता रॉयल अर्काइव्स तक आसानी से पहुंच सकेंगे. बकिंघम पैलेस के मुताबिक इस मुद्दे को खुद राजा चार्ल्स ने "बेहद गंभीरता" से लिया है.
बकिंघम पैलेस ने यह भी कहा कि राज परिवार, राजशाही और गुलामी के रिश्तों की पड़ताल करने वाले स्वतंत्र रिसर्च प्रोजेक्ट को सपोर्ट करेगा. ऐसी रिसर्च के लिए 17वीं शताब्दी के आखिर से 18वीं शताब्दी तक के दस्तावेज मुहैया कराए जाएंगे. राज परिवार के अधीन आने वाले ये दस्तावेज अब तक शोधकर्ताओं की पहुंच से दूर थे.
पैलेस ने अपने बयान में कहा, "इन मुद्दों की जटिलताओं को देखते हुए, यह जरूरी है कि जितना संभव हो सके उतने विस्तृत तरीके से इनकी छानबीन की जाए." अनुमान है कि "रिसर्च सितंबर 2026 तक पूरी हो जाएगी."
नई खोजों से पैदा हुई बहस
ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अखबार द गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अर्काइव दस्तावेजों से इतिहासकार ब्रूके न्यूमैन को पता चला कि 1689 में महाराज विलियम तृतीय ने रॉयल अफ्रीकन कंपनी (आरएसी) को 1,000 पाउंड के बराबर शेयर दिए थे. आरएसी अटलांटिक के आर पार गुलामों का कारोबार करने के लिए बदनाम थी.
हाल ही में सामने आए इस दस्तावेज में एडवर्ड कॉल्स्टन के दस्तखत हैं. कारोबारी कॉल्स्टन उस वक्त गुलामों के सौदे का बड़ा खिलाड़ी था. 2020 में ब्लैक लाइव्स मैटर प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों ने ब्रिस्टल शहर में कॉल्स्टन की मूर्ति गिराकर समंदर में फेंक दी.
किंग विलियम तृतीय से पहले, महाराज जेम्स द्वितीय भी रॉयल अफ्रीकन कंपनी के सबसे बड़े निवेशक थे. गुलामी प्रथा या गुलामों के कारोबार को लेकर ब्रिटिश राजपरिवार के किसी सदस्य ने अभी तक माफी नहीं मांगी है.
हाल के बरसों में कैरेबियाई देशों में गुलामों के कारोबार के मुद्दे पर ब्रिटिश राजघराने और सरकार से मुआवजे की मांग जोर पकड़ रही है. कई कैरेबियाई देश कॉमनवेल्थ से बाहर निकल रहे हैं. जमैका और बहमाज अब भी ब्रिटिश राजगद्दी पर बैठे शख्स को अपना राष्ट्र प्रमुख मानते हैं. इन देशों में भी अतीत के जख्मों के लिए मुआवजे की मांग सुनाई दे रही है.
ओएसजे/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
ब्रिटिश साम्राज्य की है मिली जुली विरासत
कभी लगभग आधी दुनिया पर कायम ब्रिटिश हुकूमत का 20वीं सदी में अंत तो हो गया, लेकिन उस हुकूमत की विरासत आज भी कई देशों में जिंदा है. आइए एक नजर डालते हैं इसी विरासत के कुछ अच्छे और कुछ बुरे पहलुओं पर.
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कानून
ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के बाद भी दंड संहिता, कंपनी एक्ट, बैकिंग एक्ट और मोटर एक्ट जैसे सैकड़ों कानून हैं, जो आज भी कई देशों में जारी हैं. समय समय पर इनमें सुधार जरूर किया गया, लेकिन इन कानूनों की नींव वही पुरानी है.
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संसदीय लोकतंत्र
भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड समेत कॉमनवेल्थ के 40 से ज्यादा देशों ने आजादी के बाद भी ब्रिटेन की संसदीय लोकतंत्र की परंपरा अपनायी. इन देशों की संसदीय प्रणाली आज भी ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली जैसी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
संगठित सेना
ब्रिटिश राज को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए स्थानीय लोगों को सेना में भर्ती किया गया. दूसरे विश्वयुद्ध की तैयारी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में बड़ी संगठित सेना बनायी गयी. ऐसी ही सेना अमेरिका और कनाडा में विद्रोह को दबाने के लिए भी थी. ब्रिटिश राज के पतन के बाद भी इन देशों को सेना का संगठित ढांचा मिला.
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अंग्रेजी
ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अलग अलग देशों में अपनी भाषा अंग्रेजी का प्रसार किया. शासन, न्याय और उच्च शिक्षा के गलियारों में अंग्रेजी ने अपनी जगह पक्की कर ली. आज भी भारत, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के शासन और सर्वोच्च न्यायालय की भाषा अंग्रेजी है.
तस्वीर: 2015 Disney Enterprises, Inc
बैंकिग सेक्टर
दुनिया भर में फैले अपने उपनिवेशों को वित्तीय रूप से ब्रिटेन से जोड़ने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने वहां बैकिंग सेक्टर की नींव रखी. भारत में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में बैंक खोले गये. ऐसे ही वित्तीय संस्थान अन्य देशों में भी अस्तित्व में आये.
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रेलवे
विस्तारवादी और कारोबारी नजरिये से ब्रिटिश साम्राज्य ने अपने उपनिवेशों में रेलवे पर काफी जोर दिया. भारत, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटिश अमेरिका और कनाडा में उन्होंने रेलवे को खासी तवज्जो दी. ब्रिटिश काल में बना रेलवे ढांचा आज भी इन देशों की जीवनरेखा है.
तस्वीर: Imago
डाक विभाग
भारत, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे बड़े भूभाग पर संवाद को सुचारू रूप से चलाने के लिए ब्रिटिश शासन ने डाक व्यवस्था शुरू की. सामान्य पत्र, रजिस्ट्री और तार जैसी सेवाएं ब्रिटिश काल में ही शुरू हुईं. ज्यादातर पोस्ट ऑफिस भी उसी दौरान बनाये गये.
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क्रिकेट
क्रिकेट अब भारत की रग रग में बस चुका है. दो बार वनडे में और एक बार टी20 में भारत विश्वविजेता बन चुका है. लेकिन यह खेल भारत में अंग्रेज ही लेकर आये. सन 1959 में अंग्रेजों को मद्रास टेस्ट में हराकर भारत ने साबित कर दिया कि भविष्य में वह इस खेल में इक्कीस साबित होगा.
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चाय
आज भारत के बड़े इलाके में किसी से मिलने उनके घर जायें तो पहली चीज चाय ही पूछी जाती है. अंग्रेजों ने भारतीय टी का प्रचार व प्रसार किया. गांव देहातों तक पहुंची टी में दूध पड़ने लगा और देखते ही देखते स्वादिष्ट चाय बन गई.
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सीमा विवाद
इक्का दुक्का देशों को छो़ड़ दें तो ब्रिटिश हुकूमत ने जिन जिन इलाकों पर राज किया, वहां आज भी गंभीर सीमा विवाद बने हुए हैं. एशिया में भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन और पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच सीमा विवाद बरकरार है. वहीं कांगो और सेंट्रल अफ्रीका समेत अफ्रीका में कई देश सीमा विवाद में उलझे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Naveed
जातीय संघर्ष
"फूट करो और राज करो" इस नीति ने लंबे वक्त तक ब्रिटिश हूकूमत की शासन चलाने मदद की. लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब ज्यादातर देश आजाद हुए तो वहां फैलाया गया जातीय संघर्ष ज्यादा हिंसक हो उठा. एशिया और अफ्रीका के कई देशों में सांप्रदायिक और जातीय संघर्ष आज भी जारी है.
तस्वीर: Reuters/M. Gupta
रंगभेद
गोरा रंग श्रेष्ठता की पहचान है. ब्रिटिश साम्राज्यवाद का पतन भले ही हो गया हो, लेकिन उसका ये मनोवैज्ञानिक संदेश उनके पूर्व उपनिवेशों में आज भी मौजूद है. दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में आज भी मूल निवासी हाशिये पर दिखते हैं.
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वन्य जीवों का सफाया
ब्रिटिश हूकूमत ने अपने उपनिवेशों में प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन किया. अंग्रेज अधिकारियों ने अपने शौक के लिए भारत में जमकर बाघों का शिकार किया. अफ्रीका में बेतहाशा शेर और हाथी मारे गये. हालांकि बाद में संरक्षण की कोशिशों में भी ब्रिटेन की बड़ी भूमिका रही.