नाइजीरिया के लागोस के माजीदून में बच्चे शतरंज के खेल के जरिए अपनी जिंदगी बदलने की जुगत में लगे हुए हैं. उन्हें उम्मीद है कि इस खेल की चाल से वे मलिन बस्ती से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ पाएंगे.
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प्लास्टिक की मेज की चारों ओर बच्चों का ध्यान शतरंज की बिसात पर है. वे शतरंज की चालों को समझने की कोशिश करते हैं. वे ध्यान के साथ अपनी चाल चलते हैं और पर्यवेक्षक उनकी चालों का निरीक्षण करते हैं. नाइजीरिया की आर्थिक राजधानी लागोस की ऊंची इमारतों और ऑफिस टॉवरों की दूसरी ओर बसी इस बस्ती के बच्चे उम्मीद में हैं कि जिस चालाकी और रणनीति के साथ इस खेल को वे सीखेंगे इससे वह बस्ती से बाहर छलांग लगाने में कामयाब होंगे.
14 साल का माइकल ओमॉयले कहता है, "यहां रहना मुश्किल है." ओमॉयले खुद भोजन की कमी से जूझ चुका है और वह अपना पेट भरने के लिए काम काम करता है. वह 2016 में आई फिल्म "क्वीन ऑफ कातवे" से प्रभावित है. जिसमें दिखाया गया कि कैसे केन्या की एक लड़की गरीबी से निकलने के लिए शतरंज का सहारा लेती है. ओमॉयले को उम्मीद है कि उसी तरह से शतरंज उसकी भी मदद करेगा. ओमॉयले कहता है, "शतरंज का खेल जीतने के लिए आप कड़ी मेहनत करते हैं और मुझे विश्वास है कि मैं बेहतर कर सकता हूं. मैं चैंपियन बन सकता हूं और धनी हो सकता हूं." ओमॉयले घर पर भी प्रैक्टिस करता है, उसके कमरे की दीवारों से नीले रंग का पेंट उखड़ रहा है.
26 साल के बाबतुंडे ओनाकोया ने 2018 में अफ्रीका में चेस स्लम की शुरूआत की थी. शतरंज ने ओनाकोया को उनके लागोस में गुजारे बचपन के उत्थान में मदद की. ओनाकोया कहते हैं कि उनका मानना है कि नाइजीरियाई शिक्षा संकट में है. वे कहते हैं कि कई बच्चे या तो स्कूल से बाहर हैं या उन्हें वह कौशल नहीं सिखाया जाता जिससे वे अपने जीवन को चलाने में इस्तेमाल कर सके.
अब वे अपना खाली समय भीड़भाड़ वाली गली और मोहल्लों में बच्चों को शतरंज सिखाने में बिताते हैं इस उम्मीद के साथ कि नाइजीरिया में शतरंज बच्चों के बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकता है. वे कहते हैं, "यही कारण है कि मैं उन्हें शतरंज सिखा रहा हूं, इस तरीके से बुद्धिजीवियों की एक नई पीढ़ी बनेगी, जो सवाल पूछने को लेकर उत्सुक होगी और जो कुछ नया भी कर पाएगी.
एए/सीके (रॉयटर्स)
नाइजीरिया में प्लास्टिक बोतलों से बन रहे हैं घर
नाइजीरिया में इन दिनों प्लास्टिक प्रदूषण और बेरोजगारी जैसी बड़ी समस्याओं का मुकाबला, खराब प्लास्टिक बोतलों से किया जा रहा है. यहां बोतलों में पत्थरों के कणों को भरकर मिट्टी और गारे की मदद से दीवार में चुना जाता है.
तस्वीर: DW/G. Hilse
अफ्रीका का प्लास्टिक हाउस
तस्वीर में नजर आ रहा यह घर अफ्रीकी देश नाइजीरिया की राजधानी अबूजा से 20 किमी की दूरी पर स्थित है. यह मिट्टी, प्लास्टिक और क्रंकीट से बन रहा अफ्रीका का सबसे बड़ा घर है. अब तक इस निर्माण कार्य में 46 हजार से अधिक प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल हो चुका है. कुछ बोतलें बिल्डर को दान में मिली हैं, तो कुछ उन्होंने कचरा जमा करने वालों से जुटाईं.
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रिसाइक्लिंग यूनिट
18.6 करोड़ की आबादी वाले देश नाइजीरिया में प्लास्टिक कचरा एक बड़ी समस्या है. प्लास्टिक बोतलें जल निकासी के लिए बड़ी बाधा बन रही हैं. हर साल देश में 3.2 टन कचरा निकलता है, लेकिन कोई भी ठोस कचरा प्रबंधन प्रणाली नहीं है. ऐसे में ये रिसाइक्लिंग प्रोजेक्ट्स नाइजीरिया के लिए बहुत अहम हो गए हैं.
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कैसे हुई शुरुआत?
इंजीनियर याहाया अहमद ने जिंदगी के 27 साल जर्मनी में काम करते हुए गुजारे हैं. एक बार जब वह अपने देश नाइजीरिया की यात्रा पर गए तो वहां प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देख कर चितिंत हुए. अहमद बताते हैं, "मुझे कुछ करना था. मुझे मेरे एक जर्मन दोस्त ने इस तरीके के बारे में बताया, तब मुझे लगा कि हमें ये नाइजीरिया में भी चाहिए." यह परियोजना दक्षिण अमेरिका के देशों में बने घरों से प्रेरित है.
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बेरोजगारी से मुकाबला
15-24 साल के तकरीबन एक चौथाई नाइजीरियाई युवाओं के पास आय का कोई नियमित स्रोत नहीं है. इनमें से कई भीख मांगते हैं तो कुछ चोरी कर गुजारा करते हैं. इंजीनियर अहमद कहते हैं, "ये नौजवान कट्टरपंथियों गुटों या शोषण का आसानी से शिकार हो सकते है, इसलिए हम उन्हें काम का विकल्प देना चाहते हैं."
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साधारण लेकिन प्रभावी
इन घरों को बनाने की प्रक्रिया काफी सरल है. खाली प्लास्टिक बोतलों को मिट्टी और पत्थरों के कणों से भरा जाता है. इसके बाद इन्हें एक के ऊपर एक रख नायलोन की रस्सी से बांधा जाता है. अंत में इन्हें मिट्टी और गारे की मदद से दीवार में चुना जाता है. यह प्रक्रिया न सिर्फ पर्यावरण के लिए अनुकूल है, बल्कि खर्च में भी दो-तिहाई की कटौती होती है.
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सीखना और अपनाना
ईंटों के काम को जानने वाले सीबा पिछले सात सालों से इन बोतलों के बीच काम कर रहे हैं. सीबा कहते हैं, "पहले बोतलों से काम करना कुछ असामान्य लगता था, लेकिन जब एक बार इसकी तकनीक समझ जाओ तो यह कुछ अलग नहीं लगता."
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बुलेटप्रूफ और भूकंपरोधी
इस निर्माण कार्य की एक विशेषता इसकी स्थिरता भी है. रेत से भरी ये बोतलें टूटती नहीं है. होंडुरस में बने ऐसे घर रिक्टर स्केल पर 7.3 की तीव्रता वाले भूकंप का सामना करने में भी सफल रहे थे. इन घरों को बनाने वाले इसके बुलेटप्रूफ होने का दावा भी करते हैं.
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अलग-अलग रंग
अबूजा में चल रहे इस प्रोजेक्ट में बिल्डर हर स्तर पर रचनात्मक होने की कोशिश कर रहे हैं. अलग-अलग रंग और आकार वाली प्लास्टिक बोतलों का उपयोग किया जा रहा है. घर की दीवारों को परंपरागत ढंग से रंगा भी गया है.
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मास्टर ट्रेनर
अहमद ने छह महीने का वक्त बिल्डरों को नई तकनीक सिखाने में लगाया था. जर्मनी ने इस काम में वित्तीय सहायता मुहैया कराई है. अहमद से इस तकनीक को सीखने वाले कुछ लोग आज स्वयं प्रशिक्षक बनकर नई पीढ़ी को सिखा रहे हैं. (ग्वेंडोलिन हिल्से/ एए)