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खत्म हुई जर्मन त्योहार में महिलाओं को पीटने की परंपरा

एलिजाबेथ ग्रेनियर
६ दिसम्बर २०२४

जर्मनी के बोरकुम में एक स्थानीय त्योहार की सदियों पुरानी वो प्रथा इस बार बंद कर दी गई, जिसमें युवा पुरुष महिलाओं के नितंबों पर गाय के सींग से मारते थे.

क्लाजोम त्योहार
क्लाजोम त्योहार की कई परंपराओं में से एक है सींगो से पीटनातस्वीर: Reinhold Grigoleit/dpa/picture alliance

जर्मनी में अधिकांश लोग संत निकोलस के त्योहार को किसी को नुकसान न पहुंचाने वाली परंपरा से जोड़ते हैं. बच्चे 5 दिसंबर की रात को अपने साफ किए हुए जूते घर के दरवाजे के पास छोड़ देते हैं. उनका मानना है कि संत निकोलस रात में आएंगे और उनके जूतों में छोटे-छोटे तोहफे और मिठाई रख जाएंगे. अगली सुबह बच्चे जाकर देखते हैं कि संत निकोलस उनके लिए क्या लेकर आए.

वहीं जर्मनी के बवेरिया जैसे कुछ इलाकों में क्रिसमस के समय एक और किरदार का जिक्र होता है, जिसका नाम क्राम्पुस है. वह डरावना और बालों वाला शैतान जैसा दिखता है. अलग-अलग इलाकों में उसके कई तरह के नाम प्रचलित हैं. लोग उसके नाम पर डरावने कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं. यह लोककथाओं के त्योहार का हिस्सा है.

इसी तरह, ‘क्लाजोम' त्योहार भी संत निकोलस से जुड़ी एक लोकपरंपरा है. कई सदियों से हर साल 5 दिसंबर की रात को उत्तरी सागर के बोरकुम द्वीप पर इसे मनाया जाता है. इस द्वीप की आबादी 5,000 से अधिक है. इस बार यहां पुलिस की भारी तैनाती थी. 600 से भी ज्यादा लोगों ने यहां सड़कों पर निकल कर उत्साह और गर्मजोशी के साथ त्योहार मनाया और कोई अप्रिय घटना नहीं घटी. असल में बीते साल जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर ‘एनडीआर' की एक वीडियो रिपोर्ट के बाद यह त्योहार सुर्खियों में आया था और इसके एक हिस्से पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही थी.

बंद हॉल में पुरुषों के बीच कुश्ती जैसी प्रतियोगिता होती है जिसमें केवल द्वीप के लोग ही मौजूद रह सकते हैंतस्वीर: Reinhold Grigoleit/dpa/picture alliance

2023 की उस वीडियो रिपोर्ट के लिए चैनल के दो पुरुष पत्रकारों ने त्योहार में चुपके से रिकॉर्डिंग की थी. उन्होंने मोबाइल फोन की मदद से दिन के समय होने वाले जश्न का वीडियो बनाया. इसमें दिखता है कि समुदाय के युवा लोगों ने क्लाजोम के पारंपरिक कपड़े पहने हुए हैं, लोगों ने भेड़ की खाल और पक्षी के पंखों से बने मुखौटे पहने हुए होते हैं. बाद में अलग-अलग उम्र के 'क्लाजोम' आपस में कुश्ती जैसा एक खेल खेलते हैं. यह कार्यक्रम सिर्फ द्वीप के लोगों के लिए होता है. इसलिए पर्यटकों या पत्रकारों को इसे देखने की अनुमति नहीं होती है.

जश्न का सिलसिला रात तक जारी रहता है. पत्रकारों ने चोरी-छिपे तथाकथित ‘कैचर' समूह का वीडियो बनाया था. इसमें दिखता है कि कुछ लोग महिलाओं का पीछा करते हैं,  उन्हें पकड़ते हैं और फिर क्लाजोम उनके नितंबों पर गाय के सींग से मारते हैं. इस दौरान वहां मौजूद बच्चे और अन्य लोग खुशी मनाते हैं.

गवाहों और पीड़ितों को छिपानी पड़ी थी पहचान

एनडीआर की रिपोर्ट में द्वीप की तीन महिलाएं और एक पुरुष अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर साक्षात्कार में शामिल हुए. ये लोग खुद पहले इस रिवाज का हिस्सा बन चुके हैं और अब इसकी निंदा करते हैं. साक्षात्कार में शामिल पुरुष अब उस द्वीप को छोड़ चुके हैं.

महिलाओं ने बताया कि बचपन में उन्हें यह विश्वास दिलाया गया था कि यह लुका-छिपी का एक रोमांचक खेल है जो द्वीप पर रहने वाले लोगों की साझा पहचान का हिस्सा है. यही वजह है कि किशोरावस्था में उन्होंने अपनी इच्छा से इस रिवाज में हिस्सा लिया, लेकिन यह उनके लिए एक दर्दनाक अनुभव बन गया.

यहां तक कि बोरकुम छोड़ने वाला युवक भी कैमरे के सामने अपना चेहरा नहीं दिखाना चाहता है. उसे डर है कि इस रिवाज की आलोचना करने पर उसके परिवार को खतरा हो सकता है.

उन्होंने कहा, "बोरकुम में अगर आप इस बात के बारे में खुलकर बात करते हैं कि यह बंद होना चाहिए, तो आपको बताया जाता है कि आप इस त्योहार के महत्व को नहीं समझते हैं, आप परंपरा का सम्मान नहीं कर रहे हैं, और आप द्वीप के बाहर के दबाव के आगे झुक रहे हैं.”

एनडीआर के पत्रकारों ने द्वीप के लोगों से इस रिवाज पर उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की. जिन लोगों ने पहले बात करने के लिए सहमति जताई थी, उनमें से कई ने बाद में इस बात पर जोर दिया कि रिपोर्ट को सार्वजनिक तौर पर प्रसारित करने से पहले उनकी टिप्पणियों को हटा दिया जाए.

'पुरुषों के लिए महत्वपूर्ण है'

कैमरे पर खुलकर बोलते हुए एक वृद्ध महिला ने त्योहार के दौरान अपनी युवावस्था में पीटे जाने के वाकये को याद किया. उन्होंने कहा कि मैंने कभी भी इस रिवाज की प्रशंसा नहीं की है. जब उनसे पूछा गया कि बोरकुम में लोगों के लिए यह रिवाज इतना महत्वपूर्ण क्यों है, तो उन्होंने जवाब दिया, "यह पुरुषों के लिए महत्वपूर्ण है. बोरकुम में रहने वाले लोग इसी तरह बड़े होते हैं और यही सच है. यह पूरी तरह से पुरुषों का दिन है. इसलिए आपको पुरुषों से पूछना चाहिए और जानना चाहिए कि इस बारे में उनका क्या विचार है.”

एक व्यक्ति ने इसे किसी को नुकसान न पहुंचाने वाला मजाक बताते हुए कहा, "जब युवा पुरुष किसी महिला को देखते हैं, तो वे उसे गाय के सींग से थोड़ा पीटते हैं. यह किसी तरह की हिंसा नहीं है.”

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हालांकि अपनी पहचान छिपाकर साक्षात्कार देने वाली महिलाओं ने बताया कि पिटाई के कारण वे चोटिल हो गई थीं और उन्हें कई दिनों तक दर्द होता रहा. वहीं, द्वीप छोड़कर दूसरी जगह बस गए व्यक्ति ने बताया कि अगर कोई महिला पिटाई के बाद पांच या छह दिन तक बैठ नहीं पाती है, तो पुरुषों को वास्तव में गर्व महसूस होता है.

इस त्योहार के आयोजकों के साथ-साथ पुलिस और बोरकुम के मेयर, सभी ने एनडीआर के पत्रकारों को साक्षात्कार देने से इनकार कर दिया. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि क्लाजोम की पहचान उजागर न हो, इसके लिए इस कार्यक्रम को सोशल मीडिया पर प्रचारित करने से मना किया जाता है.

महिलाओं को पीटने का रिवाज खत्म किया गया

अधिकारियों का कहना है कि महिलाओं को पीटने का रिवाज अब इस त्योहार से हटा दिया गया है. रिपोर्ट सामने आने के बाद कई लोगों ने इसके खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी थी. इसके जवाब में बोरकुम के अधिकारियों ने एक बयान में स्वीकार किया कि मीडिया से दूर रहना एक गलती थी.

क्लाजोम की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार एसोसिएशन बोरकुमेर युगेंस ई.वी. 1830 के अध्यक्ष ने कहा, "हमें पता है कि रिपोर्ट में त्योहार को गलत तरीके से दिखाया गया है और इसमें कई गलतियां हैं. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमने उनके सभी अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया था.”

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एसोसिएशन ने माना कि आज इस परंपरा को विवादास्पद माना जा सकता है. एसोसिएशन के अध्यक्ष ने मीडिया को दिए अपने बयान में कहा कि गाय के सींगों से पीटना अतीत में परंपरा का हिस्सा था और हाल के वर्षों में भी कुछ लोगों ने ऐसा किया. हम महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा की निंदा करते हैं और पिछले वर्षों में की गई गलतियों के लिए माफी मांगते हैं.”

एसोसिएशन ने कहा, "एक समुदाय के तौर पर हमने अपनी परंपरा के इस रिवाज को स्पष्ट रूप से खत्म करने का फैसला किया है. इसके बजाय, वे इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं कि वास्तव में त्योहार क्या है: द्वीप पर रहने वाले लोगों की एकजुटता.”

महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर 'जीरो-टॉलरेंस'

इसी तरह, पुलिस के प्रवक्ता ने कहा कि हम ‘जीरो-टॉलरेंस की नीति' अपना रहे हैं. किसी तरह की हिंसा स्वीकार नहीं की जाएगी. एनडीआर के पत्रकारों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मीडिया की आलोचना का सामना करने का एक बेहतर तरीका है, जैसा कि ऑस्ट्रिया में क्रम्पुस रन के मामले में देखा गया है.

इस परंपरा के अनुसार, शैतान की वेशभूषा धारण किए लोग जुलूस देखने वालों को बर्च की लकड़ी से बनी छड़ी से मारते हैं. पिछले कुछ सालों में, शराब के नशे और अराजक भीड़ के कारण इन जुलूसों में हिंसा हुई है और कई लोग घायल हुए हैं. इसकी वजह से यह परंपरा सुर्खियों में आयी.

अब ऑस्ट्रिया में इन आयोजनों के दौरान सख्त सुरक्षा व्यवस्था की जाती है. लोगों के लिए सुरक्षित जगहें बनाई जाती हैं जहां वे पिटने से बच सकते हैं. हर क्राम्पुस को एक नंबर दिया जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर उसकी पहचान की जा सके. और अब क्राम्पुस को भी सिर्फ रस्म अदायदी के नाम पर लोगों को छूने की अनुमति है, उन्हें वास्तव में मारने की अनुमति नहीं है.

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