कुवैत में हुए संसदीय चुनाव में महिला उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है. इस चुनाव में विपक्ष को फायदा होता दिखा है. अनौपचारिक विपक्ष ने भ्रष्टाचार और उच्च ऋण पर सुधारों की मांग के बीच लगभग आधी सीटें जीतीं.
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कुवैत में शनिवार को 50 सदस्यीय संसद के सदस्यों का चुनाव हुआ था. इस चुनाव में 326 उम्मीदवार मैदान में थे. 29 महिला उम्मीदवार भी किस्मत आजमा रही थीं लेकिन एक भी महिला चुनाव में सफल नहीं हो पाई. चुनाव ऐसे समय में हुआ था जब तेल समृद्ध देश कोरोना वायरस महामारी के दौरान आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहा है. 2012 के बाद पहली बार है कि संसद में एक भी महिला सदस्य नहीं होगी. गौरतलब है कि कुवैत में महिलाओं को मतदान का अधिकार पिछले सिर्फ 15 सालों से है.
2011 में अरब क्रांति के दौरान प्रदर्शनों के बाद से कुवैत की संसद सत्तारूढ़ अल सबाह परिवार के विरोध के मामले में कमजोर हो चुकी है. उस समय कुवैत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसने सत्ता पक्ष को हिलाकर रख दिया था. शनिवार को चुनाव शेख नवाफ अल-अहमद अल-सबाह के नेतृत्व में हुए, सितंबर महीने में कुवैत के अमीर शेख सबाह के निधन के बाद शेख नवाफ ने सत्ता संभाली थी.
1963 में, कुवैत एक निर्वाचित संसद की स्थापना करने वाला खाड़ी क्षेत्र का पहला देश बना था और यह नियमित रूप से स्वतंत्र संसदीय चुनाव कराता आया है. हालांकि सत्ता प्रभावी रूप से अल-सबाह परिवार और अमीर के हाथों में ही रहती है, जो सरकार की नियुक्ति करता है. सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध के बीच उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे. लेकिन कई लोग स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, उनमें से एक अलग-अलग विचारधारा वाले लोगों का विपक्षी समूह है जो दलों के बजाय व्यक्तियों से बना एक विपक्षी गठबंधन है.
विपक्ष को मिला लाभ
शनिवार का चुनाव कुवैत के अनौपचारिक विपक्ष के लिए एक जीत थी, जिसके उम्मीदवारों ने सप्ताहांत के चुनावों में संसद की लगभग आधी सीटें जीतीं. विपक्षी लोग भ्रष्टाचार और उच्च ऋण पर सुधार की मांग के साथ चुनाव में उतरे थे. संसद की 50 में से 24 सीटें ऐसे लोगों ने जीती हैं जिनका संबंध या झुकाव विपक्ष की ओर है, पिछली बार यह संख्या 16 थी.
इस बार 30 ऐसे उम्मीदवार चुने गए हैं जिनकी उम्र 45 वर्ष से कम हैं और वे देश में नए कानून बनाने पर अपनी राय रख पाएंगे, इनकी जीत से युवाओं में यह संकेत गया है कि देश में बदलाव और सुधार होगा.
कुवैती महिला सांस्कृतिक और सामाजिक संस्था की प्रमुख लुलवा सालेह अल-मुल्ला कहती हैं कि चुनाव नतीजे थोड़े कड़वे हैं. उन्हें संसद के लिए चुने गए युवा सांसदों से काफी उम्मीद है लेकिन महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी से वे निराश हैं. वे कहती हैं, "फिर भी, लोगों ने बदलाव के लिए चुनावों में सकारात्मक रूप से भाग लिया और कुछ ऐसे भ्रष्ट तत्वों को हटा दिया जिन्होंने लोकतंत्र की छवि को बिगाड़ दिया था और अपने पद का दुरुपयोग किया था."
भारत में लोग समय कैसे बिताते हैं इस विषय पर सरकार ने पहली बार एक सर्वेक्षण कराया है. सर्वे में यह साबित हो गया है कि शहर हो या गांव, महिलाएं आज भी हर जगह चारदीवारी के अंदर ही सीमित हैं.
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कैसे बिताते हैं समय
सर्वेक्षण जनवरी से दिसंबर 2019 तक 5,947 गांवों और 3,998 शहरी इलाकों में कराया गया. इसमें 1,38,799 परिवारों ने भाग लिया, जिनमें छह साल से ज्यादा उम्र के 4,47,250 लोगों से सवाल पूछे गए.
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अपना ख्याल रखने में बिताते हैं ज्यादा वक्त
दिन के 24 घंटों में पुरुष और महिलाएं दोनों सबसे ज्यादा समय अपना ख्याल रखने में बिताते हैं. पुरुष उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त रोजगार और उससे जुड़ी गतिविधियों में बिताते हैं और महिलाएं उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त बिना किसी वेतन के घर के काम करने में बिताती हैं.
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रोजगार में महिलाओं की भागीदारी कम
सर्वे में पूरे देश में सिर्फ 38.2 प्रतिशत लोगों को रोजगार में व्यस्त पाया गया. ग्रामीण इलाकों में यह दर 37.9 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 56.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 19.2 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर 38.9 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 59.8 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 16.7 प्रतिशत है.
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उत्पादन में महिलाएं आगे
अपने इस्तेमाल के लिए सामान के उत्पादन में देश में सिर्फ 17.1 प्रतिशत लोग लगे हुए हैं. ग्रामीण इलाकों में यह दर 22 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 19.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 25 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर सिर्फ 5.8 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 3.4 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 8.3 प्रतिशत है.
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घर के काम करने में पुरुष बहुत पीछे
बिना किसी वेतन के घर के काम करने में ग्रामीण इलाकों में पुरुषों की भागीदारी सिर्फ 27.7 प्रतिशत है और महिलाओं की 82.1 प्रतिशत. शहरों में पुरुषों की भागीदारी है 22.6 प्रतिशत और महिलाओं की 79.2 प्रतिशत. ग्रामीण इलाकों में पुरुषों ने इन कामों में औसत एक घंटा 38 मिनट बिताए जब कि महिलाओं ने पांच घंटे एक मिनट. शहरी इलाकों में पुरुषों ने एक घंटा और 34 मिनट दिए जबकि महिलाओं ने चार घंटों से ज्यादा समय दिया.
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दूसरों की देख-भाल भी ज्यादा करती हैं महिलाएं
बिना किसी वेतन के दूसरों की देख-भाल करने में भी महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा आगे हैं. ग्रामीण इलाकों में यह सिर्फ 14.4 प्रतिशत पुरुष करते हैं जबकि महिलाओं का प्रतिशत 28.2 है. शहरी इलाकों में इसमें पुरुषों की भागीदारी 13.2 प्रतिशत है और महिलाओं की 26.3 प्रतिशत.
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पूजा-पाठ और लोगों से मिलने पर विशेष ध्यान
91.3 प्रतिशत भारतीय पूजा-पाठ, लोगों से मिलने और सामुदायिक गतिविधियों में शामिल होते हैं. इसमें ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में 90 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं और पुरुषों दोनों की भागीदारी है. ग्रामीण इलाकों में इन पर पुरुष एक दिन में औसत दो घंटे और 31 मिनट और महिलाएं दो घंटे और 19 मिनट बिताती हैं. शहरी इलाकों में महिलाएं और पुरुष दोनों ही इन पर एक दिन में औसत दो घंटे और 18 मिनट बिताते हैं.