यह वीडियो किसी साइंस फिक्शन फिल्म के सीन जैसा लगता है. दरअसल यह चीन का एक प्रोजेक्ट है, जो जल्द ही कल्पना से हकीकत में तब्दील हो सकता है.
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घंटों लंबे लंबे ट्रैफिक जाम से कौन वाकिफ नहीं है. इनसे बचने के लिए चीन में टीबीएस नाम की एक कंपनी ने बसों को हवा में चलाने का इरादा किया है. यह वैसे तो दिल्ली और मुंबई में चलने वाली मेट्रो की ही तरह है क्योंकि ऊपर हवा में चल रही मेट्रो से नीचे सड़क पर चल रहे यातायात को कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन फिर भी उससे अलग है. जरा ध्यान से देखिए, यह मेट्रोनुमा बस नीचे मौजूद सभी वाहनों को उगलती हुई नजर आ रही है.
ऐसा इसलिए क्योंकि यह किसी पुल के ऊपर नहीं चल रही, बल्कि सड़क की पूरी चौड़ाई को नाप रही है. इसके पहिए हैं तो जमीन पर ही लेकिन यात्री एलिवेटर ले कर ऊपर जाते हैं और वहीं सफर करते हैं. यही वजह है कि इसे "लैंड एयरबस" का नाम दिया गया है. इस बस के हर डिब्बे में करीब 300 लोग सफर कर सकते हैं. इमरजेंसी में लोगों को किस तरह बाहर निकाला जाएगा, इस बारे में भी सोचा गया है.
भविष्य की उड़ान
ईंधन लगातार महंगा होता जा रहा है. अगर हम आने वाले दिनों में उड़ना चाहते हैं तो ऐसे विमान बनाए जाने की जरूरत है, जहां ईंधन कम लगे. एविएशन डिजाइनर भविष्य के विमानन की रूपरेखा बना रहे हैं.
तस्वीर: Bauhaus-Luftfahrt e.V.
ग्रीन एविएशन
दुनिया भर में सीओ2 उत्सर्जन का तीन फीसदी उड़ानों से होता है. यूरोपीय आयोग के लिए यह बहुत ज्यादा है. 2050 तक वह इसमें 25 फीसदी की कमी करना चाहता है. नए एविएशन प्रोजेक्ट से यह संभव होगा. तस्वीर में बाउहाउस लुफ्टफार्ट का डिजाइन. एक विमान जो बिजली से चलता है.
तस्वीर: Bauhaus-Luftfahrt e.V.
बर्फीले इंजिन
विमान सिर्फ ताकतवर इंजिनों से ही उड़ सकता है. इन इंजिनों को माइनस 190 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर दिया जाता है. बिजली ले जाने वाले केबलों और वायरों में इलेक्ट्रिकल रेसिस्टेंस बिलकुल खत्म हो जाता है. अब इंजीनियर सिर्फ बैटरी को हल्का बनाने की कोशिश में लगे हैं.
तस्वीर: Bauhaus-Luftfahrt e.V.
आकार अहम
सही आकार ही ईंधन बचाने में मदद कर सकता है. यह तस्वीर जर्मन एरोस्पेस सेंटर के प्लेन की है, जिसमें कैबिन और पंखों को एक कर दिया गया है. इस "ब्लेंडेड विंग बॉडी" से प्रतिरोध कम होता है और कैबिन भी विंग्स का हिस्सा बन जाता है.
तस्वीर: DLR
जेट इंजिन की बजाए प्रोपेलर
खुले रोटर आधुनिक जेट इंजिन की बजाए अधिक क्षमता वाले हैं. जर्मन एविएशन सेंटर का शोध बताता है कि इस नए तरीके से 20 फीसदी तक ईंधन बचाया जा सकता है. रोटर का व्यास पांच मीटर तक हो सकता है.
तस्वीर: DLR
अच्छा लेकिन शोर करने वाला
वैसे तो खुले रोटर प्लेन के पीछे के हिस्से में लगाए जा सकता हैं. इनकी क्षमता तो अच्छी होगी लेकिन ये आज के प्लेन की तुलना में थोड़े धीमे होंगे. दो घंटे की उड़ान 15 मिनट लंबी हो सकती है. एक मुश्किल यह भी है कि रोटर बहुत आवाज करते हैं.
तस्वीर: DLR
केवल क्षमता
यहां देखा जा सकता है कि क्षमता बढ़ाने के लिए नए विमान का डिजाइन कैसा होगा. लंबे पंख, पतली बॉडी और बिजली का इंजिन. सोलर इम्पल्स नाम का यह प्लेन बैर्टांड पिकार्ड और आंद्रे बोर्शबर्ग ने बनाया है. लेकिन यह सिर्फ 70 किलोमीटर प्रति घंटा ही चल सकता है और मालवाहन के काम नहीं आ सकता.
तस्वीर: Reuters
फोल्ड होने वाले पंख
लंबे और पतले पंख एरोडायनमिक्स के लिए अच्छे होते हैं और ईंधन बचाने में मदद करते हैं. सोलर प्लेन के पंख जंबो जेट से पांच मीटर ही छोटे हैं. अधिकतर एयरपोर्टों पर ऐसे गेट नहीं हैं, जहां इतने बड़े पंख वाले विमान लगाए जा सकें. तो हल है, मुड़ने वाले पंख.
तस्वीर: Bauhaus-Luftfahrt e.V.
तेज तर्रार
जिन्हें बहुत जल्दी है, उनके लिए जर्मन एविएशन सेंटर का स्पेसलाइनर एक अच्छा विकल्प है. यह एक गोल सा, हाइपरसॉनिक पंखों वाला यात्री विमान है, जिसमें रॉकेट का इंजिन लगा है. 2050 तक यह यूरोप से ऑस्ट्रेलिया 90 मिनट में पहुंचा सकेगा.
तस्वीर: DLR
बायप्लेन की ओर
लुफ्थांसा के बॉक्सविंग प्लेन में बड़े खुले प्रॉपेलर हैं और खूब लंबे और पतले पंख हैं. इस बायप्लेन के पंख तीर की तरह हैं, लेकिन इनकी लंबाई सामान्य हवाई अड्डों के लिए भी ठीक है.