वैज्ञानिकों को ग्रीनलैंड के हिमखंडों में भारी मात्रा में मर्करी के अंश मिले हैं, जो एक खतरनाक संकेत है. यह पारा मानव शरीर में पहुंचकर भारी नुकसान कर सकता है.
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2012 में जब ब्रिटेन के जियोकेमिस्ट जॉन हॉकिंग्स पहली बार ग्रीनलैंड गए थे तो काफी प्रभावित हुए थे. वह कहते हैं, "झकझोर देने वाला था. दूर-सुदूर तक बस बर्फ ही बर्फ. 150-200 किलोमीटर दूर तक.” हॉकिंग्स अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह के साथ ग्रीनलैंड गए थे जिनका मकसद था यह जांचना कि हिमखंडों के पिघलने से जो पानी समुद्र में मिलता है, उसका समुद्री तटों के जीवन पर क्या असर हो रहा है. लेकिन उनके शोध ने तब एक बड़ा मोड़ लिया जब उन्होंने ग्लेशियर की नदियों और झीलों के पानी में पारे की मौजूदगी देखी.
इन्सानी बस्तियों से दूर होने के बावजूद, उद्योगों या किसी अन्य प्रदूषक से दूर होने के बावजूद दक्षिण पश्चिम ग्रीन लैंड के तीन हिमखंडों के पानी में पारा मौजूद था और इसकी मात्रा किसी औद्योगिक क्षेत्र के पानी से कहीं ज्यादा थी. जॉन हॉकिंग्स के नेतृत्व में हुए एक अध्ययन के नतीजे नेचर जियोसाइंस पत्रिका में छपे हैं. हॉकिंग्स बताते हैं, "इतना अधिक पारा तो आमतौर पर बहुत ज्यादा प्रदूषित जगहों पर ही मिलता है. हमने चीन की प्रदूषित नदियों से तुलना की क्योंकि वहीं इतनी अधिक मात्रा में प्रदूषक मिले थे.”
कैसे हुआ खुलासा?
नदियों के पानी में आमतौर पर पारे की मात्रा एक से 10 नैनोग्राम प्रति लिटर तक होती है. हॉकिंग्स के मुताबिक यह ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल में रेत के एक कण जितनी है. लेकिन दक्षिण पश्चिम ग्रीनलैंड के जल में शोधकर्ताओं को 150 नैनोग्राम प्रति लिटर तक पारा मिला है. और प्रमाणों का इशारा इस बात की ओर है कि यह पारा प्रकृतिक भूगर्भीय स्रोतों से पैदा हो रहा है.
इन इलाकों को डुबो सकता है खारा पानी
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से सन 2100 तक समुद्र का जलस्तर 65 सेंटीमीटर ऊपर उठ सकता है, यानि पानी करीब कमर के बराबर ऊपर आ जाएगा. इसकी वजह से कई शहर और देश डूबने लगेंगे.
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नील नदी का डेल्टा
अफ्रीका में नील नदी के डेल्टा पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा मंडरा रहा है. अगर समुद्र का पानी 50 सेंटीमीटर भी ऊपर उठा तो सिकंदरिया (अलेक्जांड्रिया) शहर के लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा.
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शंघाई
चीन का सबसे बड़ा शहर शंघाई समुद्र के किनारे बसा है. अनुमान है कि समुद्र का बढ़ता जलस्तर शंघाई के एक से दो करोड़ बाशिंदों को दूसरे इलाकों में जाने पर मजबूर कर सकता है.
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बांग्लादेश
समुद्र का पानी अगर एक मीटर ऊपर चढ़ा तो बांग्लादेश की 30 हजार वर्गकिलोमीटर जमीन डूब जाएगी. इस जमीन पर फिलहाल 1.5 करोड़ लोग निर्भर हैं.
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फिलीपींस
फिलीपींस के तटीय इलाके समुद्र से कुछ ही सेंटीमीटर की ऊंचाई पर हैं. आशंका है कि जलवायु परिवर्तन फिलीपींस के कुछ द्वीपों को डुबा देगा. इन द्वीपों पर अलग अलग भाषाओं और संस्कृतियों वाले समुदाय रहते हैं.
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आर्किपेलागो इलाका
अमेरिका की कोलोराडो यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों के मुताबिक समुद्र के बढ़ते जलस्तर का असर कुछ द्वीपों पर बहुत ही ज्यादा पड़ेगा. हिंद महासागर में मालदीव और प्रशांत महासागर में तुवालू जैसे इलाकों को एक मीटर ऊपर उठा पानी डूबा देगा.
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नीदरलैंड्स
यूरोप में समुद्र के बढ़ते जलस्तर का सबसे ज्यादा खतरा नीदरलैंड्स पर है. खारे पानी के एक मीटर ऊपर ऊठते ही यूरोप में करीब 1.3 करो़ड़ लोग प्रभावित होंगे. नीदरलैंड्स की सरकार कई दशकों से लगातार जमीन को खारे पानी से बचाने की कोशिश कर रही है.
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बार्सिलोना
वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि सन 2100 तक बार्सिलोना समेत यूरोप के कई खूबसूरत बीच डूब जाएंगे. लोगों के साथ साथ इसकी मार कई बंदरगाहों पर भी पड़ेगी.
इटली का रूमानी शहर वेनिस बीते कई साल से बढ़ते जलस्तर का सामना कर रहा है. 1897 के मुकाबले आज वेनिस में समुद्र का जलस्तर 30 सेंटीमीटर ऊंचा है. 2018 में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि इस सदी के अंत तक यह खूबसूरत शहर जलमग्न हो जाएगा.
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लंदन
ब्रिटेन की राजधानी लंदन पर समुद्र के उठते जलस्तर की सीधी मार नहीं पड़ेगी. लेकिन ऊपर उठा पानी थेम्स नदी के ताजा जल को पीछे धकेल देगा और बाढ़ की घटनाएं बढ़ेंगी.
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हॉकिंग्स बताते हैं कि 2012 में उन्होंने ग्रीनलैंड से हिमखंडों के पानी के नमूने यूं ही ले लिए थे. तब पारे की मात्रा अधिक मिली थी लेकिन यह आंकड़े सीमित थे. 2015 में यह समूह फिर से ग्रीनलैंड गया और इस बार उन्होंने विस्तार से अध्ययन करने का फैसला किया. नतीजे फिर वैसे ही मिले. 2018 में जब तीसरी बार नमूनों की जांच की गई और वही नतीजे आए तो वैज्ञानिकों को यकीन हो गया.
हॉकिंग्स कहते हैं, "मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ था क्योंकि मात्रा बहुत ज्यादा था. यह एकदम अनपेक्षित था. वैज्ञानिक होने के नाते मैं उत्साहित भी हो रहा था कि कुछ नया मिला है, जो पहले किसी ने नहीं खोजा था लेकिन चिंता भी हो रही थी.”
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चिंता क्यों?
मर्करी या पारा एक जहरीली धातु है. यह कुदरती तौर पर हवा, पानी और मिट्टी में मिलता है. ज्वालामुखियों आदि से यह हवा-पानी में मिल जाता है. हालांकि प्रदूषण ने इसकी मात्रा बढ़ाई है. कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र और सोने का खनन आदि ऐसी गतिविधियां हैं जिन्होंने वातावरण में पारे की मात्रा बढ़ाई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मर्करी को 10 ऐसे रसायनों में रखा है, जो इन्सानी सेहत के लिए खतरनाक हैं. बहुत कम मात्रा में भी इनका मानव शरीर पर बहुत बुरा असर होता है. यह स्नायुतंत्र, पाचन तंत्र और फेफड़ों, गुर्दों त्वचा व आंखों पर सीधा प्रभाव डालता है.
इसलिए वैज्ञानिक चिंतित हैं कि यदि इतनी अधिक मात्रा में पारा जल में मिल रहा है, तो उस जल से भोजन के जरिए यह मानव शरीर में पहुंचकर भारी नुकसान कर सकता है.
- इजाबेल मार्टेल
समुद्र के नीचे है एक खूबसूरत और अनूठी दुनिया
हाल ही में अंटार्कटिका में वैज्ञानिकों को सतह के तनी हजार फीट नीचे बर्फ में कुछ जीव मिले. समुद्र की सतह के नीचे वाकई इस तरह के कई दुर्लभ जीव रहते हैं. एक नजर दुनिया के सबसे रोचक जल-जंतुओं पर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/Itsuo Inouye
एक नया रहस्य
अंटार्कटिका में सैकड़ों मीटर मोटी बर्फ की स्थायी चादर के नीचे वैज्ञानिकों को ऐसे जीव मिले हैं जिन्होंने अंधेरा और शून्य से नीचे के तापमान जैसी कठोर परिस्थितियों में जीना सीख लिया है. यह जीव स्पंज से मिलते जुलते हैं और यह खुले समुद्र से 260 किलोमीटर दूर पाए गए हैं. इनकी प्रजाति के बारे में अभी तक स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई है.
तस्वीर: British Antarctic Survey/dpa/picture alliance
वाइपरफिश
गहरे समुद्र में बहुत ज्यादा दबाव, ना के बराबर रौशनी और बहुत कम खाना होता है. इसलिए वहां रहने वाले जीव खुद को विशेष रूप से उन हालातों में जिंदा रहने के काबिल बना लेते हैं. वाइपरफिश का बड़ा सा मुंह और पैने दांत यह सुनिश्चित करने में उसकी मदद करते हैं कि उन्हें कभी भी भूखा ना रहना पड़े.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हैमरहेड शार्क
शोधकर्ताओं का मानना है कि हैमरहेड शार्कों का सपाट और दोनों सिरों से फैला हुआ सर उन्हें ज्यादा ऊंचा दृष्टि क्षेत्र देता है. इसकी मदद से अपने शिकार को बेहतर खोज पाती हैं.
तस्वीर: imago/imagebroker
मडस्किप्पर
मडस्किप्पर शायद यह फैसला नहीं कर पाईं कि उन्हें जमीन ज्यादा पसंद है या पानी और इस वजह से उन्होंने समझौता कर लिया और दोनों जगह रहने की जरूरतों को अपना लिया. यह होती तो हैं मछलियां लेकिन अपने विशेष पंखों का इस्तेमाल जमीन पर चलने के लिए भी कर सकती हैं. ये उभयचरों की तरह अपनी चमड़ी के जरिए सांस भी ले सकती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/MAXPPP
प्लाइस
प्लाइस एक फ्लैटफिश होती है. इसका शरीर समुद्र के तलछट के रंगों में घुल-मिल जाता है. बड़े होते होते इसकी दोनों आंखें सिर के एक ही तरफ आ जाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H.Bäsemann
वॉटर ड्रैगन
यह देखने में एक अष्वमीन या सीहॉर्स की तरह लगता है लेकिन असल में यह है रेड सी ड्रैगन नाम की एक दुर्लभ समुद्री मछली. इनकी पहचान 2015 में हुई थी लेकिन शोधकर्ता हाल ही में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट के पास इन्हें ठीक से देखने में सफल हुए हैं. इन्हें 50 मीटर की गहराई में खाना खाते देखा गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Scripps Oceanography/UC San Diego
सीहॉर्स
असली सीहॉर्स भी काफी अजीबो-गरीब होते हैं. ये खड़े खड़े तैरने वाली चंद प्रजातियों में से एक हैं, लेकिन यह ठीक से हो नहीं पाता जिसकी वजह से ये अच्छे तैराक नहीं होते हैं. इनमें नर गर्भ धारण कर गर्भाशय में अंडे रखता है और फिर बच्चों को जन्म देता है.
तस्वीर: Sea Life Sydney Aquarium
एंगलरफिश
यह मछली अपने शिकार को अपने सिर के ऊपर निकले हुए मांस के टुकड़े इलीशियम से आकर्षित करती है. इलीशियम की नोक से रौशनी निकलती है जिसकी तरफ शिकार जिज्ञासा-वश खिंचा चला आता है और फिर यह मछली उसे अपने विशाल मुंह से निगल जाती है. यह मछली दुनिया में लगभग हर जगह पाई जाती है, यहां तक कि गहरे समुद्र में भी.
तस्वीर: RIA Novosti
इलेक्ट्रिक ईल
इस तरह का नाम होने के बावजूद इलेक्ट्रिक ईल कोई ईल नहीं बल्कि एक नाइफ मछली होती है. हां इसमें बिजली जरूर होती है और यह अपने शिकार को मारने के लिए 600 वोल्ट तक के बिजली के शक्तिशाली झटके दे सकती है. शोधकर्ताओं को पता चला है कि यह मछली बिजली के उच्च वोल्टेज के अपने बहाव का इस्तेमाल एक उच्च कोटि के ट्रैकिंग उपकरण की तरह भी करती है, ठीक वैसे जैसे चमगादड़ अपनी प्रतिध्वनि यानी एको का इस्तेमाल करते हैं.
तस्वीर: imago/Olaf Wagner
बैंडेड आर्चरफिश
यह मछली खारे पानी में रहती है और शिकार करने के लिए एक अनूठे तरीके का इस्तेमाल करती है. यह हवा में पानी का एक फव्वारा मार कर कीड़ों को मार गिराती है. बड़ी मछलियां तीन मीटर तक की दूरी से भी शिकार कर सकती हैं.
यह मछली रेत में छिप कर अपने शिकार के गुजरने का इंतजार करती है और जैसे ही शिकार उसके सिर के ऊपर से गुजरता है वह तेजी से ऊपर की तरफ निकलती है और उसे खा जाती है. इनकी आंखें ऊपर की तरफ होती हैं और एक बड़ा ऊपर की तरफ मुड़ा मुंह होता है. यह मछली अगर कभी आपको दिखे तो बच के रहिएगा, यह जहरीली होती है.
तस्वीर: picture-alliance / OKAPIA KG
पफर फिश
इस मछली का पेट इलास्टिक के जैसे होता है जिसे यह खतरे का आभास होने पर पानी से भर लेती है. ऐसा करने से इसका आकार बहुत बड़ा हो जाता है और यह लगभग गोलाकार हो जाती है. यह टेट्रोडोटॉक्सिन छोड़ती हैं जो इंसानों की जान ले सकता है. जापान में इसे खाया भी जाता है.