आखिरकार, सीसा आधारित पेट्रोल का इस्तेमाल दुनिया में हर जगह खत्म हो गया है. इस कदम से असमय होने वाली मौतों में 12 लाख की कमी और सालाना 24 अरब डॉलर की बचत का अनुमान है.
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संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने कहा है कि दुनियाभर से लेड-पेट्रोल का इस्तेमाल खत्म कर दिया गया है. लगभग एक सदी पहले डॉक्टरों ने लेड आधारित तेल के खतरों के प्रति चेतावनी जारी की थी. अल्जीरिया ऐसा तेल इस्तेमाल करने वाला आखरी देश था, जिसकी सप्लाई पिछले महीने खत्म हो गई.
यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर ऐंडरसन ने कहा, "लेडेड पेट्रोल पर प्रतिबंध की सफलता दुनिया की सेहत और हमारे पर्यावरण के लिए मील का एक अहम पत्थर है.”
इस पेट्रोल के इस्तेमाल का असमय होने वाली मौतों, मिट्टी की खराब सेहत और वायु प्रदूषण से सीधे संबंध के बावजूद दो दशक पहले तक भी 100 से ज्यादा देश लेडेड पेट्रोल का इस्तेमाल करते थे.
एक सदी का संघर्ष
लेडेड पेट्रोल के बारे में सबसे पहले चिंताएं 1924 में जाहिर की गई थीं जब अमेरिका की तेल कंपनी स्टैंडर्ड ऑयल के दर्जनों कर्मचारियों को एकाएक अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनमें से पांच की जान चली गई. इसके बावजूद 1970 के दशक तक लेड आधारित पेट्रोल दुनियाभर में बिकता रहा.
2002 में यूएनईपी ने इस पेट्रोल के खिलाफ अभियान शुरू किया. हालांकि तब तक अमेरिका, चीन और भारत समेत कई बड़े देश इस तेल का इस्तेमाल बंद कर चुके थे. लेकिन गरीब देशों में हालात लगातार गंभीर बने रहे.
2016 तक आते आते उत्तर कोरिया, म्यांमार और अफगानिस्तान ने भी लेड आधारित पेट्रोल बेचना बंद कर दिया. उसके बाद इराक, यमन और अब जाकर अल्जीरिया ने भी इस तेल का प्रयोग करना बंद कर दिया है.
तस्वीरेंः कार स्क्रैपिंग नीति
वाहन स्क्रैपिंग नीति की खास बातें
भारत में गाड़ियों के लिए नई स्क्रैप नीति का ऐलान हुआ है. नई स्क्रैप नीति में डीजल और पेट्रोल के निजी वाहनों को 20 साल तक चलने की इजाजत दी गई है. वाणिज्यिक वाहनों के लिए भी नीति बनाई गई है.
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पुरानी अनफिट गाड़ी हो जाएंगी रिटायर
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में प्रस्तावित वाहन स्क्रैपिंग नीति पर बयान दिया. उनके मुताबिक भारत में 20 साल से पुराने 51 लाख हल्के मोटर वाहन हैं और 15 साल से पुराने 34 लाख हल्के मोटर वाहन हैं. पुराने वाहन फिट वाहनों की तुलना में पर्यावरण को 10 से 12 गुना अधिक प्रदूषित करते हैं और सड़क सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा करते हैं.
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पर्यावरण की चिंता
सड़कों पर गाड़ियों से चलने वाले और पैदल चलने वाले लोगों की सुरक्षा और स्वच्छ वातावरण के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय "वाहन स्क्रैपिंग नीति" की शुरुआत कर रहा है. जो कि स्वैच्छिक रुप से वाहनों के आधुनिकीकरण का एक कार्यक्रम होगा. जिसका उद्देश्य प्रदूषण फैलाने वाले अनफिट गाड़ियों को सड़क से हटाने के लिए एक इको सिस्टम बनाना है.
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गाड़ियों की फिटनेस पर जोर
गाड़ियों को दो तरीके से स्क्रैप किया जा सकेगा. जो वाणिज्यिक वाहन के लिए, स्वचालित फिटनेस सेंटर के फिटनेस सर्टिफिकेट और निजी वाहन के मामले में उसके पंजीकरण के रजिस्ट्रेशन के आधार पर तय होगा. यह मानक जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका और जापान जैसे अलग-अलग देशों के मानकों के तुलनात्मक अध्ययन के बाद अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर बनाए गए हैं.
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फिट नहीं तो सड़क से हटो
फिटनेस टेस्ट में विफल रहने वाले या अपने रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट का नवीनीकरण कराने में विफल रहने वाले वाहन की आयु खत्म घोषित कर दी जाएगी. वाहन की फिटनेस का निर्धारण मुख्य रूप से उत्सर्जन परीक्षण, ब्रेकिंग, सुरक्षा उपकरण समेत कई अन्य मानकों पर परीक्षणों के आधार पर होगा.
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कैसे चलेगी पुरानी गाड़ी
निजी वाहनों के लिए प्रस्ताव किया गया है कि उन्हें 20 साल के बाद रजिस्ट्रेशन का रिनुअल न होने की हालत में और अनफिट पाए जाने पर डी-रजिस्टर कर दिया जाएगा. इन गाड़ियों को हतोत्साहित करने के उपाय के रूप में निजी वाहनों के लिए उनके शुरूआती रजिस्ट्रेशन की तारीख से 15 साल की अवधि पूरी हो जाने के बाद फिर से रजिस्ट्रेशन कराने के लिए बढ़ी हुई फीस देनी होगी.
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कार खरीदारों को कितना फायदा
स्क्रैपिंग सर्टिफिकेट दिखाने पर नई गाड़ी खरीदते समय वाहन की खरीद की कीमत में 5 प्रतिशत की छूट दी जा सकती है. इसके अलावा स्क्रैपिंग सर्टिफिकेट दिखाने के बाद नई गाड़ी खरीदने पर रोड टैक्स में 25 फीसदी की छूट दी जा सकती है.
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स्क्रैप करने से बढ़ेगा कार उद्योग
वाहन स्क्रैप पॉलिसी से देश में एल्युमीनियम, तांबा, प्लास्टिक और रबर की रिसाइकिलिंग को बढ़ावा मिलेगा. ऑटोमोबाइल कंपनियों को रिसाइकिलिंग से कच्चा माल हासिल होगा जिससे लागत कम होगी और देश में कारों की बिक्री बढ़ेगी. सरकार के मुताबिक इस व्यवस्था से लगभग 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश आने की उम्मीद है और 35,000 लोगों को रोजगार मिलेगा.
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अपने बयान में यूएनईपी ने कहा कि लेड आधारित तेल के खात्मे से "हर साल असमय होने वालीं 12 लाख मौतों को रोका जा सकेगा, बच्चों का आईक्यू बढ़ेगा, 24.4 अरब डॉलर की बचत होगी और अपराध कम होंगे.” यूएनईपी ने चेतावनी दी है कि पर्यावरण पर होने वाले असर को कम करने के लिए जीवाश्व ईंधन के इस्तेमाल में भारी कमी की जरूरत है.
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‘जहरीले युग का अंत'
दुनिया के कई संगठनों ने लेड आधारित पेट्रोल का इस्तेमाल बंद होने की खबर का स्वागत किया है. पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस ने कहा कि यह एक जहरीले युग का अंत है.
ग्रीनपीस अफ्रीका की थांडिले चिन्यावानु ने कहा, "यह साफतौर पर दिखाता है कि अगर हम 20वीं सदी में सबसे जहरीले ईंधनों में से एक को खत्म कर सकते हैं तो सारे जीवाश्व ईंधनों का भी धीरे धीरे खात्मा किया जा सकता है. अफ्रीकी सरकारों को जीवाश्म ईंधन उद्योग के लिए अब और बहाने नहीं बनाने चाहिए.”
देखिए, कच्चे तेल से क्या मिलता है
कच्चे तेल से क्या क्या मिलता है
कच्चे तेल से सिर्फ पेट्रोल या डीजल ही नहीं मिलता है, इससे हर दिन इस्तेमाल होने वाली ढेरों चीजें मिलती हैं. एक नजर कच्चे तेल से मिलने वाले अहम उत्पादों पर.
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ब्यूटेन और प्रोपेन
कच्चे तेल के शोधन के पहले चरण में ब्यूटेन और प्रोपेन नाम की प्राकृतिक गैसें मिलती हैं. बेहद ज्वलनशील इन गैसों का इस्तेमाल कुकिंग और ट्रांसपोर्ट में होता है. प्रोपेन को अत्यधिक दवाब में ब्युटेन के साथ कंप्रेस कर एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) के रूप में स्टोर किया जाता है. ब्यूटेन को रेफ्रिजरेशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
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तरल ईंधन
प्रोपेन अलग करने के बाद कच्चे तेल से पेट्रोल, कैरोसिन, डीजल जैसे तरल ईंधन निकाले जाते हैं. सबसे शुद्ध फॉर्म पेट्रोल है. फिर कैरोसिन आता है और अंत में डीजल. हवाई जहाज के लिए ईंधन कैरोसिन को बहुत ज्यादा रिफाइन कर बनाया जाता है. इसमें कॉर्बन के ज्यादा अणु मिलाए जाते हैं. जेट फ्यूल माइनस 50 या 60 डिग्री की ठंड में ही नहीं जमता है.
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नैफ्था
पेट्रोल, कैरोसिन और डीजल बनाने की प्रक्रिया में जो अपशेष मिलता है, उससे बेहद ज्वलनशील तरल नैफ्था भी बनाया जाता है. नैफ्था का इस्तेमाल पॉकेट लाइटरों में किया जाता है. उद्योगों में नैफ्था का इस्तेमाल स्टीम क्रैकिंग के लिए किया जाता है. नैफ्था सॉल्ट का इस्तेमाल कीड़ों से बचाव के लिए किया जाता है.
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नैपाम
कच्चे तेल से मिलने वाला नैपाम विस्फोटक का काम करता है. आग को बहुत दूर भेजना हो तो नैपाम का ही इस्तेमाल किया जाता है. यह धीमे लेकिन लगातार जलता है. पेट्रोल या कैरोसिन के जरिए ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे बहुत जल्दी जलते हैं और तेल से वाष्पीकृत भी होते हैं.
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मोटर ऑयल
गैस और तरल ईंधन निकालने के बाद कच्चे तेल से इंजिन ऑयल या मोटर ऑयल मिलता है. बेहद चिकनाहट वाला यह तरल मोटर के पार्ट्स के बीच घर्षण कम करता है और पुर्जों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है.
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ग्रीस
मोटर ऑयल निकालने के साथ ही तेल से काफी फैट निकलता है. इसे ऑयल फैट या ग्रीस कहते हैं. लगातार घर्षण का सामना करने वाले पुर्जों को नमी से बचाने के लिए ग्रीस का इस्तेमाल होता है.
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पेट्रोलियम जेली
आम घरों में त्वचा के लिए इस्तेमाल होने वाला वैसलीन भी कच्चे तेल से ही निकलता है. ऑयल फैट को काफी परिष्कृत करने पर गंधहीन और स्वादहीन जेली मिलती है, जिसे कॉस्मेटिक्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
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मोम
ऑयल रिफाइनरी में मोम का उत्पादन भी होता है. यह भी कच्चे तेल का बायप्रोडक्ट है. वैज्ञानिक भाषा में रिफाइनरी से निकले मोम को पेट्रोलियम वैक्स कहा जाता है. पहले मोम बनाने के लिए पशु या वनस्पति वसा का इस्तेमाल किया जाता था.
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चारकोल
असफाल्ट, चारकोल, कोलतार या डामर कहा जाने वाला यह प्रोडक्ट भी कच्चे तेल से मिलता है. हालांकि दुनिया में कुछ जगहों पर चारकोल प्राकृतिक रूप से भी मिलता है. इसका इस्तेमाल सड़कें बनाने या छत को ढकने वाली वॉटरप्रूफ पट्टियां बनाने में होता है.
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प्लास्टिक
कच्चे तेल का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए भी किया जाता है. दुनिया भर में मिलने वाला ज्यादातर प्लास्टिक कच्चे तेल से ही निकाला जाता है. वनस्पति तेल से भी प्लास्टिक बनाया जाता है लेकिन पेट्रोलियम की तुलना में महंगा पड़ता है.
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दुनियाभर में वाहनों की बिक्री में तेजी से वृद्धि हो रही है. इनमें विकासशील देश सबसे आगे हैं. यूएनईपी ने कहा है कि आने वाले कुछ दशकों में एक अरब 20 लाख वाहन सड़कों पर उतारे जाएंगे. एक बयान में एजेंसी ने कहा, "ऊर्जा से जुड़े ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में परिवहन उद्योग का हिस्सा एक चौथाई से भी ज्यादा है और 2050 तक यह बढ़कर एक तिहाई हो जाएगा.”
यूएनईपी ने अमेरिका, यूरोप और जापान से पुराने और खराब गुणवत्ता वाले वाहनों के कम आय वाले देशों में जाने पर भी चिंता जताई. उसने कहा कि इससे ग्लोबल वॉर्मिंग और वायु प्रदूषण तो बढ़ता ही है, दुर्घटनाएं भी बढ़ती हैं.