इस हफ्ते इंडोनेशिया में आसियान सम्मेलन हो रहा है जहां जो बाइडेन नहीं जा रहे हैं. इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को लेकर चीन और अमेरिका दोनों के बीच खींचतान इस सम्मेलन में नजर आ रही है.
विज्ञापन
इस हफ्ते जब इंडोनेशिया के जकार्ता में आसियान और पूर्व एशियाई देशों के सम्मेलन होंगे तो सदस्य देशों के सामने अमेरिका और चीन दोनों के बीच एक संतुलन बनाते हुए अपने स्वतंत्र वजूद को सुनिश्चित करने के सवाल खड़े होंगे. पहले ईस्ट एशिया समिट के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के आने की संभावना जतायी जा रही थी लेकिन अब वहां उपराष्ट्रपति कमला हैरिस पहुंच रही हैं, जिनका मकसद इस इलाके में अमेरिका की प्रतिबद्धता को लेकर पैदा हुए संदेहों को दूर कर भरोसा जीतने की चुनौती होगी.
अमेरिका ने पिछले दो साल में इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की स्पष्ट तौर पर ज्यादा कोशिशें की हैं. हैरिस की यह दक्षिण-पूर्व एशिया की तीसरी यात्रा है. उन्होंने अन्य किसी महाद्वीप के मुकाबले अपने कार्यकाल में इस क्षेत्र के देशों की ज्यादा यात्राएं की हैं. इसके अलावा वह इन देशों के नेताओं से वॉशिंगटन में भी मिलती रही हैं, जिसके बाद अमेरिका सरकार उन्हें इन देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए एक मध्यस्थ के रूप में देख रही है, ताकि चीन के प्रभाव को संतुलित किया जा सके.
व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के प्रवक्ता जॉन कर्बी ने कहा कि हैरिस ने "हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हमारे संबंधों और साझीदारियों को अपने काम का विशेष हिस्सा बनाया है.” उन्होंने कहा कि इस हफ्ते हैरिस का क्षेत्र का दौरा इस एजेंडे को केंद्र में रखने का एक और संकेत है.
आसियान को नजरअंदाज कर रहा है अमेरिका?
जो बाइडेन के एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट नेशंस (आसियान) देशों की बैठक में शामिल ना होने के फैसले से कुछ हलकों में नाराजगी देखी गयी है क्योंकि इसी दौरान बाइडेन भारत और वियतनाम का दौरा कर रहे हैं. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि बाइडेन आसियान बैठक में भी शामिल होंगे. इंडोनेशिया के पूर्व विदेश मंत्री मार्टी नैटलेगावा कहते हैं, "राष्ट्रपति इस क्षेत्र में होंगे और आसियान बैठक से गैरहाजिर रहेंगे. यह बात अपने आप में बहुत कुछ कहती है.”
नैटलेगावा कहते हैं, "हम चाहे जितनी मर्जी शिकायत कर लें कि बड़े नेता हमारे यहां नहीं आ रहे हैं पर असल में यह अपनी ओर देखने का समय है. अगर आसियान ज्यादा प्रभावशाली नहीं बनेगा तो आने वाले नेताओं की संख्या घटती ही जाएगी.”
हालांकि नैटलेगावा मानते हैं कि आसियान फिलहाल दुनिया के बड़े नेताओं को यह समझाने में मुश्किलें झेल रहा है कि क्षेत्र में उसकी भूमिका और ज्यादा बड़ी होनी चाहिए. ऐसा तब है जबकि दस देशों के 65 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाला यह क्षेत्र दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाता है.
चीन बनाम अमेरिका
आसियान का सम्मेलन तब हो रहा है जब चीन की ओर से जारी अपने आधिकारिक नक्शे को लेकर इलाके में काफी तनाव है. इस नक्शे में चीन ने उन इलाकों को अपना दिखाया है, जिस पर भारत ही नहीं पूर्वी एशिया के कई देशों को भी ऐतराज है. दक्षिणी चीन सागर लंबे समय से वैश्विक स्तर पर तनाव की वजह रहा है क्योंकि यह एक बेहद अहम व्यापारिक मार्ग है.
कहां घट रही है और कहां बढ़ रही है आबादी
दुनिया की आबादी ने भले ही आठ अरब का आंकड़ा पार कर लिया हो, लेकिन चीन समेत कई देशों की आबादी घट रही है. जानिए दुनिया के किस कोने में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं.
तस्वीर: Roberto Paquete/DW
कम बच्चे पैदा हो रहे हैं
कई देशों की आबादी घट रही है और यह गिरावट आगे भी जारी रहेगी. इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, जैसे खर्चों का बढ़ना, ज्यादा महिलाओं का नौकरी करना, लोगों का देर से बच्चे पैदा करना, आदि. इन सब की वजह से कई देशों में पहले के मुकाबले कम बच्चे पैदा हो रहे हैं.
तस्वीर: CFOTO/picture alliance
चीन नहीं रहेगा नंबर एक
पिछले साल चीन की आबादी 60 सालों में पहली बार घट गई, जिसकी वहज से अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसी साल वो दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश की पहचान खो देगा. साल 2100 तक चीन की आबादी आज के स्तर से लगभग आधी, यानी 1.4 अरब से 77.1 करोड़ हो सकती है. भारत इसी साल चीन की जगह ले सकता है.
तस्वीर: Wang Zhao/AFP/Getty Images
यूरोप में गिरी आबादी
जुलाई 2022 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 10 सालों में एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाले आठ देशों की आबादी कम हो गई. इनमें से अधिकांश देश यूरोप में हैं, जिनमें यूक्रेन, यूनान, इटली, पोलैंड, पुर्तगाल और रोमानिया शामिल हैं.
तस्वीर: Emmanuelle Chaze/DW
यूरोप के बाहर भी गिरावट
इस सूची में सिर्फ जापान और सीरिया गैर-यूरोपीय देश हैं. सीरिया में 2011 से युद्ध चल रहा है और उसका देश की आबादी पर गहरा असर पड़ा है. लेकिन आने वाले सालों में सीरिया की आबादी के बढ़ने का अंदाजा है. बाकी सात देशों में आबादी में आई गिरावट जारी रहेगी.
तस्वीर: Baderkhan Ahmad/AP/picture alliance
जापान में दोहरी समस्या
जापान में ज्यादा बुजुर्गों के होने की वजह से देश की कुल आबादी गिर रही है. वहां आप्रवासन भी कम हो रहा है. 2011 से 2021 के बीच जापान की आबादी में तीस लाख से ज्यादा की गिरावट आई.
तस्वीर: David Mareuil/AA/picture alliance
कई और देशों में भी आएगी गिरावट
2030 तक रूस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और स्पेन की आबादी भी घटनी शुरू हो जाएगी. 2050 तक थाईलैंड, फ्रांस, उत्तर कोरिया और श्रीलंका की आबादी भी गिरने लगेगी. कई दूसरे देशों के लिए इस सदी के दूसरे हिस्से में आबादी के गिरने का पूर्वानुमान है. इनमें भारत, इंडोनेशिया, तुर्की और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
अफ्रीका में अलग तस्वीर
जहां साल 2100 तक यूरोप, अमेरिका और एशिया की आबादी में गिरावट आ रही होगी, वहीं उस समय तक अफ्रीका में अलग तस्वीर उभरने का पूर्वानुमान है. अनुमान है कि अफ्रीका की आबादी बढ़ती रहेगी और 2100 तक 1.4 अरब से बढ़कर 3.9 अरब हो जाएगी. जहां इस समय अफ्रीका में दुनिया की आबादी करीब 18 फीसदी हिस्सा रहता है, वहीं 2100 तक यह आंकड़ा बढ़कर 38 प्रतिशत हो जाएगा.
तस्वीर: Roberto Paquete/DW
कई दशक बाद गिरेगी दुनिया की आबादी
लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक कुल मिला कर धरती की आबादी में गिरावट 2090 के दशक में शुरू होगी. गिरने से पहले पूरी दुनिया की दुनिया बढ़ कर 10.4 अरब तक पहुंच जाएगी. (एएफपी)
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
8 तस्वीरें1 | 8
अमेरिकी नेता और विश्लेषक इसे अपना प्रभाव बढ़ाने के एक मौके के तौर पर देखते हैं क्योंकि नक्शे से नाराज देशों के साथ संबंध मजबूत किये जा सकते हैं. डॉनल्ड ट्रंप सरकार में उप विदेश मंत्री रहे डेविड स्टिलवेल ने पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र का प्रभार संभाला था. वह कहते हैं, "एक तरह से चीन हमारा ही काम कर रहा है. ”
हालांकि पिछले एक साल से बाइडेन सरकार का सबसे ज्यादा ध्यान रूस के यूक्रेन आक्रमण पर रहा है लेकिन उन्होंने इस बात में कोई संदेह नहीं छोड़ा है कि चीन ही अमेरिकी विदेश नीति का सबसे प्रमुख मुद्दा है. उन्होंने घर और बाहर दोनों जगह यह बात बार-बार कही है कि वह चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना चाहते हैं. हाल ही में एक यूटा में एक आयोजन में तो उन्होंने चीन को ‘टाइम बम' बता दिया था, जो कभी भी फट सकता है. उन्होंने कहा, "यह अच्छी बात नहीं है क्योंकि जब बुरे लोगों को कोई समस्या होती है तो वे बुरे काम करते हैं.”
विज्ञापन
आसियान की चुनौतियां
आसियान के सामने पिछले कुछ सालों में जो सबसे बड़ी चुनौतियां रही हैं, उनमें म्यांमार का मुद्दा ना सुलझा पाना भी है. म्यांमार में दो साल पहले सेना ने तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली थी. तब से म्यांमार को आसियान के सम्मेलनों में आमंत्रित नहीं किया जा रहा है. संगठन ने म्यांमार के शासन के साथ मिलकर एक शांति योजना भी तैयार की थी लेकिन उस पर अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है.
इन देशों को मिला ब्रिक्स में शामिल होने का न्योता
40 देश, ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं. लेकिन फिलहाल न्योता छह को ही मिला है. ये देश 2024 से ब्रिक्स के पूर्ण सदस्य होंगे.
तस्वीर: Sergei Bobylev/dpa/TASS/picture alliance
नए सदस्यों के लिए रजामंदी
ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी कर रहे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने छह देशों को फुल मेंबरशिप का न्योता देने की जानकारी दी है. ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स में शामिल होने के लिए सभी सदस्यों की रजामंदी जरूरी होती है.
तस्वीर: Sergei Bobylev/Imago Images
मिस्र
मिस्र अरब जगत में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. स्वेज नहर को नियंत्रित करने वाले मिस्र के भारत और रूस से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. एशिया और यूरोप के बीच होने वाला ज्यादातर समुद्री परिवहन मिस्र के मुहाने से ही गुजरता है.
तस्वीर: Suez Canal Authority/REUTERS
इथियोपिया
पूरी तरह जमीनी बॉर्डर से घिरा इथियोपिया, जनसंख्या के लिहाज से नाइजीरिया के बाद अफ्रीकी महाद्वीप का दूसरा बड़ा देश है. गरीबी और सूखे से जूझने के बावजूद बीते 23 साल से इथियोपिया की अर्थव्यवस्था हर साल औसतन 10 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से दौड़ रही है.
तस्वीर: AMANUEL SILESHI AFP via Getty Images
ईरान
पश्चिमी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंध रखने वाला ईरान मध्य पूर्व में एक बड़ी ताकत है. हाल के महीनों में चीन की मध्यस्थता में ईरान और खाड़ी के देशों के रिश्ते सुधर रहे हैं. ब्रिक्स में एंट्री, ईरान को अंतरराष्ट्रीय मंच से जोड़ने का काम करेगी.
तस्वीर: Francois Mori/AP Photo/picture alliance
अर्जेंटीना
कभी दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप की अहम ताकत कहा जाने वाला अर्जेंटीना, आज आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है. ब्राजील का पड़ोसी ये देश अमेरिका और चीन का बड़ा कारोबारी साझेदार है.
तस्वीर: Martin Villar/REUTERS
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)
मध्य पूर्व एशिया से अमेरिका का मोहभंग हो चुका है. इलाके में अमेरिका के साझेदार रहे देशों को अब नए रिश्ते बनाने पड़ रहे हैं. इसी कोशिश में यूएई तेजी से एशियाई ताकतों के साथ संबंध बढ़ा रहा है.
तस्वीर: Kamran Jebreili/AP Photo/picture alliance
सऊदी अरब
सऊदी अरब दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जिसके तटों पर लाल सागर और फारस की खाड़ी हैं. इस्लाम का पवित्र केंद्र माना जाने वाला सऊदी अरब भी अब अमेरिकी छाया से निकलकर नए साझेदार तलाश रहा है.
तस्वीर: Fayez Nureldine/AFP/Getty Images
7 तस्वीरें1 | 7
आसियान देशों के सामने एक बड़ी चुनौती दक्षिणी-चीन सागर के इलाकों पर चीन के दावों की भी है. यह अब एक ऐसा मुद्दा बन चुका है जिस पर अमेरिका और चीन दोनों के मतभेदों के बीच आसियान फंसा हुआ है. इस वजह से संगठन के भीतर भी मतभेद हैं. फिलीपींस और वियतनाम जैसे कुछ सदस्य अमेरिका के साथ ज्यादा करीबी चाहते हैं जबकि कंबोडिया पूरी तरह चीन के पक्ष में है.
हालांकि व्हाइट हाउस कहता है कि बाइडेन आसियान देशों को नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं. कर्बी ने कहा, "सरकार ने जितनी कोशिशें की हैं, उनको देखने के बाद यह कहना असंभव है कि हम नजरअंदाज कर रहे हैं.” पिछले साल ही बाइडेन ने वॉशिंगटन में आसियान देशों के साथ सम्मलेन किया था जो अपनी तरह का पहला सम्मेलन था.
कौन से देश हैं सबसे बड़े एक्सपोर्टर और इंपोर्टर
दुनिया में कुछ ही देश हैं जिनका एक्सपोर्ट कीमत के लिहाज से कुल इंपोर्ट से ज्यादा है. यूक्रेन युद्ध के बाद सूची में काफी उथल पुथल हुई है.
तस्वीर: Wang Chun/CFOTO/picture alliance
चीन सबसे बड़ा निर्यातक
चीन दुनिया का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है. उसका नेट ट्रेड 401 अरब डॉलर से ज्यादा का है. नेट ट्रेड कुल एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का अंतर होता है.
तस्वीर: Wang Chun/CFOTO/picture alliance
रूस दूसरे नंबर पर
दूसरा नंबर रूस का है, जिसका कुल नेट ट्रेड 233 अरब डॉलर का है. यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस पर लगीं पाबंदियों के बावजूद उसके कुल निर्यात में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है.
तस्वीर: Georgy Povetkin/TASS/imago images
नॉर्वे सबसे बड़ा यूरोपीय देश
2022 में नेट ट्रेड सरप्लस के मामले में नॉर्वे तीसरे नंबर पर रहा. उसने अपने कुल आयात से ज्यादा 175.4 अरब डॉलर ज्यादा का निर्यात किया.
तस्वीर: Lisi Niesner/REUTERS
जर्मनी ने भी कमाये अरबों
जर्मनी इस मामले में चौथा सबसे बड़ा देश है. 2022 में उसका नेट ट्रेड 172.7 अरब डॉलर का रहा. मशीनरी और कारों के निर्यात में जर्मनी सबसे ऊपर बना हुआ है.
तस्वीर: Angelika Warmuth/REUTERS
निवेश ना करने पर आलोचना
जापान 91 अरब डॉलर के नेट ट्रेड के साथ सूची में पांचवें नंबर पर है. इतने अधिक नेट सरप्लस के कारण इन देशों की आलोचना भी होती है. उन पर निवेश करने के बजाय धन जमा करने का आरोप लगता है.
तस्वीर: Taidgh Barron/Zuma/picture alliance
अमेरिका सबसे बड़ा आयातक
अमेरिका आज भी दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है. 2022 में उसने जितना निर्यात किया उससे 943.8 अरब डॉलर ज्यादा का आयात किया. वह चीन से बहुत आयात करता है, इस कारण उस पर चीन का बड़ा कर्ज भी हो गया है.
तस्वीर: Lokman Vural Elibol/AA/picture alliance
भारत तीसरे नंबर पर
2022 में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा. अमेरिका और उसके बीच में सिर्फ युनाइटेड किंग्डम है. भारत का नेट ट्रेड माइनस 80.4 अरब डॉलर का रहा, जबकि यूके का माइनस 121.4 अरब डॉलर का.
तस्वीर: Jack Guez/AFP
7 तस्वीरें1 | 7
सिंगपुर की नेशनल यूनिवर्सिटी में राजनीति पढ़ाने वाले एसोसिएट प्रोफेसर जा-लान चोंग कहते हैं कि यह एक ऐसा सम्मेलन होगा जिसका कुछ बड़ा नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है, इसलिए हैरिस को भेजकर अमेरिका दिखा सकता है कि वह मौजूद रहा. प्रोफेसर चोंग कहते हैं, "आप अगर दिखाना चाहते हैं कि आप ध्यान दे रहे हैं तो आप उप राष्ट्रपति को भेजते हैं.”
हैरिस सोमवार को ही अमेरिका से निकल रही हैं और जकार्ता में दो दिन बिताएंगी जहां वह कई बैठकें करेंगी. उनके कई विदेशी नेताओं से अलग-अलग मिलने की संभावना है. हैरिस के इंडोनेशिया के लौटने के फौरन बाद बाइडेन भारत जाएंगे जहां वह जी20 सम्मेलन में दुनिया के सबसे धनी देशों के नेताओं से मिलेंगे. उसके बाद वह वियतनाम जाएंगे और उभरती आर्थिक शक्ति बन रहे देश में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेंगे.