हिज्बुल्लाह समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें
२६ नवम्बर २०१९
लेबनान में 17 अक्टूबर से जनता भ्रष्टाचार को लेकर प्रदर्शन कर रही है, इस बीच हिज्बुल्लाह समर्थकों ने प्रदर्शनकारियों पर हमले कर दिए.
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मध्य पूर्वी देश लेबनान में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों और समर्थकों के बीच बेरूत में हिंसक झड़प हुई है. शिया गुट के सर्मथकों ने सड़क पर घूम-घूमकर हंगामा किया और नारे लगाए. न्यूज एजेंसी एनएनए के मुताबिक सोमवार की रात लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री साद अल हरीरी और शिया मुसलमानों के गुट हिज्बुल्लाह के बीच हिंसक संघर्ष देखने को मिला. बेरूत में लगातार दूसरे दिन प्रदर्शनकारी सड़कों पर डटे रहे. विरोधी गुटों के बीच झड़प के दौरान फायरिंग की भी खबर है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हिंसक झड़प में किसी के घायल होने की खबर नहीं है.
अक्टूबर के महीने से शुरू हुआ शांतिपूर्ण प्रदर्शन उस समय उग्र होने लगा जब लोगों को लगा कि देश की आर्थिक हालत बद से बदतर हो रही है. 17 अक्टूबर से लेबनान की राजनीति में व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर लोग सड़क पर उतर आए थे. 15 साल तक गृहयुद्ध झेल चुके लेबनान पहली बार इतनी खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है. 1975-90 तक लेबनान गृहयुद्ध की चपेट में था. पिछले डेढ़ महीने से लेबनान में जनता देश के राजनीतिक परिवारों के खिलाफ बेहद गुस्से में है. लेबनान में 17 अक्टूबर को शुरू हुए प्रदर्शनों के बाद से सोमवार को हुई झड़पें अब तक की सबसे ज्यादा हिंसक थी.
हिज्बुल्लाह और अमल का कहर
दूसरी ओर दक्षिणी शहर तियर में हिज्बुल्लाह और अमल गुट के समर्थकों ने प्रदर्शनकारियों के टेंट उखाड़ डाले और उन्हें आग के हवाले कर दिया, आरोप है कि इन लोगों ने प्रदर्शनकारियों पर हमले भी किए, जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने दंगाइयों पर फायरिंग की. साद अल हरीरी सरकार पर इन दोनों गुटों का प्रभाव था, इसी वजह से दोनों ने ही हरीरी के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे का विरोध किया था.
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हरीरी की पार्टी फ्यूचर मूवमेंट ने एक बयान जारी कर अपने सर्मथकों से प्रदर्शन में शामिल ना होने और भारी भीड़ के बीच में ना जाने का आग्रह किया है. बयान में कहा गया है, "ऐसे उकसावे में घसीटे जाने से बचें जिससे संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है."
गौरतलब है कि देश में सरकार की नीतियों और भ्रष्टाचार के विरोध में प्रदर्शनकारी लेबनान समेत कई बड़े शहरों की मुख्य सड़कों पर डेरा जमाए बैठे हैं. आंदोलन के कारण देश में जनजीवन ठप हो गया है. दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने देश के सभी गुटों से आग्रह किया है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर संवाद कायम करें और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करें. साथ ही उसने कहा है कि शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने के अधिकार का सम्मान होना चाहिए.
एए/एनआर (एपी, रॉयटर्स)
जानिए कौन है इस्राएल का जानी दुश्मन हिजबुल्ला
लेबनान में एक सियासी पार्टी और एक चरमपंथी संगठन के तौर पर हिजबुल्ला की ताकत लगातार बढ़ रही है. इस शिया संगठन के बढ़ते प्रभाव के कारण न सिर्फ लेबनान में बल्कि समूचे मध्य पूर्व में तनाव पैदा हो रहा है.
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हिजबुल्ला का उदय
हिजबुल्ला का मतलब है अल्लाह का पक्ष. 1982 में दक्षिणी लेबनान पर इस्राएल के हमले के बाद मुस्लिम मौलवियों ने कई शिया हथियारबंद गुटों को मिलाकर हिजबुल्ला की बुनियाद रखी. अब इस शिया गुट के पास न सिर्फ अपनी राजनीतिक पार्टी है बल्कि उसकी सैन्य शाखा भी है.
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इस्राएल का विरोध
लेबनान के गृहयुद्ध में हिजबुल्ला ने बड़ी भूमिका निभाई. उसने दक्षिण लेबनान से इस्राएली फौज को बाहर करने के लिए गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया. इस्राएल 2000 में वहां से हटा. इस्राएल और हिजबुल्ला ने 2006 में भी लड़ाई लड़ी. लेबनान की रक्षा के लिए इस्राएल के खिलाफ खड़े होने की वजह उसे समाज में भरपूर समर्थन मिलता है.
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ईरान की मदद
अपने गठन के बाद से ही हिजबुल्ला को ईरान और सीरिया की तरफ से सैन्य, वित्तीय, और राजनीतिक समर्थन मिलता रहा है. आज हिजबुल्लाह की सैन्य शाखा लेबनान की सेना से कहीं ज्यादा ताकतवर है और उसे क्षेत्र का एक बड़ा अर्धसैनिक बल माना जाता है.
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राजनीतिक ढांचा
1975 से 1990 तक चले लेबनान के गृहयुद्ध के बाद हिजबुल्लाह ने राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया. वह लेबनान की शिया आबादी के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. ईसाई जैसे अन्य धार्मिक समुदायों के साथ उसका गठबंधन है. हसन नसरल्लाह 1992 से हिजबुल्ला के प्रमुख हैं.
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सैन्य शाखा
हिजबुल्ला ने गृह युद्ध खत्म होने के बाद भी अपनी सैन्य शाखा को खत्म नहीं किया. प्रधानमंत्री साद हरीरी के फ्यूचर मूवमेंट जैसे कई राजनीतिक दल चाहते हैं कि हिजबुल्लाह हथियार छोड़ दे. लेकिन हिजबुल्ला की दलील है कि इस्राएल और अन्य चरमपंथी गुटों से रक्षा के लिए उसकी सैन्य शाखा बहुत जरूरी है.
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आतंकवादी संगठन?
अमेरिका, इस्राएल, कनाडा और अरब लीग समेत दुनिया के कई देश और संगठन हिजबुल्लाह को एक आतकंवादी संगठन मानते हैं. हालांकि ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ हिजबुल्ला की राजनीतिक गतिविधियों और सैन्य शाखा में अंतर करते हैं.
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सीरिया में हिजबुल्ला
सीरिया के गृहयुद्ध में हिजबुल्ला राष्ट्रपति बशर अल असद का समर्थन कर रहा है. हिजबुल्ला ने सीरिया से हथियारों की सप्लाई के रूट को सुरक्षित बनाया और असद के लिए चुनौती बन रहे सुन्नी चरमपंथी गुटों के खिलाफ लेबनान के आसपास एक बफर जोन बनाया.
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सांप्रदायिकता
हिजबुल्ला सऊदी अरब और ईरान के बीच चलने वाले क्षेत्रीय संघर्ष के केंद्र में रहा है. लेकिन हिजबुल्ला की बढ़ती हुई राजनीतिक और सैन्य ताकत और सीरिया में हस्तक्षेप के कारण लेबनान और पूरे क्षेत्र में शिया-सुन्नी तनाव बढ़ता रहा है.
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इस्राएल के साथ नया विवाद
सीरिया युद्ध के जरिए ईरान और हिजबुल्ला दोनों ने अपने सैन्य और राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाया है. इस्राएल इस बात को अपने लिए खतरा समझता है और इसीलिए उसने सीरिया में ईरान और हिजबुल्ला के ठिकानों पर हमले किए हैं. हिजबुल्लाह और इस्राएल के बीच युद्ध की अटकलें भी लग रही हैं.