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दिल्ली की अवैध कॉलोनियां का मुद्दा फिर गर्म

२२ अप्रैल २०२२

दिल्ली में नगर निगम ने जहांगीरपुरी में घरों और दुकानों को गिराने में किसी भी तरह के भेदभाव से इनकार किया है, लेकिन तोड़फोड़ अभियान ने एक बार फिर राजधानी में अवैध बस्तियों का मुद्दा उठाया है.

जहांगीरपुरी में नगर निगम की कार्रवाई के बाद का हाल
जहांगीरपुरी में नगर निगम की कार्रवाई के बाद का हाल तस्वीर: Charu Kartikeya/DW

दिल्ली के जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल को हुई हिंसा के बाद 20 अप्रैल को उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर बुलडोजर से तोड़फोड़ शुरू कर दी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने तोड़फोड़ शुरू होने के कुछ ही देर बाद जहांगीरपुरी में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए. लेकिन कोर्ट के आदेश के बावजूद डेढ़ घंटे तक निगम की कार्रवाई चलती रही. गुरुवार यानी 21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर दोबारा सुनवाई हुई. कोर्ट ने अगले दिन कहा कि सुनवाई पूरी होने तक जहांगीरपुरी में बुलडोजर नहीं चलाया जाएगा.

कोर्ट ने जहांगीरपुरी में कथित अवैध निर्माण को गिराए जाने पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है. कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि उसके आदेश के बावजूद भी इलाके में डेढ़ घंटे तक कार्रवाई होती रही. सुप्रीम कोर्ट में जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद की तरफ से बुलडोजर चलाए जाने के खिलाफ याचिका दायर की गई है.

जमीयत की तरफ से पेश वकील दुष्यंत दवे ने सुनवाई के दौरान कहा, "दंगों के बाद एक सुमदाय के लोगों के मकान को तोड़ा जा रहा है." उन्होंने कहा कि यह मामला सिर्फ जहांगीरपुरी तक सीमित नहीं है. उन्होंने कहा दूसरे राज्यों में दंगे हो रहे हैं वहां बुलडोजर चलाया जा रहा है. बेंच ने सुनवाई में कहा, "क्या मेज, कुर्सी और गुमटी हटाने के लिए बुलडोजर की जरूरत होती है." कोर्ट ने कहा तोड़फोड़ से पहले 15 दिन नोटिस का प्रावधान है.

जहांगीरपुरी में हिंसा के दौरान बोतल और पत्थर फेंके गएतस्वीर: Charu Kartikeya/DW

पीड़ितों की कौन सुनेगा

पीड़ितों के मुताबिक उन्हें तोड़फोड़ अभियान से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया और न ही उन्हें वहां से अपना सामान निकालने का मौका दिया गया था. उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम ने बीजेपी के इशारे पर और अपने नेताओं को "खुश" करने के लिए यह अभियान चलाया. हालांकि उत्तरी नगर निगम ने कहा कि वह नियमों के तहत ही अपना काम कर रही थी.

इन सबके बीच राजधानी दिल्ली में अनाधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है. यह अनुमान है कि दिल्ली की शहरी आबादी का 30 फीसदी से अधिक अवैध बस्तियों में रहता है.

ये अवैध कॉलोनियां अनियोजित बस्तियां हैं, जिन्हें न तो मास्टर प्लान में शामिल किया गया है और न ही आवासीय भूमि के दायरे में. ये मुख्य रूप से ग्रामीण या कृषि भूमि थे जिन्हें भूखंडों में विभाजित करके बेचा गया था और नियमों का उन पर घरों के निर्माण के दौरान पालन नहीं किया गया था. आधिकारिक तौर पर ऐसी भूमि पर आवासीय निर्माण की अनुमति नहीं है, लेकिन ऐसे घरों का निर्माण अभी भी जारी है.

इस मामले पर डीडब्ल्यू से बात करते हुए नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के लिए काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन कोरअर्बन की सह-संस्थापक ऋतु कटारिया ने कहा, "दिल्ली में अवैध आवासीय कॉलोनियों की श्रृंखला यह स्वतंत्रता के बाद ही शुरू हुई थी. शरणार्थियों की आमद, आवास की बढ़ती मांग, भूमि की उच्च कीमतों और पर्याप्त आवास सुविधाओं की कमी का लाभ उठाते हुए, निजी जमींदारों ने पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से अपनी जमीनें बेचना शुरू कर दिया. इन जमीनों पर लोगों ने बिना किसी निर्माण योजना के अपनी इच्छा के मुताबिक घर बनाना शुरू कर दिया, जिसमें न तो स्वच्छता की व्यवस्था थी और न ही सड़कों या अन्य बुनियादी सुविधाओं के बारे में सोचा गया था.''

वे कहती हैं, ''हालांकि इन कॉलोनियों की स्थिति मलिन बस्तियों की तुलना में थोड़ी बेहतर है, लेकिन उनकी कानूनी स्थिति, विशेष रूप से वित्तीय मामलों में सवालों के घेरे में है."

अब दिल्ली पहुंचा सत्ता का बुलडोजर

दिल्ली में अवैध कॉलोनियां

भारतीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा 2019 में जारी एक सूची के मुताबिक, दिल्ली में 1797 कॉलोनियां अवैध हैं. इनमें सैनिक फार्म, फ्रीडम फाइटर्स एन्क्लेव, वसंत कुंज एन्क्लेव, सैयद अजायब एक्सटेंशन और छतरपुर जैसी 69 ऐसी कॉलोनियां भी शामिल हैं, जहां अधिकांश उच्च वर्ग के लोग रहते हैं.

जानकारों के मुताबिक दिल्ली में कोई भी कानून किसी सरकारी एजेंसी को प्रभावित पक्षों को पूर्व सूचना के बिना घरों या ढांचों को ध्वस्त करने की अनुमति नहीं देता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी 2017 में अपने फैसले में इसे बरकरार रखा था.

जहांगीरपुरी में पुलिस की भारी तैनाती तस्वीर: Aamir Ansari/DW

क्या कहते हैं कानून

दिल्ली में जिस तरह से अधिकारियों ने झुग्गी, घरों व दुकानों पर बुलडोजर चलाया उससे ना केवल आजीविका के साधन उजड़ गए बल्कि उससे संविधान की भी धज्जियां उड़ गईं. उत्तरी नगर निगम द्वारा कार्रवाई के बाद लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या पॉश कॉलोनियों में अवैध निर्माण नहीं है और वहां क्यों नहीं बुलडोजर चलाया जाता है.

हालांकि कानूनी नजरिए से देखा जाए तो एमसीडी एक्ट की धारा 317 के तहत गलियों से किसी तरह के निर्माण हटाने के लिए नोटिस देना होता है. उसी तरह से धारा 347 के तहत किसी इमारत को गिराने से पहले नोटिस देना होता है. सिर्फ धारा 322 के तहत नोटिस दिए बगैर कार्रवाई की जा सकती है, क्योंकि इसके तहत अस्थायी निर्माण को हटाया जाता है.

राजनीति मुद्दा भी

दिल्ली में अवैध कॉलोनियों का मुद्दा हाल के सालों में राजनीतिक मुद्दा बन गया है. हर विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल ऐसी कॉलोनियों को 'नियमित' करने का वादा करते हैं और उन्हें पूरा नहीं करने के लिए दूसरों पर आरोप लगाते रहते हैं. पहली बार 1977 में अवैध कॉलोनियों को नियमित करने की नीति लाई गई थी. इसके लागू होने में लंबा समय लगा लेकिन 1993 तक 567 कॉलोनियां नियमित हो गईं.

ऋतु कटारिया कहती हैं, "विभिन्न कारणों से अवैध कॉलोनियों को गिराना व्यवहार्य विकल्प नहीं है, क्योंकि एक तरफ व्यापक आर्थिक नुकसान होता है और दूसरी तरफ यह बुनियादी मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है."

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