1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या यूरोप में भी सुरक्षित नहीं रहेगा एलजीबीटीक्यू समुदाय

चिपोंडा चिंबेलू
१८ सितम्बर २०२३

कुछ यूरोपीय देशों में एलजीबीटीक्यू अधिकारों को वापस लेने का प्रयास किया जा रहा है. मानवाधिकार विशेषज्ञों ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि एक लक्षित अभियान के तहत किया जा रहा है.

लाइपजिष में एक प्राइड परेड के दौरान किस करते दो लोग
यूरोप के कई हिस्सों में अब एलजीबीटीक्यू समुदाय के ज्यादा लोग देखे जा सकते हैंतस्वीर: Yauhen Yerchak/SOPA Images/ZUMA Press Wire/picture alliance

जुलाई में बर्लिन में हुई प्राइड मंथ के दौरान एक कार्यक्रम में मार्च करते समय मेरे एक मित्र पर अंडे फेंके गए. इस घटना पर जब मैंने चिंता जताई तो उसने तुरंत इसे खारिज कर दिया. उसने मुझसे कहा, "यह कोई बड़ी बात नहीं और वैसे भी पुलिस कुछ ना करती.”

आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी में एलजीबीटीक्यू लोगों के खिलाफ मौखिक और शारीरिक हमले बढ़ रहे हैं. जर्मनी के लेस्बियन एंड गे एसोसिएशन (LSVD) के मुताबिक, उनमें से 90% तक मामले तो रिपोर्ट ही नहीं किए जाते. और यह हैरान करने वाली अकेली बात नहीं है. एलएसवीडी के प्रवक्ता केर्स्टिन थॉस्ट कहते हैं, "सार्वजनिक विमर्श की स्थिति लगातार बिगड़ रही है.”

उन लोगों ने मुझे एक वीडियो कॉल में बताया, "ट्रांसफोबिक बयानों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है और हम देख रहे हैं कि इस समुदाय के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा दुष्प्रचार अभियान चल रहे हैं. यहां तक ​​कि हमारे ट्रांसजेंडर सांसदों को भी तंग किया जा रहा है.”

ट्रांस, समलैंगिक अधिकारों का अभी भी विस्तार हो रहा है

जर्मन सरकार ने हाल ही में उस तथाकथित आत्मनिर्णय कानून को मंजूरी दे दी है, जिससे लोगों के लिए आधिकारिक दस्तावेजों पर अपनी लैंगिक पहचान में संशोधन करना आसान हो गया है. इस बदलाव का उद्देश्य ट्रांसजेंडर, गैर-बाइनरी और इंटरसेक्स समुदाय के लोगों की मदद करना है. जर्मन लेस्बियन एंड गे एसोसिएशन के थॉस्ट कहते हैं कि पिछले साल बिल की घोषणा के मद्देनजर, ट्रांसफोबिक हमलों में वृद्धि हुई थी.

लेकिन ट्रांसफोबिक और क्वीरफोबिक विमर्श में वृद्धि समाज का प्रतिबिंब नहीं हो सकती है.

पिछले दो दशकों में यूरोपीय संघ के बाकी हिस्सों की तरह जर्मनी में भी एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए कानूनी परिदृश्य में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है.

यूरोपियन यूनियन एजेंसी फॉर फंडामेंटल राइट्स से जुड़े मिल्टोस पावलू कहते हैं, "बड़े सुधार हुए हैं क्योंकि आम जनता ने अज्ञानता से परे जाकर एलजीबीटीक्यू लोगों में, अपने लोगों को देखा है.”

नॉनबाइनरी लोगों को सामान्यलिंगी एलजीबीटीक्यू लोगों के मुकाबले ज्यादा निशाना बनाया जा रहा हैतस्वीर: Guido Schiefer/IMAGO

पावलू कहते हैं, "लगभग पूरे यूरोपीय संघ में अब ज्यादा लोग, एलजीबीटीक्यू पहचान के साथ बेहतर जीवन जीते हैं. हालांकि वे मानते हैं कि अब भी, "एलजीबीटीक्यू समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अभी भी हिंसा, उत्पीड़न और भेदभाव का शिकार है.”

वो कहते हैं कि हालांकि रूढ़िवादी समाजों में भी सामाजिक स्वीकृति में सुधार हुआ है लेकिन इसके बावजूद, विशेष रूप से ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों को सिसजेंडर्ड एलजीबीटीक्यू लोगों की तुलना में हमलों और भेदभाव का शायद ज्यादा सामना करना पड़ता है.

एलजीबीटीक्यू के अधिकारों की वकालत करने वाले गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) फॉरबिडन कलर्स के कार्यकारी निदेशक रेमी बोनी कहते हैं, "एलजीबीटीक्यू विरोधी लॉबी का इस समय बहुत प्रभाव है, लेकिन यह अभी तक सामाजिक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित नहीं करता है.”

बांग्लादेश: ट्रांस अधिकारों पर किताब के समर्थन में सरकार

एलजीबीटीक्यू अधिकारों के लिए वैश्विक आंदोलन

मानवाधिकार समर्थक नील दत्ता यूरोप में आंदोलन की गतिविधियों पर शोध कर रहे हैं. उनका अनुमान है कि 2021 और 2022 में ‘एंटी-जेंडर' गतिविधियों के लिए होने वाली फंडिंग बढ़कर 100 मिलियन डॉलर सालाना से भी ज्यादा हो गई है. यह पिछले दशक की तुलना में बहुत ज्यादा है. दत्ता, यूरोपियन पार्लियामेंट्री फोरम फॉर सेक्सुअल एंड रिप्रोडक्टिव राइट्स के कार्यकारी निदेशक हैं. उन्होंने यह जानने में काफी मदद की है कि 2009 और 2018 के बीच यूरोपीय संघ में ‘एंटी-जेंडर' गतिविधियों पर खर्च किया गया धन कहाँ से आ रहा था.

पिछली मई में आई यूरोपियन डिजिटल मीडिया ऑब्जर्वेटरी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑनलाइन माध्यम से गलत सूचना और दुष्प्रचार अभियानों के लिए एलजीबीटीक्यू समुदाय मुख्य टारगेट समूहों में से एक बन गया है.

इन विमर्शों को कुछ लोगों ने ‘लिंग-विरोधी आंदोलन' यानी ‘एंटी-जेंडर मूवमेंट' करार दिया है. इस नेटवर्क में कुछ चर्च, अमेरिका के इवेंजेलिकल, दक्षिणपंथी पार्टियां, अमेरिकन रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य और एलजीबीटीक्यू अधिकारों और प्रजनन अधिकारों के खिलाफ अभियान चलाने वाले कुछ सरकार समर्थित गैर सरकारी संगठन शामिल हैं.

मानवाधिकार कार्यकर्ता रेमी बोनी के मुताबिक, जिस दौरान एलजीबीटीक्यू समूहों ने अपने देशों में अधिकार प्राप्त करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है, उसी दौरान एलजीबीटीक्यू विरोधी समूह भी पिछले दो दशकों से लामबंद होते रहे हैं और व्यापक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाते रहे हैं. इससे उन्हें अनुभवों और जानकारी का आदान-प्रदान करने में भी सहायता मिली है, जिसमें दुनिया के अन्य हिस्सों में एलजीबीटीक्यू विरोधी कहानियों को फैलाने की रणनीतियां भी शामिल हैं.

यही कारण है कि उनके दुष्प्रचार अभियानों में बार-बार ऐसे विषय आते हैं, खासकर एलजीबीटीक्यू समुदाय में बच्चों को लाने और शामिल किए जाने के संदर्भ में. और हालांकि, इन विचारों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, फिर भी यौन शिक्षा जिसमें स्कूलों में समलैंगिकता की पहचान कराया जाना भी शामिल है, यूरोप और अमेरिका में एक विवादास्पद विषय बन गया है.

भारत में ट्रांसजेंडर कर रहे अलग टॉयलेट की मांग

क्वीरफोबिया को बढ़ावा देने में रूस की भूमिका

रूस ने एक दशक पहले अपने ‘गे प्रोपेगेंडा लॉ' को लागू करने के लिए एलजीबीटीक्यू समुदाय में बच्चों को लाने और शामिल किए जाने के डर का इस्तेमाल किया था. 2012 में क्रेमलिन ने पारंपरिक परिवारों पर हमले को रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बताया था. तब से अन्य देशों ने भी इसका अनुसरण किया है. हंगरी और पोलैंड इसके दो उदाहरण हैं और अमेरिका में फ्लोरिडा का ‘डोंट से गे' कानून भी ऐसा ही है.

दत्ता कहते हैं कि रूसी ओलिगार्कों ने उन समूहों के लिए शुरुआती फंडिंग दी जो यूरोपीय संघ में एलजीबीटीक्यू विरोधी अभियान जारी रखते हैं. वो कहते हैं कि साल 2009 और 2018 के बीच ब्लॉक में एंटी-जेंडर गतिविधियों को मिलने वाले करीब 707 मिलियन यूरो का एक चौथाई हिस्सा रूस से आया था. और, अब जबकि प्रतिबंधों के कारण आर्थिक स्थिति में भारी गिरावट आई है, रूस एलजीबीटीक्यू मुद्दों पर यूरोप के मानवाधिकार विमर्श को प्रभावित करने की कोशिशें जारी रखना चाहता है.

एलजीबीटीक्यू समुदाय के खिलाफ दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी का पोस्टरतस्वीर: Sachelle Babbar/ZUMA Wire/picture alliance

दत्ता कहते हैं, "शायद पांच और निश्चित रूप से 10 साल पहले की तुलना में आज एलजीबीटीक्यू अधिकारों के प्रति नफरत और सवाल कहीं अधिक मात्रा में मौजूद हैं.”

पिछले दशक में सामाजिक स्वीकृति में सुधार के बावजूद, जब रूस के एलजीबीटीक्यू विरोधी अभियानों के बीच जब एलजीबीटीक्यू अधिकारों की बात आती है, तो यह समझा जा सकता है कि यूरोप आज एक महत्वपूर्ण बिंदु पर है.

दत्ता कहते हैं कि क्रेमलिन का मुख्य उद्देश्य समलैंगिक और ट्रांस यूरोपीय लोगों को निशाना बनाना ही नहीं है, बल्कि यूरोपीय लोकतंत्रों को अस्थिर करना है. उन्हें डर है कि एलजीबीटीक्यू अधिकारों के बढ़ते राजनीतिकरण के कारण उन्हें वापस लेने के प्रयास हो सकते हैं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार में कौन है.

विमर्श की जहरीली प्रकृति और ध्रुवीकरण करने की क्षमता के कारण वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों राजनीतिक दलों के लिए एक साथ काम करना कठिन हो रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वे मुद्दों पर अधिक कठोर रुख अपना रहे हैं, जैसा कि सोशल मीडिया पर लोग कर रहे हैं.

अमेरिका में बढ़ते एंटी-एलजीबीटीक्यू कानून कनाडा के लिए बने चिंता

इसलिए यह कहना मुश्किल है कि क्या हमलों में वृद्धि विरोध में हो रही प्रतिक्रिया को ही दिखाती है, या शायद इस बात का संकेत है कि अब ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट ज्यादा से ज्यादा लोग कर रहे हैं. मामला जो भी हो, जानकारों का कहना है कि हमला कभी-कभी प्रभाव में बहुत बड़ा होता है.

और एलजीबीटीक्यू अधिकार का मुद्दा समलैंगिक और ट्रांस लोगों को भेदभाव से बचाने से कहीं आगे का है. ब्रसेल्स के मानवाधिकार समर्थक बोनी का मानना ​​है कि ये अब यूरोप में उदार लोकतंत्रों के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है.

बोनी कहते हैं, "तथ्य यह है कि एलजीबीटीक्यू अधिकारों की रक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे जैसी प्राथमिकता नहीं दी गई है, इसका मतलब है कि यूरोप इस मामले में एकसमान तरीकों से लड़ने में सक्षम नहीं है.”

स्टीरियोटाइप्स से कैसे जीतते हैं, यह फातिमा से सीख सकते हैं

02:04

This browser does not support the video element.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें