भारत में 2022 में मौसम की अति कारण आई प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बढ़त देखी गई. बिजली गिरने की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई और 900 से ज्यादा लोग मारे गए.
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बुधवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2022 में बिजली गिरने से भारत में 907 लोग मारे गए. तीन साल में यह सबसे ज्यादा संख्या है. वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाएं बढ़ी हैं और ज्यादा लोगों की जान जा रही है.
विज्ञान मंत्रालय ने संसद में पेश रिपोर्ट में कहा कि सालभर में लू चलने की घटना आठ गुना बढ़कर 27 पर पहुंच गई. बिजली गिरने की घटनाओं में 111 गुना की वृद्धि हुई. साथ ही 240 तूफान आए, जो पिछले साल के मुकाबले पांच गुना ज्यादा हैं.
मोहनजोदड़ो बाढ़ से बच गया तो क्या सब बच जायेंगे
दुनिया का सबसे पहला नगर इस साल गर्मियों में पाकिस्तान की बाढ़ में तबाह होने के करीब पहुंच गया था. मोहनजोदड़ो बच तो गया है लेकिन यह ग्लोबल वार्मिंग के कारण खत्म होने का खतरा झेल रही विरासतों के लिए प्रतीक बन गया है.
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बच गया मोहनजोदड़ो
ईसापूर्व 3000 साल पहले बना सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख शहर मोहजोदड़ो पाकिस्तान की बाढ़ में बह कर खत्म होने से बच गया. बाढ़ में करीब 1600 पाकिस्तानी लोगों की जान गई और 3 करोड़ से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए लेकिन मोनजोदड़ो बच गया.
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कैसे बचा मोहनजोदड़ो
शायद वास्तुकारों ने इसे ऐसे खतरों से बचाने के लिए इंतजाम किये थे वह काम आये. सिंधु नदी के ऊपर बस इस शहर में प्राचीन ड्रेनेज सिस्टम और नालियों की व्यवस्था है. इन्हीं नालियों की मदद बाढ़ के अतिरिक्त पानी के ज्यादातर हिस्से को यहां से बाहर निकाला जा सकता है.
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किस्मत से बच रहा है मोहनजोदड़ो
करीब 100 साल पहले मोहनजोदड़ो की खोज हुई थी और यह जलवायु परिवर्तन के खतरे झेल रहा है. यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज प्रोग्राम के निदेशक लाजारे इलोंडू असामो का कहा है कि यह "किस्मतवाला" जो बचा हुआ है नहीं तो "इसके साथ ही पुरातात्विक निशानियां भी खत्म हो जायेंगी." शहर को मामूली नुकसान हुए हैं लेकिन उनकी मरम्मत की जा सकती है.
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विरासतों पर खतरा
पिछले 50 सालों से यूनेस्को दुनिया की विरासतों की सूची बना रहा है. अब तक इसमें 1,154 नाम जुड़ चुके हैं. इनमें से हर पांच में एक विरासत और एक तिहाई प्राकृतिक जगहें जलवायु परिवर्तन या फिर जैव विविधता के कारण नुकसान का खतरा झेल रही है. इनमें जंगल की आग से लेकर, तूफान, चक्रवात, आंधी, बाढ़, वायु प्रदूषण और इस तरह तमाम खतरे हैं जो बार बार इन पर चोट कर रहे हैं.
कनाडा के जंगलों की भयानक आग ने इसके चट्टानी पर्वतों का झुलसा दिया है. यह यूनेस्को की विरासतों में शामिल है. इस साल की आग डेल्फी के 15 किलोमीटर तक पास आ गई थी. लू चलने के कारण पूरे भूमध्यसागरीय बेसिन में जंगल की आग भयानक हो गई है.
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माचू पिचू में भूस्खलन
इसी बीच पेरू की एंडीज पर्वतमाला की तलहटी में मौजूद माचू पिचू पर भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है. फिलहाल तो यह बचा हुआ है लेकिन कब तक बचा रहेगा नहीं कहा जा सकता.
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ग्रेट बैरियर रीफ
ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ समुद्री जल का तापमान बढ़ने के कारण ब्लीचिंग का खतरा झेल रहे हैं.
तस्वीर: WILLIAM WEST/AFP via Getty Images
घाना का फोर्ट प्रिंसेस्टाइन
घाना के फोर्ट प्रिंसेस्टाइन का कुछ हिस्सा भूमि कटाव के कारण बह गया. यह जगह प्राचीन काल में गुलामों की खरीद फरोख्त के लिए कुख्यात थी.
तस्वीर: Gemeinfrei
ताजमहल पर धब्बे
आगरा के ताजमहल के गुंबद और मीनारों की सफेदी शहर के बढ़ते प्रदूषण के कारण धुंधली हो रही है. कुछ साल पहले एक भूकंप ने भी इसकी बाहरी दीवारों को मामूली नुकसान पहुंचाया था.
तस्वीर: Goutam Hore/DW
बाढ़, सूखा, भूकंप अनदेखी
विरासतों पर जलवायु परिवर्तन के कई खतरों का अंदेशा है. कहीं बारिश की कमी तो कहीं बाढ़ तो कहीं भूकंप या सरकारों की अनदेखी इनके लिए खतरा बन रही हैं. ये विरासतें अपनी विशिष्ट वास्तु के कारण अब तक बची हुई हैं लेकिन कब तक यह कहना मुश्किल है.
तस्वीर: Hussein Faleh/AFP/Getty Images
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नवंबर महीने तक इन घटनाओं के कारण 2,183 लोगों की जानें जा चुकी थीं. 2019 के बाद यह सबसे ज्यादा है जब प्राकृतिक आपदाओं में 3,017 लोग मारे गए थे.
गर्मी और बाढ़
मॉनसून के दौरान भारत में तापमान में इस सदी में वृद्धि दर्ज की गई है और वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले सालों में भारत में लू चलने की घटनाएं और बढ़ेगी. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन प्रदूषक देश है. हालांकि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के लिहाज से भारत का नंबर दुनिया में काफी नीचे आता है.
इस साल भारत ने सौ साल में सबसे गर्म मार्च देखा था. अप्रैल और मई में भी तापमान अत्याधिक था और वैज्ञानिकों ने इसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया था.
जब भारत का बाकी हिस्सा भयंकर गर्मी से जूझ रहा था, तब पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ तबाही मचा रही थी. असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) के मुताबिक राज्य के 24 जिलों के दो लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में आए. चेन्नई और मुंबई में एक ही दिन में भारी बारिश हो जाने से भी बड़ी संख्या में लोगों की जान गई. इस साल बेंगलुरु ने भी भयानक बाढ़ देखी, जो एक ही दिन में अत्याधिक बारिश हो जाने के कारण आयी थी.
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भारत के लिए चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 1998 से 2017 के बीच दुनियाभर में 1,66,000 लोगों की जान हीट वेव के कारण गई है. उसके मुताबिक 2030 और 2050 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया, कुपोणष, दस्त और गर्मी लगने से हर साल ढाई लाख अतिरिक्त लोगों की मौतें होंगी.
विनाश का सामना कर रही एशिया की "लाल मिर्च की राजधानी"
पहले गर्मी और उसके बाद अगस्त और सितंबर में पाकिस्तान में भयंकर बाढ़ आई. प्राकृतिक आपदा के बाद पाकिस्तान के लाल मिर्च के किसानों को भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है.
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लाल मिर्च उत्पादन पर असर
लाल मिर्च के उत्पादन में पाकिस्तान दुनिया में चौथे स्थान पर है. देश में लगभग डेढ़ लाख एकड़ भूमि पर सालाना 1,43,000 टन लाल मिर्च का उत्पादन होता है. कृषि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण पाकिस्तान गंभीर जोखिम का सामना कर रहा है.
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लाल मिर्च की तलाश
दक्षिणी पाकिस्तानी शहर कुनरी के पास 40 वर्षीय किसान लिमन राज खराब हो चुकी फसलों के बीच कुछ ऐसे मिर्चों की तलाश कर रहा जो शायद बाढ़ के बाद बच गई हो. कुनरी को एशिया की लाल मिर्च की राजधानी के नाम से भी जाना जाता है. यहां की लाल मिर्च दुनिया भर में मशहूर है.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
बदलते मौसम की मार
लिमन राज ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "भीषण गर्मी के कारण फसलों को काफी नुकसान हुआ है. फिर बारिश होने लगी मौसम पूरी तरह बदल चुका है. सारी मिर्च सड़ चुकी है. भारी बारिश के कारण हमें बहुत नुकसान हुआ है."
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जलवायु परिवर्तन का असर
बाढ़ से पहले गर्म तापमान ने मिर्च उगाना कठिन बना दिया, मिर्च की फसल के लिए अधिक मध्यम परिस्थितियों की जरूरत होती है. राज कहते हैं, "जब मैं छोटा था, तब इतनी गर्मी नहीं होती थी, फसलें बहुत हुआ करती थीं, अब इतनी गर्मी हो गई है और बारिश इतनी कम है कि हमारी उपज कम हो गई है."
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
फसल बचाने की कोशिश
कुनरी के किसान फैसल गिल ने लाल मिर्च की फसल को बचाने के लिए अपनी कपास की फसल की कुर्बानी देने का फैसला किया. फैसल कहते हैं, "हमने कपास के खेत के चारों ओर बांध बनाए और पंप लगाए हैं. मैंने लाल मिर्च के खेत में पानी इकट्ठा करने के लिए एक नहर को काटा और पंप के जरिए पानी पहुंचाया. दोनों फसलें अगल-बगल लगाई जाती हैं." गिल लाल मिर्च का केवल 30 प्रतिशत ही बचा पाए.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
बाजार पर पड़ा असर
कुनरी की लाल मिर्च की मंडी भी मौसम की मार से प्रभावित हुई है. व्यापारियों का कहना है कि बाजार में तेज लाल मिर्च के ढेर हैं, लेकिन कीमतों में पिछले साल की तुलना में काफी गिरावट आई है.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
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संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अगर भारत 2030 तक कड़ाई से कदम नहीं उठाता है तो जलवायु परिवर्तन के नतीजे उस पर बहुत भारी पड़ने वाले हैं. 67 देशों के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की ये रिपोर्ट तैयार की है. इनमें से नौ भारत से हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 40 फीसदी से ज्यादा आबादी 2050 तक पानी की किल्लत से जूझ रही होगी. और उसी दौरान देश के तटीय इलाके, जिनमें मुंबई जैसे बड़े शहर भी शामिल हैं, समुद्र के बढ़ते जलस्तर से प्रभावित हो रहे होंगे. गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी बेसिनों में और बाढ़ आएगी और उसी दौरान सूखे और पानी की किल्लत से फसल उत्पादन भी गिरेगा
एशिया में संकट
भारत का पश्चिमी पड़ोसी पाकिस्तान भी 2022 में कुदरती आपदाओं की मार झेलता रहा. इस साल उसने सदी की सबसे बड़ी बाढ़ झेली जिसमें 1,500 से ज्यादा लोगों की जान गई और अरबों रुपये का नुकसान हुआ. मानसून की बारिश से पाकिस्तान की कई नदियों में ऐसी बाढ़ आई और देश का एक तिहाई हिस्सा पानी में डूब गया. 10 लाख से ज्यादा घर या तो टूट गए या उन्हें बुरी तरह से नुकसान पहुंचा है.
भारत में बिजली गिरने से इतनी मौतें क्यों?
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जून की बाढ़ से पहले पाकिस्तान में मार्च अप्रैल में भयानक गर्मी पड़ी और आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया. गर्मी ने 61 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया. स्थानीय मीडिया में छपीं रिपोर्ट्स के मुताबिक कई इलाकों में तापमान 48 डिग्री के भी पार पहुंच गया था.
श्रीलंका में भी भारी गर्मी पड़ी. देश के कई शहरों में मार्च के दौरान पारा पिछले 22 साल में सर्वाधिक रहा था. गॉल और मतारा जिलों में पारा 36 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो कि औसत अधिकतम तापमान से लगभग 5 डिग्री ज्यादा था.