1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बढ़ रही है बिजली गिरने की घटनाएं

प्रभाकर मणि तिवारी
१२ जुलाई २०२१

राजस्थान और उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली गिरने की अलग-अलग घटनाओं में करीब साठ लोगों की मौत हो गई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं.

जयपुर में रविवार कड़कड़ाती बिजली
जयपुर में रविवार कड़कड़ाती बिजलीतस्वीर: Vishal Bhatnagar/NurPhoto/picture alliance

जून के आखिरी सप्ताह के दौरान भी देश के तीन राज्यों-पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली गिरने से लगभग 120 लोगों की मौत हो गई थी.

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 के दौरान ऐसी घटनाओं में तीन हजार लोगों की मौत हो गई थी. बीते कुछ वर्षों से हर साल बिजली गिरने से औसतन ढाई हजार लोगों की मौत हो रही है. लेकिन अब हाल के वर्षो में ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. आखिर क्या है इसकी वजह?

आकाशीय बिजलीतस्वीर: Pete Caster/Lewiston Tribune/AP Photo/picture alliance

एक दिन में 60 से ज्यादा मौतें

उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में रविवार को चौबीस घंटों के दौरान बिजली गिरने की घटनाओं में 60 से ज्यादा लोगों और 200 से ज्यादा पशुओं की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाओं में 44 लोगों की मौत हो गई, जबकि 47 घायल हो गए. राजस्थान के कई हिस्सों में बिजली गिरने की अलग-अलग घटनाओं में सात बच्चों समेत 20 लोगों की मौत हो गई और 21 लोग घायल हो गए. इनमें 12 की मौत जयपुर में आमेर किले के वाच टावर पर बिजली गिरने से हुई. इसके अलावा मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों में भी आकाशीय बिजली गिरने से सात लोगों की मौत हो गई.

एनसीआरबी ने बीते साल सितंबर में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वर्ष 2019 के दौरान देश में बिजली गिरने से करीब तीन हजार लोगों की मौत हो गई. इसमें कहा गया था कि प्राकृतिक आपदाओं में सबसे ज्यादा जनहानि इसी से होती है.

यह स्थिति तब है जब भारत में वज्रपात का पता लगाने वाले 82 डिटेक्टर लगे हैं. यह एक ऐसा सिस्टम है जो पहले ही बिजली गिरने की चेतावनी दे देता है. मौसम विभाग अगले तीन घंटों के दौरान निश्चित इलाके में बिजली गिरने की चेतावनी जारी कर सकता है. लेकिन सटीक चेतावनी महज आधे घंटे पहले ही जारी की जा सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस चेतावनी को सुदूर ग्रामीण इलाकों तक पहुंचाना ही सबसे बड़ी चुनौती है. पश्चिम बंगाल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के एक अधिकारी बताते हैं, "सामुदायिक स्तर पर अर्ली वार्निंग सिस्टम उतना प्रभावी नहीं है. हम फिलहाल आधे घंटे पहले सही जगह के बारे में भविष्यवाणी कर सकते हैं. लेकिन इतने कम समय में संबंधित इलाके में खेतों में काम करने वाले लोगों तक यह सूचना पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती है.”

चेतावनी प्रणाली

आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय मौसम विभाग ने अप्रैल, 2019 में इसकी अग्रिम चेतावनी के लिए एक प्रणाली विकसित की थी. मौसम विभाग के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र बताते हैं, "इसके जरिए 24 से 48 घंटों के बीच कलर कोडेड अलर्ट जारी किया जाता है. इसके अलावा जिस इलाके में बिजली गिरने की संभावना रहती है वहां तीन घंटे पहले अलर्ट जारी कर दिया जाता है.” बावजूद इसके हर साल बिजली गिरने से होने वाली मौतों की तादाद लगातार बढ़ रही है. मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण ऐसे तूफानों और आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं की गंभीरता और फ्रीक्वेंसी बढ़ने का अंदेशा है. प्राकृतिक आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ. मोहित सेनगुप्ता कहते हैं, "जहां तक मौतों का सवाल है, आकाशीय बिजली गिरने की घटना सबसे खतरनाक प्राकृतिक आपदा है. लेकिन खासकर सुदूर ग्रामीण इलाकों से ऐसी ज्यादातर घटनाएं सामने नहीं आ पाती.”

केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लैंड एंड डिजास्टर मैनेजमेंट के अनुसार संस्थान को अखबार, पंचायत या पुलिस स्टेशन से ऐसी मौतों के बारे में जानकारी मिलती है. ऐसे में दूर-दराज के इलाकों की जमीनी हालत का पता लगाना बेहद मुश्किल काम है.

आईआईटी, मद्रास के वैज्ञानिक डॉ. सुनील डी.पवार कहते हैं, "आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं में होने वाली मौतों की तादाद हर साल लगातार बढ़ रही है. अनियंत्रित तरीके से होने वाला शहरीकरण इसकी एक प्रमुख वजह है. साथ ही ग्लोबल वार्मिंग से भी इसका सीधा संबंध है.” उनका कहना है कि मेघालय और पूर्वोत्तर के दूसरे पर्वतीय राज्यों में अब भी हरियाली रहने की वजह से वहां वज्रपात और इससे होने वाली मौतों की तादाद देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले कम हैं.”

जागरूकता अभियान जरूरी

विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी घटनाओं में काफी संख्या में पशुओं की भी मौत हो जाती है जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है. एक विशेषज्ञ धीमान दास ने ग्रामीण इलाकों में खेतों में ताड़ के पेड़ लगाने की सलाह दी है. उनका कहना है कि ज्यादातर मामलों में उन लोगों की ही मौत होती है जो वज्रपात के समय खेतों में काम कर रहे होते हैं. वहां छिपने की कोई जगह नहीं होती. ताड़ के पेड़ लंबे होने की वजह से बिजली उन पर ही गिरने की संभावना रहती है. इससे जान के नुकसान को कम किया जा सकता है.

भारतीय मौसम विभाग ने देश के ऐसे 12 राज्यों की पहचान की है, जहां सबसे अधिक आकाशीय बिजली गिरती है. इनमें मध्य प्रदेश पहले नंबर पर है. इसके बाद महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा का स्थान आता है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को भी आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को कम करने के लिए बांग्लादेश की रणनीति को अपनाना चाहिए. वहां लोक गीतों, नुक्कड़ नाटकों और कहानियों के जरिए लोगों को आकाशीय बिजली से बचने के उपायों की जानकारी दी जाती है. कुछ इसी तर्ज पर लोगों में जागरूकता अभियान चला कर मौतों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें