गृह मंत्रालय के 'साइबर वॉलंटियर' को लेकर चिंतित हैं लोग
२९ नवम्बर २०२१
भारत के गृह मंत्रालय ने साइबर स्वयंसेवी कार्यक्रम शुरू किया है जिसका मकसद राष्ट्र विरोधी ऑनलाइन सामग्री को रिपोर्ट करना होगा. जानकारों का कहना है कि आलोचकों के खिलाफ यह सरकार का अब तक का सबसे खतरनाक कदम है.
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धर्मांधता, हिंसा और हिंदू राष्ट्रवाद की घटनाओं को ट्विटर पर पोस्ट करने वाले अकाउंट ‘हिंदुत्व वॉच' को सरकार के आलोचना करने वाले ट्वीट्स के लिए ट्रोलिंग और अभद्र टिप्पणियां तो बहुत पहले से मिलती रही थीं लेकिन अप्रैल में वे सन्न रह गए जब 26 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स वाले अकाउंट बंद कर दिया गया.
ट्विटर ने अकाउंट को अचानक बंद कर दिया. इसके लिए कोई सफाई या वजह भी नहीं दी गई. ऐसा दर्जनों उन खातों के साथ किया गया जो सरकार के प्रति आलोचक दृष्टिकोण रखते थे. लेकिन इस कार्रवाई का वक्त सबसे अहम था.
तकनीक जो सही रास्ते पर रखे
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इन खातों को बंद तब किया गया जबकि भारत के गृह मंत्रालय ने साइबर क्राइम वॉलंटियर प्रोग्राम शुरू किया था. इस कार्यक्रम के तहत अवैध या गैरकानूनी सामग्री को रिपोर्ट करने की योजना थी. गृह मंत्रालय ने कहा था कि स्वयंसेवी नागरिक या भले लोगों की जरूरत है जो पूरी गोपनीयता बरतें और बाल यौन शोषण के साथ-साथ कानून-व्यवस्था, सांप्रदायिक सौहार्द और भारत की अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली सामग्री को रिपोर्ट करें.
आलोचना की सिमटती जगह
अब सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सरकार की आलोचना करने वाले अन्य लोगों के लिए ट्रोल, भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल और साइबर स्वयंसेवकों के बीच फर्क करना मुश्किल हो गया है. माना जाता है कि इन साइबर स्वयंसेवकों की संख्या सैकड़ों में है.
हिंदुत्व वॉच के प्रवक्ता ने बताया, "हमारे लिए ट्विटर सांप्रदायिकता, हेट स्पीच, फेक न्यूज और दक्षिणपंथियों द्वारा फैलाए जाने वाले फर्जी विज्ञान की पोल खोलने का एक अहम जरिया था. इसके लिए हमें अभद्रता, ट्रोलिंग और धमिकयां आदि मिलती रहीं. ऑनलाइन विजिलांटे मशीनरी है जो बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करने वाले अकाउंट्स को परेशान करती है, उन्हें देशद्रोही बताती है और उन्हें बंद करवाने के लिए योजनाबद्ध अभियान चलाती है.”
इस बार में ट्विटर का कहना है कि किसी भी पोस्ट के बारे में शिकायत को ट्विटर की शर्तों और नियमों के आधार पर जांचा-परखा जाता है और "उल्लंघन करने वाली किसी भी सामग्री के खिलाफ हमारे पास उपलब्ध विभिन्न विकल्पों के आधार पर ही कार्रवाई की जाती है.”
भारतीय गृह मंत्रालय ने इस संबंध में पूछे गए सवालों के लिए फोन या ईमेल का जवाब नहीं दिया.
डिजिटल योद्धा
भारतीय जनता पार्टी 2014 में सत्ता में आई थी. उसके बाद 2019 के आम चुनाव में उसने और बड़ी जीत हासिल की. बहुत से लोग कहते हैं कि बीजेपी की इस विजय के पीछे उसके हजारों डिजिटल योद्धाओं का बड़ा हाथ था.
तस्वीरेंः डॉयचे वेले की टीशर्ट
डॉयचे वेले की टीशर्ट
डॉयचे वेले ने कपड़ों की एक कलेक्शन 'अनसेंसर्ड कलेक्शन' नाम से जारी की है. इसका मकसद है सूचना की आजादी के बारे में जागरूकता फैलाना.
तस्वीर: Peter Sebastian Sander/DW
मुश्किल में है इंटरनेट की आजादी
सितंबर में एक गैर सरकारी संस्था फ्रीडम हाउस ने एक सर्वे के बाद कहा कि दुनिया में 3.8 अरब लोग इंटरनेट प्रयोग करते हैं. इनमें से 56 प्रतिशत लोग उन देशों में रहते हैं जहां राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक सामग्री पर पाबंदियां हैं. 46 प्रतिशत लोगों को सरकारी पाबंदियों के कारण सोशल मीडिया उपलब्ध नहीं है. डॉयचे वेले ने ऑनलाइन सेंसरशिप से लड़ने के लिए अनूठा हथियार चुना हैः फैशन.
तस्वीर: Niall Carson/empics/picture alliance
अनसेंसर्ड कलेक्शन
डीडबल्यू ने बर्लिन स्थित डिजाइनर मार्को शायानो के साथ मिलकर कपड़ों की यह कलेक्शन जारी की है. यह एक अभियान है जिसमें रोजमर्रा के कपड़ों के जरिए इंटरनेट की आजादी पर हो रहे हमलों के बारे में जागरूकता फैलाई जाएगी.
तस्वीर: Peter Sebastian Sander/DW
आजादी की थीम पर कपड़े
इस तस्वीर में दिख रही टीशर्ट की तरह तमाम कपड़ों पर ऐसे प्रतीक नजर आएंगे जो अभिव्यवक्ति की आजादी से जुड़े हैं. लेकिन बात बस इतनी नहीं है. कपड़ों के अंदर एक टूलकिट छिपी है, जो बताती है कि सेंसरशिप को कैसे चकमा दिया जा सकता है.
तस्वीर: Peter Sebastian Sander/DW
यह है टूलकिट
हर कपड़े के भीतर यह टैग छिपा है जिस पर ऐसे तरीके बताए गए हैं जो सेंसर की गई सामग्री को देखने के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं. इनमें ऑनलाइन राउटर या टोर जैसे टूल हैं. साइफन जैसी अन्य एप्लिकेशन भी हैं जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं.
तस्वीर: Peter Sebastian Sander/DW
टोर और साइफन का प्रयोग
तकनीक पर पाबंदी लगाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तरीके दिन ब दिन आधुनिक होते जा रहे हैं. ईरान और भारत जैसे देशों ने कई बार विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए इंटरनेट बंद किया है. चीन तो पूरे इंटरनेट पर ही सेंसरशिप लगाए हुए है. ऐसे में टोर (TOR) और साइफन (Psiphon) जैसे टूल बहुत काम आ सकते हैं.
तस्वीर: Privat
अभिव्यक्ति की आजादी के लिए
डॉयचे वेले की यह नई कलेक्शन सोशल मीडिया पर अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन अभियान के रूप में पेश की जाएगी. इन्हें ऑनलाइन बेचा जाएगा और इनसे जो मुनाफा होगा उसे पत्रकारों के लिए काम करने वाली संस्था कमिटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) को दिया जाएगा.
तस्वीर: DW
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71 वर्षीय भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी तकनीक-पसंद नेता माना जाता है. उनके ट्विटर पर 7.3 करोड़ फॉलोअर्स हैं. लेकिन उनकी इस बात के लिए अक्सर आलोचना होती है कि वह ऐसे लोगों को फॉलो करते हैं जो आलोचकों को परेशान करने या उनके साथ अभद्र व्यवहार करने के लिए बदनाम हैं. ऐसे लोग अपने ट्विटर पर गर्व से लिखते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री उन्हें फॉलो करते हैं.
बीजेपी की सोशल मीडिया रणनीति पर किताब लिख चुकीं स्वाति चतुर्वेदी कहती हैं साइबर स्वयंसेवक योजना लोगों को चुप कराने से ज्यादा बड़ा है. वह कहती हैं, "यह एक चतुराई भरा कदम है क्योंकि इनके जरिए वे ऑनलाइन असहमति को भी दबा सकते हैं और उन पर आंच भी नहीं आती.”
स्टैटिस्टा के मुताबिक भारत में दो करोड़ 20 लाख से ज्यादा ट्विटर यूजर्स हैं. भारत की आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट की पहुंच है और 30 करोड़ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते हैं. 20 करोड़ से ज्यादा लोग वॉट्सऐप इस्तेमाल करते हैं, जो किसी भी अन्य देश से ज्यादा है. कई अन्य देशों की तरह भारत ने भी हाल ही में फर्जी खबरों को रोकने और सरकार की आलोचना करने वाली सामग्री पर नियंत्रण करने के लिए नए कानून लागू किए हैं.
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‘सबसे घातक है साइबर स्वयंसेवी कार्यक्रम'
ऐसा ही कदम चीन भी उठा चुका है. इसी साल की शुरुआत में चीन ने एक हॉटलाइन शुरू की थी जहां सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करने वाली सामग्री को रिपोर्ट किया जा सकता है. वियतनाम ने ऐसे दिशानिर्देश जारी किए हैं जिनके जरिए लोगों को देश के बारे में अच्छी बातें लिखने और राष्ट्रहितों के खिलाफ न लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
भारत में लाए गए कानूनों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता खासे चिंतित हैं. उनका कहना है कि ये कानून निजता के अधिकार का हनन करते हैं. वॉट्सऐप ने इन कानूनों के खिलाफ मुकदमा भी किया है.
कैसे सुरक्षित रखें पासवर्ड
आप अपना पासवर्ड कहां रखते हैं?
एटीएम पिन, बैंक खाता नंबर, डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड डिटेल्स हो या आधार और पैन कार्ड जैसी संवेदनशील निजी जानकारी, भारतीय बेहद लापरवाह तरीके से इन्हें रखते हैं. एक सर्वे में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.
तस्वीर: BR
33 प्रतिशत भारतीय रखते हैं असुरक्षित तरीके से डेटा
लोकल सर्किल के सर्वे में यह पता चला है कि करीब 33 प्रतिशत भारतीय संवेदनशील डेटा असुरक्षित तरीके से ईमेल या कंप्यूटर में रखते हैं.
तस्वीर: Elmar Gubisch/Zoonar/picture alliance
ईमेल और फोन में रखते हैं पासवर्ड
सर्वे में शामिल लोगों ने बताया कि वे संवेदनशील डेटा जैसे कि कंप्यूटर पासवर्ड, बैंक अकाउंट से जुड़ी जानकारी, क्रेडिट और डेबिट कार्ड के साथ ही साथ आधार और पैन कार्ड जैसी निजी जानकारी भी ईमेल और फोन के कॉन्टैक्ट लिस्ट में रखते हैं. 11 फीसदी लोग फोन कॉन्टैक्ट लिस्ट में ऐसी जानकारी रखते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Armer
याद भी करते हैं और लिखते भी हैं
लोकल सर्किल ने देश के 393 जिलों के 24,000 लोगों से प्रतिक्रिया ली, सर्वे में शामिल 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपनी जानकारियां कागज पर लिखते हैं, वहीं 21 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अहम जानकारियों को याद कर लेते हैं.
तस्वीर: Fotolia/THPStock
डेबिट कार्ड पिन साझा करते हैं
लोकल सर्किल के सर्वे में शामिल 29 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने डेबिट कार्ड पिन को अपने परिवार के सदस्यों के साथ साझा करते हैं. वहीं सर्वे में शामिल चार फीसदी लोगों ने कहा कि वे पिन को घरेलू कर्मचारी या दफ्तर के कर्मचारी के साथ साझा करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Ohlenschläger
बड़ा वर्ग साझा नहीं करता एटीएम पिन
सर्वे में शामिल एक बड़ा वर्ग यानी 65 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्होंने एटीएम और डेबिट कार्ड पिन को किसी के साथ साझा नहीं किया. दो फीसदी लोगों ने ही अपने दोस्तों के साथ डेबिट कार्ड पिन साझा किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Warmuth
फोन में अहम जानकारी
कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बैंक खातों से जुड़ी जानकारी, आधार या पैन कार्ड जैसी जानकारी फोन में रखते हैं. सर्वे में शामिल सात फीसदी लोगों ने इसको माना है. 15 प्रतिशत ने कहा कि उनकी संवेदनशील जानकारियां ईमेल या कंप्यूटर में है.
तस्वीर: Imago Images/U. Umstätter
डेटा के बारे में पता नहीं
इस सर्वे में शामिल सात फीसदी लोगों ने कहा है कि उन्हें नहीं मालूम है कि उनका डेटा कहां हो सकता है. मतलब उन्हें अपने डेटा के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है.
तस्वीर: Imago/Science Photo Library
बढ़ रहे साइबर अपराध
ओटीपी, सीवीवी, एटीएम, क्रेडिट या डेबिट कार्ड क्लोनिंग कर अपराधी वित्तीय अपराध को अंजाम दे रहे हैं. ईमेल के जरिए भी लोगों को निशाना बनाया जाता है और संवेदनशील जानकारियों चुराई जाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/chromorange/C. Ohde
डेटा सुरक्षा में जागरूकता की कमी
लोकल सर्किल का कहना है कि देश के लोगों में अहम डेटा के संरक्षण को लेकर जागरूकता की कमी है. कई ऐप ऐसे हैं जो कॉन्टैक्ट लिस्ट की पहुंच की इजाजत मांगते हैं ऐसे में डेटा के लीक होने का खतरा अधिक है. लोकल सर्किल के मुताबिक वह इन नतीजों को सरकार और आरबीआई के साथ साझा करेगा ताकि वित्तीय साक्षरता की दिशा में ठोस कदम उठाया जा सके.
तस्वीर: Fotolia/Sergey Nivens
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इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की अनुष्का जैन कहती हैं कि सरकार का साइबर स्वयंसेवी कार्यक्रम अब तक का सबसे घातक कदम है और देश को निगरानी करने वाले एक राज्य में बदल सकता है. वह कहती हैं, "हमारे पास पहले से ही साइबर अपराधों के खिलाफ कानून हैं, तो इसकी कोई जरूरत नहीं है. यह सिर्फ साइबर विजिलांटिज्म है और खतरनाक है क्योंकि नागरिकों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है. यह सुश्चित करने का कोई तरीका नहीं है कि इसे निजी खुन्नस निकालने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.”
जैन इसकी तुलना पूर्वी जर्मनी की खुफिया पुलिस स्टासी से करती हैं. वह कहती हैं, "बिना किसी पूर्व सत्यापन के, कोई भी स्वयंसेवक बन सकता है. राष्ट्र विरोधी क्या है, इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है. यह कार्यक्रम वैसी ही खुफिया पुलिस जैसे स्टासी बना देगा जैसे पूर्वी जर्मनी में हुआ करते थे.”