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गृह मंत्रालय के 'साइबर वॉलंटियर' को लेकर चिंतित हैं लोग

२९ नवम्बर २०२१

भारत के गृह मंत्रालय ने साइबर स्वयंसेवी कार्यक्रम शुरू किया है जिसका मकसद राष्ट्र विरोधी ऑनलाइन सामग्री को रिपोर्ट करना होगा. जानकारों का कहना है कि आलोचकों के खिलाफ यह सरकार का अब तक का सबसे खतरनाक कदम है.

तस्वीर: Rafael Henrique/ZUMA Wire/imago images

धर्मांधता, हिंसा और हिंदू राष्ट्रवाद की घटनाओं को ट्विटर पर पोस्ट करने वाले अकाउंट ‘हिंदुत्व वॉच' को सरकार के आलोचना करने वाले ट्वीट्स के लिए ट्रोलिंग और अभद्र टिप्पणियां तो बहुत पहले से मिलती रही थीं लेकिन अप्रैल में वे सन्न रह गए जब 26 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स वाले अकाउंट बंद कर दिया गया.

ट्विटर ने अकाउंट को अचानक बंद कर दिया. इसके लिए कोई सफाई या वजह भी नहीं दी गई. ऐसा दर्जनों उन खातों के साथ किया गया जो सरकार के प्रति आलोचक दृष्टिकोण रखते थे. लेकिन इस कार्रवाई का वक्त सबसे अहम था.

तकनीक जो सही रास्ते पर रखे

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इन खातों को बंद तब किया गया जबकि भारत के गृह मंत्रालय ने साइबर क्राइम वॉलंटियर प्रोग्राम शुरू किया था. इस कार्यक्रम के तहत अवैध या गैरकानूनी सामग्री को रिपोर्ट करने की योजना थी. गृह मंत्रालय ने कहा था कि स्वयंसेवी नागरिक या भले लोगों की जरूरत है जो पूरी गोपनीयता बरतें और बाल यौन शोषण के साथ-साथ कानून-व्यवस्था, सांप्रदायिक सौहार्द और भारत की अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली सामग्री को रिपोर्ट करें.

आलोचना की सिमटती जगह

अब सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सरकार की आलोचना करने वाले अन्य लोगों के लिए ट्रोल, भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल और साइबर स्वयंसेवकों के बीच फर्क करना मुश्किल हो गया है. माना जाता है कि इन साइबर स्वयंसेवकों की संख्या सैकड़ों में है.

हिंदुत्व वॉच के प्रवक्ता ने बताया, "हमारे लिए ट्विटर सांप्रदायिकता, हेट स्पीच, फेक न्यूज और दक्षिणपंथियों द्वारा फैलाए जाने वाले फर्जी विज्ञान की पोल खोलने का एक अहम जरिया था. इसके लिए हमें अभद्रता, ट्रोलिंग और धमिकयां आदि मिलती रहीं. ऑनलाइन विजिलांटे मशीनरी है जो बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करने वाले अकाउंट्स को परेशान करती है, उन्हें देशद्रोही बताती है और उन्हें बंद करवाने के लिए योजनाबद्ध अभियान चलाती है.”

इस बार में ट्विटर का कहना है कि किसी भी पोस्ट के बारे में शिकायत को ट्विटर की शर्तों और नियमों के आधार पर जांचा-परखा जाता है और "उल्लंघन करने वाली किसी भी सामग्री के खिलाफ हमारे पास उपलब्ध विभिन्न विकल्पों के आधार पर ही कार्रवाई की जाती है.”

भारतीय गृह मंत्रालय ने इस संबंध में पूछे गए सवालों के लिए फोन या ईमेल का जवाब नहीं दिया.

डिजिटल योद्धा

भारतीय जनता पार्टी 2014 में सत्ता में आई थी. उसके बाद 2019 के आम चुनाव में उसने और बड़ी जीत हासिल की. बहुत से लोग कहते हैं कि बीजेपी की इस विजय के पीछे उसके हजारों डिजिटल योद्धाओं का बड़ा हाथ था.

तस्वीरेंः डॉयचे वेले की टीशर्ट

71 वर्षीय भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी तकनीक-पसंद नेता माना जाता है. उनके ट्विटर पर 7.3 करोड़ फॉलोअर्स हैं. लेकिन उनकी इस बात के लिए अक्सर आलोचना होती है कि वह ऐसे लोगों को फॉलो करते हैं जो आलोचकों को परेशान करने या उनके साथ अभद्र व्यवहार करने के लिए बदनाम हैं. ऐसे लोग अपने ट्विटर पर गर्व से लिखते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री उन्हें फॉलो करते हैं.

बीजेपी की सोशल मीडिया रणनीति पर किताब लिख चुकीं स्वाति चतुर्वेदी कहती हैं साइबर स्वयंसेवक योजना लोगों को चुप कराने से ज्यादा बड़ा है. वह कहती हैं, "यह एक चतुराई भरा कदम है क्योंकि इनके जरिए वे ऑनलाइन असहमति को भी दबा सकते हैं और उन पर आंच भी नहीं आती.”

स्टैटिस्टा के मुताबिक भारत में दो करोड़ 20 लाख से ज्यादा ट्विटर यूजर्स हैं. भारत की आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट की पहुंच है और 30 करोड़ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते हैं. 20 करोड़ से ज्यादा लोग वॉट्सऐप इस्तेमाल करते हैं, जो किसी भी अन्य देश से ज्यादा है. कई अन्य देशों की तरह भारत ने भी हाल ही में फर्जी खबरों को रोकने और सरकार की आलोचना करने वाली सामग्री पर नियंत्रण करने के लिए नए कानून लागू किए हैं.

‘सबसे घातक है साइबर स्वयंसेवी कार्यक्रम'

ऐसा ही कदम चीन भी उठा चुका है. इसी साल की शुरुआत में चीन ने एक हॉटलाइन शुरू की थी जहां सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करने वाली सामग्री को रिपोर्ट किया जा सकता है. वियतनाम ने ऐसे दिशानिर्देश जारी किए हैं जिनके जरिए लोगों को देश के बारे में अच्छी बातें लिखने और राष्ट्रहितों के खिलाफ न लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

भारत में लाए गए कानूनों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता खासे चिंतित हैं. उनका कहना है कि ये कानून निजता के अधिकार का हनन करते हैं. वॉट्सऐप ने इन कानूनों के खिलाफ मुकदमा भी किया है.

कैसे सुरक्षित रखें पासवर्ड

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की अनुष्का जैन कहती हैं कि सरकार का साइबर स्वयंसेवी कार्यक्रम अब तक का सबसे घातक कदम है और देश को निगरानी करने वाले एक राज्य में बदल सकता है. वह कहती हैं, "हमारे पास पहले से ही साइबर अपराधों के खिलाफ कानून हैं, तो इसकी कोई जरूरत नहीं है. यह सिर्फ साइबर विजिलांटिज्म है और खतरनाक है क्योंकि नागरिकों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है. यह सुश्चित करने का कोई तरीका नहीं है कि इसे निजी खुन्नस निकालने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.”

जैन इसकी तुलना पूर्वी जर्मनी की खुफिया पुलिस स्टासी से करती हैं. वह कहती हैं, "बिना किसी पूर्व सत्यापन के, कोई भी स्वयंसेवक बन सकता है. राष्ट्र विरोधी क्या है, इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है. यह कार्यक्रम वैसी ही खुफिया पुलिस जैसे स्टासी बना देगा जैसे पूर्वी जर्मनी में हुआ करते थे.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

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