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शराबबंदी पर सर्वे क्यों करा रही है बिहार सरकार

मनीष कुमार
२० दिसम्बर २०२३

जातिवार गणना के बाद बिहार में अब शराबबंदी पर सर्वे की तैयारी है. इसके जरिए नीतीश सरकार यह जानना चाहती है कि कहीं शराबबंदी को लेकर किसी तबके में नाराजगी तो नहीं है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
नीतीश कुमार ने कह चुके हैं कि जब तक वह सत्ता में हैं, तब तक शराबबंदी जारी रहेगी. लेकिन आलोचक रेखांकित करते हैं कि राज्य सरकार शराबबंदी को प्रभावी तरीके से लागू करा पाने में नाकाम रही है. जहरीली और नकली शराब पीने से कई लोगों की जान जा चुकी है. तस्वीर: Caisii Mao/NurPhoto/picture alliance

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को अपनी बड़ी उपलब्धि गिनाते आए हैं. उनका कहना है कि वो इसे कभी वापस नहीं लेंगे. बावजूद इसके सरकार शराबबंदी पर सर्वे कराने की तैयारी कर रही है.

कई जानकार इस सर्वे में चुनावी डर का संकेत देखते हैं. उनका मानना है कि शायद नीतीश सरकार को डर है कि 2024 के लोकसभा चुनाव या अगले विधानसभा चुनाव में कहीं यह शराबबंदी का मुद्दा भारी न पड़ जाए.

सर्वे का मकसद

अप्रैल 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से इसके प्रावधानों और लागू करने के तरीके पर बार-बार सवाल उठाए गए. इसी वजह से इस कानून में कई बार संशोधन किए गए. पिछले महीने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नशा मुक्ति दिवस के मौके पर जातिगत गणना की तरह ही घर-घर जाकर शराबबंदी पर सर्वेक्षण किए जाने की घोषणा की.

सर्वे से यह पता चल सकेगा कि कितने लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं और कितने नहीं. मद्य निषेध विभाग ने इसके लिए एक प्रश्नावली तैयार की है. कहा जा रहा है कि इस सर्वे में परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के संबंध में भी जानकारी मांगी जाएगी. बिहार के सभी जिलों में कम-से-कम 2,500 घरों में सर्वे की योजना है. यह काम 12 हफ्ते में पूरा किया जाएगा. राज्य सरकार यह कवायद अपने खर्च पर करा रही है.

शराबबंदी के बाद से ही जहरीली शराब पीने के कारण कई मौतें हो चुकी हैं. ऐसी ही एक घटना के बाद भागलपुर में विरोध जताते लोग. तस्वीर: Manish Kumar/DW

पहले के सर्वे में क्या पता चला

इससे पहले 2018 में भी एक सर्वेक्षण किया गया था. उसमें डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों के शराब छोड़ने की जानकारी सामने आई थी. सर्वे के मुताबिक, इन प्रतिभागियों ने बताया कि उन्होंने शराब से बचाए पैसे को सब्जी, कपड़े व दूध जैसी जरूरी चीजें खरीदने पर खर्च किया.

इसके बाद दूसरा सर्वे फरवरी 2023 में हुआ, जिसमें राज्य के सभी 38 जिलों के तीन हजार से ज्यादा गांव शामिल किए गए थे. यह सर्वे चाणक्य लॉ यूनिवर्सिटी और जीविका (बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना) ने किया था.

इसका सैंपल साइज 10 लाख से ज्यादा था. सर्वे से पता चला कि प्रतिभागियों में 99 प्रतिशत महिलाएं और 92 प्रतिशत पुरुष शराबबंदी के पक्ष में हैं. इसमें भी दो करोड़ से ज्यादा लोगों द्वारा शराब छोड़ देने की बात सामने आई थी. रिपोर्ट के अनुसार, 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग शराबबंदी जारी रखने के समर्थन में थे.

नकली शराब पीने से भी कई लोगों की जान गई है. यह तस्वीर बिहार के बेतिया की है, जहां नकली शराब के कारण छह लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी. मृतकों के परिवारजन शोक मनाते हुए. तस्वीर: IANS

शराबबंदी पर शुरू से ही सियासत

इस कानून के लागू होने के बाद से ही विपक्षी दलों ने सीधे-सीधे इसका विरोध नहीं किया. जानकार इसके पीछे राजनीतिक मजबूरी को कारण बताते हैं. हालांकि विपक्ष कानून को लागू करने के तरीके पर सवाल उठाता रहा है.

तब विपक्ष में रहे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने आरोप लगाया था कि इस कानून के जरिए केवल गरीबों को प्रताड़ित किया जा रहा है. लालू प्रसाद यादव ने तो शराबबंदी कानून को तुरंत खत्म करने की मांग की थी. तेजस्वी यादव ने भी इसके कारण हो रहे राजस्व के नुकसान का मामला उठाया था.

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी तो नीतीश कुमार के साथ रहते हुए भी शराबबंदी का विरोध करते रहे. मांझी कई बार कह चुके हैं कि इससे गरीबों का बड़ा नुकसान हुआ है.

मांझी कहते हैं, ‘‘वर्तमान शराब नीति बहुत ही दोषपूर्ण है. आज चार लाख से ज्यादा लोग शराब पीने और बेचने के आरोप में जेल में बंद हैं. इनमें 80 प्रतिशत दलित और गरीब तबके के हैं. 2025 में अगर मेरी सरकार बनी, तो या तो गुजरात मॉडल लागू कर देंगे या शराबबंदी हटा देंगे. पहले भी लोग पीते थे, अब भी पी रहे हैं. शराबबंदी में तो लोग जहरीली शराब पीकर मर रहे हैं."

लोगों के मन की बात जानने की कोशिश क्यों

सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद राज्य में देसी और विदेशी शराब का अवैध धंधा फल-फूल रहा है. शराबबंदी लागू होने के तीन महीने बाद ही गोपालगंज के खजूर बन्नी में जहरीली शराब पीने से 19 लोगों की मौत हो गई थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से अब तक इससे 250 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है.

राज्य के विभिन्न थानों में इस कानून के उल्लंघन से संबंधित करीब साढ़े पांच लाख मामले दर्ज हैं. इनके अलावा करीब आठ लाख लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. अदालतों में शराबबंदी से जुड़े मुकदमों का अंबार लगा है. यही वजह रही कि दिसंबर 2021 में सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन चीफ जस्टिस एन.वी. रमन्ना ने इसे दूरदर्शिता की कमी के साथ लागू किया गया कानून बताया था.

शराबबंदी लागू करने में लापरवाही बरतने या इससे संबंधित भ्रष्टाचार के आरोप में सैकड़ों पुलिसकर्मियों व सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित किया जा चुका है. ड्रोन के जरिए शराब बनाने के अड्डों की खोज की जा रही है. बरामदगी के आंकड़े और दूसरे राज्यों में माफिया की गिरफ्तारी से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड जैसे राज्यों से अवैध शराब बिहार में लाई जा रही है.

शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से इसमें अब तक कई महत्वपूर्ण संशोधन किए जा चुके हैं. अब तो पहली बार पीते हुए पकड़े जाने पर जुर्माना देकर छोड़ने का प्रावधान हो गया है. पत्रकार संजय सिंह कहते हैं, ‘‘जहरीली शराब से होने वाली मौतों, अदालतों में मुकदमों के अंबार और अधिक संख्या में गरीबों-दलितों की गिरफ्तारी को लेकर शुरू से ही सवाल उठते रहे हैं. चुनाव नजदीक आ गया है, तो जाहिर है कि सरकार पर राजनीतिक दबाव तो होगा ही. सर्वेक्षण से इस मुद्दे पर आम लोगों के मूड का पता तो चल ही जाएगा.''

आरोप है कि शराबबंदी के बावजूद बिहार में धड़ल्ले से शराब की बिक्री हो रही है. कई बार पुलिस ने भी भारी मात्रा में शराब बरामद की है. तस्वीर: बिहार के मधुबनी जिले की इस तस्वीर में जब्त की गई शराबतस्वीर: Manish Kumar/DW

क्या शराबबंदी का मकसद हासिल हुआ

बिहार में शराबबंदी लागू करने में महिलाओं की बड़ी भूमिका रही है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा की गई मांग ने इस कानून की राह बनाई. नीतीश कुमार ने 2015 के चुनाव में जीत कर आने पर इसे लागू करने का वादा किया था. इस वादे से उन्हें महिला मतदाताओं का भरपूर समर्थन मिला. महिलाओं का वोट प्रतिशत 59.92 हो गया. सत्ता में लौटते ही नीतीश ने शराबबंदी की घोषणा कर दी.

पत्रकार शिवानी सिंह कहती हैं, ‘‘यह सच है कि शराबबंदी लागू होने से उन महिलाओं को नई जिंदगी मिली, जिनके पारिवारिक जीवन को शराब ने नरक बना दिया था. उनके साथ घरेलू हिंसा में कमी आई. यह नारी सशक्तीकरण और महिला सुरक्षा की दिशा में वाकई एक ऐतिहासिक कदम था.''

महिलाओं का नजरिया

जानकार मानते हैं कि इस कानून के कारण महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक दशा में सुधार भी हुआ है. हालांकि अब इसमें भी संशय नहीं कि अवैध शराब की बिक्री और जहरीली शराब पीने से होने वाली मौतों के कारण इस तबके में नाराजगी भी उभर रही है.

पटना की श्यामा देवी कहती हैं, ‘‘शराबबंदी बहुत अच्छी चीज है, लेकिन अवैध शराब हर जगह मिल रही है. यह बुरी बात है. यह पुलिस-प्रशासन की विफलता है. केवल नियम बना देने से कुछ नहीं होता है, उसका कड़ाई से पालन भी जरूरी है.''

इसी तरह किशोरी चौधरी का कहना है, ‘‘अब फिर से सड़कों पर शराब पीकर लड़खड़ाते लोग दिखने लगे हैं. जहरीली शराब पीने से लोग मर रहे हैं और इसका खामियाजा परिवार वाले भुगतते हैं. अगर पूरी तरह रोक लगी होती, तो उन्हें जहरीली शराब नहीं मिलती और उनकी जान नहीं जाती. नहीं तो लोग पहले भी पी रहे थे, क्या फर्क पड़ रहा था.''

और कड़ाई या ज्यादा ढील

अवैध शराब की भारी मात्रा में बरामदगी यह बताने के लिए काफी है कि सरकार और प्रशासन, शराब व्यापारियों के सिंडिकेट को तोड़ नहीं पा रही है. इनका नेटवर्क भी पूरी तरह काम कर रहा है. हालांकि इसके लिए पुलिस-प्रशासन से लेकर नेताओं तक पर संलिप्तता के आरोप लगते हैं.

भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद सुशील कुमार मोदी कहते हैं, ‘‘सरकार यह बताए कि जब्त की गई दो करोड़, 16 लाख लीटर शराब राज्य में आई कहां से? हर साल राज्य को दस हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है. अभी तक इसकी क्षति-पूर्ति का विकल्प तक सरकार नहीं खोज पाई है, तो अब सर्वे पर अरबों खर्च करने का औचित्य क्या है. कौन कहेगा कि शराबबंदी गलत है.''

नीतीश कुमार ने यह कहा था कि जब तक वह सत्ता में हैं, तब तक शराबबंदी जारी रहेगी. लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि सर्वे के आधार पर नए उपाय लागू किए जाएंगे. ये उपाय शराबबंदी को और कड़ाई से लागू करने वाले होंगे या ढील देने वाले होंगे, ये तो आने वाले महीनों में पता चलेगा.

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