1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

डीडब्ल्यू फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड 2020 - विजेताओं की घोषणा

३ मई २०२०

डीडब्ल्यू दुनिया भर के उन पत्रकारों को सम्मानित कर रहा है जिन्होंने मीडिया पर लगी पाबंदियों के बावजूद कोविड-19 पर रिपोर्ट किया. इस साल 14 देशों से 17 पत्रकारों को यह सम्मान दिया जा रहा है.

DW Freedom of Speech Award 2020 - ACHTUNG SPERRFRIST!
तस्वीर: DW

एशिया

भारत: सिद्धार्थ वरदराजन

"द वायर" के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन "द हिंदू" अखबार के संपादक रह चुके हैं. भारत में लॉकडाउन शुरू होने के बाद जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में पूजा की, तब द वायर ने इस खबर को छापा और कुछ दिन बाद उन्हें पुलिस की कार्रवाई का सामना करना पड़ा. उन पर अफरातफरी फैलाने के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई. वरदराजन का कहना है, "कोविड संकट एक जरिया बन गया है पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देने का, पारदर्शिता को कम करने का और सांप्रदायिक राजनीति का इस्तेमाल कर लोगों को बांटने का."

चीन: चेन किउशी

चीन के वकील, एक्टिविस्ट और सिटीजन जर्नलिस्ट. 2019 में इन्होंने हांगकांग में हुए प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग की. प्रदर्शन के वीडियो पोस्ट करने के बाद उनका वाइबो अकाउंट डिलीट कर दिया गया और अक्टूबर में उन्हें हिरासत में भी ले लिया गया. 2020 में उन्होंने वुहान से रिपोर्टिंग जारी रखी और ट्विटर और यूट्यूब पर डॉक्टरों से बातचीत को पोस्ट किया. 6 फरवरी को ये गायब हो गए. 30 जनवरी को एक वीडियो में इन्होंने कहा था, "मुझे डर लग रहा है. मेरे सामने बीमारी है और पीछे चीनी सरकार. लेकिन जब तक मैं जिंदा हूं, मैंने जो देखा और सुना है, वो मैं बोलता रहूंगा."

चीन: ली जेहुआ

सिटीजन जर्नलिस्ट ली चीन के सरकारी सीसीटीवी चैनल में एंकर हुआ करते थे. कोविड-19 के शुरुआती दौर में इन्होंने चैनल से इस्तीफा दे दिया और यूट्यूब, ट्विटर पर अपना वीडिया ब्लॉग शुरू किया. 26 फरवरी को ये गायब हो गए और 22 अप्रैल को एक वीडियो के साथ वापस लौटे. वीडियो में इन्होंने कहा कि इन्हें क्वॉरंटीन किया गया था लेकिन जानकारों को इस पर शक है.

चीन: फैंग बिन

वुहान के सिटीजन जर्नलिस्ट. इनका वह वीडियो खूब वायरल हुआ जिसमें एक अस्पताल के बाहर कई शव बैग में बंद पड़े दिखे. 2 फरवरी को पुलिस ने इनका लैपटॉप जब्त कर लिया. 4 फरवरी को पुलिस ने इनके अपार्टमेंट में घुसने की कोशिश की लेकिन इन्होंने पुलिस को अंदर नहीं आने दिया. 9 फरवरी को ये गायब हो गए और सोशल मीडिया अकाउंट भी डिलीट कर दिया गया. इसके बाद चीन में अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रश्न उठने लगे.

फैंग बिनतस्वीर: Getty Images/AFP/I. Lawrence

कंबोडिया: सोवान रिथी

ये हैं टीवीएफबी न्यूज वेबसाइट के अध्यक्ष. इन्होंने प्रधानमंत्री हुन सेन के खिलाफ लिखा कि कोरोना संकट के बीच उनकी सरकार टैक्सी ड्राइवरों की मदद नहीं कर पा रही है. इसके कारण इन पर अराजकता फैलाने और समाज के लिए खतरा बनने के आरोप लगाए गए और 7 अप्रैल को इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सूचना मंत्रालय ने चैनल का लाइसेंस भी रद्द कर दिया. आरोप साबित होने पर इन्हें दो साल कैद की सजा हो सकती है.

फिलीपींस: मारिया विक्टोरिया बेल्तरान

बेल्तरान फिल्म अभिनेत्री हैं और लेखिका भी. सेबू सिटी में बढ़ रहे कोरोना मामलों के बारे में इन्होंने फेसबुक पर एक टिप्पणी की. इस पर शहर के मेयर ने लिखा, "यह फेक न्यूज है और आपराधिक है. मिस बेल्तरान आपको जल्द ही साइबर क्राइम यूनिट पकड़ेगी और जेल में फेंक देगी." 19 अप्रैल को साइबर क्राइम्स एक्ट के तहत इन्हें हिरासत में ले लिया गया.

यूरोप

स्लोवेनिया: ब्लाज जगागा

ये एक खोजी पत्रकार हैं और लगातार सरकार के निशाने पर रहे हैं. कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स से बातचीत में इन्होंने बताया, "सरकार का समर्थन करने वाले मीडिया संस्थान मुझ पर और अन्य उन पत्रकारों पर हमला बोलते रहते हैं जो इस संकट में सरकार के रवैये की आलोचना कर रहे हैं. वे हम पर आरोप लगाते हैं कि हम सरकार के महामारी को रोकने के प्रयासों में बाधा बन रहे हैं."

सर्बिया: आना लालिक

ये nova.rs न्यूज वेबसाइट की पत्रकार हैं. इन्होंने नोवी साद में मेडिकल इक्विपमेंट की कमी पर लेख लिखा जिस कारण 1 अप्रैल को इन्हें हिरासत में लिया गया. इन पर फेक न्यूज फैलाने का आरोप लगाया गया और इनका लैपटॉप और फोन भी जब्त कर लिया गया. एक दिन बाद इन्हें रिहा कर दिया गया. कोविड-19 के कारण देश में नया कानून बनाया गया है जिसके तहत कोरोना पर छपने वाली हर खबर पर प्रधानमंत्री कार्यालय की नजर होगी. 

रूस/चेचेन्या: एलेना मिलाशीना

ये रूस की खोजी पत्रकार हैं. 2009 में इन्हें बेहतरीन एक्टिविज्म के लिए ह्यूमन राइट्स वॉच के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 6 फरवरी को इन पर चेचेन्या में हमला हुआ. 12 अप्रैल को इन्होंने छापा कि चेचेन्या में महामारी से किस तरह निपटा जा रहा है. 24 घंटों बाद चेचेन्या के राष्ट्रपति ने टेलीग्राम ऐप पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें उन्होंने कहा, "बस अब बहुत हुआ. अगर आप हमें अपराधी बना देना चाहती हैं, तो बता दें. हम में से कोई एक इसकी जिम्मेदारी ले लेगा." मिलाशीना का कहना है कि जान पर खतरे के बावजूद वे लिखना जारी रखेंगी.

एलेना मिलाशीनातस्वीर: imago images

बेलारूस: सेर्गेय साजुक

ये एक ऑनलाइन अखबार येजहेदनेवनिक के लिए काम करते हैं. कोरोना संकट को ले कर राष्ट्रपति लुकाशेंको की आलोचना करने के कारण 25 मार्च को इन्हें हिरासत में लिया गया. अपने लेख में उन्होंने आधिकारिक आंकड़ों पर सवाल उठाया. कुछ जानकारों का कहना है कि यह लेख केवल एक बहाना बन गया, साजुक पर सरकार की निगाह काफी पहले से ही थी.

मध्य पूर्व / तुर्की

ईरान: मोहम्मद मोसाइद

आर्थिक मामलों के पत्रकार मोहम्मद मोसाइद को फरवरी में इसलिए हिरासत में लिया गया क्योंकि इन्होंने महामारी से निपटने को लेकर सरकार की अधूरी तैयारियों की आलोचना की. सरकार ने इनके सोशल मीडिया अकाउंट बंद करा दिए हैं, इन्हें भविष्य में पत्रकारिता करने की अनुमति नहीं है और अब ये अदालत की तारीख का इंतजार कर रहे हैं.

जॉर्डन: फारस सायेघ

रोया टीवी के एमडी सायेघ को 9 अप्रैल को हिरासत में लिया गया और 12 अप्रैल को जमानत पर रिहा किया गया. हिरासत में लिए जाने से कुछ ही वक्त पहले चैनल ने जॉर्डन में महामारी से निपटने की तैयारियों के बारे में रिपोर्ट चलाई थी और कई नागरिकों की राय भी दिखाई थी. लेकिन इनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है.

तुर्की: इसमेत सिगित

एसईएस कोकैली अखबार के मुख्य संपादक इसमेत सिगित को अपने ऑनलाइन संस्करण में वह खबर छापने के लिए गिरफ्तार किया गया जिसमें बताया गया था कि कोकैली में दो लोगों की कथित तौर पर कोविड-19 के कारण जान गई. बाद में इन्हें रिहा कर दिया गया.

तुर्की: नुरकान बायसाल

इन्होंने कोरोना संकट के बीच जेल में रह रहे कैदियों के हालात पर रिपोर्ट लिखी. इन्होंने कैदियों की चिट्ठियों, अखबारों के लेख और अपनी राय को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया. कैदियों के परिवारों की चिंताओं को भी इन्होंने उजागर किया. इस कारण इन पर जनता में नफरत और बैर फैलाने के आरोप लगाए गए. 

नुरकान बायसालतस्वीर: privat

अफ्रीका

जिम्बाब्वे: बीटीफिक न्गुंबवांडा

ये टेलजिम अखबार के पत्रकार हैं. देश में लॉकडाउन लगने के बाद जब ये रिपोर्टिंग के लिए बाहर निकले तो पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया. इन्होंने समझाने की कोशिश की कि ये केवल अपनी ड्यूटी कर रहे थे, पहचानपत्र भी दिखाया लेकिन पुलिस ने इनकी एक नहीं मानी.

यूगांडा: डाविड मूसीसी कार्यानकोलो

ये बुकेडे टीवी के पत्रकार हैं. पुलिस और सुरक्षाकर्मियों ने इनके घर में घुस कर इन्हें इतना मारा कि ये दस घंटों तक बेहोश रहे. अपनी सफाई में सुरक्षाकर्मियों का कहना था कि वे शाम सात बजे से सुबह साढ़े छह बजे तक लगे कर्फ्यू को लागू कर रहे थे. उनकी पत्नी का कहना है कि वे केवल वरांडे में नहाने का पानी लाने के लिए निकले थे.

लातिन अमेरिका

वेनेज़ुएला: डारविनसन रोजास

इन्हें वेनेजुएला में कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर रिपोर्टिंग के लिए गिरफ्तार किया गया. 12 दिन तक हिरासत में रहने के बाद इन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया लेकिन इन पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं. इसमें नफरत फैलाना और अपराध करने के लिए उकसाना शामिल हैं. 

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

प्रेस को कहां कितनी आजादी है?

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें