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क्या गौरैया की आवाज से बिगड़ सकती है इंसान की सेहत?

७ जून २०२५

क्या गौरैया की आवाज किसी को इतना तंग कर सकती है कि उसकी सेहत पर असर पड़ने लगे? क्या पंछियों की आवाज से किसी की शांति में इस कदर खलल पड़ सकता है कि मामला अदालत में चला जाए? फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में ऐसा ही कुछ हुआ.

Haussperling
तस्वीर: blickwinkel/McPHOTO/picture alliance

फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में एक शख्स को गौरैया के एक झुंड की आवाज से बहुत दिक्कत हो रही थी. मामला अदालत पहुंचा. कोर्ट ने उस शख्स की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि गौरैया की आवाज से लोगों की सेहत को कोई खतरा नहीं है.

'हेलसिंकी टाइम्स' ने अपनी एक रिपोर्ट में इस घटना का ब्योरा कुछ यूं बताया कि एक रिहायशी इलाके में एक घर के पास गौरैयों का एक झुंड रहता है. पड़ोस में रहने वाले एक शख्स को उनकी चहचहाहट से दिक्कत थी. उसने स्थानीय प्रशासन से इसकी शिकायत की. शिकायतकर्ता ने कहा कि गौरैया हानिकारक जीव है और उनकी आवाज तनाव का कारण बनती है.

बढ़ते शहरीकरण, प्रदूषण और सिमटते कुदरती परिवेश के कारण गौरैया जैसी पक्षियों की संख्या घटती जा रही हैतस्वीर: Christopher Smith/Zoonar/picture alliance

शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि ये पक्षी किसी के घर या बागीचे की सीमा का सम्मान नहीं करते. जैसे-जैसे उनकी संख्या बढ़ती है, वो और ज्यादा फैलते जाते हैं. यह मामला प्रशासन के बाद एक स्थानीय प्राशासनिक अदालत पहुंचा. शिकायकर्ता का कहना था कि गौरैयों के घोंसले हटा दिए जाएं. इसपर कोर्ट ने कहा कि पक्षी, शहरी आबोहवा का सामान्य हिस्सा हैं. उनकी आवाज इतनी तेज नहीं होती कि इंसानी सेहत को नुकसान पहुंचाए.

पक्षियों का गीत मानसिक स्वास्थ्य बेहतर कर सकता है

हेलसिंकी के उस निवासी को भले ही गौरैया की आवाज ना पसंद आती हो, लेकिन कई रिसर्च बताते हैं कि चिड़ियों का संगीत हमारा मानसिक स्वास्थ्य बेहतर कर सकता है. शोध बताते हैं कि पक्षी मुख्य रूप से अपने इलाके की रक्षा करने और मिलन के लिए साथी को रिझाने के लिए गाते हैं. कुछ पक्षी सिर्फ आवाज निकालकर पुकार लगाते हैं, तो कई की आवाज बहुत लयबद्ध होती है.

पक्षियों का कलरव सदियों से कलाकारों को प्रेरित करता आया है. साल 2022 में 'साइंटिफिक रिपोर्ट्स' नाम के जर्नल में छपे एक अध्ययन के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पाया कि रोजमर्रा की जिंदगी में पक्षियों की आवाज सुनने या उन्हें देखने का मानसिक तंदरुस्ती से संबंध है.

'नेशनल जियोग्रैफिक' के मुताबिक, बहुत सारे विशेषज्ञ मानते हैं कि चिड़ियों का गाना सुनकर लोग सुरक्षित महसूस करते हैं. पक्षियों का गीत घबराहट और अवसाद के लक्षणों को भी कम कर सकता है. 

तोता कैसे कर लेता है आवाज की नकल

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बढ़ते शहरीकरण, आहार शृंखला में उलटफेर, प्रदूषण और सिमटते कुदरती परिवेश जैसी वजहों से गौरैया जैसी पक्षियों की संख्या घटती जा रही है. यह हाल इक्का-दुक्का जगहों का नहीं है, पूरी दुनिया में गौरैया की आबादी घट रही है. भारत में भी इनकी घटती जनसंख्या को देखते हुए साल 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गौरैया को दिल्ली का प्रदेश पक्षी घोषित किया था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी 20 मार्च को "विश्व गौरैया दिवस" मनाया जाता है, ताकि ईकोसिस्टम में गौरैया की अहम भूमिका और संरक्षण की जरूरत को रेखांकित किया जा सके. 

एसएम/एवाई 

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