‘मानवता के साथ क्रूर मजाक’: क्रिमिनल डाटा बिल लोकसभा में पास
५ अप्रैल २०२२
हिरासत में लिए गए लोगों तक की निजी जानकारियों और शरीर के नाप आदि को जुटाने का अधिकार देने वाला दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 लोकसभा में पास हो गया है. लगभग पूरे विपक्ष ने इस बिल का विरोध किया था.
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भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा ने क्रिमिनल प्रोसीजर (शिनाख्त) बिल पास कर दिया है. सोमवार को इस बिल के पारित होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इस कानून का कोई गलत इस्तेमाल नहीं होगा. अमित शाह ने कहा, "सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी कि कानून का कोई गलत इस्तेमाल ना हो.”
विपक्ष ने इस बिल को लेकर चिंताएं जताई थीं कि इस कानून का इस्तेमाल अधिकारियों द्वारा आम लोगों को परेशान करने में किया जा सकता है. इसके अलावा इस कानून के तहत जुटाई गईं आम लोगों की जानकारियों के गलत प्रयोग की आशंकाएं विपक्षी दलों के अलावा मानवाधिकार और डेटा प्राइवेसी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता भी जताते रहे हैं. शिवसेना सदस्य विनायक राउत ने इस बिल को ‘मानवता के साथ क्रूर मजाक' बताया था.
इच्छामृत्यु को वैध बनाने वाला दुनिया का पहला देश
ठीक 20 साल पहले एक अप्रैल 2002 को नीदरलैंड्स ने इच्छामृत्यु को कानूनी वैधता दी. ऐसा करने वाला नीदरलैंड्स दुनिया का पहला देश था. आज भी कई देश ऐसे हैं जहां इच्छामृत्यु गैरकानूनी माना जाता है.
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नीदरलैंड्स
दुनिया के जिन मुठ्ठी भर देशों में इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता मिली है उनमें नीदरलैंड्स का नाम प्रमुखता से आता है. कानूनी मान्यता देने वाला विश्व के सभी देशों में नीदरलैंड्स पहला था. यहां सन 2002 से ही इसे वैधता मिली.
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बेल्जियम
नीदरलैंड्स के अलावा बेल्जियम दूसरा ऐसा देश है जहां गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को भी बहुत कड़ी शर्तों के साथ अपनी जान देने की कानूनी अनुमति है. हालांकि शर्तों का ठीक से पालन ना करने पर मरने में मदद करने वाले को एक से तीन साल की जेल हो सकती है.
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ऑस्ट्रेलिया
विक्टोरिया यहां का पहला राज्य है जहां जून 2019 में इच्छामृत्यु का कानून लागू हुआ है. यह सिर्फ उन लोगों पर लागू है जो जानलेवा बीमारी से पीड़ित हैं और उनका दिमाग ठीक काम कर रहा हो. साथ ही जिनके जीवन के अब सिर्फ छह महीने बाकी हों. उम्मीद है कि इसके बाद क्वीन्सलैंड और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया राज्यों में भी ऐसे कानून पास किए जा सकते हैं.
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कोलंबिया
2015 में यूथेनेसिया को मान्यता देने वाला कोलंबिया विश्व का चौथा देश बना. हालांकि कोलंबिया की संवैधानिक अदालत ने 1997 में ही इसके पक्ष में फैसला सुनाया था लेकिन डॉक्टर ऐसा करना नहीं चाहते थे. कारण था देश का एक और कानून जिसमें दया-मृत्यु के लिए छह महीने से तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान था.
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स्विट्जरलैंड
अब तक कई देश इसे कानूनी मान्यता दे चुके हैं लेकिन स्विट्जरलैंड इकलौता देश है जहां जाकर कोई विदेशी भी कानूनी रूप से यूथेनेसिया कर सकता है. अगर मरीज चाहता हो तो मेडिकल मदद देकर किसी के प्राण लेना यहां अपराध नहीं है. तस्वीर में हैं यूथेनेसिया के मशहूर समर्थक वैज्ञानिक डेविड गुडबॉल.
तस्वीर: Alessandro della Bella/dpa/picture-alliance
लक्जमबर्ग
सन 2008 में यूथेनेसिया और मेडिकल मदद से जान देने को यहां भी वैधता मिली. गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए यह एक कानूनी विकल्प बन गया. इसके लिए मरीज को बार बार मांग करनी होती है और कम से कम दो डॉक्टर और एक मेडिकल पैनल से इसके पक्ष में दी गई सलाह लिखित रूप से जमा करानी होती है.
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जर्मनी
सन 2017 में जर्मनी में एक यादगार कदम उठाते हुए कोर्ट ने गंभीर रूप से बीमार मरीजों को दवा लेकर इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी. मार्च 2017 से एक साल के भीतर इस तरह की मौत चाहने वालों के करीब 108 मरीजों ने आवेदन जमा किया. जिनमें से कइयों ने यूथेनेसिया ड्रग लेकर जान दे भी दी है.
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अमेरिका
कुछ अमेरिकी राज्यों जैसे ऑरेगन प्रांत में 1997 से इच्छामृत्यु वैध है. बाद में कैलिफोर्निया में भी इसे मान्यता मिल गई. खुदकुशी के इच्छुक व्यक्ति को डॉक्टर दवा देते हैं, जिसे कॉकटेल कहा जाता है. इसे लेते ही मरीज सो जाता है और आधे घंटे के भीतर उसकी मौत हो जाती है.
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कनाडा
कनाडा के क्यूबेक प्रांत ने जून 2014 में एक ऐसा कानून अपनाया जो गंभीर रूप से बीमार मरीजों को डॉक्टर की मदद से अपने प्राण त्यागने का अधिकार देता है. यह देश का पहला ऐसा प्रांत बना, जहां प्रभावी ढंग से आत्महत्या में मदद को वैध बनाया गया.
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भारत
भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने 2018 में "पैसिव यूथेनेसिया" के पक्ष में फैसला सुनाया. इसमें धीरे धीरे मरीज को लाइफ सपोर्ट से हटाया जाता है. कोर्ट ने कहा कि कुछ शर्तों के साथ हर व्यक्ति को गरिमामय मौत पाने का अधिकार है लेकिन इसके लिए व्यक्ति को स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्थिति में यह वसीयत करनी होगी.
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सभी दलों की मांग पर गृह मंत्री ने भरोसा दिलाया कि बिल को संसद की स्थायी समिति को भेजा जाएगा. बिल पारित करने से पहले संसद की बहस के जवाब में गृह मंत्री ने कहा, "यह बिल सुनिश्चित करेगा कि जांच करने वाले अपराध करने वालों से दो कदम आगे रहें.” उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की बात करने वालों को पीड़ितों के अधिकारों की भी बात करनी चाहिए.
विपक्ष ने किया था विरोध
लोकसभा में लगभग समूचे विपक्ष ने इस बिल का विरोध किया था. विरोध करने वालों में नवीन पटनायक के बीजू जनता दल के सांसद भी शामिल थे. विपक्षी सांसदों ने आशंका जताई कि पुलिस और अन्य कानून एजेंसियां इस कानून का इस्तेमाल आम नागरिकों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. यह तर्क भी दिया गया कि अब तक देश में डाटा सुरक्षा को लेकर कोई कानून नहीं है, ऐसे में डाटा जमा करना उचित नहीं है.
विपक्ष में वाईएस जगमोहन रेड्डी की अध्यक्षता वाली वाईएसआई कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसने बिल का समर्थन किया. हालांकि पार्टी के सांसद मिधुन रेड्डी ने मांग की कि सरकार गारंटी दे कि इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ नहीं होगा और डाटा की सुरक्षा की जाएगी. समूचे विपक्ष ने मांग की कि इस बिल को संसद की स्थायी समिति को भेजा जाए. इसके बावजूद सोमवार शाम को यह बिल ध्वनिमत से पास कर दिया गया.
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‘कोई स्पष्टता नहीं'
चर्चा के दौरान कई सांसदों ने इस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई कि थाने के हेड कांस्टेबल या जेल के वॉर्डन को हिरासत में बंद लोगों से लेकर सजा पाए अपराधियों तक के ‘नाप लेने का' अधिकार होगा. आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने इन पंक्तियों में बदलाव की मांग की, जिसे स्वीकार नहीं किया गया.
2021 में घरेलू हिंसा के मामले बढ़े
कोविड महामारी के बीच भारत में घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली महिलाओं की संख्या में महत्वपूर्ण इजाफा हुआ है. 2020 के मुकाबले 26 फीसदी अधिक महिलाओं ने शिकायत की.
तस्वीर: Yavuz Sariyildiz/Zoonar/picture alliance
घर में बढ़े अपराध
कोरोना के दूसरे साल में भी भारतीय महिलाओं को घरेलू हिंसा से छुटकारा नहीं मिला. राष्ट्रीय महिला आयोग से घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली महिलाओं की संख्या साल 2020 के मुकाबले 2021 में बढ़ी है.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
साल 2021 में 30,865 शिकायतें
2021 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा करीब 30 फीसदी बढ़ी. साल 2020 में महिला आयोग को 23,722 शिकायतें मिली थीं जबकि 2021 में 30,864 मामले दर्ज किए गए.
तस्वीर: Manira Chaudhary, Sharique Ahmad/DW
महिलाओं के खिलाफ अपराध में यूपी आगे
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सबसे अधिक मामले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से सामने आए. यह करीब 51 फीसदी है. इसके बाद दिल्ली 10.8 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
मदद के लिए रोज 400 कॉल्स
राष्ट्रीय महिला आयोग का कहना है कि महामारी सभी के लिए चुनौती बनकर आई है, खासकर महिलाओं के लिए. आयोग का कहना है कि अधिक से अधिक महिलाएं मदद मांग रही हैं और करीब 400 फोन कॉल्स आयोग की हेल्पलाइन पर आती हैं.
तस्वीर: Tanika Godbole/DW
गरिमा के साथ रहने के अधिकार का हनन
महिला आयोग का कहना है कि साल 2021 में 11,084 शिकायतें गरिमा के साथ रहने के हक के हनन की दर्ज की गईं. इसके बाद घरेलू हिंसा के 6,682 मामले दर्ज किए गए.
तस्वीर: Yavuz Sariyildiz/Zoonar/picture alliance
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बिल पर बहस की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि यह एक निर्दयी बिल है जो सामाजिक स्वतंत्रताओं का विरोधी है.‘' उन्होंने कहा कि यह बिल पहचान के मकसद से अपराधियों और अन्य लोगों के शरीर का नाप लेने और उस रिकॉर्ड को संरक्षित रखने का विकल्प देता है, जो संविधान की धारा 14, 19 और 21 के विरुद्ध है जिनमें मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं के अधिकारों की बात है.
डीएमके नेता दयानिधि मारन ने भी इस बिल को जन विरोधी और संघीय भावना के विरुद्ध बताया. उन्होंने सरकार पर एक ‘सर्विलांस स्टेट' बनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस बिल में बहुत कुछ अस्पष्ट छोड़ दिया गया है और यह नागरिकों की निजता का उल्लंघन करता है.