17 साल का एक लड़का जो अफगानिस्तान से अकेला जाने कैसे जर्मनी पहुंच गया, एक शाम घर से निकलता है. घर, जो उसे जर्मनी ने दिया. घर, जिसमें एक परिवार रहता है जो उसे अपने बच्चे की तरह अपने साथ रखे हुए है. घर, जिसकी तलाश में वह हजारों मील दूर आया था. इस घर के मिल जाने के बाद लड़के के दिल में जर्मनी, जर्मनों और दुनिया के लिए मोहब्बत की उम्मीद होनी चाहिए थी ना! लेकिन उसके दिल में मोहब्बत नहीं नफरत थी. उसके हाथ में चाकू था. लड़का ट्रेन में चढ़ा और अपने अगल-बगल बैठे लोगों पर टूट पड़ा. उसे अपने घर, अपनी जान की परवाह नहीं थी. वह बस मार देना चाहता था. अपने ईश्वर के नाम पर. अपने मजहब के नाम पर. और जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर होता है, वह खुद मारा गया.
यह आतंकवाद का मौजूदा रूप है. एक इन्सान जिसका कोई संगठन नहीं है, जिसे कोई ट्रेनिंग नहीं मिली है, जिसके दिमाग में किसी ने जहर नहीं भरा है, जिसे किसी ने कुर्बान हो जाने को तैयार नहीं किया है, जिसे किसी ने जन्नत में 70 हूरों का वादा नहीं किया है, वह भीड़ में चलता चलता अचानक आतंकवादी हो जाता है. कत्ल ए आम मचा देता है. ऐसा ही फ्रांस के नीस में हुआ जब एक आदमी ट्रक पर चढ़ा और उस ट्रक से सैकड़ों लोगों को कुचलता हुआ तब तक चलता रहा जब तक कि उसे मार नहीं दिया गया. ऐसा ही पिछले साल अमेरिका के सैन बर्नाडीनो में हुआ था जब एक पाकिस्तानी पति-पत्नी लोगों पर गोलियां बरसाते हुए मारे गए थे. ऐसा ही इस साल जून में ऑरलैंडो में हुआ था जब एक व्यक्ति ऑटोमेटिक राइफल लेकर एक क्लब में घुस गया और अंधाधुंध गोलियां चलाकर 49 लोगों को मार कर मर गया. ऐसे लोग आतंकवादियों के सबसे खतरनाक और सबसे कारगर हथियार हैं. वे ना सिर्फ आतंक फैलाते हैं बल्कि और लोगों को तैयार भी करते हैं.
देखें, जब गाड़ियों पर चढ़कर आती है मौत
आतंकवादी छोटी बड़ी गाड़ियों को आतंक और मौत ले आने वाले खतरनाक औजार के रूप में बदल देने की नीति अपना रहे हैं और सुरक्षा एजेंसियां लाचार हैं. देखिए यूरोप में कहां कहां हुआ है गाड़ियों से आतंकी हमला.
तस्वीर: Reuters/B. McDermidअमेरिका में न्यूयॉर्क शहर के मैनहटन इलाके में एक ट्रक ड्राइवर ने साइकिल और पैदल लेन में घुसकर लोगों को कुचला. इस घटना में 8 लोगों की मौत हो गयी और करीब 11 लोग बुरी तरह से घायल हैं. पुलिस ने संदिग्ध को गिरफ्तार कर लिया है. इसका नाम सेफुलो साइपोव है और इसकी उम्र 29 साल बताई जा रही है.
तस्वीर: Reuters/A. Kelly17 अगस्त, 2017 की शाम स्पेन के बार्सिलोना में पर्यटकों के बीच लोकप्रिय शहर के भीड़भाड़ वाले इलाके में हमलावर ने लोगों पर किराये पर ली वैन चढ़ा दी. आतंकी गुट तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है, जिसमें 13 लोगों की जान चली गयी है और करीब 100 लोग घायल हैं. जांचकर्ता इसे शहर में कई जगहों पर सिलसिलेवार हमले करने की योजना का हिस्सा मानते हैं.
तस्वीर: Imago/E-Press Photo.com4 जून, 2017 की रात लंदन के लिये भयानक रही. लंदन ब्रिज पर एक सफेद वैन ने कई लोगों को टक्कर मारी. ब्रिज पर लोगों को कुचलने के बाद यह वैन पास के बॉरो मार्केट में घुस गई. कार में सवार संदिग्ध बाहर निकले और लोगों पर चाकुओं से हमला किया. हालांकि पुलिस ने जल्द ही संदिग्धों को घेर लिया और गोलीबारी में मार गिराया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Leal-Ollivasलंदन स्थित ब्रिटिश संसद वेस्टमिंस्टर के पास एक हमलावर ने अपनी कार से फुटपाथ पर जा रहे लोगों को रौंद डाला. मार्च 2017 के इस हमले में एक पुलिसकर्मी समेत चार लोगों की जान चली गयी. हमलावर भी पुलिस की गोली से मारा गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP/J.Westजुलाई में फ्रांस के नीस में तो दिसंबर में बर्लिन के क्रिसमस मेले में गाड़ी मौत लेकर आई. ट्रक भीड़भाड़ वाले खुले बाजार में घुसा और लोगों को कुचलता हुआ 80 मीटर तक चला. घटना में 12 लोगों की जान गई और 48 लोग घायल हुए.
तस्वीर: Reuters/F. Benschफ्रांस के नीस शहर में सड़कों पर जुटे बास्टिल डे मनाते लोगों को एक ट्रक रौंदता हुआ निकल गया. करीब दो किलोमीटर तक अनगिनत लोगों को कुचलते निकले इस ट्रक की चपेट में आने से अब तक कम से कम 84 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है और बहुत सारे लोग घायल हैं.
तस्वीर: Reuters/E. Gaillardनीस में हमलावर की ये शैली दुनिया में कोई पहली बार नहीं आजमाई गई है. इस्राएल और फलस्तीन के कुछ इलाकों से कारों को लोगों के ऊपर चढ़ाने की कई घटनाएं सामने आई हैं. पिछली अक्टूबर से ही वहां ऐसे हमलों की चपेट में आने से 215 फलीस्तीनी, 34 इस्राएली, दो अमेरिकी, एक एरिट्रियाई और एक सूडानी नागरिक की मौत हुई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Safadiहाल के सालों में पश्चिमी देशों को इसी किस्म के तीन बड़े हमले झेलने पड़े. दो ब्रिटेन में और एक अन्य हमला कनाडा में हुआ. मई 2013 में नाइजीरियाई मूल के दो इस्लामी कट्टरपंथियों ने अपनी कार को एक ब्रिटिश सैनिक ली रिग्बी पर चढ़ा दिया था. दिन दहाड़े उनका गला काटने की कोशिश भी की. उन्हें ब्रिटिश सेना के हाथों मुसलमानों के मारे जाने पर गुस्सा था.
तस्वीर: Reutersलंदन की घटना के करीब 18 महीने बाद कनाडा में भी एक इस्लामी कट्टरपंथी ने एक कनेडियन सैनिक पैट्रिक विंसेंट के ऊपर गाड़ी चढ़ा कर उसे मार डाला और एक अन्य को घायल किया. इसके बाद 25 साल के हमलावर मार्टिन रुले ने खुद पुलिस को फोन कर जिहाद के नाम पर यह हमला करने की बात कही. मार्टिन ने अपना धर्म बदल कर इस्लाम कुबूल किया था.
तस्वीर: Reuters/Christinne Muschiजून 2007 में दो आदमियों ने अपनी जलती हुई जीप को ले जाकर स्कॉटलैंड के ग्लासगो एयरपोर्ट की मुख्य टर्मिनल बिल्डिंग में घुसा दिया. इनमें से एक हमलावर को आजीवन कारावास की सजा मिली. मामले की सुनवाई कर रहे जज ने हमलावर को "धार्मिक कट्टरपंथी" माना.
तस्वीर: picture-alliance/dpaकई सालों से इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे आतंकी संगठन कभी वीडियो बनाकर तो कभी सोशल मीडिया पर संदेश भेज कर नए समर्थकों और अनुयायियों से उनके हाथ में जो आए उसी से हमले करने की अपील करते रहे हैं. ऐसे ही संदेशों के कारण कई जगहों पर आम नागरिकों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं बढ़ी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/APसितंबर 2014 में आईएस के 'आक्रमण मंत्री' माने जाने वाले अबु मोहम्मद अल-अदानी ने ये संदेश जारी किया था: "अगर तुम कोई बम नहीं फोड़ सकते, गोली नहीं चला सकते, तो किसी फ्रेंच या अमेरिकन काफिर से अकेले में मिलो और फिर चाहे पत्थर से उसका सिर फोड़ो या चाकू से गला काटो, या कार के नीचे दबा दो."
तस्वीर: Reuters/I. Abu Mustafa
नीस के हमलावर मोहम्मद लाहोएज बोहलेल के भीतर एक आतंकवादी छिपा होगा, ऐसा उसके घर-परिवार और शहर वालों ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था. वह तो एक सामान्य सा ड्राइवर था. अधिकारी उसे जानते थे. जांच में पता चला कि वह उसकी जिंदगी में धर्म की कोई खास जगह नहीं थी. हां, वह घरेलू हिंसा में लिप्त था. वह परेशान रहता था. और इस वजह से वह परेशान हो चला था. वह इतना नाजुक हो गया था कि उसके भीतर का गुस्सा बारूद बन चुका था जिसे बस एक चिंगारी की जरूरत थी. इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनों के बयान और आह्वान इसी चिंगारी का काम करते हैं. ऐसे कितने ही बारूद हमारे आसपास घूम रहे होंगे जो किसी दिन किसी एक खबर, किसी एक फेसबुक पोस्ट, किसी एक बयान, किसी एक चुटकुले तक से भड़क कर आत्मघाती विस्फोट बन जाएंगे.
अंग्रेजी में ऐसे लोगों को लोन वुल्फ कहते हैं. और अक्सर भ्रम है कि यह इस्लामिक आतंकवाद का ही एक रूप है. लेकिन यह गलत है क्योंकि लोन वुल्फ बनाने के पीछे दिमाग आलेक्स कर्टिस और टॉम मेत्सगेर का माना जाता है. 1990 के दशक में इन दोनों ने लोन वुल्फ की फिलॉसफी का प्रचार प्रसार किया था. कर्टिस और मेत्सेगर वाइट सुपरिमेसिस्ट हैं, यानी वे लोग जो मानते हैं श्वेत नस्ल ही सर्वोत्तम और सर्वोत्कृष्ट है और बाकी लोग उनसे निचले दर्जे के हैं. उन्होंने लोगों को लोन वुल्फ बनने का आह्वान किया था. उन्होंने कहा कि संगठन बनाकर हमले करने की जरूरत नहीं है. एक या दो व्यक्ति ही सरकारी ठिकानों या लोगों पर हमले करें और रोज करें. आतंकवाद विशेषज्ञ ब्रायन माइकल जेन्किन्स कहते हैं कि ऐसे लोगों लोन वुल्फ यानी अकेले भेड़िये कहने के बजाय आवारा कुत्ते कहा जाना चाहिए. आवारा कुत्तों से उनकी तुलना करते हुए वह लिखते हैं, "ऐसे हमले करने वाले अपने आप में ही परेशान रहते हैं. वे हिंसा को सूंघते घूमते हैं. ये लोग बहुत डरपोक होते हैं लेकिन इन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता है."
तस्वीरों में, मुंबई हमले की यादें
मुंबई को युद्ध के मैदान में बदल देने वाले उन दिनों को कई साल भी गुजर जाएं तो भी उसे भुलाया नहीं जा सकेगा. तीन दिनों और रातों तक चले इस संघर्ष के बाद बीते सालों में आतंक का चेहरा तेजी से बदला है और विद्रूप हो गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaछह साल गुजर जाने पर दिखने वाले गोलियों के निशान तो अब मिटा दिए गए हैं. बस कुछ जगहों पर पर्यटकों के लिए इन्हें रखा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa26/11 के हमले में करीब 166 लोग मारे गए. तब से अब तक मुंबई की जीवंतता तो जारी है लेकिन एक असुरक्षा कहीं दिल में घर किए बैठी है.
तस्वीर: APहमले में जीवित पकड़े गए इकलौते दोषी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को नवंबर 2012 में फांसी दे दी गई. भारत और पाकिस्तान के बीच हालांकि संबंध अभी तक सामान्य नहीं हो सके हैं.
तस्वीर: APहमले के बाद मुंबई पुलिस के हथियारों को बेहतर किया गया, उन्हें विशेष ट्रेनिंग देनी शुरू की गई. आतंकियों या आतंकी हमलों से लड़ने का प्रशिक्षण इसमें शामिल है.
तस्वीर: dapdमुंबई की तरह के हमलों की खबरें और उनके षडयंत्रों के बारे में लंदन से लेकर अमेरिका तक में खुलासे हो रहे हैं. 2013 में लंदन में चार लोगों को मुंबई स्टाइल के हमलों का षडयंत्र बनाने के मामले में पकड़ा गया था.
तस्वीर: Reutersनैरोबी के मशहूर और बड़े शॉपिंग मॉल में अल शबाब के आतंकियों ने 2013 में कहर मचाया. सितंबर में हुए इस हमले में 61 लोगों की जान गई थी.
तस्वीर: DW/A. Kiti
ऑरलैंडो के हमलावर में भी इसी तरह के गुण देखने को मिले थे. वह बहुत गुस्सैल था. अपनी पत्नी से मार-पीट करता था. उसे मायामी पर एक बीच पर घूमते एक समलैंगिक जोड़े को देखकर बहुत गुस्सा आ गया था. ऐसे लोग बहुत आसानी से इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों का शिकार बनते हैं और यह बात आतंकी संगठनों के सरगना बहुत अच्छे से समझते हैं. जैसी अपील कर्टिस और मेत्सगेर ने 1990 के दशक में की थी, कुछ वैसी ही अपील पिछले साल मई में इस्लामिक स्टेट के प्रवक्ता ने फेसबुक पर की थी. अबु मोहम्मद अल अदनानी ने अपने बयान में लोगों से कहा था कि वह ऐसे ही हमले करें. और यह भी बताया था कि हमले कैसे करें. उसने लिखा, "हमें पता चला है कि तुम लोगों में से कुछ इसलिए हमले नहीं करते हो क्योंकि तुम लोग सैन्य ठिकानों तक पहुंच नहीं पाते. या सोचते हो कि आम नागरिकों पर हमला करना गलत है. लेकिन समझ लो कि युद्धरत हमलावरों की जमीन पर रक्त की कोई पवित्रता नहीं होती. उस जमीन पर बेगुनाह कोई नहीं होता. इसे साबित करने के लिए बहुत सबूत मौजूद हैं जिनके जिक्र के लिए यहां जगह तक नहीं है. जैसे उनके विमान बम गिराते वक्त यह नहीं देखते कि किसके हाथ में हथियार है और किसके नहीं, कौन आदमी और कौन औरत, वैसे ही तुम भी उनसे निपटो."
इस तरह के खतरनाक अल्फाज किसी भी तुनकमिजाज और मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को भड़काने और उसे जीता जागता बम बना देने के लिए काफी होते हैं. सिडनी में 2014 में हमला करने वाले हारून मोनिस का मामला बिल्कुल ऐसा ही था. वह एक तुनकमिजाज और मानसिक रूप से बीमार आदमी था जिसने आईएस का झंडा खुद ही थामा और एक खतरनाक आतंकी हमले को अंजाम दिया.
आतंकवाद से लड़ने वाले लोग ऐसे हमलावरों को लेकर परेशान हैं. सीआईए की पूर्व अधिकारी रोली फ्लिन ने वॉशिंगटन पोस्ट को बताया कि ऐसे अकेले हमलावरों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं याद कि एक दशक पहले लोन वुल्फ जैसे शब्द इस्तेमाल भी होते थे या नहीं लेकिन पिछले पांच साल में यह बढ़ गया है."
ऐसे आतंकी हमलों को रोकना मुश्किल है क्योंकि ऐसे लोगों को पहचाना मुश्किल है. इसलिए आतंकवाद और ज्यादा भयानक और डरावना होता जा रहा है.