सिर्फ तमिलनाडु में 10 लाख ऐसी महिलाएं हैं जिनके पति उन्हें अकेले छोड़कर खाड़ी देशों में काम कर रहे हैं. इन महिलाओं की सुध लेने वाला कोई नहीं है.
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भाग्यम की शादी की ऐल्बम की तस्वीरें फेड हो चुकी हैं, और शायद उम्मीदें भी. लेकिन यादें अभी धुंधली नहीं पड़ी हैं. वह कहती हैं कि उन्हें अपने पति की बहुत याद आती है. उनका पति सऊदी अरब में वेल्डर का काम करता है. तमिलनाडु के कलपक्कम जिले की ई. भाग्यम को नहीं पता है कि आजकल सऊदी अरब में रहने वाले भारतीयों के साथ क्या दिक्कत चल रही है. उन्हें नहीं पता है कि वहां हजारों भारतीय मजदूर बेघर और बेरोजगार हो चुके हैं. भाग्यम को बस इतना ही पता है कि उन्होंने होम लोन ले रखा है जिसकी हर महीने किश्त जाती है.
दो बच्चों की मां 36 साल की भाग्यम सोच रही हैं कि उनके पति तो ठीक ही होंगे. वह कहती हैं, "वे तो कई लोग साथ गए थे. ठीक ही होंगे. अगर वहां हालात खराब भी होंगे तो वह मुझे नहीं बताएंगे. वह कहेंगे कि सब ठीक है. वह तो बस मुझे हर महीने पैसे भेजते रहेंगे."
सऊदी अरब में भी महिलाों की स्थिति कुछ अच्छी नहीं है, देखिए
इन हकों के लिए अब भी तरस रही हैं सऊदी महिलाएं
सऊदी अरब में लंबी जद्दोजहद के बाद महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार तो मिल गया है. लेकिन कई बुनियादी हकों के लिए वे अब भी जूझ रही हैं.
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पुरुषों के बगैर नहीं
सऊदी अरब में औरतें किसी मर्द के बगैर घर में भी नहीं रह सकती हैं. अगर घर के मर्द नहीं हैं तो गार्ड का होना जरूरी है. बाहर जाने के लिए घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी है, फिर चाहे डॉक्टर के यहां जाना हो या खरीदारी करने.
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फैशन और मेकअप
देश भर में महिलाओं को घर से बाहर निकलने के लिए कपड़ों के तौर तरीकों के कुछ खास नियमों का पालन करना होता है. बाहर निकलने वाले कपड़े तंग नहीं होने चाहिए. पूरा शरीर सिर से पांव तक ढका होना चाहिए, जिसके लिए बुर्के को उपयुक्त माना जाता है. हालांकि चेहरे को ढकने के नियम नहीं हैं लेकिन इसकी मांग उठती रहती है. महिलाओं को बहुत ज्यादा मेकअप होने पर भी टोका जाता है.
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मर्दों से संपर्क
ऐसी महिला और पुरुष का साथ होना जिनके बीच खून का संबंध नहीं है, अच्छा नहीं माना जाता. डेली टेलीग्राफ के मुताबिक सामाजिक स्थलों पर महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रवेश द्वार भी अलग अलग होते हैं. सामाजिक स्थलों जैसे पार्कों, समुद्र किनारे और यातायात के दौरान भी महिलाओं और पुरुषों की अलग अलग व्यवस्था होती है. अगर उन्हें अनुमति के बगैर साथ पाया गया तो भारी हर्जाना देना पड़ सकता है.
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रोजगार
सऊदी सरकार चाहती है कि महिलाएं कामकाजी बनें. कई सऊदी महिलाएं रिटेल सेक्टर के अलावा ट्रैफिक कंट्रोल और इमरजेंसी कॉल सेंटर में नौकरी कर रही हैं. लेकिन उच्च पदों पर महिलाएं ना के बराबर हैं और दफ्तर में उनके लिए खास सुविधाएं भी नहीं है.
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आधी गवाही
सऊदी अरब में महिलाएं अदालत में जाकर गवाही दे सकती हैं, लेकिन कुछ मामलों में उनकी गवाही को पुरुषों के मुकाबले आधा ही माना जाता है. सऊदी अरब में पहली बार 2013 में एक महिला वकील को प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिला था.
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खेलकूद में
सऊदी अरब में लोगों के लिए यह स्वीकारना मुश्किल है कि महिलाएं भी खेलकूद में हिस्सा ले सकती हैं. जब सऊदी अरब ने 2012 में पहली बार महिला एथलीट्स को लंदन भेजा तो कट्टरपंथी नेताओं ने उन्हें "यौनकर्मी" कह कर पुकारा. महिलाओं के कसरत करने को भी कई लोग अच्छा नहीं मानते हैं. रियो ओलंपिक में सऊदी अरब ने चार महिला खिलाड़ियों को भेजा था.
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संपत्ति खरीदने का हक
ऐसी औपचारिक बंदिश तो नहीं है जो सऊदी अरब में महिलाओं को संपत्ति खरीदने या किराये पर लेने से रोकती हो, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना महिलाओं के लिए ऐसा करना खासा मुश्किल काम है.
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कलपक्कम जिले के सदरासकुप्पम में लगभग हर घर से कोई ना कोई खाड़ी देश में काम करने गया हुआ है. और गांव में बची हैं 100 से ज्यादा अकेली औरतें. पूरे तमिलनाडू में ऐसी 10 लाख औरतें हैं. ये महिलाएं अक्सर अवसाद में होती हैं. हमेशा चिंतित रहती हैं. राज्य सरकार ने इसी साल फरवरी में एक आयोग बनाकर अध्ययन कराया तो पता चला कि इन महिलाओं की जिंदगी परेशानी के अलावा कुछ भी नहीं है. 70 फीसदी महिलाएं एंग्जाइटी का शिकार हैं. वे डर और अकेलेपन से घिरी रहती हैं.
सर्वे में पता चला कि 60 फीसदी महिलाओं को अतिरिक्त जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं क्योंकि घर में और कोई नहीं है. इनमें बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल से लेकर बैंक-बाजार के काम तक शामिल हैं. 32 जिलों के 20 हजार घरों में हुए इस सर्वे ने दिखाया कि बच्चों की सेहत और पढ़ाई भी अच्छी हालत में नहीं है. चेन्नई के लोयोला इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस ट्रेनिंग ऐंड रिसर्च के माध्यम से हुआ यह सर्वे प्रवासी भारतीयों की और प्रवास की समस्याओं को सामने लाता है. इंस्टीट्यूट के बर्नार्ड डे सामी कहते हैं, "विडंबना यह है कि जो महिलाएं अकेली पीछे छूट गई हैं उनमें से बहुत सारी तो अपने पतियों से ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं. उनकी पढ़ाई का स्तर बेहतर है."
देखिए, महिलाओं के खिलाफ अजब-गजब कानून
महिलाओं के खिलाफ अजीबोगरीब कानून
महिलाओं के खिलाफ दुनिया भर से आने वाली शोषण और अत्याचार की खबरें आम हैं. कई देशों में महिलाओं के खिलाफ ऐसे कानून हैं जो उनके मानवाधिकारों का गला घोंटते दिखते हैं...
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शादीशुदा महिला का बलात्कार
दिल्ली में 2012 के निर्भया कांड के बाद दुनिया भर में भारत की थूथू हुई. लेकिन एक साल बाद ही कानून में एक नई धारा जोड़ी गई जिसके मुताबिक अगर पत्नी 15 साल से ज्यादा उम्र की है तो महिला के साथ उसके पति द्वारा यौनकर्म को बलात्कार नहीं माना जाएगा. सिंगापुर में यदि लड़की की उम्र 13 साल से ज्यादा है तो उसके साथ शादीशुदा संबंध में हुआ यौनकर्म बलात्कार नहीं माना जाता.
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अगवा कर शादी
माल्टा और लेबनान में अगर लड़की को अगवा करने वाला उससे शादी कर लेता है तो उसका अपराध खारिज हो जाता है, यानि उस पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा. अगर शादी फैसला आने के बाद होती है तो तुरंत सजा माफ हो जाएगी. शर्त है कि तलाक पांच साल से पहले ना हो वरना सजा फिर से लागू हो सकती है. ऐसे कानून पहले कोस्टा रीका, इथियोपिया और पेरू जैसे देशों में भी होते थे जिन्हें पिछले दशकों में बदल दिया गया.
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सुधारने के लिए पीटना सही
नाइजीरिया में अगर कोई पति अपनी पत्नी को उसकी 'गलती सुधारने' के लिए पीटता है तो इसमें कोई गैरकानूनी बात नहीं मानी जाती. पति की घरेलू हिंसा को वैसे ही माफ कर देते हैं जैसे माता पिता या स्कूल मास्टर बच्चों को सुधारने के लिए मारते पीटते हैं.
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ड्राइविंग की अनुमति नहीं
सऊदी अरब में महिलाओं का गाड़ी चलाना गैरकानूनी है. महिलाओं को सऊदी में ड्राइविंग लाइसेंस ही नहीं दिया जाता. दिसंबर में दो महिलाओं को गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया. इस घटना के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संस्थानों ने आवाज भी उठाई.
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पत्नी का कत्ल भी माफ
मिस्र के कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को किसी और मर्द के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखता है और गुस्से में उसका कत्ल कर देता है, तो इस हत्या को उतना बड़ा अपराध नहीं माना जाएगा. ऐसे पुरुष को हिरासत में लिया जा सकता है लेकिन हत्या के अपराध के लिए आमतौर पर होने वाली 20 साल तक के सश्रम कारावास की सजा नहीं दी जाती.
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ज्यादातर महिलाओं की शादी तब हुई जब उनके पति विदेश से कुछ दिन की छुट्टी पर आए थे. 90 फीसदी महिलाएं अपने पति के देश कभी नहीं गई हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक छह खाड़ी देशों बहरीन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब, युनाइटेड अरब अमीरात और ओमान में लगभग 60 लाख भारतीय कामगार हैं. भारत सरकार को उनकी शिकायतें मिलती रहती हैं. उनके शोषण की खबरें आती रहती हैं. जैसे पिछले दिनों खबर आई थी कि 10 हजार भारतीय मजदूर भूखे मरने के कगार पर आ गए हैं क्योंकि उनकी कंपनी बंद हो गई थी और उन्हें महीनों से तन्ख्वाह नहीं मिली थी. उन मजदूरों के बारे में पूरी खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
हालांकि भारत से खाड़ी देशों में काम करने के लिए जाने का चलन तो दशकों से चला आ रहा है. कलपक्कम इसकी मिसाल है. वहां से हजारों लोग हर साल खाड़ी देशों को जाते हैं. ऐसा इसलिए भी है कि उन्हें अपने शहरों में ही नौकरियां नहीं मिलती हैं. कलपक्कम में न्यूकलियर पावर उद्योग है लेकिन वहां उन्हें काम नहीं मिल पाता. स्थानीय बिल्डर भी स्थानीय लोगों को काम नहीं देते क्योंकि दूसरे राज्यों से सस्ते मजदूर आसानी से मिलते हैं. विदेश से आए एस प्रभु ने नौकरी की काफी तलाश की. नहीं मिली तो अब वह दोबारा विदेश जाने की तैयारी कर रहे हैं. वह कहते हैं, "हम जानते हैं कि खाड़ी में जिंदगी हमेशा आसान नहीं होती लेकिन हमें वहां लौटना पड़ता है क्योंकि और कोई चारा नहीं है."
कामकाजी महिलाओं की मुश्किलें जानते हैं आप?
कामकाजी मांओं की मुश्किलें
कामकाजी महिलाओं के जीवन में मातृत्व एक निर्णायक मोड़ होता है. कई बार मां की जिम्मेदारियों के चलते पेशवर जिम्मेदारियां पूरी कर पाना असंभव हो जाता है और नौकरी छोड़ने का ही विकल्प रह जाता है. ऐसे कीजिए इस चुनौती को पार.
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जानकारी
गर्भधारण के साथ ही महिलाओं के लिए करियर संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है. वजन बढ़ना, सूजन, उल्टियां और ना जाने कितनी स्वास्थ्य समस्याएं लगी रहती हैं. ऐसे में अपनी संस्था, कंपनी या नौकरी देने वाले को अपनी कठिनाईयों के बारे में जानकारी देनी चाहिए.
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जिम्मेदारी
कंपनी और अपने बॉस को जानकारी देना इसलिए भी जरूरी है ताकि वह समय रहते आपके लिए छुट्टियों की योजना बना सके और यह भी सोच सके कि उस दौरान काम कैसे चलाना है. ध्यान रखें कि जिस तरह कंपनी की आपके प्रति कुछ जिम्मेदारी है, आप की भी उसके हित के प्रति जवाबदेही है.
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रेस में बने रहें
दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों के प्रमुखों में कुछ ही महिलाएं हैं और विश्व के 197 राष्ट्रप्रमुखों में केवल 22 महिलाएं. किसी भी क्षेत्र में टॉप स्तर पर इतनी कम महिलाओं के होने का कारण महिलाओं का इस रेस से बहुत जल्दी बाहर होना है, जो कि सबसे अधिक मां बनने के कारण होता है.
कामकाजी महिलाओं के जीवन में कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवरोध आते हैं. गहरे बसे लैंगिक भेदभाव से लेकर यौन उत्पीड़न तक. ऐसे में घबरा कर रेस छोड़ देने के बजाए इन रोड़ों को बहादुरी से हटाते हुए आगे बढ़ने का रवैया रखें. अमेरिकी रिसर्च दिखाते हैं कि पुरुषों को उनकी क्षमता जबकि महिलाओं को उनकी पूर्व उपलब्धियों के आधार पर प्रमोशन मिलते हैं.
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सपोर्ट नेटवर्क
एक ओर बाहर के रोड़ हैं तो दूसरी ओर कई महिलाएं अपने मन की बेड़ियों में कैद होती हैं. समाज की उनसे अपेक्षाओं का बोझ इतना बढ़ जाता है कि वे अपनी उम्मीदें और महात्वाकांक्षाएं कम कर लेती हैं. आंतरिक प्रेरणा के अलावा अपने आस पास ऐसे प्रेरणादायी लोगों का एक सपोर्ट नेटवर्क बनाएं जो मातृत्व, परिवार और करियर की तिहरी जिम्मेदारी को निभाने में आपका संबल बनें.
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पार्टनर की भूमिका
कामकाजी मांओं के साथ साथ उनके पति या पार्टनर को भी घर के कामकाज में बराबर का योगदान देना चाहिए. परिवार को समझना चाहिए कि महिला के लंबे समय तक वर्कफोर्स में बने रहने से पूरा परिवार लाभान्वित होता है. अपनी पूरी क्षमता और समर्पण भाव के साथ किया गया काम हर महिला की सफलता सुनिश्चित कर सकता है. जरूरत है बस रेस पूरी करने की.