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कोई लॉन्ग कोविड से जूझते मरीजों की भी सुनो

२० अगस्त २०२१

कोविड महामारी के लाखों मरीज, संक्रमण के महीनों बाद तक कमजोरी और दूसरे कई गंभीर लक्षण महसूस कर रहे हैं. ऐसे मरीजों के लिए डॉक्टरों या करीबियों को अपनी तकलीफों की गंभीरता समझा पाना भी चुनौती से कम नहीं हो रहा है.

मार्था एस्पेर्टीतस्वीर: privat

पिछले 18 महीने में मार्था एस्पेर्टी को डॉक्टरों से यही सुनने को मिल रहा हैः "तुम्हें इसके जाने का इंतजार करना पड़ेगा.”

लेकिन कोविड 19 संक्रमण होने के एक साल से ज्यादा समय बाद भी उन्हें बुखार चढ़ता रहा, उल्टियां हुईं, थकान बनी रही, दिल की धड़कनें तेज होने लगीं, याददाश्त कमजोर और ऑक्सीजन लेवल गिरता रहा तो उन्हें लगा, उनके पास इंतजार का विकल्प नहीं रह गया था. पीएचडी छात्रा एस्पेर्टी कहां तो घूमने-फिरने और वर्कआउट की शौकीन थीं और कहां खाना पकाते हुए ही उनकी सांस फूलने लगती है.

फ्रांस और अपने देश इटली में बेहिसाब विशेषज्ञों को दिखाने के बाद और अपनी जेब से सारा मेडिकल खर्च चुकाने के बाद उनकी बीमारी पता चल पाईः लॉन्ग कोविड, यानी लंबी अवधि वाला कोविड संक्रमण. उनकी मेडिकल जांच में पता चला कि उनके दिल और फेफड़ों को काफी नुकसान हो चुका है.

उन्होंने डीडब्लू को बताया, "मुझे भयानक गुस्सा आने लगता है. एक साल तक मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया. अगर कोई सुन लेता तो मेरी हालत थोड़ा तो सुधरती.”

लॉन्ग कोविड क्या है?

गंभीर कोविड इंफेक्शन होने के बाद हफ्तों या महीनों तक उसका असर झेलने वाले लाखों लोगों में एस्पेर्टी भी एक हैं. इन लोगों को सुस्ती और थकान से लेकर ध्यान भटकने या सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण हो सकते हैं.

ब्रिटेन में इम्पीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं की एक स्टडी में करीब 15 प्रतिशत कोविड मरीजों में 12 हफ्तों बाद भी बहुत सारे लक्षण कायम पाए गए. औरतों और बूढ़ों पर ज्यादा असर पड़ा है लेकिन पुरुष और बच्चे भी इसकी चपेट में आते देखे गए हैं. 

क्या है लॉन्ग कोविड

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वैज्ञानिक अभी संभावित कारणों के बारे में पता लगा ही रहे हैं, इसके चलते डायग्नोज न कर पाने और उस हिसाब से उपचार न दे पाने के कारण भी हालत और पेचीदा हो जाती है.

‘हारा हुआ महसूस करती हूं'

यह कहना है अमेरिका की अलेक्सांद्रा फैरिन्गटन का. इसी हफ्ते उन्हें बताया गया कि उनके लक्षण बस उनका वहम हैं. पुर्तगाल के पोर्टो में डाटा और बिजनेस कन्सेल्टिंग में काम कर रहीं अलेक्सांद्रा को अब भी छाती मे दर्द, सांस लेने में दिक्कत और थकान महसूस होती है जबकि उन्हें मार्च 2020 में कोविड हो चुका था.

उन्होंने डीडब्लू को बताया कि मेडिकल स्टाफ यूं तो मदद करता रहता है लेकिन बीमारी पकड़ में नहीं आ पाती तो वे हत्थे से उखड़ जाते हैं. एक कार्डियोलॉजिस्ट ने तो उन्हें यहां तक कह दिया कि वह उनके डिपार्टमेंट में दोबारा कभी आने की जुर्रत न करें.

तस्वीरेंः कितना खर्च हुआ इलाज में

लॉन्ग कोविड के ताजा नतीजे मिलने के बाद किसी तरह सब्र रखते हुए अलेक्सांद्रा कहती हैं, "मैं हारा हुआ महसूस करती हैं. कभी कभी लगता है कि मेरे पास डॉक्टर से ज्यादा जानकारी है.”

इंग्लैंड के हेस्टिंग्स में अमेरिकी आर्टिस्ट टिफनी मेकगिनिस कहती हैं कि उन्हें भी मदद की कमी महसूस हुई  थी जब संक्रमण के कई दिनों बाद उन्हें दोबारा निमोनिया ने जकड़ लिया और छाती में दर्द रहने लगा था. मेकगिनिस कहती हैं, "बहुत सारे डॉक्टर हम पीड़ितों के साथ ऐसा सुलूक करते हैं मानो हम हाइपकान्ड्रीएक यानी बीमारी की इंतहाई सनक से घिरे हुए लोग हों.”

लक्षणों से इंकार करते रहने का इतिहास

येल यूनिवर्सिटी में इम्युनोलॉजिस्ट अकीको इवासाकी उन शोधकर्ताओं में से एक हैं जो लॉन्ग कोविड के कारणों और दूसरे संक्रमण-पश्चात सिंड्रोमों पर अध्ययन कर रहे हैं ताकि डॉक्टर ऐसे मरीजों का बेहतर इलाज कर सकें.

अतीत में, दूसरे सिंड्रोमों में वैसी ही समस्याएं देखी गईं जो लंबे समय के कोरोना पीड़ितों में देखी जा रही हैं, जैसे बेतहाशा थकान, दर्द और मन उचाट. अकीको इवासाकी कहती हैं, "इतिहास देखें तो पहले भी इस तरह के लक्षणों की अनदेखी की गई है. स्थिति का लोगों पर गंभीर असर होने के बावजूद इस बारे में बहुत कम वैज्ञानिक कोशिशें हुई हैं.”

अब बहुत सारे लॉन्ग कोविड मरीज, ऐसे इंकारी रवैये का खामियाजा भुगत रहे हैं. नये कोरोना वायरस के पनपने के साथ, अचानक लाखों लोग बहुत सारी शिकायतों के साथ सामने आए हैं, स्नायु से लेकर दिल तक की शिकायतों के मामलो डॉक्टरों को भी चक्कर में डाल रहे हैं.

अकीको इवासाकी कहती हैं, "अगर बहुत सारे सिस्टम इससे जुड़े हों तो किसी स्पेशलिस्ट को भी नहीं पता होता कि कैसे निपटें. इसे बदलने की जरूरत है.”

कोरोना ने छीना जुबान का स्वाद

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कुछ देश अपने यहां रिसर्च के काम में तेजी ला रहे हैं. अमेरिकी कांग्रेस ने नेशनल इन्स्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ को, कोविड संक्रमण की दीर्घ अवधि वाले नतीजों के अध्ययन के लिए, एक अरब डॉलर से अधिक की राशि मंजूर की है.

दुनिया भर में, लॉन्ग कोविड क्लिनिक, तमाम लक्षणों से जूझते आ रहे मरीजों की खास देखभाल कर रहे हैं. लेकिन बहुत से ऐसे मरीजों को ये उपचार नहीं मिल पा रहा है. जिनकी किस्मत अच्छी है उन्हें भी दूसरी जगहों पर बेयकीनी से जूझना पड़ रहा है.

शक करते रिश्तेदार-परिजन

अमेरिका के सिनसिनाटी में विकास निदेशिका एमी पेलिकानो के मामले में तो शक करने वाले उनके अपने परिवार के ही लोग थे. महामारी के शुरुआती दिनों में ही कोविड होने से पहले, उन्हें अपनी पोतियों के साथ कार्टव्हील यानी हाथ-पैरों से कलाबाजी करने में मजा आता था. एक साल से ज्यादा का समय हो गया उनकी खांसी बनी हुई है जिसके चलते वो बात भी नहीं कर पाती. उनका ध्यान भटक जाता है, और उनके दिल की धड़कनें तेज हो जाती है. विशेषज्ञों के मुताबिक ये लॉन्ग कोविड का स्पष्ट मामला है.

वह कहती हैं कि उन जानकारों ने उनकी भरपूर मदद की है लेकिन उनके कई रिश्तेदारों का कहना ये था कि वह आलसी हो गई हैं और कुछ नहीं. ऐसा बोला गया तो उन्हें खुद पर ही शक होने लगा.

एमी पेलिकानो को थेरेपिस्ट की मदद लेनी पड़ी. वह कहती हैं, "शारीरिक रूप से इतनी खराब हालत तो थी ही, भावनात्मक रूप से मुझे ज्यादा बुरा लग रहा था क्योंकि मुझे अपने परिवार में पति के अलावा किसी से भी मजबूत सपोर्ट नहीं मिला.”

देखिएः कहां कहां पहुंची वैक्सीन

उधर लंदन में, यास की बीमारी की गंभीरता लोगों को कभी समझ नहीं आती अगर उनकी हालत इतनी पेचीदा न होती. खुद के लिए ‘वे' सर्वनाम का इस्तेमाल करने वाले यास पर तो कोविड-पश्चात थकान के लक्षणों की ऐसी मार पड़ी कि वे अब बैसाखियों या व्हीलचेयर के सहारे आवाजाही करते हैं.

पहले-पहल लोगों ने सोचा यास बढ़ा-चढ़ाकर बोल रहे हैं क्योंकि उनके पिता को भी लॉन्ग कोविड हुआ था तो वो हल्का-फुल्का ही रहा, ठीक भी हो गया. लेकिन अब यास का परिवार और डॉक्टर उनकी पूरी मदद करने लगा है.

यास ने डीडब्लू को बताया, "बहुत हताश कर देने वाली बात थी क्योंकि मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी. लगा ही नहीं कि उतना काफी था. जबसे लोग मुझ पर भरोसा करने लगे हैं, मेरी मानसिक सेहत भी काफी सुधर गई है.”

जागरूकता के लिए जारी लड़ाई

डॉक्टरों और अपने प्रियजनों के सामने अपनी बिगड़ती हालत की गुहार लगाते रहने वाले लॉन्ग कोविड के मरीजों को अब परस्पर ढाढ़स मिला है. ऑनलाइन सपोर्ट ग्रुप्स में वे अपने अनुभव और संसाधनों को साझा करते हैं. मरीजों की बात पर न सिर्फ भरोसा किया जाता है बल्कि समझा भी जाता है.

अलेक्सांद्रा फैरिन्गटन कहती हैं, "मैंने महसूस किया जैसे मुझे मान्यता मिल गई हो. ये भी एक बड़ा कारण है कि मैं मुश्किलों से निकल पाई.”

उधर रोम में मार्था एस्पेर्टी खुद एक एडवोकेट बन गई हैं. उन्होंने लॉन्ग कोविड इटालिया नाम से एक ग्रुप बना लिया था. उसमें मरीज, शोधकर्ता और डॉक्टर शामिल हैं जो बीमारी के बारे में और जागरूकता फैलाने के लिए लड़ रहे हैं.

वह कहती हैं, "चूंकि लॉन्ग कोविड जन स्वास्थ्य की प्राथमिकता में नहीं है, लिहाजा बहुत सारे लोगों को अपनी बात पर भरोसा जगाने के लिए अपना खुद का समय, बचत और ऊर्जा झोंकनी होगी.”

मार्था एस्पेर्टी कहती हैं, "सरकार को चाहिए कि वो आगे बढ़कर देखरेख, पुनर्वास और वित्तीय मदद मुहैया कराए क्योंकि मैं अपनी जिंदगी के 18 महीने गंवा चुकी हूं.”

रिपोर्टः बिएट्रिस क्रिस्टोफारो

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