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डिमेंशिया के रोगी बुजुर्गों के नाखून पर जापान में चिप

८ दिसम्बर २०१६

जापान ने ऐसे बुजुर्गों पर नजर रखने की अनोखी योजना बनाई है जो डिमेंशिया के शिकार हैं. डिमेंशिया ऐसी बीमारी है जिसमें इंसान को कुछ याद नहीं रहता.

Japan Frau Alter
तस्वीर: imago stock&people

खासकर बुजुर्गों को होनेवाली इस बीमारी में लोग अपने घर तक का रास्ता भूल जाते हैं. ऐसे लोगों का पता लगाने के लिए और उन्हें गुम हो जाने से बचाने के लिए अब जापान में उनके हाथ या पांव की उंगलियों पर टैगिंग की जा रही है.

टोक्यो के उत्तर में स्थित शहर इरूमा में एक कंपनी ने ऐसे स्टीकर बनाए हैं जो नाखूनों पर चिपकाए जा सकते हैं. हर स्टिकर का बारकोड की तरह अपना एक विशेष नंबर होता है. एक ऐसा आइडेंटिटी नंबर जिसे ट्रैक किया जा सकता है. यानी कंप्यूटर की मदद से जान सकते हैं कि फलां टैग इस वक्त कहां है. शहर के समाज कल्याण विभाग के मुताबिक इस टैगिंग के जरिए परिजनों को अपने रिश्तेदारों को खोजने में मदद मिलेगी.

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जापान में पहली बार शुरू की जा रही यह योजना मुफ्त है. इसके तहत सिर्फ एक सेंटीमीटर का एक स्टिकर नाखून पर लगा दिया जाएगा. शहर के एक अधिकारी ने बताया, "नाखून पर यह स्टिकर लगाना काफी फायदेमंद है. वैसे डिमेंशिया के मरीजों के लिए कपड़ों और जूतों के स्टीकर तो पहले से ही होते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वे कपड़े या जूते हमेशा पहन ही रखे हों." अब अगर कोई बुजुर्ग दिशा भटक जाता है तो पुलिस को कोड के जरिए पता चल जाएगा कि उसका आईडी नंबर क्या है. उसके जरिए उसके घर का पता और टेलीफोन नंबर मिल जाएगा.

एक बार लगाई गई चिप औसतन दो हफ्ते तक चिपकी रहती है. भीग जाने पर भी यह दो हफ्ते तक तो नहीं उतरती है. इसका ट्रायल हो चुका है और अधिकारी नतीजों से खुश हैं.

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जापान में बुढ़ापा एक बड़ी समस्या है. बुजुर्गों की आबादी बहुत ज्यादा है. 2060 तक देश की 40 फीसदी आबादी 60 वर्ष से ज्यादा की होगी. पिछले महीने जापान की पुलिस ने ऐसे बुजुर्गों को स्थानीय रेस्तराओं में नूडल्ल पर छूट की पेशकश की है, जो अपना लाइसेंस वापस कर देंगे. ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि बुजुर्ग बहुत ज्यादा हादसे का शिकार हो रहे हैं. देश में 48 लाख लोग ऐसे हैं जो 75 वर्ष पार कर चुके हैं और उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस है.

वीके/एके (रॉयटर्स)

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