डिमेंशिया के रोगी बुजुर्गों के नाखून पर जापान में चिप
८ दिसम्बर २०१६
जापान ने ऐसे बुजुर्गों पर नजर रखने की अनोखी योजना बनाई है जो डिमेंशिया के शिकार हैं. डिमेंशिया ऐसी बीमारी है जिसमें इंसान को कुछ याद नहीं रहता.
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खासकर बुजुर्गों को होनेवाली इस बीमारी में लोग अपने घर तक का रास्ता भूल जाते हैं. ऐसे लोगों का पता लगाने के लिए और उन्हें गुम हो जाने से बचाने के लिए अब जापान में उनके हाथ या पांव की उंगलियों पर टैगिंग की जा रही है.
टोक्यो के उत्तर में स्थित शहर इरूमा में एक कंपनी ने ऐसे स्टीकर बनाए हैं जो नाखूनों पर चिपकाए जा सकते हैं. हर स्टिकर का बारकोड की तरह अपना एक विशेष नंबर होता है. एक ऐसा आइडेंटिटी नंबर जिसे ट्रैक किया जा सकता है. यानी कंप्यूटर की मदद से जान सकते हैं कि फलां टैग इस वक्त कहां है. शहर के समाज कल्याण विभाग के मुताबिक इस टैगिंग के जरिए परिजनों को अपने रिश्तेदारों को खोजने में मदद मिलेगी.
जानिए कैसे, रहे बुढ़ापे में भी याददाश्त चकाचक
रहे बुढ़ापे में भी याददाश्त चकाचक
कभी कभी बुढ़ापा आने से पहले ही लोग बातें भूलने लगते हैं, तो कई बार बुजुर्गों को कई दशक पुरानी बातें ठीक ठीक याद होती हैं. अगर आप भी सहेज कर रखना चाहते हैं अपनी यादें तो हर दिन ऐसा करें.
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खेल-कूद
खेलते समय केवल शरीर ही नहीं बुद्धि की भी ट्रेनिंग होती है. व्यायामों से जब शरीर में ढेर सारा ऑक्सीजन पहुंचती है तो वह मस्तिष्क में भी जाती है. नियमित रूप से ऐसा करने से आगे चल कर डायबिटीज जैसी लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों के अलावा अल्जाइमर्स और डिमेंशिया भी दूर रहते हैं.
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पर्याप्त नींद
शरीर को चलाना फिराना और थकाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है उसके बाद पर्याप्त आराम करना. 7 से 9 गंटे की अच्छी नींद दिमाग से हानिकारक चीजें साफ कर याददाश्त को तरोताजा रखेगी.
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दिमाग को उत्तेजित करना
सुडोकु या शतरंज जैसे दिमागी खेल खेलने से, नई स्किल्स सीखने से और लोगों से मिलते जुलते और सक्रिय सामाजिक जीवन बिताने से भी दिमाग तेज होता है.
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तनाव करें दूर
तनाव केवल तात्कालिक भावनाओं से ही नहीं बल्कि दिमाग पर दूरगामी असर से जुड़ा मामला है. स्टडीज दिखाती हैं कि लंबे समय तक स्ट्रेस में रहने वाले लोगों के दिमाग की वे कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं जो नई यादों को सहेजने और पुरानी यादों को बचा कर रखने का काम करती हैं.
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स्वास्थ्यवर्धक खाना
फल और सब्जियां तो भोजन का हिस्सा होना ही चाहिए. इसके अलावा बादाम और अखरोट जैसे मेवे भी दिमाग के लिए बहुत अच्छे हैं. इन सब में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो ब्रेन सेल्स को जवान रखते हैं. इसके अलावा आवोकाडो, सैलमन मछली या ऑलिव ऑयल भी फायदेमंद हैं जिनमें ओमेगा-3 फैटी एसिड पाए जाते हैं.
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हाथ से लिखना
आपने भी कभी आजमाया होगा कि अगर कुछ अच्छी तरह याद करना है तो उसे लिखके प्रैक्टिस की. ऐसा करने से ऑक्सीजन से भरपूर रक्त का प्रवाह दिमाग के उस हिस्से की ओर होता है जो मेमोरी के लिए जिम्मेदार है. इसलिए जितना हो सके हाथों से लिखें. डायरी या ब्लॉग, जो भी आपको भाए.
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संगीत सुनना
रिसर्च यह साबित कर चुकी है कि कुछ खास तरह के संगीत सीधे मेमोरी पर असर करते हैं. आपने भी महसूस किया होगा कि कई बार कुछ यादें किसी खास संगीत के साथ ही जुड़ जाती हैं. जब जब आप उस संगीत को सुनते हैं आपको वही बातें याद आती हैं. इसी तरह सक्रिय रूप से आप अपनी यादों को किसी संगीत के साथ जोड़ सकते हैं.
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हंसना
हंसी सबसे बड़ी दवा है.. ये तो आपने सुना ही होगा. ये केवल शरीर की बीमारियों के लिए ही नहीं बल्कि दिमाग और याददाश्त के लिए भी सच है. बाकी भावनात्मक प्रतिक्रियाएं दिमाग के किसी विशेष हिस्से से जुड़ी होती हैं. जबकि हंसने से दिमाग के लगभग सभी हिस्सों में हरकत होती है और आपकी यादें बुढ़ापे में भी जवान बनी रहती हैं.
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जापान में पहली बार शुरू की जा रही यह योजना मुफ्त है. इसके तहत सिर्फ एक सेंटीमीटर का एक स्टिकर नाखून पर लगा दिया जाएगा. शहर के एक अधिकारी ने बताया, "नाखून पर यह स्टिकर लगाना काफी फायदेमंद है. वैसे डिमेंशिया के मरीजों के लिए कपड़ों और जूतों के स्टीकर तो पहले से ही होते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वे कपड़े या जूते हमेशा पहन ही रखे हों." अब अगर कोई बुजुर्ग दिशा भटक जाता है तो पुलिस को कोड के जरिए पता चल जाएगा कि उसका आईडी नंबर क्या है. उसके जरिए उसके घर का पता और टेलीफोन नंबर मिल जाएगा.
एक बार लगाई गई चिप औसतन दो हफ्ते तक चिपकी रहती है. भीग जाने पर भी यह दो हफ्ते तक तो नहीं उतरती है. इसका ट्रायल हो चुका है और अधिकारी नतीजों से खुश हैं.
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जापान में बुढ़ापा एक बड़ी समस्या है. बुजुर्गों की आबादी बहुत ज्यादा है. 2060 तक देश की 40 फीसदी आबादी 60 वर्ष से ज्यादा की होगी. पिछले महीने जापान की पुलिस ने ऐसे बुजुर्गों को स्थानीय रेस्तराओं में नूडल्ल पर छूट की पेशकश की है, जो अपना लाइसेंस वापस कर देंगे. ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि बुजुर्ग बहुत ज्यादा हादसे का शिकार हो रहे हैं. देश में 48 लाख लोग ऐसे हैं जो 75 वर्ष पार कर चुके हैं और उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस है.