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सस्ते कृत्रिम प्रोस्थेसिस से लौटा महिला का आत्मसम्मान

७ जनवरी २०२०

कैंसर की वजह से अपनी दांईं आंख और जबड़े का एक हिस्सा खो चुकी डेनिस ने शीशे में खुद को देखा तो वह रो पड़ीं. इस बार यह आंसू खुशी के हैं. खुशी की वजह बनी नई प्रोस्थेसिस तकनीक, जिसने डेनिस को नया चेहरा दिया है.

Billig-Prothesen geben Patienten ein neues Gesicht
तस्वीर: AFP/N. Almeida

ब्राजील के साओ पोलो की रहने वाली 53 वर्षीया डेनिस कहती हैं, "आज मैं घर से बाहर जाने में सहज महसूस कर रही हूं. इस अहसास को बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है." अस्पताल में डेनिस के चेहरे के क्षतिग्रस्त हिस्से को ठीक किया जा रहा है. पाउलिस्टा विश्वविद्यालय के शोधकर्ता सिलिकॉन प्रोस्थेसिस यानी कृत्रिम अंग बनाने के लिए स्मार्टफोन और 3डी प्रिंटिंग के जरिए पहले डिजिटल फेशियल इंप्रेशन बना रहे हैं. इस तकनीक ने इलाज की लागत घटा दी है, उत्पादन में लगने वाला समय आधा हो गया है.

इस तकनीक के मुख्य शोधकर्ता रॉड्रिगो सलाजार कहते हैं, "पहले इसी ऑपरेशन में कई घंटे लगते थे. मरीज के चेहरे पर इस्तेमाल होने वाली सामग्री हाथों से बनाई जाती थी. आज मोबाइल की तस्वीर से तीन आयामी मॉडल तैयार किया जा सकता है." इस तकनीक के जरिए अब तक 50 लोगों का इलाज किया जा चुका है. डेनिस भी इन्हीं लोगों में से एक हैं.

यह टीम मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेटिक्स की विशेषज्ञ है. यह दंत चिकित्सा की एक शाखा है जो जन्म दोष, बीमारी या आघात से पीड़ित लोगों का इलाज करती है. समाचार एजेंसी एएफपी पिछले डेढ़ साल से डेनिस के इलाज के सफर पर नजर बनाए हुए है और उनके शारीरिक और मानसिक सुधार के दस्तावेज इकट्ठा कर रही है.

23 साल की उम्र में पहली बार डेनिस को चेहरे का ट्यूमर हुआ. दो बार निकाले जाने के बावजूद 20 साल बाद यह ट्यूमर घातक रूप में फिर से डेनिस के चेहरे पर आ गया. धीरे धीरे इस बीमारी ने उनकी शादी, आत्मसम्मान के साथ साथ उनके चेहरे के बांईं ओर का हिस्सा भी छीन लिया. डेनिस कहती हैं, "जब मैं मेट्रो या ट्रेन में होती हूं तो कोशिश करती हूं कि लोगों की घूरती निगाहों को ना देखूं." वह चेहरे के एक तरफ जबड़ा ना होने की वजह से ना खाना ठीक से खा पाती हैं ना बोल पाती हैं. उनकी बेटी जैसिका उनकी बातों को लोगों तक पहुंचाती हैं.

कैसे बनी तकनीक

इस तकनीक पर सलाजार के साथ काम कर रहे सह शोधकर्ता लूसियानो डिब कहते हैं, "मैं मॉल में लोगों को 3डी प्रींटिंग का प्रयोग करते हुए देखता था और सोचता था कि इसका इस्तेमाल प्रोस्थेसिस के लिए क्यों नहीं किया जाता." डेनिस में परिवर्तन की प्रक्रिया 2018 से शुरू हुई थी. डिब ने डेनिस के लिए बनाए कृत्रिम अंग को चेहरे पर बनाए रखने के लिए आंखों में टाइटेनियम रॉड लगाई.

एक साल तक डेनिस के चेहरे के ऊतकों का निर्माण करने के लिए कई सर्जरी हुई. स्मार्टफोन का उपयोग करते हुए सलाजार ने अलग अलग कोणों से उनके चेहरे की 15 तस्वीरें लीं, जिनका उपयोग तीन आयामी डिजिटल मॉडल बनाने के लिए किया गया. मॉडल का उपयोग करते हुए ग्राफिक डिजाइनर ने डेनिस के चेहरे की एक स्वस्थ्य मिरर तस्वीर बनाई.

इसके बाद 3डी तकनीक के माध्यम से प्रोटोटाइप प्रोस्थेसिस बनाया गया जिसका प्रयोग सिलिकॉन, रेसिन और सिंथेटिक फाइबर के प्रोस्थेसिस बनाने में किया गया. कृत्रिम अंग बिल्कुल असली लगे इसके लिए सालाजार ने डैनिस की असली त्वचा और नीली-हरी आंखों के रंग से मिलान किया. कृत्रिम अंग बनाने की प्रक्रिया में 12 घंटे का समय लगा. यह पहले लगने वाले समय का आधा था.

2019 के दिसंबर में उनकी सर्जरी पूरी हुई. छोटे अंडे के आकार का टुकड़ा उनके चेहरे पर चुंबक की क्लिप से टाइटेनियम रॉड की मदद से चिपका रहता है. कृत्रिम अंग बनाने के पुराने तरीके का खर्च करीब साढ़े तीन करोड़ रूपया है. नये तरीके के लिए सिर्फ कंप्यूटर और स्मार्टफोन चाहिए. सलाजार मानते हैं कि उन्नत तकनीक को प्रयोग करने के लिए बड़े निवेश की जरूरत नहीं है. अगले साल, डिब और सलाजार कृत्रिम अंगों के प्रत्यारोपण के लिए उपचार केंद्र खोलने की योजना बना रहे हैं. इसे पाउलिस्टा विश्वविद्यालय बनाएगा. केंद्र खुलने से पहले ही दोनों शोधकर्ताओं के पास इलाज कराने वालों की लिस्ट आ गई है.

डेनिस के लिए सफर अभी लंबा है. उन्हें अपने जबड़े और ऊपर के होंठों के लिए और भी सर्जरी करानी पड़ेगी. लेकिन अभी वो बहुत खुश हैं. कृत्रिम अंग के साथ घर पर पहली रात बिताने के बाद उन्होंने कहा, "मैंने केवल इसे साफ करने के लिए उतारा. मैं पहनकर ही सोयी."

एसबी/आरपी (एएफपी)

 

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