‘धरती पर सबसे लोकप्रिय व्यक्ति’ लूला ब्राजील में फिर जीते
३१ अक्टूबर २०२२
लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा ने एक बार फिर वही कर दिखाया है जो उन्होंने दो दशक पहले किया था. वामपंथी लूला एक बार फिर ब्राजील के राष्ट्रपति चुने गए हैं. उन्होंने बहुत कड़े मुकाबले में जायर बोल्सोनारो को हरा दिया.
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चार साल की गहन दक्षिणपंथी राजनीति के बाद ब्राजील ने एक बार फिर वामपंथ की ओर रुख किया है. निवर्तमान राष्ट्रपति बोल्सोनारो को जाना होगा. हालांकि उनकी हार बहुत कम अंतर से हुई है. लूला दा सिल्वा को 50.9 प्रतिशत मत मिले हैं जबकि बोल्सोनारो को 49.1 फीसदी. लेकिन देश के चुनाव अधिकारियों ने 99 प्रतिशत मतों की गिनती के बाद कह दिया था कि गणित के मुताबिक दा सिल्वा की जीत सुनिश्चित हो गई है.
लूला दा सिल्वा के लिए यह एक हैरतअंगेज वापसी है. 77 वर्षीय नेता को 2018 में भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाना पड़ा था. इसलिए वह 2018 का चुनाव भी नहीं लड़ पाए, जिसमें बोल्सोनारो की जीत हुई. लेकिन बोल्सोनारो का कार्याकाल विवादों से भरा रहा और ‘वर्कर्स पार्टी' के दा सिल्वा ने अपनी पार्टी की नीतियों से आगे बढ़कर प्रशासन चलाने का वादा करते हुए चुनाव लड़ा.
ब्राजील: कैसे बदल रहा है दुनिया का सबसे बड़ा कैथोलिक ईसाई देश
ब्राजील दुनिया का सबसे बड़ा कैथोलिक ईसाई देश है, लेकिन अब इवैंजेलिकल संगठन और पेंटेकोस्टल चर्च देश में समाज और यहां तक की राजनीति को भी बदल रहे हैं. जल्द ही ये बहुमत में होंगे.
तस्वीर: Ian Cheibub
ईसा मसीह के लिए संगीत
नोर्मा की मां, नानी और परनानी कैनडॉम्ब्ल धर्म के अनुयायी थे और ओरिक्सा नाम के अफ्रीकी-ब्राजीली देवी देवताओं की आराधना करते थे. नोर्मा खुद 30 सालों तक कैनडॉम्ब्ल मंदिर में पुजारन थीं, लेकिन फिर वह एक पेंटेकोस्टल चर्च में शामिल हो गईं और एक पादरी बन गईं. उनका जीवन कठिन है और उसे जीने के लिए उन्हें अपनी आस्था से शक्ति मिलती है. चर्च में प्रार्थना गीत गाने के लिए वो अपनी नतिनी के साथ रियाज करती हैं.
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अपराध से उपासना तक
हाथ में बाइबल लिए खड़े निलटन परेरा कभी रियो दे जेनेरो के ड्रग माफिया के सदस्य और एक कुख्यात अपराधी थे. लेकिन एक बार ड्रग तस्करी के लिए जेल की सजा भुगतने के बाद वो एक इवैंजेलिकल मिशनरी बन गए. आज वो एक सफाई कर्मी की नौकरी करते हैं और खाली समय में पैस्टर की भूमिका अदा करते हैं.
तस्वीर: Ian Cheibub
मोहावस्था और भूत भगाना
रियो दे जेनेरो के करीब स्थित जीसस क्रिस्टो नाम के मिशनरी चर्च के सदस्यों ने एक किशोर लड़के की बाहें पकड़ी हुई हैं. उन्हें दृढ़ विश्वास है कि इस युवक को एक शैतान ने अपने बस में किया हुआ है. वो भूत भगाने की एक विधि के जरिए लड़के को मुक्त कराना चाहते हैं.
तस्वीर: Ian Cheibub
अमेजॉन में बपतिस्मा
डेविड बेली (बाएं से दूसरे) एक अमेरिकी मिशनरी हैं जो 1970 के दशक में अपने माता पिता के साथ ब्राजील के मूल निवासियों के बीच कैथोलिक ईसाई धर्म का प्रचार करने यहां आए थे. वे अपने लक्ष्य में इतने सफल रहे कि आज एक मूल निवासी पादरी टियागो क्रिकाती (बाईं तरफ) उनके मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं. यह तस्वीर मारनहाओ प्रांत के क्रिकाती इलाके की है जहां वो एक बपतिस्मा समारोह में शामिल हुए हैं.
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संगीत, नृत्य की अहमियत
पीले कपड़े पहने और एक हाथ हवा में उठाए ये किशोर लड़कियां क्रिकाती मूल निवासी इलाके में एक समर्पण समारोह में प्रार्थना कर रही हैं. ब्राजील में 15वां जन्मदिन बहुत विशेष माना जाता है और इस दिन किशोरावस्था से वयस्कता में कदम रखने का जश्न मनाया जाता है. इवैंजेलिकल समूहों ने इस समारोह को अपने रिवाजों में शामिल कर लिया है.
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अपने प्रचार में दा सिल्वा ने कहा कि वह देश के समृद्ध अतीत को वापस लाना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने मध्यवादियों और यहां तक कि दक्षिणपंथियों से भी साथ आने की अपील की. इसका उन्हें कुछ फायदा भी मिला लेकिन इससे उनकी चुनौतियां आसान नहीं हो जातीं. देश राजनीतिक आधार पर बहुत ज्यादा बंटा हुआ है, विकास धीमा पड़ रहा है और महंगाई बढ़ती जा रही है.
दा सिल्वा तीसरी बार राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. वह 2003-2010 तक दो कार्यकाल पूरे कर चुके हैं. 1985 में लोकतंत्र के लौटने के बाद ब्राजील में पहली बार ऐसा हुआ है कि पदस्थ राष्ट्रपति चुनाव हार गया. दक्षिण अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ब्राजील में भी वैसा ही वामपंथी झुकाव दिखा है, जो चिली, कोलंबिया और अर्जेंटीना के चुनावों में दिख चुका है.
लूला के सामने बड़ी चुनौती
तीन दशक से भी ज्यादा समय में ब्राजील का यह सबसे करीबी चुनाव रहा. दोनों उम्मीदवारों के बीच मतों का अंतर लगभग 20 लाख का रहा. इससे पहले 2014 में भी काफी करीबी चुनाव हुआ था, जब जीत का अंतर मात्र 34.6 लाख वोटों का रहा था.
राजनीतिक विश्लेषक थॉमस ट्रॉमन दा सिल्वा की जीत की तुलना अमेरिका में 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में जो बाइडेन की जीत से करते हैं. वह कहते हैं कि दा सिल्वा को भी एक अत्याधिक विभाजित देश मिला है.
ट्रॉमन कहते हैं, "लूला के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो देश को शांत करने की है. लोग ना सिर्फ राजनीतिक आधार पर बंटे हुए हैं बल्कि नैतिक मूल्य, पहचान और राय के आधार पर भी देश विभाजित है. और हालत ऐसी है कि वे इस बात की कतई परवाह नहीं करते कि दूसरी तरफ के लोगों की पहचान और राय क्या है.”
जीत का ऐलान होने के बाद दा सिल्वा के समर्थकों में खुशी की लहर सड़कों पर देखी जा सकती थी. लोग कारें लेकर सड़कों पर निकल पड़े और दा सिल्वा के समर्थन में नारेबाजी करने लगे. पार्टी मुख्यालय में मौजूद गेब्रियएला सोतो ने कहा, "इसके लिए चार साल इंतजार किया है.”
ट्रंप के प्रशंसक बोल्सोनारो
ज्यादातर चुनाव सर्वेक्षणों में लूला को बढ़त की संभावना जताई गई थी लेकिन विश्लेषकों के मुताबिक चुनाव का दिन जैसे-जैसे करीब आया, रेस और करीबी होती चली गई. कुछ महीने पहले जो जीत लूला के लिए बहुत आसान दिख रही थी, वह 2 अक्टूबर के पहले दौर के चुनावों के बाद छिटकती नजर आने लगी. पहले दौर में लूला को 48 प्रतिशत मिले थे जबकि बोल्सोनारो को 43 फीसदी. लेकिन इस नतीजे के बाद विश्लेषकों ने कहा कि सर्वेक्षणों में जैसी स्थिति लूला के पक्ष में नजर आ रही थी, वैसी असल में नहीं थी.
किताबें पढ़कर इस देश में सजा कम करा सकते हैं कैदी
बोलीविया की भीड़भाड़ वाली जेलों में कैदी अब किताबें पढ़कर अपनी सजा कम करा सकते हैं. यह कार्यक्रम ब्राजील में चलाए गए ऐसे ही एक कार्यक्रम से प्रभावित है. कार्यक्रम का एक और उद्देश्य साक्षरता बढ़ाना भी है.
तस्वीर: Claudia Morales/REUTERS
ब्राजील से सीख
दक्षिण अमेरिकी देश ब्राजील में मुकदमे की लंबी अवधि के कारण कई कैदियों को दशकों तक जेल में ही अपना जीवन बिताना पड़ता है. देश की एक जेल ने उनके कारावास को 'सार्थक' बनाने के लिए किताबें पढ़ने की व्यवस्था की.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture-alliance
"सलाखों के पीछे किताबें"
बोलीविया सरकार का कार्यक्रम "बुक्स बिहाइंड बार्स" कैदियों को उनकी रिहाई की तारीख से कुछ दिन या सप्ताह पहले जेल से बाहर निकलने का मौका देता है. बोलीविया में आजीवन कारावास या मृत्युदंड नहीं है, लेकिन धीमी न्यायिक प्रणाली के कारण सुनवाई कई सालों तक चलती है.
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कार्यक्रम से आकर्षित हुए कैदी
बोलीविया के लोकपाल कार्यालय का कहना है कि यह कार्यक्रम 47 जेलों में शुरू किया गया है. ये जेल वैसे हैं जिनके पास कैदियों के लिए शिक्षा या सामाजिक सहायता कार्यक्रमों के लिए भुगतान करने के लिए संसाधन नहीं हैं. अब तक 865 कैदी पढ़ने और लिखने की अपनी आदत में सुधार ला चुके हैं.
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पढ़ने का इनाम
उन कैदियों में से एक जैकलीन ने इस कार्यक्रम के तहत एक साल के भीतर आठ किताबें पढ़ ली. उन्होंने पढ़ाई की चार परीक्षा भी पास कर ली. जैकलीन कहती हैं, "हमारे जैसे लोगों के लिए यह वास्तव में बहुत मुश्किल है जिनके पास कोई आय नहीं है और जिनका बाहर परिवार नहीं है."
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नई जिंदगी
लोकपाल कार्यालय की नादिया क्रूज कहती हैं इस कार्यक्रम का मकसद सुनवाई का इंतजार कर रहे कैदियों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना है. क्रूज कहती हैं, "यह महत्वपूर्ण है क्योंकि सजा में जो कटौती की जाती वह अपेक्षाकृत कम होती है (कुछ घंटे या दिन). यह इस बात पर निर्भर करता है कि बोर्ड क्या फैसला करता है."
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भीड़ है जेलों की समस्या
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि देश की जेलों में संख्या से अधिक कैदी बंद हैं और कई बार कैदी स्वच्छता की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन भी करते हैं. इन सब मुश्किलों के बीच पढ़ना लिखना कैदियों के लिए जेल से बाहर निकलने का आसान रास्ता हो सकता है.
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पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशंसक बोल्सोनारो ने अपने कार्यकाल के दौरान दक्षिणपंथी मूल्यों को तो बढ़ावा दिया ही, उनके भड़काऊ बयान, कोविड-19 को लेकर उनकी नीतियां और अमेजन में हुई अत्यधिक कटाई जैसे मुद्दों ने उन्हें बड़ी आबादी के बीच अलोकप्रिय भी बना दिया था. महामारी की शुरुआत में तो उन्होंने कोविड को खारिज ही कर दिया था. उनके बयानों ने लोकतांत्रिक मूल्यों को लगातार चुनौती दी. हालांकि, बोल्सोनारो के प्रशसंकों की एक बहुत विशाल सेना भी खड़ी हो गई. जो उनकी नीतियों के बचाव में लड़ने-मरने को भी तैयार दिखती थी.
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दा सिल्वा की वापसी
उधर दा सिल्वा ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने पिछले कार्यकाल को लोगों को याद कराया, जब देश का तेज आर्थिक विकास हुआ था और बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठकर मध्यवर्ग में शामिल हुए थे. उन्होंने समाज कल्याण के कई कार्यक्रम शुरू किए थे, जिन्होंने गरीबी उन्मूलन में अहम भूमिका निभाई. अपने समर्थकों के बीच लूला के नाम जाने जाने वाले दा सिल्वा ने जब पद छोड़ा था तब उनकी लोकप्रियता की रेटिंग 80 प्रतिशत थी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें ‘पृथ्वी पर सबसे लोकप्रिय व्यक्ति' बताया था.
हालांकि, उनके कार्यकाल पर भ्रष्टाचार का दाग भी लगा. जांच में सामने आया कि उनकी सरकार के दौरान बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ. 2018 में उन्हें भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए 580 दिन की जेल की सजा हुई. हालांकि बाद में ब्राजील के सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी सजा के फैसले को यह कहते हुए पलट दिया कि जज निष्पक्ष नहीं थे और उन्होंने सरकारी वकीलों के साथ मिलीभगत से फैसले सुनाए. इस फैसले के बाद ही वह छठी बार देश के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ पाए और मुश्किल से ही सही, जीत भी गए.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
250 किलो की हो गई लीलिका
ब्राजील में एक शिक्षक रोजा की पालतू सुअर ढाई सौल किलो की विशाल जानवर बन गई है. ऐसा उन्होंने सोचा नहीं था, पर हो गया. वजन के साथ-साथ प्यार भी बढ़ा.
तस्वीर: Amanda Perobelli/REUTERS
सोचा नहीं था इतनी विशाल हो जाएगी
रोसएंजेला डोस सांतोस लारा ने जब लीलिका को खरीदा था तो सोचा था कि वह छोटी सी प्यारी सी पिगलेट बनेगी.
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विशाल मादा सुअर
पर लीलिका तो 250 किलोग्राम की हट्टी-कट्टी विशाल मादा सुअर बन गई है. तीन साल में उसका वजन और आकार विशाल हो गया है.
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तीन साल की है लीलिका
तीन साल की लीलिका ब्राजील के पुरवबे में लारा के घर में ही रहती है, अन्य कई पालतू जानवरों के साथ.
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प्यार की खातिर
पेशे से शिक्षिका रोजा कहती हैं, “कई बार लोग मुझे कोसते हैं, पागल कहते हैं. लेकिन मुझे लीलिका के साथ बहुत अच्छा लगता है. यह पागलपन नहीं जानवरों के प्रति प्यार है.”
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कमरा, गद्दा और पंखा
लीलिका का अपना बेडरूम है जहां वह अपने गद्दे पर सोती है. एक पंखा है जो उसे गर्मी से बचाता है.
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खूब सारा खाना
लीलिका हर रोज 5-6 किलो फल और सब्जियां खा जाती है. और इतना खाना उपलब्ध करवाना मध्यवर्गीय रोजा के लिए आसान नहीं है.
तस्वीर: Amanda Perobelli/REUTERS
लाखों रुपये ठुकराए
लेकिन रोजा उसे खरीदने आए कई लोगों को लौटा चुकी हैं. हाल ही में किसी ने लीलिका के लिए ढाई लाख रुपये की पेशकश की, जिसे रोजा ने ठुकरा दिया.