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राजनीतिब्राजील

‘धरती पर सबसे लोकप्रिय व्यक्ति’ लूला ब्राजील में फिर जीते

३१ अक्टूबर २०२२

लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा ने एक बार फिर वही कर दिखाया है जो उन्होंने दो दशक पहले किया था. वामपंथी लूला एक बार फिर ब्राजील के राष्ट्रपति चुने गए हैं. उन्होंने बहुत कड़े मुकाबले में जायर बोल्सोनारो को हरा दिया.

जीत के बाद लूला दा सिल्वा
जीत के बाद लूला दा सिल्वातस्वीर: Andre Penner/AP/picture alliance

चार साल की गहन दक्षिणपंथी राजनीति के बाद ब्राजील ने एक बार फिर वामपंथ की ओर रुख किया है. निवर्तमान राष्ट्रपति बोल्सोनारो को जाना होगा. हालांकि उनकी हार बहुत कम अंतर से हुई है. लूला दा सिल्वा को 50.9 प्रतिशत मत मिले हैं जबकि बोल्सोनारो को 49.1 फीसदी. लेकिन देश के चुनाव अधिकारियों ने 99 प्रतिशत मतों की गिनती के बाद कह दिया था कि गणित के मुताबिक दा सिल्वा की जीत सुनिश्चित हो गई है.

लूला दा सिल्वा के लिए यह एक हैरतअंगेज वापसी है. 77 वर्षीय नेता को 2018 में भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाना पड़ा था. इसलिए वह 2018 का चुनाव भी नहीं लड़ पाए, जिसमें बोल्सोनारो की जीत हुई. लेकिन बोल्सोनारो का कार्याकाल विवादों से भरा रहा और ‘वर्कर्स पार्टी' के दा सिल्वा ने अपनी पार्टी की नीतियों से आगे बढ़कर प्रशासन चलाने का वादा करते हुए चुनाव लड़ा.

अपने प्रचार में दा सिल्वा ने कहा कि वह देश के समृद्ध अतीत को वापस लाना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने मध्यवादियों और यहां तक कि दक्षिणपंथियों से भी साथ आने की अपील की. इसका उन्हें कुछ फायदा भी मिला लेकिन इससे उनकी चुनौतियां आसान नहीं हो जातीं. देश राजनीतिक आधार पर बहुत ज्यादा बंटा हुआ है, विकास धीमा पड़ रहा है और महंगाई बढ़ती जा रही है.

दा सिल्वा तीसरी बार राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. वह 2003-2010 तक दो कार्यकाल पूरे कर चुके हैं. 1985 में लोकतंत्र के लौटने के बाद ब्राजील में पहली बार ऐसा हुआ है कि पदस्थ राष्ट्रपति चुनाव हार गया. दक्षिण अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ब्राजील में भी वैसा ही वामपंथी झुकाव दिखा है, जो चिली, कोलंबिया और अर्जेंटीना के चुनावों में दिख चुका है.

लूला के सामने बड़ी चुनौती

तीन दशक से भी ज्यादा समय में ब्राजील का यह सबसे करीबी चुनाव रहा. दोनों उम्मीदवारों के बीच मतों का अंतर लगभग 20 लाख का रहा. इससे पहले 2014 में भी काफी करीबी चुनाव हुआ था, जब जीत का अंतर मात्र 34.6 लाख वोटों का रहा था.

लूला के प्रशंसक तस्वीर: Bruna Prado/AP/picture alliance

राजनीतिक विश्लेषक थॉमस ट्रॉमन दा सिल्वा की जीत की तुलना अमेरिका में 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में जो बाइडेन की जीत से करते हैं. वह कहते हैं कि दा सिल्वा को भी एक अत्याधिक विभाजित देश मिला है.

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ट्रॉमन कहते हैं, "लूला के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो देश को शांत करने की है. लोग ना सिर्फ राजनीतिक आधार पर बंटे हुए हैं बल्कि नैतिक मूल्य, पहचान और राय के आधार पर भी देश विभाजित है. और हालत ऐसी है कि वे इस बात की कतई परवाह नहीं करते कि दूसरी तरफ के लोगों की पहचान और राय क्या है.”

जीत का ऐलान होने के बाद दा सिल्वा के समर्थकों में खुशी की लहर सड़कों पर देखी जा सकती थी. लोग कारें लेकर सड़कों पर निकल पड़े और दा सिल्वा के समर्थन में नारेबाजी करने लगे. पार्टी मुख्यालय में मौजूद गेब्रियएला सोतो ने कहा, "इसके लिए चार साल इंतजार किया है.”

ट्रंप के प्रशंसक बोल्सोनारो

ज्यादातर चुनाव सर्वेक्षणों में लूला को बढ़त की संभावना जताई गई थी लेकिन विश्लेषकों के मुताबिक चुनाव का दिन जैसे-जैसे करीब आया, रेस और करीबी होती चली गई. कुछ महीने पहले जो जीत लूला के लिए बहुत आसान दिख रही थी, वह 2 अक्टूबर के पहले दौर के चुनावों के बाद छिटकती नजर आने लगी. पहले दौर में लूला को 48 प्रतिशत मिले थे जबकि बोल्सोनारो को 43 फीसदी. लेकिन इस नतीजे के बाद विश्लेषकों ने कहा कि सर्वेक्षणों में जैसी स्थिति लूला के पक्ष में नजर आ रही थी, वैसी असल में नहीं थी.

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशंसक बोल्सोनारो ने अपने कार्यकाल के दौरान दक्षिणपंथी मूल्यों को तो बढ़ावा दिया ही, उनके भड़काऊ बयान, कोविड-19 को लेकर उनकी नीतियां और अमेजन में हुई अत्यधिक कटाई जैसे मुद्दों ने उन्हें बड़ी आबादी के बीच अलोकप्रिय भी बना दिया था. महामारी की शुरुआत में तो उन्होंने कोविड को खारिज ही कर दिया था. उनके बयानों ने लोकतांत्रिक मूल्यों को लगातार चुनौती दी. हालांकि, बोल्सोनारो के प्रशसंकों की एक बहुत विशाल सेना भी खड़ी हो गई. जो उनकी नीतियों के बचाव में लड़ने-मरने को भी तैयार दिखती थी.

दा सिल्वा की वापसी

उधर दा सिल्वा ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने पिछले कार्यकाल को लोगों को याद कराया, जब देश का तेज आर्थिक विकास हुआ था और बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठकर मध्यवर्ग में शामिल हुए थे. उन्होंने समाज कल्याण के कई कार्यक्रम शुरू किए थे, जिन्होंने गरीबी उन्मूलन में अहम भूमिका निभाई. अपने समर्थकों के बीच लूला के नाम जाने जाने वाले दा सिल्वा ने जब पद छोड़ा था तब उनकी लोकप्रियता की रेटिंग 80 प्रतिशत थी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें ‘पृथ्वी पर सबसे लोकप्रिय व्यक्ति' बताया था.

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हालांकि, उनके कार्यकाल पर भ्रष्टाचार का दाग भी लगा. जांच में सामने आया कि उनकी सरकार के दौरान बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ. 2018 में उन्हें भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए 580 दिन की जेल की सजा हुई. हालांकि बाद में ब्राजील के सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी सजा के फैसले को यह कहते हुए पलट दिया कि जज निष्पक्ष नहीं थे और उन्होंने सरकारी वकीलों के साथ मिलीभगत से फैसले सुनाए. इस फैसले के बाद ही वह छठी बार देश के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ पाए और मुश्किल से ही सही, जीत भी गए.

वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)

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