मवेशियों को संक्रमित करने वाला लंपी त्वचा रोग कई राज्यों में तेजी से फैल रहा है. इस बीमारी से गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में हजारों गायों की मौत भी हो चुकी है.
लंपी त्वचा रोगतस्वीर: Saadeqa Khan
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बीते कुछ हफ्तों में कई राज्यों में लंपी त्वचा रोग तेजी से फैला है, जिसकी वजह से हजारों गायों की मौत हो गई है. संक्रमित गायों की संख्या और बड़ी होने का अनुमान है.
कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अभी तक कम से कम 8,000 गायों की मौत हो चुकी है और 25,000 से 30,000 गायें संक्रमित हैं. शुरू में सिर्फ राजस्थान और गुजरात में इसके मामले सामने आए थे लेकिन अब पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से भी संक्रमण की खबरें आ रही हैं.
यह बीमारी कई अफ्रीकी देशों में मौजूद हैतस्वीर: Seyoum Getu/DW
क्या होता है लंपी त्वचा रोग?
यूरोप के फूड सेफ्टी प्राधिकरण के मुताबिक यह मवेशियों में फैलने वाली एक वायरल बीमारी है. यह खून पीने वाले मक्खियों, मच्छरों जैसे कीड़ों की कुछ खासी प्रजातियों द्वारा फैलाया जाता है. इससे मवेशियों को बुखार होता है, त्वचा पर गांठें निकल आती हैं, दूध की मात्रा कम हो जाती है और कई मामलों में मौत भी हो जाती है.
संक्रमित मवेशियों में कई लक्षण लंबे समय तक या स्थायी रूप से भी मौजूद रह सकते हैं. इससे ठीक होने में भी समय लगता है. यह बीमारी कई अफ्रीकी देशों में और मध्य एशिया में मौजूद है. 2012 में यह मध्य एशिया होते हुए दक्षिण-पूर्वी यूरोप में भी फैल गई थी.
यूरोप में तो अब एक टीकाकरण कार्यक्रम से इसके प्रसार पर काबू पा लिया गया है, लेकिन अब यह पश्चिमी और केंद्रीय एशिया में भी फैल गई है. 2019 से दक्षिण एशिया में भी इसके मामले सामने आए हैं.
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यह संक्रमण पॉक्सविरिडे नाम के वायरस से होता है. जेनेटिक रूप से इसे गोट पॉक्स और शीप पॉक्स वायरस परिवार से संबंधित माना जाता है. वर्ल्ड आर्गेनाईजेशन फॉर एनिमल हेल्थ (डब्ल्यूओएएच) के मुताबिक इस बीमारी में एक से लेकर पांच प्रतिशत तक की मृत्यु दर होती है.
क्या यह रोग इंसानों में भी फैलता है?
विशेषज्ञों का कहना है कि यह इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है और सिर्फ टीके से ही इससे बचाव किया जा सकता है. राहत की बात यह है कि डब्ल्यूओएएच के मुताबिक यह एक जूनोटिक बीमारी नहीं है, यानी यह इंसानों में नहीं फैल सकती है.
मवेशियों को इससे बचाने के लिए कई तरह के टीके उपलब्ध हैं. भारत में इस समय इसके लिए गोट पॉक्स टीके का इस्तेमाल किया जा रहा है. कई राज्य मवेशी पालकों के लिए यह टीका निशुल्क उपलब्ध करा रहे हैं.
केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि सरकार ने इस बीमारी की रोकथाम के लिए लंपी प्रो वैक नाम का नया टीका उपलब्ध करना शुरू किया है.
इस टीका का निर्माण राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार तथा भारतीय पशु चिकित्सा संस्थान इज्जतनगर ने मिल कर किया है. उम्मीद की जा रही है कि जल्द इस टीके के पूरे देश में प्रसार पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. साथ ही इस बीमारी से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए विस्तृत दिशानिर्देशों का भी इन्तजार किया जा रहा है.
तीन मौसम गुजरे, नहीं हुई बारिश, हड्डी का ढांचा बनी गायें
सोमालिया, केन्या और इथोपिया जैसे देश भयानक सूखा झेल रहे हैं. कई गांवों में मरे हुए मवेशियों का ढेर लग गया है. इससे बीमारियां फैलने का खतरा भी है.
तस्वीर: Michael Tewelde/World Food Programme/REUTERS
हॉर्न ऑफ अफ्रीका का सूखा
अफ्रीका के कई देशों में लगातार तीन बारिश के मौसम बिना बरसात के बीत चुके हैं. हॉर्न ऑफ अफ्रीका कहे जाने वाले सोमालिया, केन्या और अब इथोपिया जैसे देशों में सूखे से लोग और मवेशी बेहाल हैं.
तस्वीर: Maria Gerth/DW
करोड़ों की जान मुश्किल में
इन इलाकों में मवेशियों की दशा सूखे की भयावहता दिखाती है. सिर्फ केन्या में इसके चलते 21 लाख लोग भुखमरी की कगार पर खड़े हैं. पूरे इलाके में करोड़ों लोग इससे प्रभावित हैं.
तस्वीर: Maria Gerth/DW
आंखों के सामने दम तोड़ती उम्मीदें
सत्तर साल के हुसैन अहमद की 7 गायें इस त्रासदी की भेंट चढ़ चुकी हैं लेकिन अब भी मन में आस पाले बैठे हैं कि बची 16 का ये हाल नहीं होगा. इसी कोशिश में वे गायों को एक तालाब में पानी पिलाने जा रहे हैं.
तस्वीर: Mulugeta Ayene/UNICEF/AP/picture alliance
मवेशी बचाने की जद्दोजहद
इथोपिया के सोमाली इलाके की इस गाय की हालत गंभीर सूखे के चलते खराब हो चुकी है. खुद से उठना-बैठना भी मुश्किल है. स्थानीय उसे राहत और इलाज देने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Michael Tewelde/World Food Programme/REUTERS
किसी तरह पानी का इंतजाम
दामा मोहम्मद की भी आठ में से दो गायें सूखे की भेंट चढ़ गईं. बची गायों में से भी कई इस हालत में पहुंच चुकी हैं कि चल-फिर नहीं सकतीं. इसलिए वे उन्हें पिलाने के लिए पास के तालाब से पानी भर-भर कर लाती हैं.
तस्वीर: Mulugeta Ayene/UNICEF/AP/picture alliance
एक-एक घर में दर्जनों मवेशियों की मौत
इथोपिया के सोमाली इलाके के कोराहे जोन में रहने वाली हफ्सा बेदेल छह बच्चों की मां हैं. सागालो गांव की निवासी हफ्ता बताती हैं कि वे पहले ही उनकी 25 भेड़-बकरियां और 4 ऊंट मर चुके हैं.
तस्वीर: Maria Gerth/DW
कमजोर पशुओं को जल्द घेर रहे हैं रोग
इन इलाकों में लोग ऊंटों और अन्य मवेशियों के लिए सरकारी कुएं से पानी का इंतजाम कर रहे हैं. लेकिन सही खाना न मिलने से कमजोर हुए पालतू जानवर आसानी से कई रोगों के शिकार हो रहे हैं.
तस्वीर: Maria Gerth/DW
केन्या में राष्ट्रीय आपदा
लगातार बिगड़ती सूखे की दशा के चलते केन्या में राष्ट्रपति उहुरू केन्याटा ने सितंबर में ही सूखे को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया था.
तस्वीर: Maria Gerth/DW
खुद को बचाएं या मवेशियों को
सूखे की वजह से भोजन और पानी की भारी कमी हो गई है, लोग खुद के लिए ही भोजन नहीं जुटा पा रहे, ऐसे में मवेशियों को कौन पूछे. जिससे यह स्थिति उनके लिए काल बन रही है.
तस्वीर: Maria Gerth/DW
गरीब देशों को ज्यादा खतरा
जलवायु परिवर्तन इन कम आय वाले देशों पर और ज्यादा गंभीर असर होता है. क्योंकि लोगों के पास बढ़ी पर्यावरणीय मुसीबतों से लड़ने के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं होतीं और सरकारें भी उनकी मदद कर पाने में अक्षम होती हैं.