15 साल की रेशमी ने बेहतर जिंदगी की उम्मीद में म्यांमार के रखाइन प्रांत में अपना घर छोड़ा था. लेकिन भारत में आते ही उसे बेच दिया गया और लगभग अपने पिता की उम्र के व्यक्ति से शादी करा दी गई.
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रेशमी बताती है, "उसने एजेंट से पूछा कि क्या मेरी पहले शादी हो चुकी है. मैं कुंवारी थी इसलिए उसने मुझे 20 हजार रुपये में खरीदा. शादीशुदा औरतें 15 हजार रुपये में खरीदी जाती हैं."
अब रेशमी म्यांमार से भागे रोहिंग्या लोगों के लिए हरियाणा के नूह में बनाई गई एक बस्ती में रहती है. रेशमी के पति ने पांच साल तक उसका शोषण करने के बाद पिछले साल उसे छोड़ दिया. उस वक्त वह उसके दूसरे बच्चे की मां बनने वाली थी. रेशमी कहती है, "उसकी उम्र मेरे पिता की उम्र से कुछ ही कम होगी. वह मुझे बिजली के तारों से पीटता था और घर से जाने नहीं देता था. वह कहता था कि मैंने तुझे खरीदा है."
म्यांमार के रखाइन प्रांत में पिछले साल भड़की हिंसा के बाद 6.6 लाख लोग वहां से भागकर बांग्लादेश पहुंचे, जहां पहले से ही हजारों रोहिंग्या रह रहे थे. दर दर भटकते हजारों रोहिंग्या भारत भी पहुंचे. ऐसे में, रोहिंग्या लोगों से बंधुवा मजदूरी कराने या फिर उन्हें देह व्यापार में धकेले जाने के मामले भी सामने आ रहे हैं.
रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में शादी की धूम..
रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों से आम तौर दर्द भरी कहानियां ही मिलती हैं. लेकिन दुख और तकलीफों के बीच खुशी के पल भी आते हैं. ऐसा ही मौका था सद्दाम हुसैन और शौफीका बेगम की शादी.
तस्वीर: Reuters/D. Sagolj
हम दोनों, दो प्रेमी..
सद्दाम की उम्र 23 साल है जबकि शौफीका बेगम 18 साल की है. दोनों इस समय बांग्लादेश के कोक्स बाजार में शरणार्थी शिविर में रहते हैं और हाल ही में शादी के बंधन में बंधे हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Djurica
पहले से थी जान पहचान
म्यांमार से भागने से पहले ही दोनों एक दूसरे को जानते थे और एक दूसरे से शादी करने चाहते थे. लेकिन उनका यह सपना म्यांमार में तो नहीं, लेकिन कुतुपालोंग शरणार्थी शिविर में पूरा हुआ.
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घर गृहस्थी
दोनों का संबंध म्यांमार में माउंगदाओ इलाके के फोरिया बाजार गांव से था, जिसे वहां की सेना ने जला दिया. अब शरणार्थी शिविर का यही कामचलाऊ सा तंबू उनकी घर गृहस्थी है.
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सद्दाम की दुकान
सद्दाम शिविर में ही अपनी परिवार की एक छोटी सी दुकान पर बैठता है. सद्दाम का परिवार म्यांमार में भी दुकान चलाता था. उनके गांव में लगभग एक हजार दुकानें थी इसलिए उसके नाम में बाजार आता है.
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शादी की तैयारी
शादी से पहले दुल्हे राजा को तैयार किया जा रहा है. म्यांमार से भागे तो कई हफ्तों तक सद्दाम को शौफीका का कुछ अता पता नहीं चला. लेकिन उनकी किस्मत में मिलना लिखा था और वे कुतुपालोंग के शिविर में एक दूसरे मिले.
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सजना है मुझे..
शौफीका के हाथों पर सद्दाम के नाम की मेहंदी का सुर्ख रंग. शादी वाले दिन शौफीका को एक अलग टेंट में बिठाया गया, जहां उसकी कई महिला रिश्तेदार उसके साथ थीं.
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कैंप की जिंदगी
कॉक्स बाजार के इस शरणार्थी शिविर में लगभग 6.6 लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें बहुत से अगस्त में म्यांमार में छिड़ी हिंसा के बाद भागकर यहां पहुंचे. सद्दाम और शौफीका के परिवार अक्टूबर में यहां पहुंचे.
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मुझे भी चाहिए...
सद्दाम और शौफीका की शादी के मौके पर सबको को मुफ्त खाना बांटा गया जिसे लेने के लिए कैंप के बच्चों में होड़ मच गई. वैसे भी शरणार्थी शिविर में रहने वालों को कहां रोज रोज ऐसा खाना मिलता है.
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दस्तरखान
मेहमानों के लिए बैठ कर खाने का अलग से इंतजाम किया गया था जहां पारंपरिक लजीज खाना परोसा गया. इसके लिए एक बड़ा सा टेंट तैयार किया गया जिसमें बैठकर एक साथ 20 लोग खाना खा सकते थे.
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डांस वांस
नाच गाने के बिना कैसे शादी हो सकती है. इसके लिए एक प्रोफेशनल डांसर को बुलाया गया जिसने अपने दो साथियों के साथ रंग जमा दिया. वहां मौजूद लोगों की तालियां बता रही थीं कि उन्हें कितना मजा आ रहा है.
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कबूल है
पांरपरिक तरीके से सद्दाम और शौफीका की शादी हुई. सभी ने हाथ उठा कर उनकी खुशहाल जिंदगी की कामना की. हालांकि दर दर भटकते रोहिंग्या लोगों के लिए खुशी एक मरीचिका है. ना उनके रहने का कोई ठिकाना है और न ही जिंदगी का.
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लाडो चली..
फिर आ पहुंचा विदाई का समय. यूं तो शौफीका के टेंट से सद्दाम का टैंट बहुत दूर नहीं था, लेकिन वह माता पिता के घर से अपने पति के घर जा रही थी. भावनात्मक रूप से यह बहुत अहम सफर होता है.
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भविष्य अनिश्चित
शरणार्थी शिविर में रहने वाला यह नया जोड़ा जानता है कि उनका भविष्य अनिश्चित है. इसीलिए उन्हें परिवार बढ़ाने की कोई जल्दबाजी नहीं है. सद्दाम कहते हैं कि यह तो तय हो जाए कि हम यहीं रहेंगे या फिर वापस म्यांमार में.
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नागरिकता का सवाल
सद्दाम का कहना है कि वह तभी म्यांमार जाना चाहेगा जब वहां की सरकार नागरिकता दे. म्यांमार ने रोहिंग्या लोगों को आज तक अपना नागरिक नहीं माना है और इसीलिए उन्हें उन्हें अपनी नागरिकता नहीं दी है.
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आम जिंदगी
यह तस्वीर शादी के कुछ दिन बात की है, जिसमें शौफीका अपने टेंट में खाना पका रही है. सफर मुश्किल हो सकता है लेकिन सद्दाम और शौफीका ने एक नई शुरुआत की तरफ कदम बढ़ा दिया है.
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कुछ साल पहले ही भारत में रोहिंग्या लोगों के आने का सिलसिला शुरू हुआ है. इस बीच उनकी संख्या 40 हजार हो गई है. इन्हीं में रहीमा भी शामिल है जिसने बांग्लादेश में एक कैंप में रह रहे अपने पिता के पास आने के लिए 2012 में रखाइन को छोड़ा था. अब 22 साल की हो चुकी रहीमा बताती है, "घर पर खाने को नहीं था तो मेरी मां ने सोचा कि अगर मैं अपने पिता के पास चली जाऊं तो अच्छा रहेगा. लेकिन कैंप में मेरी एक रिश्तेदार ने मुझे एक एजेंट को बेच दिया. एजेंट ने बताया था कि वह भारत में ले जाकर मेरी शादी करा देगा."
रहीमा कहती है, "शादी के ख्याल से मैं स्तब्ध थी. मैं बस एजेंट के पीछे पीछे चल रही थी. हम लोग कोलकाता पहुंचे. मुझे कोई भारतीय भाषा नहीं आती थी लेकिन मैंने सोचा कि मैं सुरक्षित हूं." अब नूह में रहने वाली रहीमा फर्राटेदार हिन्दी में यह बात कहती है.
हर रोहिंग्या शरणार्थी की है एक कहानी
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मदद के लिए संगठन
बांग्लादेश के शरणार्थी कैंप रहीमा जैसी लड़कियों को खरीदने वाले एजेंटों का अड्डा बन रहे हैं. शादी के लालच में बहुत सी लड़कियां उनके चंगुल में फंस जाती हैं. सहायता और विकास संस्था ब्राक की प्रवक्ता इफत नवाज कहती हैं, "शादी जवान लड़कियों के लिए बड़ी बात होती है. माता पिता भी इसके लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि इसमें उन्हें अपनी बेटियों का भविष्य आर्थिक रूप से ज्यादा सुरक्षित दिखता है."
ब्राक के वोलंटियर कॉक्स बाजार में बांग्लादेशी शरणार्थी शिविर में जाकर लड़कियों को सिखा रहे हैं कि वे कैसे अजनबियों के बीच अपने आपको सुरक्षित रख सकती हैं. उन्हें यह अंतर करना भी सिखाया जाता है कि कौन उनकी मदद कर रहा है और कौन उन्हें तस्करी के जरिए बेचना चाहता है. नवाज कहती हैं, "लड़कियों के गायब होने की बहुत सारी घटनाएं हुई हैं. उन्हें भारत और नेपाल में ले जाकर बेचा जा रहा है. हमने इस जोखिम को कम करने के लिए ही यह कार्यक्रम शुरू किया है."
रोहिंग्या: ये घाव अपनी कहानी खुद कहते हैं..
म्यांमार में सेना की कार्रवाई से बचने के लिए लाखों रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश पहुंचे हैं. इनमें से कई लोगों के शरीर के निशान उन पर हुए जुल्मों की गवाही देते हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ ऐसे ही लोगों की फोटो खींची.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
शाहिद, एक साल
पट्टियों में लिपटी एक साल के नन्हे शाहिद की टांगें. यह तस्वीर दिमाग में जितनी जिज्ञासा पैदा करती है, उससे कहीं ज्यादा त्रासदी को दर्शाती है. शाहिद की दादी म्यांमार के सैनिकों से बचकर भाग रही थी कि बच्चा गोद से गिर गया. यह तस्वीर कॉक्स बाजार में रेड क्रॉस के एक अस्पताल में ली गयी. (आगे की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं.)
तस्वीर: Reuters/H. McKay
कालाबारो, 50 साल
50 साल की कालाबारो म्यांमार के रखाइन प्रांत के मुंगदूत गांव में रहती थी. गांव में म्यांमार के सैनिकों ने आग लगा दी. सब कुछ भस्म हो गया है. कालाबारो के पति, बेटी और एक बेटा मारे गये. कालाबारो घंटों तक मरने का बहाना बनाकर लेटी ना रहती तो वह भी नहीं बचती. लेकिन अपना दाया पैर वह न बचा सकी.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
सितारा बेगम, 12 साल
ये पैर 12 साल की सितारा बेगम के हैं. जब सैनिकों ने उसके घर में आग लगायी तो उसके आठ भाई बहन तो घर से निकल गये, लेकिन वह फंस गयी. बाद में उसे निकाला गया, लेकिन दोनों पैर झुलस गये. बांग्लादेश में आने के बाद उसका इलाज हुआ. वह ठीक तो हो गयी लेकिन पैरों में उंगलियां नहीं बचीं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
नूर कमाल, 17 साल
17 साल के नूर कमाल के सिर पर ये घाव हिंसा की गवाही देते हैं. वह अपने घर में छिपा था कि सैनिक आए, उसे बाहर निकाला और फिर चाकू से उसके सिर पर हमला किया गया. सिर में लगी चोटें ठीक हो गयी हैं, लेकिन उसके निशान शायद ही कभी जाएं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
अनवारा बेगम, 36 साल
अपने घर में सो रही 36 वर्षीय अनवारा बेगम की जब आंख खुली तो आग लगी हुई थी. जलती हुई एक चिंगारी ऊपर गिरी और नाइलोन का कपड़ा उनके हाथों से चिपक गया. वह कहती हैं, "मुझे तो लगा कि मैं बचूगीं नहीं, लेकिन अपने बच्चों की खातिर जीने की कोशिश कर रही हूं."
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मुमताज बेगम, 30 साल
30 साल की मुमताज बेगम के घर में घुसे सैनिकों ने उससे कीमती सामान लेने को कहा. जब मुमताज ने अपनी गरीबी का हाल बताया तो सैनिकों ने कहा, "पैसा नहीं है तो हम तुम्हें मार देंगे." और घर में आग लगा दी. उसके तीन बेटे मारे गये और उसे लहुलुहान कर दिया गया.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
इमाम हुसैन, 42 साल
इमाम हुसैन की उम्र 42 साल है. एक मदरसे में जाते वक्त हुसैन पर तीन लोगों ने हमला किया. इसके अगले ही दिन उसने अपने दो बच्चों और पत्नी को गांव के अन्य लोगों के साथ बांग्लादेश भेज दिया. इसके बाद वह भी इस हालात में कॉक्स बाजार पहुंचा.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मोहम्मद जुबैर, 21 साल
21 साल के मोहम्मद जुबैर के शरीर की यह हालात उसके गांव में एक धमाके का कारण हुई. जुबैर का कहना है, "कुछ हफ्तों तक मुझे कुछ दिखायी ही नहीं देता था." बांग्लादेश पहुंचने के बाद कॉक्स बाजार के एक अस्पताल में उसका 23 दिनों तक इलाज चला.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
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कैसे हो पहचान?
मानव तस्करी के खिलाफ भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन इम्पल्स एनजीओ नेटवर्क की संस्थापक हसीना खारभीह कहती हैं कि उनकी संस्था भारत में 15 रोहिंग्या लड़कियों को उनके परिवार से मिलाने के लिए काम कर रही हैं. वह बताती हैं, "इन लड़कियों को छह से आठ साल पहले तस्करी के जरिए भारत लाकर बेच दिया गया. उन्हें यौन दास बनाया गया या फिर उनकी शादियां कराई गईं. अब वे सरकारी शिविरों में रह रही हैं. हम इनमें से किसी भी लड़की को अभी तक उसके परिवार के पास नहीं भेज पाए हैं क्योंकि म्यांमार में उनके परिवारों को ढूंढ़ा नहीं जा सका है."
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि भारत में लड़कियों को बेचे जाने के बहुत से मामले हैं. लेकिन उनकी पहचान कर पाना अकसर मुश्किल होता है. इंसानी तस्करी के खिलाफ काम करने वाले एक एनजीओ जस्टिस एंड केयर के आड्रियान फिलिप्स कहते हैं, "भाषा से जुड़ी समस्याओं के कारण रोहिंग्या या बांग्लादेशी के तौर पर उनकी पहचान करना मुश्किल होता है क्योंकि उनकी भाषा एक ही जैसी है."
रहीमा अब नूह में अपने दो बच्चों के साथ टिन और प्लास्टिक शीट से बनी एक झोपड़ी में रहती है. वह म्यांमार में रह रही अपनी मां के संपर्क में है. वह कहती है, "मैं घरों में काम करती हूं और महीने के 1200 रुपये कमाती हूं. लेकिन अगर में वापस अपनी मां के पास चली गई तो मेरे बच्चों को कौन खाना खिलाएगा?"
एके/आईबी (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)
दुनिया में कहां-कहां बसे हैं रोहिंग्या मुसलमान
रोहिंग्या मुसलमानों के मसले पर संयुक्त राष्ट्र समेत पूरी दुनिया म्यांमार के रुख पर सवाल उठा रही है. भारत में तो रोहिंग्या मुसलमानों का मामला न्यायालय तक पहुंच गया है. एक नजर उन देशों पर जहां रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं.
तस्वीर: DW/M. Mostqfigur Rahman
म्यांमार
म्यांमार में गरीबी और मुफलिसी का जीवन बिता रहे ये रोहिंग्या मुसलमान देश के रखाइन प्रांत को अपना गृहप्रदेश मानते हैं. आंकड़ों के अनुसार म्यांमार में तकरीबन 6 लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं.
तस्वीर: DW/M. Mostqfigur Rahman
भारत
देश में तकरीबन 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. भारत की मोदी सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया है और इन्हें वापस भेजने की बात कही है. फिलहाल मामला उच्चतम न्यायालय में है.
तस्वीर: Reuters
बांग्लादेश
म्यांमार से भागे शरणार्थी बांग्लादेश में ही शरण ले रहे हैं. बांग्लादेश में तकरीबन 9 लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. बांग्लादेश सरकार, म्यांमार से बार-बार इन्हें वापस लेने की बात कह रही है लेकिन म्यांमार सरकार इन्हें बांग्लादेशी करार देती है.
तस्वीर: Getty Images/A. Joyce
पाकिस्तान
दुनिया के तमाम मुस्लिम देश रोहिंग्या मुसलमानों की हालत पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन मुस्लिम राष्ट्रों में भी रोहिंग्या समुदाय की हालत कोई बहुत अच्छी नहीं है. पाकिस्तान में 40 हजार से 2.50 लाख तक रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Soomro
थाईलैंड
भारत के साथ सांस्कृतिक रूप से जुड़ाव रखने वाले थाईलैंड में भी तकरीबन 5000 रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. इनमें से अधिकतर ऐसे शरणार्थी हैं जो म्यांमार से भाग कर थाईलैंड आये और वहीं बस गये.
तस्वीर: DW/A. Rahman Rony
मलेशिया
म्यांमार के रखाइन प्रांत में हुई हिंसा का विरोध मलेशिया में भी हुआ था. मलेशिया में तकरीबन एक लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं जो म्यांमार और बांग्लादेश में रहने वाले रोहिंग्या समुदाय से हमदर्दी रखते हैं.
तस्वीर: Getty Images/G.Chai Hin
सऊदी अरब
सुन्नी बहुल मुस्लिम समुदाय वाले सऊदी अरब में भी तकरीबन 2 लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. लेकिन म्यांमार के साथ अपने कारोबारी हितों के चलते सऊदी अरब के तेवरों में रोहिंग्या मसले पर वैसी तल्खी नजर नहीं आती जैसा अन्य मुस्लिम देश अपनाये हुए हैं.