भारत में कोविड जांच किट के उत्पादन के साथ जांच की कीमत गिरी है. पहले जहां हजारों रुपये लगते थे अब वह दस गुना तक कम हो गया है.
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जैसे ही भारत में कोरोना महामारी की पहली लहर शुरू हुई सांची जावा और उनके 59 वर्षीय पिता हरीश जावा ने महसूस किया कि उनमें कोविड-19 संक्रमण के लक्षण हैं. उन्होंने बिना देर किए खुद को अलग-थलग कर लिया और जांच कराने का फैसला किया. लेकिन 2020 के वसंत के दौरान यह कोई आसान काम नहीं था.
दिल्ली के कई निजी लैब को बाप-बेटी को कई फोन करने पड़े आरटी-पीसीआर जांच कराने के लिए जो कि उच्च मानक के होते हैं. उस समय में हाई स्टैंडर्ड जांच की कीमत करीब 70 डॉलर या 5 हजार रुपये थी. 29 साल की सांची डिजिटल मार्किंटिंग का काम करती हैं, तो उनके पिता एक सफल कारोबारी हैं. लेकिन अधिकांश भारतीयों के लिए इस तरह की जांच पहुंच से बाहर थी.
सांची कहती हैं, ''यह (आरटी-पीसीआर जांच) आम इंसान के लिए सुलभ होना चाहिए और यह कराने के लिए हर किसी को सक्षम होना चाहिए.''
एक साल बाद अधिकतर भारतीय पीसीआर जांच कम कीमत में करा सकते हैं. ऐसा बड़े पैमाने पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी के कारण संभव हो पाया है. InDx नाम की कंपनी ने भारत में ही बुनियादी ढांचे को स्थापित किया है. कंपनी भारत में ऐसी किट का निर्माण कर रही है.
कहां कहां पहुंची वैक्सीन
कोविड-19 वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने के लिए दुनियाभर के सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी दूभर यात्राएं कर रहे हैं. उनका काम है वैक्सीन को उन जगहों पर ले जाना जहां आना-जाना आसान नहीं है. मिलिए, ऐसे ही लोगों से.
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पहाड़ की चढ़ाई
दक्षिणी तुर्की में दूर-दराज पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने के लिए सिर्फ स्वास्थ्यकर्मी होना काफी नहीं है. उन्हें शारीरिक रूप से तंदुरुस्त और मजबूत भी होना पड़ता है क्योंकि पहाड़ चढ़ने पड़ते हैं. डॉ. जैनब इरेल्प कहती हैं कि लोग अस्पताल जाना पसंद नहीं करते तो हमें उनके पास जाना पड़ता है.
तस्वीर: Bulent Kilic/AFP
बर्फीली यात्राएं
पश्चिमी इटली के ऐल्पस पहाड़ी के मारिया घाटी में कई बुजुर्ग रहते हैं जो वैक्सिनेशन सेंटर तक नहीं पहुंच सकते. 80 साल से ऊपर के लोगों को घर-घर जाकर वैक्सीन लगाई जा रही है.
तस्वीर: Marco Bertorello/AFP
हवाओं के उस पार
अमेरिका के अलास्का में यह नर्स युकोन नदी के किनारे बसे कस्बे ईगल जा रही है. उसके बैग में कुछ ही वैक्सीन हैं क्योंकि ईगल सौ लोगों का कस्बा है जहां आदिवासी लोग रहते हैं. उन्हें प्राथमिकता दी जा रही है.
तस्वीर: Nathan Howard/REUTERS
मनाना भी पड़ता है
दक्षिणी-पश्चिमी कोलंबिया के पहाड़ी इलाकों में 49 साल के ऐनसेल्मो टूनूबाला का काम सिर्फ वैक्सीन ले जाना नहीं है. उन्हें वैक्सीन की अहमियत भी समझानी पड़ती है क्योंकि कुछ आदिवासी समूह दवाओं से ज्यादा जड़ी-बूटियों पर भरोसा करते हैं.
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कई-कई घंटे चलना
मध्य मेक्सिको नोवा कोलोन्या इलाके में ये लोग चार घंटे पैदल चलकर टीकाकरण केंद्र पहुंचे. ये हुइशोल आदिवासी समूह के लोग हैं.
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नाव में सेंटर
ब्राजील के रियो नेग्रो में नोसा सेन्योरा डो लिवरामेंटो समुदाय के लोगों तक वैक्सीन नाव पर बने एक टीकाकरण केंद्र के जरिए पहुंची है.
तस्वीर: Michael Dantas/AFP
अंधेरे में उजाला
ब्राजील के इस आदिवासी इलाके में बिजली नहीं पहुंची है लेकिन वैक्सीन पहुंच गई है. 70 साल की रैमुंडा नोनाटा को वैक्सीन की पहली खुराक मोमबत्ती की रोशनी में मिली.
तस्वीर: Tarso Sarraf/AFP
झील के उस पार
यूगांडा की सबसे बड़ी झील बनयोन्यनी के ब्वामा द्वीप पर रहने वालों को वैक्सीन लगवाने के लिए नाव से आना पड़ता है.
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सब जल-थल
जिम्बाब्वे के जारी गांव में पहुंचने के लिए बनी सड़क टूट गई है. नदी पार करने का यही तरीका है लेकिन वैक्सीन तो पहुंचेगी.
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जापान के गांव
जापान में शहर भले चकाचौंध वाले हों, आज भी बहुत से लोग दूर-दराज इलाकों में रहते हैं. जैसे किटाएकी में इस बुजुर्ग के लिए स्वास्थ्यकर्मी घर आए हैं टीका लगाने.
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बेशकीमती टीके
इंडोनेशिया में टीकाकरण जनवरी में शुरू हो गया था. बांडा आचेह से मेडिकल टीम नाव के रास्ते छोटे छोटे द्वीपों पर पहुंची. टीके इतने कीमती हैं कि सेना मेडिकल टीम के साथ गई.
तस्वीर: Chaideer Mahyuddin/AFP
दूसरी लहर के बीच
भारत में जब कोरोना वायरस चरम पर था, तब वैक्सीनेशन जारी था. लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित बहाकजरी गांव में मेडिकल टीम के पास पहुंचे लोग मास्क आदि से बेपरवाह दिखाई दिए. (ऊटा श्टाइनवेयर)
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भारत ने फरवरी 2020 में कोविड-19 परीक्षण करने में सक्षम 14 प्रयोगशालाओं को अगले छह महीनों में 1,500 से अधिक कर दिया. देश में अब लगभग 3,000 ऐसी प्रयोगशालाएं हैं.
आरटी-पीसीआर परीक्षणों की कीमत पांच सौ के करीब आ चुकी है. एक समय में देश के कुछ हिस्सों में यह दस गुना अधिक थी.
भारत की कोविड-19 परीक्षण क्षमता में वृद्धि से देश अब तक 58 करोड़ जांच कर पाया है. देश में दैनिक उपयोग की जाने वाली 80 प्रतिशत परीक्षण किट अब पूरी तरह से भारत में निर्मित है.
एए/सीके (एएफपी)
त्योहारों में मास्क का कितना रख रहे ख्याल?
भारत में कोविड के मामले जिस तरह से घट रहे हैं उसी तरह से लोग त्योहार के मौसम में मास्क और सामाजिक दूरी को लेकर कम गंभीर नजर आ रहे हैं. यह खुलासा एक सर्वे में हुआ है.
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मास्क को लेकर कितने अलर्ट
लोकल सर्किल्स द्वारा सितंबर में किए गए सर्वेक्षण में केवल 13 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके क्षेत्र या जिले में मास्क का अनुपालन प्रभावी है. जबकि केवल 6 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया कि उनके क्षेत्र या शहर में सामाजिक दूरी का अच्छा अनुपालन है.
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यात्रा के समय मास्क की क्या स्थिति
सर्वे में शामिल 65 हजार लोगों से पूछा गया कि यात्रा के समय मास्क की क्या स्थिति दिखती है. 30 फीसदी लोगों ने कहा कि यात्रा के दौरान लोग मास्क लगाने के नियम का पालन करते हैं.
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सामाजिक दूरी का क्या हाल
कोविड प्रोटोकॉल के तहत सामाजिक दूरी सबसे महत्वपूर्ण है. सर्वे में शामिल 55 फीसदी लोगों ने बताया कि पिछले 30 दिनों में सबसे कम सोशल डिस्टेंसिंग बाजारों में दिखी. 12 प्रतिशत ने बताया कि गलियों और सड़कों पर सामाजिक दूरी कम दिखी.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे हो रहा
देश के 366 जिलों के लोगों से प्रतिक्रियाएं ली गई और उनसे पूछा गया कि आपके शहर, जिले या क्षेत्र में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे हो रहा है. 63 प्रतिशत ने कहा कि इसको हल्के तरीके से लिया जा रहा है. केवल 6 प्रतिशत ने कहा अच्छे तरीके से.
तस्वीर: AMIT DAVE/REUTERS
टीकाकरण केंद्रों में मास्क नियमों का पालन
सर्वे में शामिल 61 फीसदी लोगों ने माना कि टीकाकरण केंद्रों पर मास्क नियमों का अनुपालन किया जा रहा था, जबकि 39 फीसदी लोगों ने माना कि उनके केंद्रों पर मास्क और सामाजिक दूरी का पालन नहीं किया जा रहा था.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
मामले घटे, आवाजाही बढ़ी
69 फीसदी लोगों ने बताया कि वे पिछले एक महीने के दौरान ऐसी जगह जरूर गए हैं जहां एक बंद बिल्डिंग में उन्हें काम करना पड़ा है. इन जगहों में अस्पताल, मॉल, शॉपिंग सेंटर या धार्मिक भवन शामिल रहे हैं.