त्रिपुरा में हुई मुस्लिम-विरोधी हिंसा का असर महाराष्ट्र के कई इलाकों पर पड़ा है. अमरावती में हिंसक घटनाओं के बाद बीजेपी के नेता और पूर्व मंत्री अनिल बोंडे समेत 50 से भी ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है.
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पूरा मामला बीते शुक्रवार 12 नवंबर को शुरू हुआ जब त्रिपुरा में मुसलमानों के खिलाफ हुई हिंसा के विरोध में रजा फाउंडेशन नामक संस्था ने अमरावती में एक जुलूस निकाला. जुलूस के बाद पथराव की कुछ घटनाएं भी हुईं, जिनके बाद बीजेपी ने अगले दिन शहर में बंद आयोजित करने की घोषणा की.
अगले दिन बीजेपी के बंद के दौरान काफी हिंसा हुई, जिसमें कुछ वाहन और सिर्फ मुसलमान दुकानदारों की दुकानें जला दी गईं.
बीजेपी के कई नेता गिरफ्तार
बल्कि पुलिस अधिकारियों ने कुछ मीडिया संगठनों को बताया कि शहर के कोतवाली इलाके में तो बीजेपी, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता इतनी बड़ी संख्या में इकठ्ठा हुए कि वो पुलिस पर भी हावी हो गए.
कम से कम नौ पुलिसकर्मियों के घायल होने की और एक पुलिस वाहन जला दिए जाने की खबर है. हालात इतने गंभीर हो गए कि मुंबई से पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को अमरावती जाना पड़ा और रविवार को शहर में कर्फ्यू लागू कर दिया गया.
शहर के अलग अलग थानों में दोनों दिनों की हिंसा को लेकर कम से कम 26 एफआईआर दर्ज की गई हैं और कम से कम 130 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तार किए गए लोगों में पूर्व कृषि मंत्री अनिल बोंडे, महापौर चेतन गवांडे और बीजेपी प्रवक्ता शिवराय कुलकर्णी समेत कई बीजेपी नेता शामिल हैं.
बोंडे और लगभग सभी अभियुक्तों को बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया. पुलिस ने कहा है कि एक और पूर्व मंत्री प्रवीण पोते पाटिल भी इस मामले में वांछित अभियुक्त हैं. पुलिस ने कहा कि कई अभियुक्तों से चाकू और तलवारें भी बरामद हुई हैं.
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अभी भी तनाव बरकरार
हालांकि मीडिया में आई कुछ खबरों में यह दावा भी किया जा रहा है कि शनिवार के बंद में राज्य में सत्ताधारी पार्टी शिव सेना के भी कुछ कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया था. इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक शिव सेना के 15-20 कार्यकर्ता पार्टी के संस्थापक बल ठाकरे की तस्वीर लिए बंद में शामिल हुए थे.
इनमें अमरावती शहर के शिव सेना प्रमुख पराग गुडाढ़े, जिला प्रमुख राजेश वानखेड़े और अमरावती से कॉर्पोरेटर प्रशांत वानखेड़े शामिल थे. प्रशांत वानखेड़े ने अखबार को बताया कि उनके नेतृत्व में शिव सैनिक अपने आप वहां इकठ्ठा हुए थे और इसका पार्टी से कोई लेना देना नहीं था.
इस समय भी महाराष्ट्र पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी अमरावती में ही मौजूद हैं और अमरावती जिले के चार शहरों में कर्फ्यू लागू है. इसके अलावा मालेगांव और नांदेड़ से भी हिंसा और तनाव की खबरें आई हैं.
त्रिपुरा में अक्टूबर में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की कई घटनाओं की रिपोर्ट आई थी. इन्हीं घटनाओं के खिलाफ अमरावती में जुलूस का आयोजन किया गया था. त्रिपुरा की घटनाओं के बाद त्रिपुरा पुलिस पर कई पत्रकारों के खिलाफ अनुचित कार्रवाई के भी आरोप लगे.
हिंसा की रिपोर्टिंग करने त्रिपुरा गईं दो महिला पत्रकारों को त्रिपुरा पुलिस के कहने पर असम में गिरफ्तार कर लिया गया था. त्रिपुरा की एक अदालत ने अब उन्हें जमानत दे दी है. इसके अलावा त्रिपुरा पुलिस सोशल मीडिया पर फर्जी खबर फैलाने के आरोप में कम से कम 102 लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया था.
दिल्ली दंगे: तब और अब
दिल्ली दंगों के एक साल बाद दंगा ग्रस्त इलाकों में लगता है कि पीड़ित परिवार आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या इस तरह की हिंसा का दर्द भुलाना आसान है? तब और अब के बीच के फर्क की पड़ताल करती डीडब्ल्यू की कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत का एक साल
दिल्ली दंगों के एक साल बाद, क्या हालात हैं दंगा ग्रस्त इलाकों में.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
चेहरे पर कहानी
एक दंगा पीड़ित महिला जिनसे 2020 में पीड़ितों के लिए बनाए गए एक शिविर में डीडब्ल्यू ने मुलाकात की थी. अपनों को खो देने का दर्द उनकी आंखों में छलक आया था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
एक साल बाद
यह महिला भी उसी शिविर में थी और कुछ महीने बाद अपने घर वापस लौटी. अब वो और उनका परिवार अपने घर की मरम्मत करा उसकी दीवारों पर नए रंग चढ़ा रहा है, लेकिन उनकी आंखों में अब भी दर्द है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
आगजनी
दंगों में हत्याओं के अलावा भारी आगजनी भी हुई थी. शिव विहार तिराहे पर स्थित इस गैराज और उसमें खड़ी गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
एक साल बाद गैराज किसी और को किराए पर दिया जा चुका है. स्थानीय लोगों का दावा है बीते बरस नुकसान झेलने वालों में से किसी को भी अभी तक हर्जाना नहीं मिला है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत
गैराज पर हमला इतना अचानक हुआ था कि उसकी देख-रेख करने वाले को बर्तनों में पका हुआ खाना छोड़ कर भागना पड़ा था. दंगाइयों ने पूरे घर को जला दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
कमरे की मरम्मत कर उसे दोबारा रंग दिया गया है. देख-रेख के लिए नया व्यक्ति आ चुका है. फर्नीचर नया है, जगह वही है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
बर्बादी
दंगों में इस घर को पूरी तरह से जला दिया गया था. तस्वीरें लेने के समय भी जगह जगह से धुआं निकल रहा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद भी यह घर उसी हाल में है. यहां कोई आया नहीं है. मलबा वैसे का वैसा पड़ा हुआ है. दीवारों पर कालिख भी नजर आती है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सब लुट गया
दंगाइयों ने यहां से सारा सामान लूट लिया था और लकड़ी के ठेले को आग लगा दी थी. जाने से पहले दंगाइयों ने वहां के घरों को भी आग के हवाले कर दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
जिंदगी अब धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है. नया ठेला आ चुका है और उसे दरवाजे के बगल में खड़ा कर दिया गया है. अंदर एक कारीगर काम कर रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सड़क पर ईंटों की चादर
दंगों के दौरान जाफराबाद की यह सड़क किसी जंग के मैदान जैसी दिख रही थी. दो दिशाओं से लोगों ने एक दूसरे पर जो ईंटों के टुकड़े और पत्थर फेंके थे वो सब यहां आ गिरे थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज यह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है. जन-जीवन सामान्य हो चुका है. आगे तिराहे पर भव्य मंदिर बन रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दुकान के बाद दुकान लूटी गई
मुस्तफाबाद में एक के बाद एक कर सभी दुकानें लूट ली गई थीं. हर जगह सिर्फ खाली कमरे और टूटे हुए शटर थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज उस इलाके में दुकानें फिर से खुल गई हैं. लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मुश्किल से गुजर-बसर हो रही है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
बंजारे भी नहीं बच पाए
इस दीवार के सहारे झुग्गी बना कर और वहां चाय बेचकर यह बंजारन अपना जीविका चला रही थी. दंगाइयों ने इसकी चाय की छोटी सी दुकान को भी नहीं छोड़ा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
उसी लाल दीवार के सहारे बंजारों ने नए घर बना तो लिए हैं, लेकिन वो आज भी इस डर में जीते हैं कि रात के अंधेरे में कहीं कोई फिर से आग ना लगा दे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
टायर बाजार
गोकुलपुरी का टायर बाजार दंगों में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जगहों में था. लाखों रुपयों का सामान जला दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
टायर बाजार फिर से खुल चुका है. वहां फिर से चहलकदमी लौट आई है लेकिन दुकानदार अभी तक दंगों में हुए नुक्सान से उभर नहीं पाए हैं.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
जंग का मैदान
जाफराबाद, मुस्तफाबाद, शिव विहार समेत सभी इलाकों की शक्ल किसी जंग के मैदान से कम नहीं लगती थी. जहां तक नजर जाती थी, सड़क पर सिर्फ ईंट, पत्थर और मलबा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद यह सड़क किसी भी आम सड़क की तरह लगती है, जैसे यहां कुछ हुआ ही ना हो. लेकिन लोगों के दिलों के अंदर दंगों का दर्द और मायूसी आज भी जिंदा है. (श्यामंतक घोष)