जर्मनी में फिर एक मुस्लिम महिला पर हमला हुआ है. हालांकि ऐसे मामलों में काफी कमी देखी जा रही है. बीते साल के मुकाबले मुसलमानों पर इस साल कम हमले हुए हैं.
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जर्मनी की राजधानी बर्लिन में बस स्टॉप पर खड़ी एक बुर्कानशीं पर एक व्यक्ति ने हमला कर दिया. आरोपी ने महिला का स्कार्फ फाड़ डालने की कोशिश की और उसे घूंसे मार-मार कर घायल कर दिया. पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक 41 साल की यह महिला सीरिया से आई एक रिफ्यूजी मुसलमान है. वह बर्लिन के शोनबर्ग बस स्टॉप इंतजार कर रही थी कि उसके बगल में खड़ा शख्स उस पर टूट पड़ा. उसने महिला के सिर से स्कार्फ फाड़ने की कोशिश की. पहले तो महिला अपना बचाव कर गई. लेकिन आरोपी ने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया और घूंसे बरसाने लगा. वहां खड़े लोग महिला को बचाने के बजाय भाग गए.
महिला को बाजू, टांग और सिर पर चोट आई है. घटना मंगलवार की है जबकि पुलिस में रिपोर्ट बुधवार को लिखाई गई.
जुलाई महीने में कील शहर में भी एक मुस्लिम महिला पर इसी तरह का हमला हुआ था. तब हमलावर ने महिला को मारने के साथ-साथ इस्लाम विरोधी नारे भी लगाए थे.
जर्मन समाज की उथल-पुथल समझनी है तो ये तस्वीरें देखिए
पेगीडा: जर्मन समाज की उथल पुथल
जर्मनी में अक्टूबर 2014 से चले आ रहे पेगीडा के नियमित विरोध प्रदर्शन अब एक बड़े इस्लामीकरण विरोधी अभियान की पहचान बन गए हैं. लाखों शरणार्थी भी निशाने पर हैं. 'पेगीडा' के उभार से जुड़े हैं जर्मनी के कई सामाजिक मुद्दे.
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5 जनवरी 2015 यानि नए साल के पहले ही सोमवार की शुरुआत जर्मनी के कई शहरों में विरोध प्रदर्शनों के साथ हुई. जर्मनी के कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे इस्लाम विरोधी प्रदर्शन दिखाते है कि बड़ी संख्या में आप्रवासियों के मुद्दे पर देश बंटा हुआ है. आप्रवासन का समर्थन करने वाले लोग अनेकता में एकता की भावना को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग के गठन की मांग कर रहे हैं.
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जर्मनी के पूर्व में स्थित ड्रेसडेन शहर में हर हफ्ते रैलियां निकाली जा रही हैं. 22 दिसंबर 2014 की रैली में तो 17 हजार से भी ज्यादा लोग शामिल हुए. पेगीडा रैलियों का विरोध करने वाले कई गुट हैं. दिसंबर में पेगीडा ने अपना घोषणापत्र जारी कर "आपराधिक किस्म के शरणार्थियों और आप्रवासियों को बिल्कुल बर्दाश्त ना किए जाने" की मांग की.
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जर्मनी के पूर्व में स्थित ड्रेसडेन शहर में हर हफ्ते रैलियां निकाली जा रही हैं. 22 दिसंबर 2014 की रैली में तो 17 हजार से भी ज्यादा लोग शामिल हुए. पेगीडा रैलियों का विरोध करने वाले कई गुट हैं. दिसंबर में पेगीडा ने अपना घोषणापत्र जारी कर "आपराधिक किस्म के शरणार्थियों और आप्रवासियों को बिल्कुल बर्दाश्त ना किए जाने" की मांग की.
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'पश्चिम के इस्लामीकरण के खिलाफ यूरोप के राष्ट्रवादी' यानि पेगीडा के समर्थकों का मानना है कि इस्लामीकरण से ईसाई धर्म की संस्कृति और परंपराओं को खतरा है. वहीं हाल ही में उभरा यूरोप विरोधी दल 'अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी' (एएफडी) खुद को जर्मन समाज के सच्चे प्रतिनिधियों के तौर पर पेश कर रहा है.
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जर्मनी में आम लोगों के बीच इस मत को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है कि रिफ्यूजी आबादी की मदद करने में खर्च होने वाले धन के कारण जर्मन नागरिकों की पेंशन कम हो जाएगी और गरीबी फैलेगी.
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हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी की सोशल साइंटिस्ट नाइका फोरुटान ने हाल ही के एक सर्वे का हवाला देते हुए बताया कि आधे से ज्यादा जर्मन अपने पड़ोस में मस्जिद बनाए जाने के खिलाफ हैं. वहीं 40 फीसदी का मानना है कि केवल जर्मन माता-पिता के बच्चों को ही जर्मन माना जाना चाहिए. वे बताती हैं कि जो लोग विदेशियों और प्रवासियों के बिल्कुल संपर्क में नहीं हैं वे उनका ज्यादा विरोध करते हैं.
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जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने नए साल के अपने संदेश में देश के नागरिकों से शरणार्थियों की मदद का आह्वान किया. उन्होंने जनता से शरणार्थियों और इस्लामीकरण का विरोध करने वाली पेगीडा रैलियों का विरोध करने की अपील की. केवल 2014 में ही जर्मनी में दो लाख से ज्यादा शरणार्थी अर्जियां आईं.
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हालांकि मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का यह पहला मामला नहीं है लेकिन एक रिपोर्ट बताती है कि 2016 कमोबेश शांत रहा है. पहले छह महीनों में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के मामलों में कमी आई है. राइनिषे पोस्ट की एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के मुताबिक 2015 की तुलना में 2016 में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के कम मामले दर्ज हुए हैं. इस रिपोर्ट के हिसाब से प्रवासियों के लिए बनाए गए कैंप अब भी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के ठिकाने बने हुए हैं.
राइनिषे पोस्ट ने बताया है कि 2016 के पहले छह महीनों में मस्जिदों पर या मुसलमानों पर कुल 29 हमले हुए हैं. बीते साल के आखिरी छह महीनों में 44 ऐसे हमले हुए थे. हालांकि प्रवासियों के खिलाफ, खासकर इस्लाम के खिलाफ प्रदर्शनों में कोई कमी नहीं आई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2016 की पहली छमाही में ऐसी 129 रैलियां हुईं. पहले तीन महीने में 80 रैलियां हुई थीं जबकि बाद के तीन महीने कमोबेश शांत रहे. इस दौरान 49 रैलियां हुईं.
तस्वीरें: कोई सरहद ना इन्हें रोके
कोई सरहद ना इन्हें रोके...
इंजन वाले विमान के लिए भी 14,000 किलोमीटर की उड़ान भरना कठिन चुनौती है. मगर पानी के ये पक्षी कितने ही महासागरों और महाद्वीपों को पार कर जाते हैं वो भी बिना किसी जेट इंजन की मदद के.
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अफसर पक्षी
सारस परिवार के ये पक्षी किसी सैनिक अधिकारी जैसी अपनी चाल ढाल के कारण ही अफसर कहलाते हैं. दुर्भाग्य से इन अफसरों के पास अब कोई जमीन नहीं बची है. दुर्लभ हो चुके इन पक्षियों की केवल दो ब्रीडिंग कॉलोनियां भारत और कंबोडिया में पाई जाती हैं. इसके अलावा साल भर ये दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में घूमते हैं.
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लंबी दूरी के चैंपियन
आर्कटिक तटों के किनारे प्रजनन करने वाले ये बगुले की किस्म वाले पक्षी जाड़ों में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड चले जाते हैं. 2007 में ऐसे एक पक्षी को टैग कर उस पर नजर रखी गई. वह पक्षी लगातार नौ दिनों तक उड़ते हुए 11,600 किलोमीटर की दूसरी तय कर पश्चिमी अलास्का से न्यूजीलैंड पहुंचा था, जो कि सभी जीव जन्तुओं में एक रिकॉर्ड है.
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'दि बर्ड'
60 के दशक में आई हिचकॉक की मशहूर फिल्म 'दि बर्ड' जिस बर्ड पर आधारित थी वह यही है. पानी के बिल्कुल साथ साथ उड़ने वाले ये पक्षी वसंत ऋतु में प्रशांत और अटलांटिक सागर पार करते हुए ऊपर जाते हैं और पतझड़ में नीचे की ओर आते हुए करीब 14,000 किलोमीटर की दूसरी तय कर लेते हैं. ये 60 मीटर ऊपर से पानी में डाइव भी लगा सकते हैं.
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स्नो बर्ड
आर्कटिक टर्न्स ने ठंड से निपटने की बहुत अच्छी तरकीब निकाली है. ये उत्तरी गोलार्ध के आर्कटिक की गर्मियों में प्रजनन करती हैं और फिर 80,000 किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा कर दूसरे छोर अंटार्कटिक की गर्मियों का आनंद लेने पहुंच जाती हैं. इस तरह वे हर बार जाड़ों से बच जाती हैं.
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पवित्र चिड़िया
गंभीर संकट में पड़ चुकी यह नॉर्दर्न बॉल्ड आइबिस अब केवल दक्षिणी मोरक्को में ही पाई जाती है. पहले यह यूरोप, अफ्रीका और मध्यपूर्व तक में आप्रवासन किया करती थी. प्राचीन मिस्र में इसे पूज्य माना जाता था और नोआह की नाव में भी इसे रखे जाने की मान्यता है. कहते हैं कि तुर्की हजयात्री इसे देखते हुए मक्का तक पहुंच जाया करते थे.
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कॉमनर क्रेन
यह क्रेन पक्षी उत्तरी यूरोप और एशिया के कई इलाकों में दिखता है. प्रजनन के लिए यह दलदली इलाकों में चली जाती है और जाड़ों में उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका, इस्राएल और ईरान तक पहुंच जाती है.
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दुखद अंत
इन बत्तखों ने उत्तरी अफ्रीका से भूमध्यसागर के ऊपर से होते हुए अल्बेनिया तक की दूरी तय कर ली थी लेकिन पहुंचते ही शिकारियों की गोली की शिकार बन गईं. हर साल शिकारी भोजन, पैसे या केवल मजे के लिए यहां लाखों प्रवासी पक्षियों को मार गिराते हैं.
तस्वीर: AP Photo/David Guttenfelder on assignment for National Geographic Magazine
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जर्मनी में एक के बाद एक कई ऐसे जानलेवा हमले हुए हैं जिनमें प्रवासियों ने सार्वजनिकों जगहों पर गोलियां चलाकर या बम धमाके करके मासूम लोगों को अपना शिकार बनाया. ऐसे ज्यादातर मामलों में मुसलमान ही आरोपी थे. हालांकि हर मामला आतंकवादी हमला नहीं था लेकिन इससे समाज में एक तरह का डर महसूस किया जा सकता है. और यह डर दोनों तरफ है. स्थानीय लोग भी डरे हुए हैं और प्रवासी भी कह रहे हैं कि वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.