1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
कानून और न्यायभारत

अवैध प्रवासियों का आंकड़ा जुटाएगी मणिपुर और मिजोरम सरकार

प्रभाकर मणि तिवारी
१२ जुलाई २०२३

भारत सरकार ने मणिपुर और मिजोरम से अपने यहां बसे शरणार्थियों का डाटा जुटाने को कहा है. मणिपुर इसके लिए तैयार दिख रहा है लेकिन मिजोरम ने केंद्र को जरा मानवीय होने की सलाह दी है.

पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर और मिजोरम में जातीय हिंसा
तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर दो महीने से भी ज्यादा समय से जातीय हिंसा की चपेट में है और इस हिंसा की चपेट में पड़ोसी मिजोरम भी है. अब यह बात सामने आ चुकी है कि मणिपुर के पर्वतीय इलाकों में पड़ोसी देश म्यांमार से अवैध रूप से आकर बसे लोगों के कब्जे से जंगल की जमीन वापस लेने के अभियान से भड़की नाराजगी के कारण ही राज्य में जातीय हिंसा की शुरुआत हुई थी. अब सरकार ने मणिपुर के साथ ही म्यांमार और बांग्लादेश से मिजोरम में शरण लेने वाली अवैध प्रवासियों का आंकड़ा जुटाने की पहल की है और इसके लिए दोनों राज्य सरकारों को निर्देश भेजे गए हैं. इससे पहले भी मणिपुर सरकार ने एनआरसी लागू करने की बात कही थी. लेकिन विरोध के कारण यह मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.

मणिपुर में बंदूक के सहारे आत्मरक्षा

03:14

This browser does not support the video element.

घुसपैठ और वनभूमि पर कब्जे का मुद्दा

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से ही वहां से भारी तादाद में शरणार्थी मणिपुर के कुकी-चिन बहुल पर्वतीय इलाके में शरण लेते रहे हैं. सीमा के आर-पार रहने वाले इस तबके के रहन-सहन, खान-पान और संस्कृति की समानता के कारण सीमा पार से आने वालों की पहचान का काम मुश्किल है. सीमा के दोनों और बसे लोग कुकी-चिन समुदाय के ही हैं और उनमें रोटी-बेटी का रिश्ता है. इस वजह से मणिपुर के कुकी जनजाति के लोग सीमा पार से आने वाले लोगों को शरण देते रहे हैं.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंहतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

सीमा पार से आने के बाद इन लोगों ने पर्वतीय इलाके में जंगल की जमीन पर कब्जा कर रहना शुरू किया और आजीविका के लिए अफीम की खेती भी शुरू कर दी.  लगातार बढ़ते अतिक्रमण के बाद राज्य सरकार ने इस साल फरवरी में जब इसके खिलाफ अभियान शुरू किया तो कुकी जनजाति के लोगों में नाराजगी बढ़ने लगी थी. उसके बाद मणिपुर हाईकोर्ट के मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर विचार करने संबंधी एक फैसले ने नाराजगी की इस आग में घी डालने का काम किया. राज्य सरकार के अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान जंगल की जमीन पर बन पर अवैध रूप से बने कई चर्च भी ढहा दिए गए थे. सरकार ने अफीम की खेती के खिलाफ भी अभियान चलाया था.

मणिपुर हिंसा से पैदा हुई पड़ोसी मिजोरम में गंभीर दिक्कत

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने बीते महीने पत्रकारों के साथ बातचीत में राज्य में जारी हिंसा के लिए म्यांमार के अवैध प्रवासियों को जिम्मेदार ठहराया था. इससे पहले अक्तूबर, 2022 में मुख्यमंत्री ने लगातार बढ़ती घुसपैठ पर गहरी चिंता जताते हुए कहा था कि सरकार इनका पता लगाने के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण करेगी. मुख्यमंत्री ने स्थानीय लोगों से अपनी अस्मिता, भाषा, संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए अवैध प्रवासियों को शरण नहीं देने की भी अपील की थी. उसी समय उन्होंने राज्य में भी असम की तर्ज पर एनआरसी लागू करने की बात कही थी. सरकार ने तब एक अभियान चला कर कई अवैध प्रवासियों को गिरफ्तार भी किया था.

मणिपुर में शांति बहाली के लिए धरनातस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

मिजोरम के हालात

म्यांमार से भारत आए कुछ परिवारतस्वीर: Viswakalyan Purokayastha/DW

दूसरी ओर, मिजोरम में भी म्यांमार के करीब 40 हजार शरणार्थी सरकार के लिए चिंता का मुद्दा बन गए हैं. इसके अलावा पड़ोसी बांग्लादेश के चटगांव इलाके से भी करीब एक हजार लोगों ने बीते तीन महीने से राज्य में शरण ले रखी है. यहां भी शरण लेने वाले ज्यादातर लोग उसी जातीय समूह का हिस्सा हैं जो मिजोरम के सीमावर्ती इलाकों में रहते हैं. अब मणिपुर में हुई हिंसा के बाद कुकी तबके के आठ हजार लोगों ने पलायन कर राज्य में शरण ली है. खासकर म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों पर नशीली वस्तुओं की तस्करी में शामिल होने के आरोप लगते हैं और इस आरोप में कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है. राज्य सरकार के अलावा कुछ गैर-सरकारी संगठन इन शरणार्थियों के रहने-खाने का इंतजाम करते रहे हैं.

केंद्र का निर्देश

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शरणार्थियों की तेजी से बढ़ती तादाद को ध्यान में रखते हुए मणिपुर में हिंसा शुरू होने के कुछ दिन पहले ही राज्य सरकार को ऐसे लोगों के आंकड़े जुटाने का निर्देश दिया था. लेकिन बड़े पैमाने पर शुरू हुई हिंसा के कारण यह मामला दब गया था. अब एक बार फिर केंद्र की ओर से भेजे गए पत्र में मणिपुर और मिजोरम सरकार से इस कवायद को शुरू करने और सितंबर तक इसे पूरा करने का निर्देश दिया गया है. इसके तहत ऐसे लोगों का बायोमीट्रिक आंकड़ा जुटाया जाएगा.

मणिपुर सरकार ने तो इसके लिए सहमति दे दी है. मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह बताते हैं कि राज्य सरकार ने अवैध प्रवासियों की शिनाख्त की कवायद पहले ही शुरू कर दी थी और हिंसा शुरू होने से पहले तक करीब ढाई हजार ऐसे लोगों की पहचान कर ली गई थी. राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं का कहना है कि केंद्र का ताजा निर्देश राज्य में एनआरसी लागू करने की दिशा में एक ठोस कदम हो सकता है.

​​​​​​कई हफ्ते से भीषण हिंसा देख रहे मिजोरम और मणिपुरतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

लेकिन मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने कहा है कि सरकार को केंद्र का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गए एक पत्र में उन्होंने लिखा है, मैं समझता हूं कि विदेश नीति से जुड़े कुछ मुद्दों पर भारत को सावधानी से आगे बढ़ने की जरूरत है. हम इस मानवीय संकट की अनदेखी नहीं कर सकते. सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के राज्यसभा सांसद के. वानलालवेना के मुताबिक, म्यामांर से आने वाले शरणार्थी परिवार की तरह हैं और इस मानवीय संकट की स्थिति में उनको राज्य से बाहर जाने को नहीं कहा जा सकता.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इन दोनों राज्यों के लिए अवैध प्रवासियों की पहचान और उनको बाहर निकालने का मुद्दा बेहद संवेदनशील है. खासकर मिजोरम में सरकार और स्थानीय लोग तो इसके लिए एकदम तैयार नहीं है. ऐसे में यह देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर कैसे आगे बढ़ती है. दूसरी ओर, मणिपुर में भी फिलहाल इसके लिए हालात अनुकूल नहीं हैं. ऐसे में सितंबर तक की समय सीमा के भीतर इस कवायद का पूरा होना मुश्किल ही नजर आता है.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें