मणिपुर में हिंसा तो थमी लेकिन राजनीति तेज
१५ मई २०२३मणिपुर के जनजातीय समूहों ने अब अपने लिए अलग प्रशासन की मांग उठाई है. दूसरी ओर, मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह समेत राज्य के चार वरिष्ठ मंत्रियों और बीजेपी को शीर्ष नेताओं को फौरी तौर पर दिल्ली तलब के बाद बीरेन सिंह के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं. हिंसा के दौरान बेघर होने वाले हजारों लोग अब भी पड़ोसी मिजोरम और असम में बने अस्थायी राहत शिविरों में दिन गुजार रहे हैं. इस बीच, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में मरने वालो की तादाद बढ़ कर 71 तक पहुंच गई है.
सामान्य स्थिति बहाल नहीं
राज्य में बड़े पैमाने पर सेना और केंद्रीय बलों की तैनाती के बावजूद अब तक हालात सामान्य नहीं हो सके हैं. अब भी खासकर बिष्णुपुर और चूड़ाचांदपुर जिलों के विभिन्न इलाकों से छिटपुट हिंसा की खबरें आ रही हैं. मणिपुर में शनिवार देर रात अराजक तत्वों ने दस घरों को आग के हवाले कर दिया. हिंसा को देखते हुए बीएसएफ की पांच टुकड़ियों को तैनात कर दिया गया है. राज्य सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह बताते हैं, चूड़ाचांदपुर और विष्णुपुर जिलों में हालात सामान्य नहीं हैं. उन्होंने लोगों से किसी भी अफवाह में नहीं फंसने और शांति बनाने में प्रशासन व सेना की मदद करने की अपील की है.
उन्होंने बताया कि मणिपुर के तीन जिलों में कर्फ्यू में पूरी तरह से ढील दी जा रही है. बाकी जिलों में अब भी कुछ घंटों की ही ढील दी जा रही है. चूड़ाचांदपुर में अब भी कर्फ्यू लागू है. राज्य में 178 राहत शिविरों में अब भी 26 हजार से ज्यादा लोग रह रहे हैं. चिन-कुकी-मिजो समुदाय के करीब छह हजार लोग मिजोरम के छह जिलों में अस्थायी राहत शिविरों में रह रहे हैं.
मणिपुर में लगातार तीसरे सप्ताह भी इंटरनेट सेवाएं बंद हैं. सरकार ने 12 मई से और पांच दिनों के लिए राज्य भर में मोबाइल डेटा और ब्रॉडबैंड सेवाओं को निलंबित कर दिया है. इससे आम लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
कहां से शुरू हुआ बवाल
मणिपुर की लगभग 38 लाख की आबादी में से आधे से ज्यादा मैतेयी समुदाय के लोग हैं. मणिपुर की इंफाल घाटी मैतेयी समुदाय बहुल है. मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेयी समुदाय की मांग पर विचार करने और चार सप्ताह के भीतर केंद्र को अपनी सिफारिशें भेजने का निर्देश दिया था. उसी के बाद मणिपुर में मैतेयी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (एटीएसयू) मणिपुर ने एक रैली निकाली थी जो बाद में हिंसक हो गई.
मैतेयी समुदाय के लोगों काी दलील तर्क है कि 1949 में भारतीय संघ में विलय से पूर्व उनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त था. नगा और कुकी जनजाति इस समुदाय को आरक्षण देने के खिलाफ हैं. नगा और कुकी जनजातियों को आशंका है कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से जनजातियों को और दिक्कत होगी.. मौजूदा कानून के अनुसार मैतेई समुदाय को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है.
मणिपुर को राज्य का दर्जा मिलने के बाद से, इसके 20 मुख्यमंत्रियों में से दो को छोड़कर सभी मैतेयी समुदाय से रहे हैं. बाकी दो तांगखुल नागा समुदाय के रहे हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मणिपुर की जनसंख्या 28 लाख है. इनमें से 15 लाख मैतेई हैं, जबकि कुकी की तादाद लगभग आठ लाख है.
स्थानीय लोगों की बढ़ती नाराजगी
मणिपुर में हुई हिंसा के बाद प्रदेश बीजेपी के नाराज नेता और विधायक मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के खिलाफ लामबंद होने लगे हैं. बीते शुक्रवार को बीजेपी भाजपा के आठ विधायकों सहित कुल दस कुकी विधायकों के अलग राज्य की मांग के बाद यह असंतोष और तेज हो गया है. पार्टी के भीतर भी मुख्यमंत्री के खिलाफ विरोध तेज होता जा रहा है. सूत्र बताते हैं पार्टी नेतृत्व बीरेन सिंह से खुश नहीं है. वह हालात का सही आकलन लगाने में नाकाम रहे. इससे आम लोगों के जान-माल के अलावा पार्टी की छवि को भी भारी नुकसान पहुंचा है.
तनाव और अटकलों के बीच ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बुलावे पर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह रविवार को अपने चार वरिष्ठ मंत्रियों के साथ दिल्ली पहुंचे. उन्होंने वहां शाह और भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा से मुलाकात की. इस दौरान सीएम बीरेन सिंह ने पार्टी आलाकमान को राज्य की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया. इस दौरान मणिपुर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ए शारदा देवी भी मौजूद थी.
दोनों समुदायों के बीच तनाव जारी रहने की वजह से बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहा है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की भूमिका से नाराज है. वे मामले को ठीक से निपटने में नाकाम रहे हैं."
अलग प्रशासन की मांग
राज्य में कुकी सशस्त्र संगठन लंबे अरसे से अलग कुकी राज्य की मांग करते रहे हैं. केंद्र सरकार वर्ष 2016 से ही उनसे शांति वार्ता कर रही है. लेकिन अब ताजा हिंसा ने अलग राज्य की मांग को नए सिरे से उकसा दिया है.
मणिपुर विधानसभा में चीन-कुकी-मिजो-जोमी पहाड़ी आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 10 निर्वाचित विधायकों ने अपने क्षेत्र के लिए भारत के संविधान के तहत एक अलग प्रशासन की मांग की है, ताकि "राज्य के साथ शांतिपूर्वक पड़ोसियों के रूप में" रह सकें. उनकी ओर से जारी बयान में कहा है, "मणिपुर में तीन मई, 2023 को चीन-कुकी-मिजो-जोमी पहाड़ी आदिवासियों के खिलाफ मणिपुर की मौजूदा सरकार की ओर से गुपचुप समर्थित बहुसंख्यक मैतेयी समुदाय की ओर शुरू की गई हिंसा ने राज्य का विभाजन कर दिया है."
विधायकों ने इस संयुक्त बयान में कहा है कि अब चीन-कुकी-मिजो-जोमी वर्तमान मणिपुर राज्य के भीतर नहीं रह सकते. इन विधायकों ने आरोप लगाया है कि इस हिंसा में विधायकों, मंत्रियों, पादरियों, पुलिस और सिविल अधिकारियों, आम लोगों, महिलाओं और यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शा गया. इसके अलावा पूजा स्थलों, घरों और संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है.
इस बीच मिजोरम के लोकसभा सदस्य सी. लालरोसांगा ने भी आदिवासी विधायकों की अलग प्रशासन की मांग का समर्थन किया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मणिपुर की घटना ने बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को भारी असमंजस में डाल दिया है. पर्वतीय और मैदानी इलाको में रहने वालो के बीच लगातार चौड़ी होती खाई को पाटना ही फिलहाल उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है.