सवाल यह है कि फ्रांस में अचानक इतने हमले क्यों हो रहे हैं. 2015 की जनवरी से अब तक यूरोप के इस बेहद खूबसूरत देश में अलग-अलग हमलों में 235 लोग मारे जा चुके हैं.
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मंगलवार को फिर फ्रांस में हमला हुआ. दो हथियारबंद लोगों ने एक बूढ़े पादरी को मार डाला. आईएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली. इस तरह फ्रांस में आतंक का एक और पड़ाव पूरा हुआ. लेकिन सवाल यह है कि फ्रांस में अचानक इतने हमले क्यों हो रहे हैं. 2015 की जनवरी से अब तक यूरोप के इस बेहद खूबसूरत देश में अलग-अलग हमलों में 235 लोग मारे जा चुके हैं. किसी भी यूरोपीय देश में यह सबसे ज्यादा संख्या है.
ऐसा नहीं है कि सारे हमले विदेशियों ने ही किए हैं. फ्रेंच बोलने वाले या फ्रांसीसी नागरिक बड़ी संख्या में हमलों में शामिल रहे हैं. और ज्यादातर हमले खुदकुश थे यानी हमलावर सिर पर कफन बांधकर ही आए थे और मारे गए. राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद कहते हैं कि फ्रांस आतंकवादियों का सबसे बड़ा दुश्मन है क्योंकि यहां मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान होता है. नीस में हुए ट्रक हमले के बाद ओलांद ने कहा, "अगर आतंकवादी हम पर हमला करते हैं तो ऐसा इसलिए है क्योंकि वे जानते हैं कि फ्रांस किस बात का प्रतीक है."
कहां कहां बैन है बुरका
दुनिया में ऐसे कई मुल्क हैं जहां बुरके या नकाब पर प्रतिबंध है. कहीं पूरी तरह तो कहीं आंशिक रूप से. जानिए...
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डेनमार्क
31 मई 2018 को डेनमार्क की सरकार ने एक नया कानून लागू किया है जिसके तहत सार्वजनिक स्थलों पर चेहरा ढंकने की मनाही होगी. स्की मास्क और नकली दाढ़ी-मूछ लगाने पर भी रोक होगी. हालांकि बीमारियों से बचने के लिए पहनने वाले मास्क और मोटरसाइकल हेलमेट को इसमें शामिल नहीं किया गया है.
फ्रांस यूरोप का पहला ऐसा मुल्क है जिसने बुरके को बैन करने का कदम उठाया. 2004 में इसकी शुरुआत हुई. पहले स्कूलों में धार्मिक चिन्हों पर रोक लगी. 2011 में सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर बुरके को पूरी तरह बैन कर दिया. ऐसा करने पर 150 यूरो का जुर्माना है. कोई अगर महिलाओं को जबरन बुरका पहनाएगा तो उस पर 30 हजार यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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बेल्जियम
फ्रांस के नक्श ए कदम पर चलते हुए बेल्जियम ने भी 2011 में बुरका बैन कर दिया. बुरका पहनने पर महिलाओं को 7 दिन की जेल या 1300 यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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नीदरलैंड्स
2015 में हॉलैंड ने बुरके पर बैन लगाया. लेकिन यह बैन स्कूलों, अस्पतालों और सार्जवनिक परिवहन तक ही सीमित है. सभी जगहों पर इसे लागू नहीं किया गया है.
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स्विट्जरलैंड
1 जुलाई 2016 से स्विट्जरलैंड के टेसिन इलाके में बुरके पर प्रतिबंध लागू हो गया है. इसका उल्लंघन करने पर 9200 यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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इटली
इटली में राष्ट्रीय स्तर पर तो बैन नहीं है लेकिन 2010 में नोवारा शहर ने अपने यहां प्रतिबंध लगाया. हालांकि अभी बुरका पहनने पर किसी तरह की सजा नहीं है. और कुछ राज्यों में बुरकीनी पहनने पर रोक है.
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जर्मनी
जून 2017 से जर्मनी में भी बुरके और नकाब पर रोक है लेकिन ऐसा सिर्फ सरकारी नौकरियों और सेना पर लागू होता है. इसके अलावा ड्राइविंग के दौरान भी चेहरा ढंकने की अनुमति नहीं है. जर्मनी की एएफडी पार्टी लगातार बुरके पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग कर रही है.
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स्पेन
स्पेन के कैटेलोनिया इलाके में कई जिलों में बुरके और नकाब पर 2013 से ही प्रतिबंध है. कई राज्यों में कोशिश हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे धार्मिक आजादी का उल्लंघन मानते हुए पलट दिया. लेकिन यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट का फैसला है कि बुरके पर बैन मानवाधिकार उल्लंघन नहीं है. इसी आधार पर कई जिलों ने इस बैन को लागू किया हुआ है.
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तुर्की
मुस्लिम बहुल आबादी वाले तुर्की में 2013 तक सरकारी संस्थानों में बुरका या हिजाब पहनने पर रोक थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. महिलाएं अपना सर और चेहरा ढंकते हुए भी वहां जा सकती हैं. बस अदालत, सेना और पुलिस में ऐसा करने की अनुमति अब भी नहीं है.
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चाड
अफ्रीकी देश चाड में पिछले साल बुरके पर प्रतिबंध लगाया गया. जून में वहां दो आत्मघाती बम हमले हुए जिसके बाद प्रधानमंत्री ने कदम उठाए. बाजारों में बुरके की बिक्री तक पर बैन है. पहनने पर जुर्माना और जेल होगी.
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कैमरून
चाड के प्रतिबंध लगाने के एक महीने बाद ही उसके पड़ोसी कैमरून ने भी नकाब और बुरका बैन कर दिए. हालांकि यह सिर्फ पांच राज्यों में ही प्रभावी है.
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निजेर
आतंकवाद प्रभावित दीफा इलाके में बुरका प्रतिबंधित है. हालांकि सरकार इसे पूरे देश में लागू करने की इच्छुक है.
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कॉन्गो
पूरे चेहरे को ढकने पर कॉन्गो ने बैन लगा रखा है. 2015 से यह प्रतिबंध लागू है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G.-G. Kitina
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विशेषज्ञ मानते हैं कि ओलांद की बात काफी हद तक ठीक है. फ्रांस की अपनी एक जीवनशैली है जो लोकतांत्रिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की आजादी और धर्मनिरपेक्षता पर टिकी है. लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है. फ्रांस का औपनिवेशिक इतिहास भी उसके वर्तमान के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है. साथ ही, जनसंख्या की विषमताएं और विदेशी जमीन पर इस्लामिक आतंकवादियों के खिलाफ हमले भी बड़ी वजह हैं.
यूरोप में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी फ्रांस में ही है. यहां 50 लाख से ज्यादा मुसलमान रहते हैं. देश की कुल आबादी छह करोड़ 60 लाख है. मुसलमानों की इतनी बड़ी आबादी की वजह अफ्रीकी और मध्य-पूर्व के देशों में फ्रांस के वे उपनिवेश हैं जहां पिछली सदी में फ्रांसीसियों का राज था. इन उपनिवेशों में रहने वाले लोग बड़ी तादाद में फ्रांस आए और अपनी मादरी जबान के साथ-साथ फ्रेंच भी सीखकर बड़े हुए. फिलहाल वे फ्रांस के जिन हिस्सों में रहते हैं वे देश के सबसे गरीब और अलग-थलग पड़े इलाके हैं.
जब गाड़ियां लाती हैं मौत
आतंकवादी छोटी बड़ी गाड़ियों को आतंक और मौत ले आने वाले खतरनाक औजार के रूप में बदल देने की नीति अपना रहे हैं और सुरक्षा एजेंसियां लाचार हैं. देखिए यूरोप में कहां कहां हुआ है गाड़ियों से आतंकी हमला.
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मैनहटन
अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर के मैनहटन इलाके में एक ट्रक ड्राइवर ने साइकिल और पैदल लेन में घुसकर लोगों को कुचला. इस घटना में 8 लोगों की मौत हो गयी और करीब 11 लोग बुरी तरह से घायल हैं. पुलिस ने संदिग्ध को गिरफ्तार कर लिया है. इसका नाम सेफुलो साइपोव है और इसकी उम्र 29 साल बताई जा रही है.
तस्वीर: Reuters/A. Kelly
बार्सिलोना
17 अगस्त, 2017 की शाम स्पेन के बार्सिलोना में पर्यटकों के बीच लोकप्रिय शहर के भीड़भाड़ वाले इलाके में हमलावर ने लोगों पर किराये पर ली वैन चढ़ा दी. आतंकी गुट तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है, जिसमें 13 लोगों की जान चली गयी है और करीब 100 लोग घायल हैं. जांचकर्ता इसे शहर में कई जगहों पर सिलसिलेवार हमले करने की योजना का हिस्सा मानते हैं.
तस्वीर: Imago/E-Press Photo.com
लंदन
4 जून, 2017 की रात लंदन के लिये भयानक रही. लंदन ब्रिज पर एक सफेद वैन ने कई लोगों को टक्कर मारी. ब्रिज पर लोगों को कुचलने के बाद यह वैन पास के बॉरो मार्केट में घुस गई. कार में सवार संदिग्ध बाहर निकले और लोगों पर चाकुओं से हमला किया. हालांकि पुलिस ने जल्द ही संदिग्धों को घेर लिया और गोलीबारी में मार गिराया.
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लंदन
लंदन स्थित ब्रिटिश संसद वेस्टमिंस्टर के पास एक हमलावर ने अपनी कार से फुटपाथ पर जा रहे लोगों को रौंद डाला. मार्च 2017 के इस हमले में एक पुलिसकर्मी समेत चार लोगों की जान चली गयी. हमलावर भी पुलिस की गोली से मारा गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP/J.West
बर्लिन
जुलाई में फ्रांस के नीस में तो दिसंबर में बर्लिन के क्रिसमस मेले में गाड़ी मौत लेकर आई. ट्रक भीड़भाड़ वाले खुले बाजार में घुसा और लोगों को कुचलता हुआ 80 मीटर तक चला. घटना में 12 लोगों की जान गई और 48 लोग घायल हुए.
तस्वीर: Reuters/F. Bensch
नीस
फ्रांस के नीस शहर में सड़कों पर जुटे बास्टिल डे मनाते लोगों को एक ट्रक रौंदता हुआ निकल गया. करीब दो किलोमीटर तक अनगिनत लोगों को कुचलते निकले इस ट्रक की चपेट में आने से अब तक कम से कम 84 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है और बहुत सारे लोग घायल हैं.
तस्वीर: Reuters/E. Gaillard
इस्राएल और फलस्तीन
नीस में हमलावर की ये शैली दुनिया में कोई पहली बार नहीं आजमाई गई है. इस्राएल और फलस्तीन के कुछ इलाकों से कारों को लोगों के ऊपर चढ़ाने की कई घटनाएं सामने आई हैं. पिछली अक्टूबर से ही वहां ऐसे हमलों की चपेट में आने से 215 फलीस्तीनी, 34 इस्राएली, दो अमेरिकी, एक एरिट्रियाई और एक सूडानी नागरिक की मौत हुई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Safadi
ब्रिटेन
हाल के सालों में पश्चिमी देशों को इसी किस्म के तीन बड़े हमले झेलने पड़े. दो ब्रिटेन में और एक अन्य हमला कनाडा में हुआ. मई 2013 में नाइजीरियाई मूल के दो इस्लामी कट्टरपंथियों ने अपनी कार को एक ब्रिटिश सैनिक ली रिग्बी पर चढ़ा दिया था. दिन दहाड़े उनका गला काटने की कोशिश भी की. उन्हें ब्रिटिश सेना के हाथों मुसलमानों के मारे जाने पर गुस्सा था.
तस्वीर: Reuters
कनाडा
लंदन की घटना के करीब 18 महीने बाद कनाडा में भी एक इस्लामी कट्टरपंथी ने एक कनेडियन सैनिक पैट्रिक विंसेंट के ऊपर गाड़ी चढ़ा कर उसे मार डाला और एक अन्य को घायल किया. इसके बाद 25 साल के हमलावर मार्टिन रुले ने खुद पुलिस को फोन कर जिहाद के नाम पर यह हमला करने की बात कही. मार्टिन ने अपना धर्म बदल कर इस्लाम कुबूल किया था.
तस्वीर: Reuters/Christinne Muschi
स्कॉटलैंड
जून 2007 में दो आदमियों ने अपनी जलती हुई जीप को ले जाकर स्कॉटलैंड के ग्लासगो एयरपोर्ट की मुख्य टर्मिनल बिल्डिंग में घुसा दिया. इनमें से एक हमलावर को आजीवन कारावास की सजा मिली. मामले की सुनवाई कर रहे जज ने हमलावर को "धार्मिक कट्टरपंथी" माना.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हत्या की प्रेरणा
कई सालों से इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे आतंकी संगठन कभी वीडियो बनाकर तो कभी सोशल मीडिया पर संदेश भेज कर नए समर्थकों और अनुयायियों से उनके हाथ में जो आए उसी से हमले करने की अपील करते रहे हैं. ऐसे ही संदेशों के कारण कई जगहों पर आम नागरिकों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं बढ़ी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP
'काफिर' के खिलाफ
सितंबर 2014 में आईएस के 'आक्रमण मंत्री' माने जाने वाले अबु मोहम्मद अल-अदानी ने ये संदेश जारी किया था: "अगर तुम कोई बम नहीं फोड़ सकते, गोली नहीं चला सकते, तो किसी फ्रेंच या अमेरिकन काफिर से अकेले में मिलो और फिर चाहे पत्थर से उसका सिर फोड़ो या चाकू से गला काटो, या कार के नीचे दबा दो."
तस्वीर: Reuters/I. Abu Mustafa
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अब हो यह रहा है कि फ्रांस के सैनिक उन्हीं इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में शामिल हैं जहां कभी फ्रांसीसी उपनिवेश होते थे. जैसे मध्य पूर्व में या अफ्रीका में भी. जैसे इराक और सीरिया में फ्रांसीसी वायु सेना आईएस के ठिकानों पर हमले कर रही है. लेकिन अपने यहां फ्रांस धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने में सख्ती की हद तक जा रहा है. मसलन, मुस्लिम आबादी को मुख्य धारा में शामिल करने के नाम पर कई ऐसे नियम-कानून लागू किए गए हैं जिन्हें कट्टरपंथी लोग ज्यादती कहकर प्रचारित करते हैं. जैसे कि 2010 में देश में मुंह ढकने वाले नकाब पहनने पर रोक लगा दी गई. 2004 में स्कूलों में सिर ढकने पर रोक लगा दी गई थी.
द न्यू यॉर्क टाइम्स में एक लेख में फ्रांसीसी समाजविज्ञानी फरहाद खोसरोखवार लिखते हैं, "सिद्धांत में तो फ्रांस का समेकन का मॉडल बहुत उदार है लेकिन असल जमीन पर यह काफी कठोर है. हालांकि फ्रांस ने बड़ी संख्या में प्रवासियों को समेकित करने में कामयाबी पाई है लेकिन जो हाशिए पर छूट गए हैं उनमें कड़वाहट भर गई है. और यह कड़वाहट जर्मनी या ब्रिटेन में रहने वाले अल्पसंख्यकों की कड़वाहट से कहीं ज्यादा है." खोसरोखवार इस बात पर जोर देते हैं कि मोरक्को, ट्यूनीशिया और अल्जीरिया जैसे देशों के मुसलमानों में हाशिये पर छूटने की संभावना ज्यादा दिखती है. यही मुस्लिम देश फ्रांस के सबसे नजदीक भी हैं. ये तीनों देश फ्रांस के अधीन रहे हैं और 1950 और 1960 के दशक में यहां भयंकर युद्ध हो चुके हैं जिनके बाद फ्रांस यहां से निकल गया था. लेकिन उसका प्रभाव हमेशा यहां बना रहा. यहां बनने वाली सरकारें फ्रांस के पक्ष में रहीं और उन पर फ्रांस के कहे पर चलने के आरोप लगते रहे हैं. 1990 के दशक में अल्जीरिया में एक हथियारबंद संगठन आर्म्ड इस्लामिक ग्रुप ऑफ अल्जीरिया खड़ा हो गया जो फ्रांस समर्थक सरकार को सत्ता से हटाना चाहता था. उसने देश में कई विदेशियों की हत्याएं की. ओलांद के राष्ट्रपति बनने के बाद पश्चिम अफ्रीकी देशों में फ्रांसीसी सेना का दखल और ज्यादा बढ़ा है. मसलन 2013 में उसने माली में हो रहे युद्ध में दखल दिया था.
इस रमजान हुए इन 8 देशों में हमले
रमजान के पवित्र महीने के दौरान दुनिया भर में 8 देशों में हुए आतंकी हमलों में करीब 350 लोग मारे गए हैं. इनमें से ज्यादातर हमलों के तार कट्टरपंथी संगठन आईएस के साथ जुड़े हैं.
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अमेरिका
12 जून को एक बंदूकधारी ने फ्लोरिडा के ऑरलैंडों में एक व्यस्त समलैंगिक क्लब में अंधाधुंध गोलियां चलाकर 49 लोगों की जान ले ली. पुलिस का कहना है कि हत्यारे ने आईएस के साथ होने का दावा किया था, जिसने उसे खिलाफत का सिपाही बताया था. लेकिन इस बात के सबूत नहीं हैं कि वह हमले से पहले आईएस के संपर्क में था.
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जॉर्डन
21 जून को सीरिया से लगी जॉर्डन की सीमा पर एक सैनिक पोस्ट पर कार बम से हमला किया गया. इसमें सात सैनिक मारे गए. यह पिछले कई सालों में सल्तनत का सबसे खूनी आतंकी हमला था. इस हमले की जिम्मेदारी भी आईएस ने ली.
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यमन
27 जून को आईएस से जुड़े एक गुट ने देश के दक्षिणी शहर मुकाला में कई हमले किए जिसमें 43 लोग मारे गए. ज्यादातर लोग खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों के सदस्य थे. एक हमले में बम रोजा खोलने के लिए सैनिकों के लिए भेजे गए खाने में रखा गया था. 6 जुलाई को अदन हवाई अड्डे के पास सैनिकों पर हुए कार बम हमले में 10 लोग मारे गए.
तस्वीर: DW/M. al-Haidari
लेबनान
27 जून को सीरिया की सीमा से लगे लेबनान के एक छोटे से ईसाई गांव में 8 आत्मघाती हमलावरों ने दो चरणों में हमला किया. इन हमलों में 5 लोगों की जान ले ली गई. इस हमले की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली.
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तुर्की
28 जून को राइफलों से लैस तीन आत्मघाती हमलावरों ने विश्व के व्यस्ततम हवाई अड्डों में शामिल इस्तांबुल हवाई अड्डे पर हमला किया. हमले में 44 लोग मारे गए और 150 से ज्यादा घायल हो गए. किसी ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है लेकिन तुर्की के अधिकारी इसके लिए आईएस को जिम्मेदार मानते हैं.
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
मलेशिया
28 जून को कुआलालम्पुर में एक बार पर ग्रेनेड फेंका गया जब वहां लोग यूरो 2016 का फुटबॉल मैच देख रहे थे. हमले में 8 लोग घायल हो गए. मलेशिया के अधिकारियों का कहना है कि मुस्लिम बहुल देश पर यह आईएस का पहला हमला है. हमले का आदेश सीरिया में आईएस के साथ लड़ रहे एक मलेशियाई व्यक्ति ने दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A.Yusni
बांग्लादेश
1 जुलाई को छूरों, ऑटोमैटिक राइफल और बमों से लैस हमलावरों ने ढाका में एक पॉश रेस्तरां पर हमला किया और 35 लोगों को बंधक बना लिया. पुलिस कार्रवाई में मारे जाने से पहले हमलावरों ने 20 बंधकों को मार डाला. उनमें भारतीय लड़की तारिषी भी थी. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कुरान की आयतें न पढ़ पाने वालों को यातना भी दी गई. हमले की जिम्मेदारी आईएस ने ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP
इराक
3 जुलाई को बगदाद में एक ट्रक की मदद से हुए आत्मघाती हमले में 175 लोग मारे गए. यह इराकी गृहयुद्ध के 13 वर्षों में सबसे भयानक हमला था. हमले की जिम्मेदारी आईएस ने ली और साथ ही कहा कि वह शिया समुदाय के लोगों को निशाना बना रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Arar
सऊदी अरब
4 जुलाई को आत्मघाती हमलावरों ने मदीना की पवित्र मस्जिद सहित जहां पैगम्बर मोहम्मद दफ्न हैं, सऊदी अरब के तीन शहरों पर हमला किया. मदीना में हुए हमले में चार सैनिक मारे गए. एक पाकिस्तानी नागरिक ने जेद्दाह में अमेरिकी कंसुलेट के बाहर हमला किया जिसमें दो सुरक्षाकर्मी घायल हो गए. हमलों की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Courtesy of Noor Punasiya
इंडोनेशिया
5 जुलाई को एक आत्मघाती हमलावर ने जावा के सोलो में एक पुलिस स्टेशन के बाहर हमला किया. इसमें एक पुलिकर्मी घायल हो गया. पुलिस का कहना है कि हमलावर सीरिया में आईएस के साथ लड़ रहे एक प्रमुख इंडोनेशियाई नागरिक के साथ जुड़ा हुआ है.
तस्वीर: Reuters/Antara Foto/M. Surya
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विशेषज्ञों का मानना है कि अब जो लोग फ्रांस में आतंकी हमले कर रहे हैं उनकी जड़ें उन्हीं पश्चिम अफ्रीकी देशों में हैं. ये हमलावर मध्य पूर्व से नहीं आ रहे हैं जबकि उन इलाकों से आ रहे हैं जहां फ्रांस अभी या दशकों पहले सैन्य कार्रवाइयां कर चुका है. उन देशों के प्रवासियों के ये बच्चे अब इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. देश के कम से कम एक हजार नागरिक सीरिया की यात्रा कर चुके हैं. इनमें से ज्यादातर अफ्रीकी मूल के मुसलमान हैं. सीरिया भी कभी फ्रांस के अधीन था.
हाल ही में एक वीडियो इंटरनेट पर जारी हुआ. इस वीडियो में एक फ्रेंच गाना है जो कहता है कि फ्रांस में रहने वाले आईएस के समर्थक देश की जड़ें हिला दें. गाने के बोल कुछ यूं हैं कि सूअरों का खून बहा दो, उनकी आत्माएं मिटा दो, फ्रांस को हिला दो. और फ्रांस सच में हिल रहा है. एक लाख से ज्यादा सुरक्षा बल इस वक्त देश की सड़कों पर पहरा दे रहे हैं.
सबसे खूनी साल 2016
2016 आतंकवाद का साल साबित हुआ है. सात महीनों में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. इस साल अब तक के सबसे ज्यादा आतंकवादी हमले हुए हैं.
तस्वीर: Imago/Science Photo Library
4 जुलाई
एक के बाद एक तीन आतंकवादी हमले हुए. सऊदी अरब के जेद्दा, मदीना और कतीफ में तीन खुदकुश हमले.
तस्वीर: Reuters
3 जुलाई
बगदाद में इराक का सबसे भयानक आतंकवादी हमला हुआ जिसमें 215 जानें गईं और 2002 लोग घायल हो गए.
तस्वीर: Reuters/Khalid al Mousily
2 जुलाई
ढाका में बांग्लादेश का अब तक का सबसे घातक आतंकवादी हमला जिसमें 7 आतंकवादियों ने 20 मासूम जानें ले लीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
28 जून
तुर्की के इस्तांबुल में अतातुर्क एयरपोर्ट पर तीन आतंकियों ने आत्मघाती हमला किया. 45 लोगों की जान चली गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Kose
27 मार्च
पाकिस्तान के लाहौर में बच्चों के खेल के मैदान के पास बम धमाका हुआ. 72 लोग मारे गए जिनमें ज्यादातर बच्चे थे.
तस्वीर: picture alliance/dpa/R. Dar
22 मार्च
बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में एयरपोर्ट पर आत्मघाती बम हमला हुआ. 34 जानें गईं और 300 लोग घायल हुए.
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
13 मार्च
तुर्की की राजधानी अंकारा में मुख्य चौराहे पर एक कार बम से धमाका किया गया. 37 जानें चली गईं.
तस्वीर: Reuters/U. Bektas
13 मार्च
आइवरी कोस्ट में कुछ अल कायदा आतंकवादी एक होटल में घुसे और गोलियां बरसाईं. 18 लोग मारे गए.
तस्वीर: Reuters/L. Gnago
26 फरवरी
सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में एक होटल में अल शबाब ने कार बम से धमाका किया. 15 लोगों की जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/F. Omar
17 फरवरी
तुर्की की राजधानी अंकारा में कई बम धमाके हुए. कुर्दिस्तान फ्रीडम फाल्कन्स के इस हमले में 29 जानें गईं.
तस्वीर: Reuters/Ihlas News Agency
15 जनवरी
बुरकीना फासो के एक होटल में हुए आतंकवादी हमले में 18 देशों के 23 लोगों की जानें गईं. अल कायदा का काम था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Elsen
14 जनवरी
इंडोनेशिया के जकार्ता में बम धमाके और उसके बाद गोलियां बरसा कर आईएस ने 8 लोगों को मार डाला.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Ismoyo
12 जनवरी
साल की शुरुआत में ही तुर्की के इस्तांबुल में धमाके सुनाई दिए. 13 लोगों की जानें गईं. दर्जनों घायल हुए.