मारबुर्ग वायरस से दो मौतों के बाद घाना में 98 लोग क्वारंटाइन
१८ जुलाई २०२२
घाना में जानलेवा मारबुर्ग वायरस के दो केस सामने आए हैं. अचानक तेज बुखार, सिरदर्द और डायरिया जैसी तकलीफ पैदा करने वाले मारबुर्ग वायरस का अभी कोई इलाज नहीं है.
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घाना हेल्थ सर्विस (जीएचएस) के मुताबिक संदिग्ध नमूने दूसरी बार जांच के लिए पड़ोसी देश सेनेगल भेजे गए थे. सेनेगल के पास्टर इंस्टीट्यूट ने दो सैंपलों में घातक मारबुर्ग वायरस होने की पुष्टि की है. जीएचएस के प्रमुख पैट्रिक कुमा-अबोआग्ये ने एक बयान जारी कर कहा, "यह पहला मौका है जब घाना में मारबुर्ग वायरस बीमारी की पुष्टि हुई है."
वायरस की चपेट में आए दोनों मरीजों को बुखार, उल्टी, दस्त, जुकाम और सिरदर्द की शिकायत थी. अस्पताल में भर्ती करने के कुछ ही दिन बाद दोनों की मौत हो गई. घाना के अधिकारियों के मुताबिक दोनों के नमूने 10 जुलाई को पॉजिटिव आए थे. पहले जांच घाना में की गई और उसके बाद सेनेगल में.
कितना घातक है मारबुर्ग वायरस
मारबुर्ग वायरस से लड़ने के लिए फिलहाल कोई दवा या टीका नहीं बना है. वैज्ञानिकों के मुताबिक मारबुर्ग, इबोला जितना घातक वायरस है. वायरस से संक्रमित होने पर इंसान को तेज बुखार, डायरिया, उल्टी और सिरदर्द होने लगता है. इसके साथ ही अंदरूनी और बाहरी अंगों से खून भी बहने लगता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अब तक सामने आए केसों के आधार पर मारबुर्ग वायरस की जानलेवा क्षमता 24 से 88 फीसदी के बीच है. घाना से पहले सितंबर 2021 में गिनी में मारबुर्ग वायरस का एक मामला सामने आया था. अब तक डीपीआर कॉन्गो, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा में भी मारबुर्ग वायरस के मामले सामने आ चुके हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि मारबुर्ग वायरस चमगादड़ों समेत अन्य जानवरों से इंसान में फैल सकता है. इसके बाद लार या छींक के जरिए यह बाकी लोगों तक पहुंच सकता है. घाना के स्वास्थ्य विभाग ने एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है, लोगों को सलाह दी जाती है कि वे चमगादड़ों की गुफाओं से दूर रहें और खाने से पहले हर किस्म के मांस को बहुत अच्छी तरह पकाएं.
इम्युनिटी बढ़ाता है विटामिन सी
संक्रामक बीमारियों से बचाने वाली चीजों में विटामिन सी का नाम काफी ऊपर आता है. यह एक ऐसी चीज है जिसकी हमें रोजाना बहुत कम मात्रा में जरूरत होती है. देखिए कैसे और कितना विटामिन सी हमें बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है.
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खाना ना भूलें
इंसान को छोड़कर ज्यादातर स्तनधारी अपने शरीर में विटामिन सी का निर्माण कर पाते हैं. इंसान को इसे बाहर से लेना पड़ता है. पानी में घुलने वाला यह विटामिन हमारे भोजन का हिस्सा होना चाहिए, जो कि संतरा, चकोतरा और किवी जैसे तमाम खट्टे फलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. काली मिर्च, ब्रॉकोली और ब्रसेल्स स्प्राउट जैसी सब्जियों में भी ये खूब मिलता है. बहुत ज्यादा गर्म करने पर इसके गुण कम हो जाते हैं.
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सबके लिए सेहत की बूटी
विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा ली जाए तो यह ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी और स्ट्रोक से बचाती है. केवल बूढ़े, बीमार और वीगन लोगों के लिए ही नहीं बल्कि सबके लिए काम की है. यह एक ऐसा माइक्रोन्यूट्रिएंट है जो बहुत कम मात्रा में चाहिए और इससे शरीर को कोई ऊर्जा नहीं मिलती है. लेकिन शरीर की कई अहम प्रक्रियाओं के लिए इसकी ज़रूरत होती है, जैसे सेल मेटाबोलिज्म और शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र.
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रैडिकल्स की रैडिकल तोड़
अहम पोषण तत्व के अलावा इसकी दूसरी भूमिका एंटीऑक्सीडेंट की है. यह उस नुकसान को कम करता है जो ऑक्सीजन के फ्री रैडिकल्स के कारण शरीर को पहुंचता है. यह रैडिकल्स शरीर की सामान्य मेटाबोलिक प्रक्रियाओं में पैदा होती रहती हैं. तंबाकू जैसे हानिकारक पदार्थों के सेवन से शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस काफी बढ़ जाता है और उसके कारण फ्री रैडिकल्स की मात्रा भी. ऐसे में विटामिन सी ज्यादा मात्रा में लेनी चाहिए.
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एंजाइम की मददगार भी
स्ट्रॉबेरी जैसे फलों से हमें केवल स्वाद में लिपटा विटामिन सी ही नहीं मिलता जो ऑक्सीजन रैडिकल्स से बचाए. इसके साथ ही यह कई एंजाइमों के काम में उनकी मदद करता है. एक सहकारक के रूप में विटामिन सी का इस्तेमाल शरीर में कोलेजन प्रोटीन के निर्माण में होता है जिससे हड्डियां, कार्टिलेज, टेंडॉन और त्वचा बनती है. इसीलिए इसकी कमी होने का पता भी कई बार त्वचा देख कर ही चल जाता है.
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चकोतरे का जादू
एंटीऑक्सीडेंट के रूप में यह हमारे शरीर की कोशिकाओं को सुरक्षित रखने में मदद करता है. संक्रमणों से बचाने में विटामिन सी काम आता है. संक्रमण होने पर यह शरीर की इम्यून सेल्स, न्यूट्रोफिल्स को उस जगह तक पहुंचाने में मदद करता है. यह कोशिकाएं वहां पहुंच कर फैगोसाइटोसिस को बढ़ावा देती हैं, जिससे रोगाणुओं का खात्मा हो जाता है.
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कमी का क्या नतीजा?
अगर किसी को विटामिन सी की बहुत ज्यादा कमी हो जाए तो स्कर्वी की बीमारी हो सकती है. इसके लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए जैसे चोट भरने में लंबा समय लगना, शरीर पर खरोंचे दिखना, बाल का झड़ना, दांतों और जोड़ों में दर्द होना. कई बार यह बीमारी जानलेवा भी हो जाती है. रोजाना कम से कम 10 मिलिग्राम का डोज लेकर आप खुद को इससे बचा सकते हैं.
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कितना काफी है?
जर्मन कंज्यूमर एडवाइस सेंटर के अनुसार, पुरुषों को रोज 110 मिलिग्राम और महिलाओं को मिलिग्राम विटामिन सी लेना चाहिए. तो वहीं अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चर बालिगों के लिए रोज 400 मिलिग्राम की सलाह देते हैं. सच तो ये है कि अगर आपने इसकी ज्यादा मात्रा भी ले ली तो उससे कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि वह मूत्र के साथ बाहर निकल जाएगा. (यूलिया फेर्गिन/आरपी)
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वायरस के प्रसार को रोकने की कोशिश
मारबुर्ग वायरस से संक्रमित लोगों के संपर्क में आए 98 लोगों को क्वारंटाइन में रखा गया है. इनमें मेडिकल स्टाफ के लोग भी शामिल हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारियों ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिए घाना के कदमों की तारीफ की है.
करीब तीन करोड़ की जनसंख्या वाला पश्चिमी अफ्रीकी देश घाना अंतरराष्ट्रीय समुदाय से काफी अच्छी तरह जुड़ा है. देश की राजधानी आक्रा तक दुनिया भर की 35 इंटरनेशनल एयरलाइनें पहुंचती हैं. ये विमान सेवाएं घाना को अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, यूएई, कतर, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया समेत कई अफ्रीकी देशों से जोड़ती हैं.
कहां से आया मारबुर्ग वायरस
इस वायरस का सबसे पहले पता 1967 में जर्मन शहर मारबुर्ग में चला, तब से ही इसे मारबुर्ग वायरस कहा जाता है. अफ्रीका से लाए गए कुछ अफ्रीकन ग्रीन बंदरों से यह वायरस लैब कर्मचारियों में फैला. कुछ ही समय के भीतर वायरस जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट और तत्कालीन यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड तक पहुंच गया. तब कुल 31 मामले आए थे, जिनमें से सात पीड़ितों की मौत हुई. 1988 से अब तक इस वायरस के इंसानी संक्रमण के ज्यादातर मामलों में पीड़ितों को बचाया नहीं जा सका है.
ओएसजे/ एनआर (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
ना कोरोना, ना हंटा, ये हैं दुनिया के सबसे खतरनाक वायरस
इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना के खौफ में है. लेकिन मृत्यु दर के हिसाब से देखा जाए तो और भी कई वायरस हैं जो कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक हैं. बच के रहिए इनसे.
मारबुर्ग वायरस
इसे दुनिया का सबसे खतरनाक वायरस कहा जाता है. वायरस का नाम जर्मनी के मारबुर्ग शहर पर पड़ा जहां 1967 में इसके सबसे ज्यादा मामले देखे गए थे. 90 फीसदी मामलों में मारबुर्ग के शिकार मरीजों की मौत हो जाती है.
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इबोला वायरस
2013 से 2016 के बीच पश्चिमी अफ्रीका में इबोला संक्रमण के फैलने से ग्यारह हजार से ज्यादा लोगों की जान गई. इबोला की कई किस्में होती हैं. सबसे घातक किस्म के संक्रमण से 90 फीसदी मामलों में मरीजों की मौत हो जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हंटा वायरस
कोरोना के बाद इन दिनों चीन में हंटा वायरस के कारण एक व्यक्ति की जान जाने की खबर ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं. यह कोई नया वायरस नहीं है. इस वायरस के लक्षणों में फेफड़ों के रोग, बुखार और गुर्दा खराब होना शामिल हैं.
तस्वीर: REUTERS
रेबीज
कुत्तों, लोमड़ियों या चमगादड़ों के काटने से रेबीज का वायरस फैलता है. हालांकि पालतू कुत्तों को हमेशा रेबीज का टीका लगाया जाता है लेकिन भारत में यह आज भी समस्या बना हुआ है. एक बार वायरस शरीर में पहुंच जाए तो मौत पक्की है.
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एचआईवी
अस्सी के दशक में एचआईवी की पहचान के बाद से अब तक तीन करोड़ से ज्यादा लोग इस वायरस के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. एचआईवी के कारण एड्स होता है जिसका आज भी पूरा इलाज संभव नहीं है.
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चेचक
इंसानों ने हजारों सालों तक इस वायरस से जंग लड़ी. मई 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा की कि अब दुनिया पूरी तरह से चेचक मुक्त हो चुकी है. उससे पहले तक चेचक के शिकार हर तीन में से एक व्यक्ति की जान जाती रही.
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इन्फ्लुएंजा
दुनिया भर में सालाना हजारों लोग इन्फ्लुएंजा का शिकार होते हैं. इसे फ्लू भी कहते हैं. 1918 में जब इसकी महामारी फैली तो दुनिया की 40% आबादी संक्रमित हुई और पांच करोड़ लोगों की जान गई. इसे स्पेनिश फ्लू का नाम दिया गया.
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डेंगू
मच्छर के काटने से डेंगू फैलता है. अन्य वायरस के मुकाबले इसका मृत्यु दर काफी कम है. लेकिन इसमें इबोला जैसे लक्षण हो सकते हैं. 2019 में अमेरिका ने डेंगू के टीके को अनुमति दी.
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रोटा
यह वायरस नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है. 2008 में रोटा वायरस के कारण दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के लगभग पांच लाख बच्चों की जान गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कोरोना वायरस
इस वायरस की कई किस्में हैं. 2012 में सऊदी अरब में मर्स फैला जो कि कोरोना वायरस की ही किस्म है. यह पहले ऊंटों में फैला, फिर इंसानों में. इससे पहले 2002 में सार्स फैला था जिसका पूरा नाम सार्स-कोव यानी सार्स कोरोना वायरस था. यह वायरस 26 देशों तक पहुंचा. मौजूदा कोरोना वायरस का नाम है सार्स-कोव-2 है और यह दुनिया के हर देश तक पहुंच चुका है.