यूरोपीय संघ की जलवायु निगरानी एजेंसी ने कहा है कि बीता मार्च धरती का दूसरा सबसे गर्म मार्च था. इससे पहले ठीक इतनी ही गर्मी 2017, 2019 और 2020 में भी दर्ज की गई थी.
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यूरोपीय संघ की जलवायु संस्था कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के मुताबिक इसी मार्च में अंटार्कटिक समुद्री बर्फ अपने दूसरे सबसे निचले स्तर पर चली गई थी. उसकी रिपोर्ट कंप्यूटर द्वारा बनाए गए विश्लेषण पर आधारित है जिसे दुनिया भर के सैटलाइटों, जहाजों, विमानों और मौसम स्टेशनों से लिए गए अरबों आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिणी और केंद्रीय यूरोप में तापमान औसत से ऊपर था और उत्तरी यूरोप के अधिकांश हिस्सों में तापमान औसत से नीचे था. लेकिन उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण पश्चिमी रूस, एशिया, उत्तर पूर्वी उत्तर अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और तटीय अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों में औसत से काफी ज्यादा था.
सिकुड़ती समुद्री बर्फ
इसके ठीक उलट, पश्चिमी और केंद्रीय उत्तरी अमेरिका में तापमान औसत से काफी कम था. ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्री बर्फ पिघल रही है और समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे इस तरह की चेतावनियां भी बढ़ती जा रही हैं कि धरती खतरनाक स्तर तक पहुंच सकती है.
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एजेंसी का कहना है कि अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 28 प्रतिशत नीचे था. यह सैटलाइट डाटा के 45 सालों के इतिहास में मार्च में दर्ज किया गया दूसरे सबसे नीचा स्तर था. यह औसत 32 लाख वर्ग किलोमीटर तक ही पहुंच पाया, जो 1991 से 2020 तक के मासिक औसत से करीब 12 लाख वर्ग किलोमीटर कम है.
फरवरी में तो यह इतिहास में सबसे कम इलाके में सिमट गया था. यह लगातार दूसरी बार था जब ऐसा हुआ. पिछले एक दशक से इसमें लगातार कमी आ रही है. इस बीच उत्तर में आर्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से चार प्रतिशत नीचे था, बावजूद इसके कि ग्रीनलैंड सागर में बर्फ औसत से ज्यादा थी.
अभी तक सबसे गर्म मार्च 2016 में दर्ज किया गया था. मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया भर में तापमान बढ़ता जा रहा है. मार्च में ही संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि तीन से चार दशकों में ये रिकॉर्ड तोड़ने वाले तापमान सबसे ठंडे तापमानों में गिने जाएंगे. अगर धरती को गर्म करने वाले उत्सर्जन जल्द ही कम कर दिए जाएं तो भी ऐसा होने से रोका नहीं जा सकता है.
सीके/ओएसजे (एएफपी)
6 खतरनाक पड़ाव जो होने वाले हैं पार
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण धरती जल्द ही उन छह खतरनाक पड़ावों को पार कर सकती है, जिनके बाद लौटना असंभव होगा. वैज्ञानिकों ने विस्तृत अध्ययन के बाद बताया है कि जैसे जैसे तापमान बढ़ेगा, ये पड़ाव पार होंगे.
तस्वीर: CARMELO IMBESI/ANSA/picture alliance
जहां से लौटना असंभव है
‘साइंस’ पत्रिका में छपे एक शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने 200 से ज्यादा खतरनाक पड़ावों का अध्ययन करने के बाद ये छह घटनाएं बताई हैं, जो जल्द ही हो सकती हैं. 2008 के बाद से उपलब्ध डेटा के आधार पर यह सूची तैयार की गई है.
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ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का ढहना
पहला पड़ाव होगा ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का ढह जाना. फिलहाल इस बर्फ का पिघलना समुद्र के जल स्तर में वृद्धि का सबसे बड़ा कारक है जिसके कारण दर्जनों शहर और लाखों लोग खतरे में हैं.
तस्वीर: Kerem Yucel/AFP/Getty Images
पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ का टूटना
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक की बर्फ 30 साल पहले के मुकाबले छह गुना ज्यादा तेजी से पिघल रही है.
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उत्तरी अटलांटिक में समुद्री चक्र का रुकना
अटलांटिक का समुद्री चक्र पृथ्वी के पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में से एक है. इसका रुकना पर्यावरण के लिए विनाशकारी हो सकता है.
तस्वीर: Dawid Kalisinski/Zoonar/picture alliance
कम ऊंचाई पर मौजूद कोरल रीफ का खात्मा
दुनियाभर के कोरल रीफ खतरे में हैं और वैज्ञानिक कहते हैं कि जल्दी ही कम ऊंचाई वाली जगहों पर स्थित ये रीफ खत्म हो सकते हैं. यह एक अहम पड़ाव होगा, जिसके बाद कोई वापसी नहीं होगी.
तस्वीर: privat
उत्तरी ध्रुव में जमीन का धंसना
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जमीन का धंसना एक खतरनाक पड़ाव होगा क्योंकि इससे ग्रीनहाउस गैसें बड़ी मात्रा में उत्सर्जित होंगी और ग्लोबलवॉर्मिंग और बढ़ेगी.