एक ब्रिटिश-डच कंपनी मंगल पर इंसान को बसाने की कोशिशों में जुटी थी. उसकी योजनाओं को बड़ा धक्का पहुंचा है. कंपनी ने कहा कि उसकी परियोजना में कई साल की देरी होगी.
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इस संस्था ने मंगल पर इंसानों की बस्ती बसाने का काम शुरू कर दिया था. उसका कहना था कि 2026 में उसका पहला मानव मिशन मंगल पर पहुंच जाएगा. लेकिन अब कंपनी ने कहा है कि यह काम पूरा होने में 2031 तक का वक्त लगेगा. मानव मिशन से पहले मानव रहित मिशन भेजा जाना था. इसकी भी तय तारीख चार साल खिसका दी गई है. पहले यह मिशन 2018 तक मंगल पर पहुंचना था.
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वित्तीय दिक्कत होने वाली है. मिशन के लिए जरूरी अंतरिक्ष यान मार्स वन की खरीद में सहयोग कर रही स्विट्जरलैंड की कंपनी इनफिन इनोवेटिव फाइनैंस एजी ने अपनी नई वित्तीय रणनीति पेश की है. यह ऐलान दिसंबर के पहले हफ्ते में किया गया जिसके बाद मंगल पर बस्ती बसाने का मिशन कई साल आगे खिसका दिया गया.
देखिए, मंगल को खंगालने की इंसानी कोशिशें
मंगल को खंगालने की इंसानी कोशिशें
सौरमंडल में जितने ग्रह हैं उनमें इंसान के पास सबसे ज्यादा जानकारी मंगल ग्रह के बारे में है. 1960 के बाद से मुख्य रूप से अमेरिका और रूस ने 40 से ज्यादा मिशन मंगल ग्रह पर भेजे हैं. इस बीच इन प्रयासों में भारत भी शामिल है.
भारत ने भी मंगल की पड़ताल के लिए मंगलयान अंतरिक्ष में भेजा है. यह यान मंगल के चारों ओर चक्कर लगा रहा है और सतह के बारे में सूचनाएं भेज रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research Organisation
मिशन 2020
चीन ने भी इस साल मंगल मिशन 2020 की घोषणा की है. इस मिशन पर सौर ऊर्जा से चलने वाला एक रोबोट ले जाया जाएगा.
तस्वीर: SASTIND
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फिलहाल मार्स वन के दो हिस्सेदार हैं. ब्रिटेन की कंपनी मार्स वन वेंचर्स और नीदरलैंड्स की संस्था मार्स वन फाउंडेशनय वैसे मार्स वन एक विवादास्पद परियोजना है. इसके तहत उन लोगों को मंगल पर भेजा जाना था जो वहां जाकर इंसानी बस्तियां बसाएंगे. यह एकतरफा मिशन है. यानी इस मिशन पर जाने वाले लोगों को सदा के लिए धरती को विदा कहना होगा. ऐसा करने के लिए 140 देशों के करीब दो लाख लोगों ने फॉर्म भर दिया था. इस पूरी प्रक्रिया पर एक टीवी शो भी बनना है. दो लाख अर्जियों में 100 लोगों को चुना गया है. इनमें से सिर्फ 24 लोगों को ही मंगल के एकतरफा मिशन के लिए चुना जाएगा. योजना के मुताबिक चुने हुए उम्मीदवार सात महीने लंबी मंगल यात्रा के लिए चार-चार लोगों के छह समूहों में धरती से रवाना होंगे. इन लोगों का काम होगा कि मंगल पर पहुंचकर पानी खोजें, ऑक्सीजन पैदा करें और फिर अपने लिए खाना तैयार करेंगे.
जानिए, धधकते आग के गोले सूरज की तस्वीरें
सूर्य: धधकते आग के गोले की 8 दिलचस्प बातें
इसमें तो कोई दो राय नहीं कि सूर्य है तो जीवन है. ग्रहण के समय यही धधकता आग का गोला चांद के पीछे ढक जाता है और कुछ समय के लिए धरती पर अंधेरा छा जाता है. आइये जानें सूर्य से जुड़ी 8 दिलचस्प बातें.
तस्वीर: Paul Morley/Fotolia
दुर्लभ ग्रहण
हम धरती से पूर्ण सूर्य ग्रहण देख पाते हैं क्योंकि चंद्रमा धरती के काफी पास है, और इसीलिए ग्रहण के वक्त वह सूर्य को पूरी तरह से ढक पाता है. लेकिन चंद्रमा हर साल 2 सेंटीमीटर की दर से धरती से दूर जा रहा है. इसका मतलब ये हुआ कि करीब 60 करोड़ साल में चंद्रमा धरती से इतनी दूर होगा कि धरती से पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं दिख सकेंगे.
तस्वीर: Paul Morley/Fotolia
आंशिक या पूर्ण
पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के आधार पर एक साल में दो से पांच बार तक सूर्यग्रहण लग सकता है. पृथ्वी के उत्तरी या दक्षिणी ध्रुवों से केवल आंशिक सूर्य ग्रहण ही देखा जा सकता है. यूरोप में 20 मार्च, 2015 को पूर्ण सूर्यग्रहण दिखेगा, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में स्थित इंडोनेशिया जैसे देशों में 9 मार्च, 2016 को.
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आंखों को खतरा
आम तौर पर सोलर इक्लिप्स 5 मिनट से लेकर 12 मिनट तक चल सकता है. इस अनोखी प्राकृतिक घटना को कभी भी नंगी आंखों से नहीं देखना चाहिए. इसके लिए विशेष तरह के चश्मे या माध्यम हैं, जो आपकी आंखों को सूर्य की तेज किरणों से बचा सकते हैं.
तस्वीर: Reuters
सारा द्रव्यमान समेटे
हमारे सौरमंडल का करीब 99.86 फीसदी द्रव्यमान केवल सूर्य में ही है. इसका मतलब यह हुआ कि बाकी 0.14 फीसदी में ही सभी ग्रह और आकाशीय पिंड समाए हैं. हमारी आकाशगंगा में सूर्य करीब 220 किलोमीटर प्रति सेंकड की गति से यात्रा करता है. पूरी आकाशगंगा का एक चक्कर लगाने में सूर्य को भी 22 से 25 करोड़ साल लगते हैं.
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मॉन्सटर ग्रैविटी
सूर्य में धरती के आकार के लगभग 10 लाख पिंड समा सकते हैं. धरती पर 70 किलोग्राम वजन वाले इंसान का भार सूर्य की सतह पर करीब 1,960 किलोग्राम होगा. इसका कारण यह है कि सूर्य पर गुरूत्व बल धरती के मुकाबले करीब 28 गुना ज्यादा होता है. सूर्य की सतह पर एक दिन धरती के 25.38 दिनों के बराबर होता है.
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धरती को निगलने वाला
सूर्य बेहद गर्म गैसों से बना एक गोला है जिसके केन्द्र का तापमान 1.5 करोड़ डिग्री सेल्सियस है. सूर्य का निर्माण करने वाली करीब 72 प्रतिशत गैस हाइड्रोजन है, जबकि इसका 26 प्रतिशत हिस्सा हीलियम का है. हर सेंकड सूर्य पर करीब 40 लाख टन हाइड्रोजन जलता है. जब हाइड्रोजन का भंडार जल कर खत्म हो जाएगा तब हीलियम जलेगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ध्रुवों की अदला बदली
वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि हर 11 साल में सूर्य के ध्रुव बदल जाते हैं. यानि नॉर्थ पोल, साउथ पोल बन जाता है और साउथ, नॉर्थ. सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र में अंतिम अदला बदली 2013 के अंत में दर्ज हुई.
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ऑरोरा की छटाएं
सूर्य की सबसे दिलचस्प रोशनी ऑरोरा के रूप में नजर आती है. ऐसा तब होता है जब आवेशित कणों वाली सोलर विंड धरती के चुंबकीय क्षेत्र से टकराती है. धरती के वातावरण में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन गैसों और प्लाज्मा कणों के टकराने से निकलने वाली ऊर्जा हरे से रंग की रोशनी जैसी दिखती है. ऑरोरा केवल धरती ही नहीं, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और मंगल ग्रहों पर भी बनते हैं.
तस्वीर: dapd
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अभी तक सिर्फ नासा ने मंगल पर एक मानवरहित मिशन भेजा है. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा मंगल पर भेजने के लिए तीन अभियानों की तैयारी कर रही है. लेकिन 2030 से पहले किसी इंसान को मंगल पर भेजने की नासा की कोई योजना नहीं है.