मंगल पर काम कर रहे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रोवर पर्सीवरेंस ने ऐसे आंकड़े जुटाए हैं जिनसे साबित होता है कि मंगल ग्रह पर कभी पानी हुआ करता था.
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नासा के मार्स रोवर पर्सीविरेंस ने जजेरो क्रेटर में तलछट खोजी है. हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि पर्सीविरेंस के भेजे आंकड़ों से यह साबित होता है कि इस क्रेटर में कभी एक विशाल झील हुआ करती थी, जिसकी तलछट अभी वहां पाई गई है.
पर्सीवरेंस ने अपने रेडार की मदद से जमीन के नीचे की जांच की. इस जांच से उस आकलन की पुष्टि हुई है, जो उपग्रीय तस्वीरों पर आधारित था. इन तस्वीरों में दिखा था कि कभी क्रेटर में झील हुआ करती थी, जिसके अवशेष बाकी हैं.
तैयार है नासा का मंगल पर रहने लायक घर
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 2030 के बाद कभी इंसानों को मंगल ग्रह पर भेजने की तैयारी कर रही है. उसके लिए मंगल जैसी परिस्थितियों में एक घर बनाया गया है. देखिए, कैसा है ये घर.
तस्वीर: Go Nakamura/REUTERS
मंगल पर घर
ह्यूस्टन के जॉनसन स्पेस सेंटर में एक घर बनाया गया है, जिसकी पूरी परिस्थिति मंगल ग्रह पर बने घर जैसी हैं. इस घर को थ्रीडी प्रिंटर से प्रिंट किया गया है, जिसमें चार लोगों का एक दल एक साल तक रहेगा.
तस्वीर: Go Nakamura/REUTERS
हर तरह की सुविधा
इस घर में चार बेडरूम, दो बाथरूम, एक लैब, एक रोबोट स्टेशन, एक मेडिकल रूम, एक एक्सराइज रूम और आंगन भी है. आसपास रेत ही रेत है. अलग-अलग मशीनों को मंगल ग्रह पर काम करने के लिए बनाया गया है.
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पानी की कमी
इस घर को नाम दिया गया है क्रू हेल्थ एंड परफॉरमेंस एक्सप्लोरेशन एनालॉग (CHAPEA). जो सबसे बड़ी चुनौतियां इस घर में रहने वालों के सामने होंगी, उनमें से एक है पानी की कमी. वैसे घर में फसलें उगाने की जगह भी है.
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कौन रहेगा इस घर में
अभी उन लोगों के नाम तय नहीं किए गए हैं जो इस प्रयोग का हिस्सा होंगे. नासा उन लोगों का अध्ययन कर रही है और जल्दी ही उनके नामों का ऐलान किया जा सकता है. इन्हीं गर्मियों से यह प्रयोग शुरू होना है.
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सबकी परीक्षा
नासा की प्रमुख वैज्ञानिक ग्रेस डगलस कहती हैं कि इस घर को मंगल ग्रह जैसा बनाया गया है ताकि हमारे दल के लोग उन सारी परिस्थितियों को उसी तरह अनुभव करें, जैसा मंगल पर रहने के दौरान होगा. इससे हम भी समझ पाएंगे कि इंसानों पर उन हालात का क्या असर होता है.
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कितना टिकाऊ है घर
इस घर के जरिए उन तकनीकों की परीक्षण होगा, जिनका इंसान को मंगल ग्रह पर भेजने के लिए इस्तेमाल किया जाना है. साथ ही वैज्ञानिक यह भी जानेंगे कि जो चीजें उन्होंने बनाई हैं, वे मंगल पर कितना टिक पाएंगी.
तस्वीर: Go Nakamura/REUTERS
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अब तक वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि मंगल ग्रह पर एक विशाल झील थी और वहां सूक्ष्म जीव मौजूद हो सकते हैं. लॉस एंजेल्स स्थित कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी और नॉर्वे स्थित ओस्लो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक दल ने पर्सीविरेंस के भेजे आंकड़ों का अध्ययन और आकलन किया है.
इस अध्ययन में बताया गया है कि कार के आकार के छह पहियों वाले मार्स रोवर ने 2022 में कई महीनों तक जजेरो क्रेटर के धरातल के नीचे की सतह की जांच की. इसके लिए रोवर मंगल ग्रह पर क्रेटर में एक ऐसी जगह पहुंचा जो उपग्रह से ली गई तस्वीरों में किसी नदी के डेल्टा जैसा नजर आता है.
कभी रहने लायक रहा होगा मंगल
रोवर के रिमफैक्स रेडार इंस्ट्रूमेंट के जरिए वैज्ञानिक 20 मीटर की गहराई तक देख पाए. मुख्य शोधकर्ता कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के ग्रह-वैज्ञानिक डेविड पेज कहते हैं कि इस गहराई में देखना सड़क में किसी दरार में देखने जैसा था.
पेज के मुताबिक इस दरार की परतें इस बात का पक्का सबूत हैं कि जमीन में मौजूद तलछट पानी की वजह से था, जो जजेरो क्रेटर की ओर बहती किसी नदी ने छोड़ा होगा. यह वैसा ही है जैसा धरती पर नदी डेल्टा में बनी झीलों में होता है.
मंगल ग्रह में वैज्ञानिकों की इतनी दिलचस्पी क्यों
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पहले भी वैज्ञानिक कह चुके हैं कि आज जो सूखा, ठंडा और जीवन-रहित ग्रह है, वही मंगल कभी गर्म, गीला और शायद रहने लायक रहा होगा. नई खोज ने उस विचार की पुष्टि की है. अब वैज्ञानिक जजेरो के तलछट का करीबी से अध्ययन करना चाहते हैं. रोवर ने इसके नमूने जमा किए हैं, जिन्हें धरती पर भेजा जाएगा. माना जाता है कि यह क्रेटर तीन अरब साल पहले बना होगा.
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ज्वालामुखी या झील?
इससे पहले रोवर ने फरवरी 2021 में चार जगहों पर खुदाई की थी और नमूने जुटाए थे. उन नमूनों के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने कहा था कि वहां कभी ज्वालामुखी रहा होगा.
इन दोनों अध्ययनों को नतीजों को वैज्ञानिक विरोधाभासी नहीं मानते बल्कि ये एक दूसरे की पुष्टि ही करते हैं. उनके मुताबिक ज्वालामुखीय चट्टानों में भी पानी के संपर्क के संकेत मिले थे. अगस्त 2022 में प्रकाशित हुए उस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा था कि संभवतया तलछट क्षरित हो चुकी है.
कैसा है नासा का मार्स रोवर - परसिवरेंस
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यह पांचवा मार्स रोवर उसका आज तक का सबसे बड़ा और भारी अभियान है. फरवरी 2021 में यह मंगल पर उतरने वाला है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
एटलस V रॉकेट की सवारी
नासा के इंजीनियरों ने जुलाई 2020 की शुरुआत में ही मार्स रोवर को एटलस V रॉकेट पर लोड कर दिया. ‘परसिवरेंस’ अमेरिका के फ्लोरिडा से 30 जुलाई को छोड़ा जाना है
तस्वीर: NASA
करीब से ऐसे दिखता है
नासा का यह पांचवा रोवर मंगल पर पहले से काम कर रहे ‘क्यूरियोसिटी’ रोवर की मदद करेगा. इसका वजन क्यूरियोसिटी से करीब एक टन ज्यादा है और इसकी लंबाई 3 मीटर (10 फीट) है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
रोवर में क्या क्या है
कई रिसर्च उपकरण और सेंसर के अलावा इसकी भुजाओं पर 23 कैमरे और दूसरे कई टूल लगे हैं. इन्हीं की मदद से मंगल पर हर तरह के सैंपल इकट्ठे किए जाएंगे. मंगल की चट्टानों से ऑक्सीजन निकालने की संभावना तलाशना मिशन का एक अहम लक्ष्य है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
मंगल पर हेलिकॉप्टर
पहली बार किसी ग्रह पर भेजे जाने वाले ऐसे अभियान में रोवर के साथ साथ एक हेलीकॉप्टर भी भेजा जा रहा है. मंगल पर गुरुत्व बल धरती का करीब एक तिहाई होता है और ऐसे में हेलिकॉप्टर की उड़ान से कई नई जानकारियां हासिल करने का लक्ष्य है.
तस्वीर: NASA/Cory Huston
तीन पीढ़ियां एक साथ
सबसे छोटा है सोजोर्नर, जो केवल 10.6 किलोग्राम भारी था. फिर 185 किलो वजन वाला ऑपर्चुनिटी और 900 किलो भारी क्यूरियोसिटी रोवर. छोटे की स्पीड एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड तो वहीं बड़े रोवरों की स्पीड भी चार से पांच सेंटीमीटर प्रति सेकंड ही होती है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
भविष्य के रास्ते खोलने वाले मिशन
सोजोर्नर से मिली सीख के कारण 2004 में उसी के मॉडल पर स्पिरिट और ऑपर्चुनिटी रोबोट भेजे गए. स्पिरिट ने छह साल तक काम किया और ऑपर्चुनिटी से तो 13 फरवरी, 2019 को जाकर संपर्क टूटा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
लाल ग्रह की दुनिया
मंगल की सतह की यह तस्वीर क्यूरियोसिटी ने अपने कैमरे में कैद की थी. वह अब भी काम कर रहा है और अगले पांच साल या उससे भी लंबे समय तक सक्रिय रह सकता है. फिलहाल मंगल ग्रह पर केवल रोबोटों ने ही कदम रखा है लेकिन भविष्य असीम संभावनाओं से भरा है.
तस्वीर: Reuters
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पिछले हफ्ते प्रकाशित रिमफैक्स की जांच में भी क्षरण के संकेत मिले हैं. पेज कहते हैं कि यह मंगल ग्रह की जटिल भोगौलिक इतिहास के बारे में बताता है.
उन्होंने कहा, "हम जहां उतरे थे, वहां ज्वालामुखीय चट्टानें थीं. यहां असली खबर ये है कि अब हम (रोवर) डेल्टा तक पहुंच गए हैं और और झील की तलछट के सबूत देख पा रहे हैं. हमारे उस जगह जाने के मकसदों में से यह प्रमुख था. इसलिए उस लिहाज से यह खुशी की बात है.”