भारत के मदुरै में एक अस्पताल में आंखों के पांच लाख ऑपरेशन हर साल होते हैं. मैक्डॉनल्ड से प्रेरणा लेकर इस अस्पताल ने नया मॉडल बनाया और लाखों लोगों को रोशनी लौटाई.
विज्ञापन
मदुरैई के एक अस्पताल में हरे चोगे पहने लोगों की एक लाइन नजर आएगी. इनके माथे पर काला निशान है, जो बताता है कि इन्हें सर्जरी के लिए जाना है. ये लोग मैक्सर्जरी मॉडल के तहत आंखों के ऑपरेशन के लिए आते हैं.
मैक्सर्जरी मॉडल के तहत लाखों लोगों को आंखों की रोशनी दी जा चुकी है. यह मॉडल मैक्डॉनल्ड के सप्लाई मॉडल पर आधारित है जिसे अरविंद आई केयर सिस्टम ने अपनाया है. इसके तहत सालाना लगभग पांच लाख लोगों के ऑपरेशन किए जाते हैं, जिनमें से काफी मुफ्त होते हैं.
देखिए, क्या कह देता है आपका चेहरा
क्या क्या कह देता है आपका चेहरा
आंखें अगर आत्मा का झरोखा हैं, तो चेहरा उस झरोखे का फ्रेम है. हमें अक्सर एहसास नहीं होता कि हमारे चेहरे के भाव हमारे बारे में बहुत कुछ बता देते हैं. यहां तक कि तटस्थ भाव भी बहुत कुछ बता देते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Sezer
इतनी सी खुशी!
एक समय था जब कहा जाता था कि चेहरे के भावों की भाषा पूरी दुनिया में समझी जाती है. शोधकर्ताओं का मानना है कि चेहरे के भावों से हम जिन भावनाओं को दिखाते हैं वो सार्वभौमिक होती हैं. कुछ का तो मानना है कि मूल रूप से सात भावनाएं होती हैं - खुशी, आश्चर्य, उदासी, उपेक्षा, घृणा, डर और गुस्सा.
तस्वीर: picture alliance/ImageBROKER/M. Jaeger
मुस्कुराइए, कि आप संसार में हैं!
चेहरे की 43 मांसपेशियां होती हैं, जिन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है - एक वो जिनका इस्तेमाल हम खाने को चबाने के लिए करते हैं और दूसरे वो जिनका इस्तेमाल हम अपने भावों को व्यक्त करने के लिए करते हैं. कुछ अध्ययनों में भी यह भी दावा किया गया है कि मुस्कुराने और त्योरि चढ़ाने में बराबर संख्या में मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: Athit Perawongmetha/REUTERS
छिपे हुए भावों से सावधान
मनोवैज्ञानिक चेहरे के भावों में छिपे मतलब को पढ़ते हैं. हमें कभी कभी अहसास नहीं होता कि हम अपने चेहरे के भावों से अपनी भावनाओं का संचार कर रहे हैं. जैसे मान लीजिए आपके चेहरे के कोने झुक गए तो कुछ लोग सोचेंगे कि आप नकारात्मक हैं, विश्वास के लायक नहीं हैं या नाराज हैं. अमूमन ऊपर की तरफ उठे हुए मुंह वाले चेहरों को ज्यादा सकारात्मक माना जाता है.
तस्वीर: cc/Constantin Rezlescu
आंखों की गुस्ताखियां!
आप पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को पसंद करते हों या नहीं, वो चेहरे पर भाव लाने की कला के महारथी हैं. हालांकि यह जरूरी नहीं कि उनका चेहरा हमेशा असलियत बयां कर रहा हो. आंखों में भी असली बात बता देने वाले लघु हाव भाव होते हैं और कभी कभी लोग उन्हें छुपाने के लिए मुंह पर तरह तरह के भाव ले आते हैं.
तस्वीर: Getty Images/D. Angerer
छी!
क्या इस तस्वीर में ब्रिटेन की पूर्व मुख्यमंत्री थेरेसा मे रानी एलिजाबेथ द्वितीय की तरफ से आ रही किसी बदबू की वजह से नाक सिकोड़ रही थीं? ऐसा नहीं है. डार्विन ने कहा था कि मुमकिन है नाक को सिकोड़ने की आदत का विकास अप्रिय गैसों से खुद को बचाने की कोशिशों का नतीजा रहा होगा. लेकिन जैसा की हमने देखा, हम चेहरे के हाव भावों को अक्सर गलत पढ़ लेते हैं, खास कर जब वो कैमरे में कैद हो गए हों.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Dunham
खुशी के आंसू या दुख के?
दुख और सुख दोनों ही के आंसू सार्वभौमिक हैं लेकिन क्या आप हमेशा दोनों में फर्क कर सकते हैं? इसके लिए पूरी तस्वीर देखनी पड़ती है. क्या उस हाथ के नीचे एक मुस्कराहट छिपी हुई है? इस तस्वीर में तो नहीं. ऐसे में भंवों को देखें. अगर वो ऊपर की तरफ हैं तो इसका मतलब आश्चर्य हो सकता है. जब वो नीचे हों या एक दूसरे के पास हों तो वो दुख, गुस्सा और डर दिखाती हैं.
तस्वीर: Imago Images/Zuma/M. Hasan
एक पेचीदा भाव जिसे पढ़ना आसान नहीं
ये पुर्तगाल के फुटबॉल खिलाड़ी क्रिस्टियानो रोनाल्डो हैं. यहां पर वो गुस्सा कर रहे हैं या किसी चीज पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं? उनकी आंखों से कोई भी मतलब निकाला जा सकता है. लेकिन एक दूसरे के आस पास आ चुकी उनकी भवों और उनके खुले हुए मुंह को देखिए. क्या बेहतर नहीं होता कि आप रोनाल्डो को सुन और देख पाते?
तस्वीर: Reuters/M. Sezer
7 तस्वीरें1 | 7
दुनिया की एक चौथाई से भी ज्यादा आबादी, यानी दो अरब से ज्यादा लोग ऐसे हैं जिन्हें कम दिखाई देता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ल्ड विजन रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से लगभग एक अरब मामले ऐसे हैं जो वक्त पर संभाले होते तो नुकसान ना होता.
भारत में एक करोड़ से ज्यादा लोग नेत्रहीन हैं. और पांच करोड़ ऐसे हैं जिन्हें आंखों की रोशनी से जुड़ी कोई समस्या है. इनमें कैटारैक्ट सबसे बड़ी समस्या है.
मैक्डॉनल्ड से मिली प्रेरणा
अरविंद के संस्थापकों में से एक तुलसीराज रवीला बताते हैं, "इनमें से बड़ी तादाद में लोगों की आंखों की रोशनी बचाई जा सकती है क्योंकि कैटारैक्ट का इलाज साधारण सी सर्जरी से हो जाता है.”
अरविंद अस्पताल को डॉक्टर गोविंदप्पा वेंकटस्वामी ने स्थापित किया था. वह अमेरिका के शिकागो में हैमबर्गर विश्वविद्यालय गए थे जहां उन्हें मैक्डॉनल्ड के सप्लाई मॉडल के बारे में जानने का मौका मिला. वह इस अमेरिकी फास्ट फूड चेन के पूर्व सीईओ रॉय क्रॉक से प्रभावित हुए और उसी की प्रेरणा से अस्पताल शुरू किया. उन्होंने एक बार कहा भी था, "अगर मैक्डॉनल्ड हैमबर्गर के लिए कर सकता है, तो हम आंखों के लिए क्यों नहीं?”
तमिलनाडु के मदुरै में अरविंद अस्पताल की शुरुआत 1976 में 11 बिस्तर के अस्पताल के रूप में हुई थी. अब यह छोटे छोटे स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों की श्रृंखला के रूप में देशभर में फैल चुका है. यह मॉडल इतना सफल रहा है कि हार्वर्ड बिजनस स्कूल समेत तमाम शोध संस्थान इस पर शोध कर चुके हैं.
विज्ञापन
कैंप से अस्पताल तक
इस मॉडल के केंद्र में वे छोटे छटे कैंप हैं जो गांवों में लगाए जाते हैं. रवीला बताते हैं, "वहां तक पहुंचना बड़ी बात होती है. उनका हमारे पास आने के लिए इंतजार करने के बजाय हम इलाज को ही लोगों तक ले जा रहे हैं.”
इन मुफ्त कैंपों का बहुत से लोगों को फायदा हुआ है. जैसे वेंकटचलम राजंगम के घर के पास ही एक ऐसा कैंप लगा था. राजंगम बताते हैं कि उनकी दुकान है जहां उन्हें काम करना बंद करना पड़ा क्योंकि उन्हें नजर ही नहीं आता था कि ग्राहक कितना पैसा दे रहे हैं. कई बार वह अंधेरे में गिर भी जाते थे.
तस्वीरेंः घरेलू चीजें कीड़ों का घर
कई घरेलू चीजें होती हैं कीड़ों का घर
कई कीड़े ऐसे होते हैं जो हमें नंगी आंखों से आसानी से दिख जाते हैं, लेकिन कई ऐसे होते हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते. ये हमारे घरों में छुपे होते हैं और बीमारी का घर बन सकते हैं. इनसे बचना जरूरी है.
तस्वीर: NDR
सतर्कता
सोफा पर जितना समय आपका बीतता है, उससे कहीं ज्यादा आपके सोफा में घर बनाएं कीटों का बीतता है. कई कीट इतने छोटे होते हैं कि उन्हें आप सामान्य आंखों से नहीं देख पाते हैं. अपने और परिवार के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि सोफा और कुर्सियों की समय समय पर सफाई करते रहें.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बच्चों के खिलौने
बच्चों के सॉफ्ट टॉय में भी कीड़े छुप कर रहते हैं. अगर सॉफ्ट टॉय बिस्तर पर ही रहता है तो इसमें कीटों का घुसना और भी आसान है. संभव हो तो इन खिलौनों को समय समय पर धोते रहना चाहिए. कुछ दिन तक रोजाना इन्हें डीप फ्रीज में रखने से भी बैक्टीरिया इत्यादि मर जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Gollnow
पसंदीदा ठिकाना
खटमल और घुन जैसे छोटे कीट बिस्तर को तकलीफदेह बना सकते हैं. वे घर के बिस्तर और सोफा के अलावा कालीन में रहना भी पसंद करते हैं. अक्सर वे बच्चों के खिलौनों और कपड़ों में भी घर कर लेते हैं.
तस्वीर: Colourbox
कालीन की सफाई
कीटों को कालीन की गर्माहट में रहना बहुत भाता है. जिन लोगों को एलर्जी है, उन्हें घर पर कालीन रखने से बचना चाहिए. खासकर छोटे बच्चों के लिए कालीन का संपर्क बुरा हो सकता है. कालीन में रहने वाले कीटों से एलर्जी भी हो सकती है.
तस्वीर: Colourbox
बिस्तर की सफाई
बिस्तर और बिछौने को धूप दिखाना बेहद जरूरी है. हफ्ते में कम से कम दो बार गद्दे और तकिये को धूप दिखानी चाहिए. घर अगर बंद हो तो पहुंचते ही सबसे पहले खिड़कियां खोलें ताकि ताजा हवा आ सके.
तस्वीर: NDR
एलर्जी
खांसी, जुकाम जैसी बीमारियां अक्सर बिस्तर से होने वाली एलर्जी से भी हो सकती हैं. समय समय पर इस बात की जांच जरूरी है कि आपको किस चीज से एलर्जी है. इस तरह की एलर्जी से बचने के लिए बाजार में एंटी एलर्जी बेड भी उपलब्ध हैं. (नूरुन्नहार सत्तार/एसएफ)
तस्वीर: picture alliance/Bodo Marks
6 तस्वीरें1 | 6
मदुरैई से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर रहने वाले 64 वर्षीय राजंगम को पास के गांव कुडुकराई में एक कैंप के बारे में पता चला. वह कैंप पहुंचे जहां डॉक्टरों ने उनकी जांच की और बायीं आंख में कैटारैक्ट का पता चला. उन्हें और उन जैसे करीब 100 लोगों को एक बस से एक अन्य कैंप में ले जाया गया, जहां मुफ्त खाने-पीने और रहने की सुविधा भी मिली. वहां उनका ऑपरेशन हो गया.
राजंगम बताते हैं, "मुझे लगा कि ऑपरेशन घंटा भर तो चलेगा लेकिन 15 मिनट में ही सब हो गया. और ऐसा भी नहीं लगा कि जल्दबाजी की हो. सब बढ़िया से किया गया. मुझे एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ा. आंखें तो भगवान ने दी हैं लेकिन मेरी आंखों की रोशनी इन लोगों ने लौटाई.”
सर्जरी के लिए सख्त ट्रेनिंग
अरविंद अस्पताल में काम करने वाली आंखों की सर्जन डॉ. अरुणा पाई कहती हैं कि सर्जरी जल्दी का जा सके इसके लिए डॉक्टरों को गहन प्रशिक्षण दिया जाता है. इसलिए दस हजार में से दो ऑपरेशन में ही किसी तरह की दिक्कत होती है. ब्रिटेन और अमेरिका में दिक्कत होने की यह दर हर 10,000 पर 4-8 है.
कश्मीर के पैलेट पीड़ितों का दर्द
02:18
रोजाना, लगभग 100 ऑपरेशन करने वालीं पाई बताती हैं, "हमारे पास वेट लैब्स जहां हमें बकरियों की आंखों पर ऑपरेशन का अभ्यास कराया जाता है. इससे हमें अपने कौशल को बढ़ाने का मौका मिलता है.”
अस्पताल का कहना है कि वे दान नहीं लेते बल्कि जो मरीज पैसा दे सकते हैं, उनसे मिले धन के जरिए ही मुफ्त इलाज करते हैं. इसके अलावा अपनी ही फैक्ट्री में कैटारैक्ट के इलाज के लिए लैंस बनाकर भी धन बचाया जाता है. ऑरोलैब नाम की इस फैक्ट्री में सालाना 25 लाख लैंस बनाए जाते हैं.