यूरोप में 2023 में खसरे के मामले में अभूतपूर्व 45 गुना की वृद्धि हुई है. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बदलाव पर चिंता जताई है.
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2023 में खसरे के 42 हजार मामले सामने आए जो 2022 से 45 गुना ज्यादा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार को ये आंकड़े जारी किए और इस प्रसार को थामने के लिए आपातकालीन टीकाकरण की अपील की.
डब्ल्यूएचओ के यूरोपीय क्षेत्र में 53 देश हैं. इनमें से 41 देशों में खसरे के मामले सामने आए. डब्ल्यूएचओ ने बताया कि 2022 में मात्र 941 मामले दर्ज किए गए थे. संगठन ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान टीकाकरण की दर नीचे चली गई थी और इस बीमारी को थामने व फैलने से रोकने के लिए "आपातकालीन टीकाकरण अभियान की जरूरत है."
तीन साल से ठीक नहीं हुआ कोविड
अमेरिका के मसैचुसेट्स में रहने वाली गेन्या ग्रोंडिन को मार्च 2020 में कोविड हुआ था. यानी मास्क, लॉकडाउन और वैक्सीन से कहीं पहले.
तस्वीर: Brain Snyder/REUTERS
तीन साल से ठीक नहीं हुआ कोविड
ग्रोंडिन तीन साल बाद भी कोविड से पीड़ित हैं. वह ऐसे करीब साढ़े छह करोड़ लोगों में से एक हैं जिन्हें लॉन्ग कोविड हुआ है.
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200 लक्षण
200 लक्षण
विशेषज्ञों का कहना है कि अत्याधिक थकान, सोचने में दिक्कत, सिर दर्द, चक्कर आना, खून के थक्के बनना, सोने में दिक्कत आदि मिला कर लॉन्ग कोविड के कुल 200 लक्षण हैं.
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परेशान हैं ग्रोंडिन
44 वर्षीय गेन्या ग्रोंडिन कहती हैं कि उन्हें तो समझ ही नहीं आ रहा था. वह बताती हैं, “मैं बस अपने पति से कह रही थी कि कुछ तो गड़बड़ है.”
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तबाह हुई जिंदगी
इस बीमारी के कारण ग्रोंडिन अब काम पर भी नहीं जा पातीं. वह कहती हैं कि यह बहुत बड़ा झटका था, जिसने उनकी जिंदगी तबाह कर दी है.
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महिलाओं को ज्यादा खतरा
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के एक शोध के मुताबिक पहले दो साल में महिलाओं को लॉन्ग कोविड होने की संभावना पुरुषों से दोगुनी थी और उनमें से 15 फीसदी को 12 महीने से ज्यादा समय तक लक्षण बने रहे.
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कोई जवाब नहीं
वैज्ञानिकों के पास अब भी लॉन्ग कोविड का कोई ठोस जवाब नहीं है और वे शोध ही कर रहे हैं कि कुछ लोगों को लॉन्ग कोविड क्यों हुआ.
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जिन देशों में सबसे ज्यादा मामले बढ़े हैं, उनमें रूस और कजाखस्तान सबसे ऊपर हैं. पिछले साल जनवरी से अक्तूबर के बीच इन दोनों देशों में 10 हजार से ज्यादा लोग खसरे से बीमार हुए. पश्चिमी यूरोप में सबसे ज्यादा मामले ब्रिटेन में पाए गए, जहां 183 लोगों को खसरा हुआ.
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि जनवरी से अक्तूबर के बीच 21 हजार मरीजों को खसरे के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और पांच लोगों की मौत हुई जो "चिंता की बात है.” संगठन के मुताबिक 2020 से 2022 के बीच डब्ल्यूएचओ के यूरोपीय क्षेत्र में करीब 18 लाख शिशुओं को खसरे का टीका नहीं लग पाया था.
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क्यों होता है खसरा
दुनियाभर में स्वास्थ्य के हालात की निगरानी करने वाले संगठन ने कहा, "यह बहुत जरूरी हो गया है कि सभी देश समय से खसरे के प्रकोप की पहचान और रोकथाम के लिए तैयार रहें, नहीं तो खसरे को पूरी तरह खत्म करने में हुई प्रगति खतरे में पड़ जाएगी.”
खसरा रूबेला वायरस के कारण होता है और सांस, खांसी या छींक से भी एक व्यक्ति से दूसरे में फैल सकता है. बच्चों में खसरा ज्यादा होता है लेकिन ऐसा नहीं है कि वयस्क इससे बीमार नहीं हो सकते.
बेहतर हेल्थ सिस्टम बनाने के लिए WHO की सात सिफारिशें
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था बनाने के लिए एक रिपोर्ट में सात सिफारिशें की हैं. महामारी से जूझ रही दुनिया को जिस तरह की स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरत है, उसे हासिल करने के लिए ये कदम उठाने होंगे.
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ये सात कदम उठाने होंगे
कोविड ने दुनिया में 49 लाख जानें ली हैं. भारत में चार लाख 53 हजार लोग मर चुके हैं. ऐसा फिर ना हो, इसके लिए ये सात कदम उठाने होंगे.
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तैयारी
महामारी से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का फायदा उठाएं. भविष्य में ऐसे संकट से निपटने की तैयारी को और स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत किया जाए.
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निवेश
जन स्वास्थ्य सेवा में निवेश किया जाए, खासकर उन क्षेत्रों में जो आपातकालीन संकटों से निपटने के लिए जरूरी हैं.
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प्राथमिक स्वास्थ्य
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत बनाया जाए. प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं की नींव मजबूत की जाए.
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तंत्र
पूरे समाज को शामिल करने के लिए एक संस्थागत तंत्र बनाने में निवेश किया जाए.
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शोध
शोध, खोज और अध्ययन का माहौल बनाया जाए और इन क्षेत्रों को बेहतर बनाने पर काम किया जाए.
सिर्फ घरेलू स्तर पर नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए निवेश किया जाए. जो खतरनाक क्षेत्र हैं, उनमें आपातकालीन संकट से निपटने की तैयारी के लिए निवेश हो.
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समीक्षा
आबादी के उन हिस्सों पर विशेष ध्यान दिया जाए जो कोविड के दौरान ज्यादा प्रभावित हुए. उन तबकों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने में जो कमी रह गई, उसे दूर किया जाए.
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रूबेला वायरस के संपर्क में आने के बाद, बीमारी के लक्षण दिखने में आठ से बारह दिन का समय लगता है. इसके लक्षणों की शुरुआत तेज बुखार, बहती नाक, मांसपेशियों में दर्द और गले में खराश से होती है. शुरुआती लक्षणों के दो से तीन दिन बाद मुंह चेहरे पर सफेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं और लाल दाने हो जाते हैं जो जो सिर से नीचे की तरफ़ फैलते हैं. गंभीर स्थिति में पेट दर्द, दस्त और उल्टी हो सकती है.
खसरे के टीकाकरण में दो खुराक दी जाती हैं. पहला टीका 9 महीने पर लगता है और दूसरा 15 से 18 महीने पर. इस बीमारी के आउटब्रेक को रोकने के लिए कम से कम 95 फीसदी बच्चों को दोनों खुराक लगनी जरूरी हैं. लेकिन दुनियाभर में टीकाकरण की दर कम हो रही है.
2022 में 83 फीसदी बच्चों को ही खसरे की दोनों खुराक मिल पाई थीं. हालांकि 2021 के 81 फीसदी से यह कुछ ऊपर था लेकिन कोविड महामारी से पहले यह दर 86 फीसदी थी जो 2008 के बाद सबसे कम थी. 2022 में यूरोप में सिर्फ 92 फीसदी बच्चों को खसरे का दूसरा टीका लगा था.
भारत दूसरे नंबर पर
2021 में दुनियाभर में खसरे की वजह से एक लाख 28 हजार मौतें हुई थीं जिनमें से अधिकतर बच्चे पांच साल से कम उम्र के थे जिन्हें एक या दोनों टीके नहीं लगे थे. डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि साल 2000 से 2021 के बीच टीकाकरण के कारण साढ़े पांच करोड़ लोगों की जान बची.
वैक्सीन काम करती है, इसका सबूत है इन बीमारियों पर विजय
दुनिया में कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण अभियान के बीच याद रखना जरूरी है कि मानव जाति ने वैक्सीन की बदौलत ही कई बीमारियों पर विजय हासिल की है. हो सकता है जल्द कोरोना वायरस भी उतना सिमट जाए जितने ये बीमारियां सिमट चुकी हैं.
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पोलियो
1988 में दुनिया में पोलियो के तीन लाख से भी ज्यादा मामले थे, और आज 200 से भी कम मामले हैं. दो बूंद जिंदगी की - इस अभियान ने भारत से पोलियो को पूरी तरह हटाने में बड़ी भूमिका निभाई. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अफ्रीका के कुछ हिस्सों को छोड़ कर आज बाकी पूरी दुनिया पोलियो मुक्त हो चुकी है, टीके की बदौलत.
1980 में दुनिया भर में मीजल्स वायरस 25 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत का कारण बना था, लेकिन 2014 आते आते यह संख्या 75,000 से भी नीचे आ गई. मीजल्स के टीके को कई देशों में दूसरे टीकों के साथ मिला कर भी दिया जाता है और इसे काफी सफल टीका माना जाता है.
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चेचक
इसे आधुनिक दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी कहा जाता रहा है. चेचक पीड़ित 30 फीसदी लोगों की जान चली जाती थी. टीका बन जाने के बाद भी इस बीमारी को पूरी तरह खत्म करने में करीब दो सौ साल का वक्त लग गया. 1970 के दशक में दुनिया को चेचक से मुक्ति मिली.
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स्पेनिश फ्लू
1918 में शुरू हुए इंफ्लुएंजा या स्पेनिश फ्लू का टीका 1945 में जा कर बना. दुनिया की एक तिहाई आबादी इससे संक्रमित हुई और पांच करोड़ लोगों की जान गई. अगर टीका ना बना होता, तो आज दुनिया काफी अलग दिखती.
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टेटनस
जब भी कभी चोट लगती है, तो लोग टेटनस का इंजेक्शन लेने भागते हैं. डॉक्टर कहते हैं कि हर दस साल में एक बार टेटनस का टीका लगवाना चाहिए. टेटनस एक जानलेवा बीमारी है और हालांकि अब टेटनस के मामले ना के बराबर हैं, लेकिन रोकथाम के लिए टीका अब भी दिया जाता है.
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डिप्थेरिया
नवजात शिशुओं को डीपीटी का टीका दिया जाता है. डी से डिप्थेरिया, टी से टेटनस और पी से पर्टुसिस. ये तीनों बीमारियां बैक्टीरिया के कारण होती हैं. 1948 में डीपीटी का टीका विकसित हुआ लेकिन इसके काफी साइड इफेक्ट हुआ करते थे. 1990 के दशक में इसके फॉर्मूला में बदलाव किए गए.
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इबोला
2014 में फैले इबोला संक्रमण को टीके की मदद से ही रोका जा सका. दो साल तक इस बीमारी ने पश्चिमी अफ्रीका में कहर मचाया. इस दौरान वहां ग्यारह हजार से ज्यादा लोगों की जान गई.
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दुनियाभर में खसरे के कारण सबसे ज्यादा मौतों वाले देश में भारत दूसरे नंबर पर है. 2023 में सबसे ज्यादा 23,066 मौतें यमन में हुईं. उसके बाद भारत का नंबर है, जहां 13,997 मौतें हुईं. कजाखस्तान में 12,801 जानें खसरे के कारण गईं. उसके बाद इथियोपिया (11,042), रूस (7,137), पाकिस्तान (6,199), किरगिस्तान (4,701), डीआर कांगो (3,917), इराक (3,541) और अजरबैजान (3,291) का नंबर है.
भारत में 2017 से मार्च 2023 के बीच 34 करोड़ से ज्यादा बच्चों को खसरे के टीके लगाए गए. 2017 से 2021 के बीच भारत में इस बीमारी के मामले 62 फीसदी घटे थे.