जनवरी 2017 तक दुनिया की छह सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से तीन देशों की बागडोर महिला नेताओं के हाथ में होना अब दूर की कौड़ी नहीं लगता. लेकिन दुनिया भर में राष्ट्रीय स्तर की महिला नेताओं की संख्या लगातार घटी है.
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अगर डॉनल्ड ट्रंप अचानक किसी तरह महत्वपूर्ण बढ़त ना बना लें, तो अब तक के सर्वेक्षण तो यही दिखाते हैं कि हिलेरी क्लिंटन का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना तय है. रॉयटर्स के ताजा इप्सोस पोल में क्लिंटन 11 प्वांइट से रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप के आगे दिख रही हैं.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का जर्मनी और यूरोप ही नहीं पूरे वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में बेहद अहम स्थान है. विश्व के दो कद्दावर नेताओं का नाम लिया जाए तो रूस के व्लादीमिर पुतिन ही मैर्केल के आस पास दिखते हैं.
यूरोप से ब्रिटेन के एक्जिट से उड़ी धूल जैसे जैसे बैठ रही है, नया नेतृत्व सामने आ रहा है. ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री के रूप में थेरेसा मे दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की मुखिया बनी होतीं, अगर ब्रेक्जिट के कारण उनकी मुद्रा में आई गिरावट ब्रिटेन को फ्रांस के पीछे ना ले जाती.
डेविड कैमरन की जगह लेने के लिए भी जिन दो उम्मीदवारों के नाम प्रमुखता से उभरे थे, वे दोनों ही महिलाएं थीं. फिर ऊर्जी मंत्री और पूर्व बैंकर एंड्रिया लेडसम रेस से हट गईं और उन्होंने सरकार प्रमुख के पद के लिए गृह सचिव थेरेसा मे को समर्थन दे कर उनका रास्ता साफ कर दिया. ब्रिटेन में 2020 से पहले अगले चुनाव नहीं होने हैं.
दूसरे पक्ष यानि विपक्षी लेबर पार्टी की ओर देखें, तो जेरेमी कॉर्बिन की जगह लेने वाला नेता एंजेला ईगल को माना जा रहा है. पार्टी में फैले व्यापक असंतोष के बावजूद केवल ईगल ही कॉर्बिन को चुनौती देती दिखती हैं. हालांकि कॉर्बिन अभी खुद पद छोड़ने को राजी नहीं हैं.
ये सभी महिलाएं ब्रिटिश राजनीति के सबसे क्रूर और निर्मम काल से उभर कर निकली हैं. इनमें से कोई भी प्रतीकात्मक नेता नहीं कहा जा सकता. कई ब्रिटिश राजनेताओं ने 23 जून के रेफरेंडम के बाद से अपनी कुर्सी और साख को गंवाया है. मैदान में सिर उठाए डटे रहने वाली ये नेता अब जिम्मेदारी उठाने को भी तैयार हैं.
प्रसिद्ध प्रथम महिलाएं
फर्स्ट लेडी की बात हो तो आम तौर पर वयोवृद्ध नेताओं की पत्नियों की तस्वीर उभरती है. लेकिन दुनिया के बहुत से राष्ट्रपति भवनों और राजमहलों के लिए वे सौंदर्य और ताकत के मेल के अलावा ग्लैमर की गारंटी हैं.
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मेलानिया ट्रंप
अमेरिका में नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की पत्नी अब तक पृष्ठभूमि में रही हैं. जनवरी 2017 से वह दुनिया की सबसे ताकतवर प्रथम महिला होंगी.
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कार्ला ब्रूनी सारकोजी
मूल रूप से इटली वासी कार्ला ब्रूनी मॉडल और गायिका के रूप में प्रसिद्ध हुई. कुछ महीनों के रिश्तों के बाद 2008 में उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी से शादी की. वे स्टायल आइकन मानी जाती हैं.
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रानी रानिया
चार बच्चों की मां 1999 से जॉर्डन की रानी हैं. उन्हें उनके सामाजिक सरोकारों के लिए अपने देश के अलावा पूरी दुनिया में जाना जाता है. आतंकवाद विरोधी रानिया ने आईएस के खिलाफ रैलियों में हिस्सा लिया है.
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इंखोसिकाती लाएमबिकिजा
वे स्वाजीलैंड की रानी हैं. कई रानियों में एक, क्योंकि राजा एमस्वाति तृतीय की 13 पत्नियां हैं. लेकिन क्वीन लाएमबिकिजा दौरों पर राजा के साथ जाती हैं. वे एचआईवी और एड्स के खिलाफ संघर्ष के लिए जानी जाती हैं.
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जैकलीन कैनेडी
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की पत्नी को अभी भी ग्लैमर की मिसाल माना जाता है. जैकी ने जॉन कैनेडी से 1953 में शादी की थी और ये जोड़ा व्हाइट हाउस का सबसे ग्लैमरस दम्पत्ति माना जाता है.
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ग्रेस केली
हॉलीवुड की कामयाब अभिनेत्री, जिसने गैरी कूपर और क्लार्क गैबल जैसे सितारों के साथ नाम कमाया. शादी के बाद 1956 में वे मोनाको की प्रिंसेस ग्रेस बनी. 1982 में उनकी एक कार दुर्घटना में मौत हो गई.
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सोराया एसफांदरी बख्तियारी
सोराया ईरान के अंतिम शाह की पहली पत्नी थीं. 1951 में 19 साल की उम्र में उनकी मुहम्मद रजा पहलवी से शादी की, जो 1967 में ईरान के शाह बने. यह शादी सिर्फ सात साल चली क्योंकि जोड़े को कोई बच्चा नहीं हुआ.
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इमेल्डा मार्कोस
फिलीपींस जैसे गरीब देश की ये फर्स्ट लेडी विलासिता और नकचढ़ेपन के लिए जानी जाती हैं. पूर्व में ब्यूटी क्वीन रहीं इमेल्डा बाद में अपने हजारों जूतों के लिए प्रसिद्ध हुईं जिनमें कई हजार डिजायर जूते भी थे.
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मिशेल ओबामा
मिशेल ओबामा 2009 में अमेरिका की पहली अश्वेत फर्स्ट लेडी बनीं. प्रिंसटन और हार्वर्ड में पढ़ीं मिशेल की ख्याति अतीत की उपलब्धियों के अलावा नई भूमिका में रचने बसने के कारण भी है. अक्सर वे अपने साधारण ड्रेसों से स्टाइल का संदेश देती हैं.
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गृह मंत्री रह चुकी थेरेसा मे ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर जितनी बांटने वाली भी साबित हो सकती हैं. गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने आप्रवासन पर सख्त रवैया अपनाया था. मे के आलोचक भी कहते हैं कि वे बेहद कड़क, हठी, कोई बकवास ना झेलने वाली प्रचारक और मध्यस्थ हैं. ईयू के साथ ब्रिटेन की डिप्लोमेटिक बातचीत में उनसे बेहतर विकल्प कोई नहीं होता.
कभी भी किसी महिला राष्ट्राध्यक्ष को ना चुनने वाला अमेरिका कोई अकेला देश नहीं है. उसके अलावा फ्रांस, चीन और रूस में भी कभी महिला राष्ट्रपति नहीं बनी हैं. हालांकि इन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कुछ हद तक संतुलन दिखाई देगा जब फ्रांस के फ्रांसुआ ओलांद, चीन के शी जिनपिंग, रूस के पुतिन के साथ ब्रिटेन की मे, जर्मनी की मैर्केल और संभवत: अमेरिका की क्लिंटन होंगी.
इन तीन देशों - जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका - की राष्ट्रीय राजनीति में काफी कम महिला नेताओं के होने के बावजूद इन महिला नेताओं का सबसे बड़े पदों तक पहुंचना और बड़ी उपलब्धि हो जाता है. जर्मनी में केवल 37 फीसदी महिला सांसद हैं. वहीं यूके में मात्र 29 प्रतिशत और अमेरिकी कांग्रेस में केवल 19 फीसदी. राष्ट्रीय राजनीति के स्तर पर लैंगिक बराबरी का आंकड़ां पार करने वाले दुनिया में केवल दो ही देश हैं- रवांडा और बोलिविया. अमेरिका तो इस रैंकिंग में 96वें स्थान पर आता है.
दुनिया की सबसे पहली महिला प्रधानमंत्री 1960 में श्रीलंका में श्रीमावो भंडारनायके चुनी गई थीं. और दुनिया की पहली महिला राष्ट्रपति 1974 में अर्जेंटीना की इजाबेल पेरॉन बनीं थीं.
कहां है समानता
महिला समानता की दिशा में बहुत प्रगति हुई है, लेकिन महिलाओं के साथ अभी भी पूरी दुनिया में भेदभाव हो रहा है. 1911 से 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है लेकिन समानता का लक्ष्य हासिल नहीं हुआ है.
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कम वेतन
दुनिया भर में महिलाओं को आज भी पुरुषों के बराबर मेहनताना नहीं मिलता है. उन्हें 10 से 30 प्रतिशत कम वेतन मिलता है.
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ओईसीडी भी पीछे
दुनिया के विकसित देशों के संगठन ओईसीडी के देशों में भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 16 प्रतिशत कम वेतन मिलता है.
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22 का अंतर
जर्मनी में भी स्थिति अलग नहीं. पुरुषों और महिलाओं के वेतन का अंतर पिछले कई सालों से लगातार 22 प्रतिशत के करीब है.
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नौकरी में पीछे
दुनिया भर में कॉलेजों से पास करने वाली लड़कियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन नई नौकरियां पाने वाले 79 प्रतिशत पुरुष होते हैं.
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शिक्षा की कमी
विकासशील देशों में हालत और भी खराब है जहां शिक्षा में बराबरी न होने के कारण ज्यादातर महिलाएं कम आय वाले क्षेत्रों में काम करती हैं.
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नेतृत्व से बाहर
उच्च शिक्षा में महिलाओं का औसत बढ़ने के बावजूद सिर्फ 12 प्रतिशत कंपनियों में महिलाएं मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर हैं.
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बराबरी के फायदे
महिलाओं को अर्थव्यवस्था में बराबरी का हिस्सा मिले तो विकसित देशों की राष्ट्रीय आय 12 प्रतिशत बढ़ जाएगी.
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तिहाई ज्यादा
फॉर्चून 500 कंपनियों के एक सर्वे के अनुसार प्रबंधन में उच्चतम महिला भागीदारी वाली कंपनियों को दूसरों से 34 प्रतिशत ज्यादा मुनाफा होता है.
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दूर के ढोल
अगर मौजूदा ढर्रा बना रहता है तो महिलाओं को पुरुषों के बराबर आर्थिक सत्ता और संभावना पाने में और 80 साल लगेंगे. साल 2096 तक का समय लग सकता है.
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जाहिर है कि किसी नेता को केवल उसके लिंग से पहचाना या परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए. और ऐसा हुआ भी नहीं है कि इन प्रभावशाली नेताओं के बारे में यह बात ज्यादा अहम रही हो कि वे महिलाएं हैं. 1995 में बीजिंग में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हिलेरी क्लिंटन का यह वक्तव्य सुप्रसिद्ध हुआ था कि मानव अधिकार ही महिला अधिकार हैं, और महिला अधिकार ही मानवाधिकार.
इन महिला नेताओं के साथ मिसालें जरूरत बनती हैं और दुनिया की सभी महिलाओं की आकांक्षाओं को भी स्वीकार्यता मिलती है. लेकिन जिस तरह पहले अश्वेत अमेरिकी बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने से देश में एफ्रो-अमेरिकनों के साथ भेदभाव होना बंद नहीं हो गया, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान समेत कई दक्षिण एशियाई देशों में महिला प्रमुख होने के बावजूद इन देशों में महिलाओं का अपमान और उन पर अत्याचार होना नहीं रुक गया, वैसे ही इस घटना को भी व्यावहारिक होकर देखना चाहिए.
दरअसल, दुनिया भर में राष्ट्रीय स्तर पर महिला नेताओं की संख्या लगातर कम हो रही है. "वीमेन इन लीडरशिप" वेबसाइट के आंकड़े दिखाते हैं कि फिलहाल विश्व में केवल 24 महिला नेता हैं. यह बीते कई सालों में सबसे कम संख्या है. वह भी तब जब इनमें ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और डेनमार्क की रानी मार्गरेथ को भी शामिल किया गया है.
यह स्थिति बदलने में समय लगेगा, लेकिन यह भी सच है कि ब्रिटेन अपनी दूसरी महिला पीएम और अमेरिका अपनी पहली महिला राष्ट्रपति चुनने जा रहा है, और इससे यह साल 2016 आज तक के राजनीतिक इतिहास में "महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण साल" बन सकता है.
दुनिया मुट्ठी में रखने वाली महिलाएं
अमेरिकी पत्रिका फॉर्चून हर साल दुनिया की टॉप मैनेजरों की सूची जारी करती है. इसमें एशिया प्रशांत की टॉप मैनेजर भी होती हैं और इंटरनेशनल भी. आइए नजर डालें दुनिया की ताकतवर महिला प्रबंधकों पर..
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चंदा कोचर
आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक और सीईओ हैं. इन्हें एशिया प्रशांत की सूची में दूसरी सबसे ताकतवर महिला बताया गया है. पहले नंबर पर ऑस्ट्रेलिया की सीईओ गेल केली हैं.
तस्वीर: picture alliance/Photoshot
अरुंधती भट्टाचार्य
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में तीन साल के लिए चेयरमैन के पद पर बैठने वाली अरुंधती भट्टाचार्य पहली महिला हैं. भारत में एसबीआई की 16,000 शाखाओं में कुल दो लाख अठारह हजार कर्मचारी काम करते हैं.
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वर्जीनिया जिनी रोमेटी
दुनिया में पहले नंबर की मैनेजर आईटी कंपनी आईबीएम की चेयरमैन और सीईओ रोमेटी हैं. वह दो साल से नंबर वन पर बनी हुई हैं.
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मैरी बारा
कार निर्माता कंपनी जनरल मोटर्स की सीईओ इस उद्योग में पहली महिला कार्यकारी अधिकारी बनी. फॉर्चून की विश्व रैकिंग में वह दूसरे नंबर पर हैं.
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इंदिरा नूयी
विश्व रैंकिंग में पेप्सी कंपनी की इंदिरा नूयी तीसरी रैंक पर हैं. 2013 के दौरान अमेरिका के नए 50 सर्वश्रेष्ठ खाद्य पदार्थों और पेय में पेप्सी कंपनी के नौ उत्पाद शामिल थे.
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मैरिलीन ह्यूसन
हथियार निर्माता कंपनी लॉकहीड मार्टिन की अध्यक्ष, चेयरमैन और कार्यकारी अधिकारी भी एक महिला ही हैं, ह्यूसन की दुनिया में रैंकिंग चौथी है. और रक्षा क्षेत्र की कंपनियों में पहली महिला प्रमुख भी.
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शैरिल सैंडबर्ग
पांचवें से 10वीं रैंक पर पहुंसी सैंडबर्ग मशहूर सोशल नेटवर्किंग कंपनी फेसबुक की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (सीओओ) हैं. पिछले साल उनकी बेस्टसेलर किताब 'लीन इन' ने उन्हें कॉरपोरेट सेक्टर में लैंगिंक समानता का चेहरा बना दिया.