बर्फ के पिघलने से धीमी हो सकती है यह समुद्री धारा
३ मार्च २०२५
यह दावा सोमवार तीन मार्च को 'एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स' पत्रिका में छपे एक शोध के नतीजों में किया गया. अध्ययन के मुताबिक अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों के पिघलने की वजह से 'अंटार्कटिक सर्कमपोलर करंट' नाम की महासागर धारा में बड़ी मात्रा में ताजा पानी जाएगा.
वैज्ञानिकों ने ऑस्ट्रेलिया के सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटरों में से एक का इस्तेमाल कर यह पता करने की कोशिश की कि बर्फ के पिघलने का इस धारा पर क्या असर पड़ सकता है. यह धारा वैश्विक जलवायु प्रणाली में एक बड़ी भूमिका निभाती है.
गति धीमी होने का असर
वैज्ञानिकों ने पाया कि अगले 25 सालों में अगर जीवाश्म ईंधनों का उत्सर्जन बढ़ा तो इससे इस धारा की गति करीब 20 प्रतिशत तक गिर सकती है.
मेलबर्न विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक बिशाखदत्त गायेन ने बताया, "महासागर बेहद पेचीदा और महीन रूप से संतुलित है. अगर इस धारा का 'इंजन' खराब हो गया, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जैसे कुछ इलाकों में ज्यादा चरम मौसमी घटनाओं का होना और कार्बन सोखने की महासागर की क्षमता में कमी आने की वजह से ग्लोबल वार्मिंग की गति का बढ़ जाना."
बर्फ पिघलने से ध्रुवीय भालू भी परेशान
गायेन ने समझाया कि यह धारा एक तरह के "महासागर कन्वेयर बेल्ट' की तरह काम करती है. इसी धारा के जरिए भारी मात्रा में पानी हिंद महासागर, अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर से होकर गुजरता है.
अध्ययन में पता चला कि बर्फ के पिघलने से इस धारा में "भारी मात्रा में ताजा पानी" भर जाएगा. इससे महासागर में नमक की मात्रा बढ़ जाएगी जिसकी वजह से ठंडे पानी के लिए सतह और गहरे इलाकों के बीच सर्कुलेट करना मुश्किल हो जाएगा.
महासागर जलवायु के नियामकों और कार्बन को सोखने वाली शक्तियों के रूप में बेहद जरूरी भूमिका निभाते हैं. ठंडा पानी वातावरण से काफी गर्मी सोख सकता है. अंटार्कटिका के इर्द गिर्द घड़ी की सुई की दिशा में बहने वाली इस धारा की शक्ति एक ऐसे बैरियर का भी काम करती है जो आक्रामक प्रजातियों को अंटार्कटिका के तट तक आने से रोकता है.
ग्लोबल वार्मिंग के असर को समझने की जरूरत
लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर धारा की गति धीमी हुई तो शैवाल और घोंघे आदि जैसे जानवर अंटार्कटिका पर काफी आसानी से कब्जा कर सकते हैं. अगर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित भी कर दिया गया, तो भी यह धारा धीमी हो सकती है.
जलवायु वैज्ञानिक और इस रिपोर्ट के सह-लेखक तैमूर सोहेल ने बताया, "2015 की पेरिस संधि का लक्ष्य था ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक युग से पहले के स्तर से सिर्फ 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक के रखना. कई वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि हम इस लक्ष्य तक पहुंच चुके हैं और संभावना यही है कि अब गर्मी और बढ़ेगी और उसका असर अंटार्कटिक की बर्फ के पिघलने पर भी पड़ेगा."
अंटार्कटिका की गहराइयों में जाएंगे रोबोट
इस शोध टीम में ऑस्ट्रेलिया, भारत और नॉर्वे के वैज्ञानिक शामिल थे. उनका कहना है कि उनके निष्कर्ष उन पिछले अध्ययनों से उलट हैं जिनमें कहा गया था कि इस लहर की रफ्तार बढ़ रही है.
उन्होंने कहा कि इस इलाके पर कम ध्यान दिया गया है और यहां जलवायु परिवर्तन का क्या असर हो रहा है इसे समझने के लिए कंप्यूटरों की मदद से 'मॉडलिंग' की जरूरत है.
सीके/एवाई (एएफपी)