कामकाजी महिलाओं के करियर पर ‘पॉज’ लगाता मेनोपॉज
१९ अप्रैल २०२४"काम बंद करने की नौबत तो नहीं आई लेकिन तब पूरे शरीर में जलन होती रहती थी. इतनी गर्मी लगती थी कि क्या बताऊं.”
47 वर्षीय कृष्णा चक्रवर्ती पेशे से म्यूजिक टीचर हैं. कोविड के दौरान 2020 में उनका मेनोपॉज हुआ. अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे पता ही नहीं था कि ये मेनोपॉज के लक्षण हैं. वह तो मेरी बेटी ने बताया कि शायद यह मेनोपॉज हो सकता है. लेकिन मैं ये सब झेलते हुए घर के सारे काम कर रही थी, क्लासेज ले रही थी. उस दौरान बिलकुल अच्छा महसूस नहीं होता था, फिर भी मैंने अपनी म्यूजिक क्लास जारी रखी.”
रजोनिवृत्ति यानि मेनोपॉज उस स्थिति को कहते हैं जब जिन्हें भी पीरियड आते हैं वे आना बंद हो जाएं. अमूमन मेनोपॉज 45 से 50 साल की उम्र के बीच होता है लेकिन इसके लक्षण सालों पहले से दिखने लगते हैं. अमेरिका की क्लीवलैंड क्लिनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेनोपॉज के लक्षण दस साल पहले देखे जा सकते हैं. प्रीमेनोपॉज यानी मेनोपॉज के पहले का जो वक्त होता है वह एक महिला के लिए कई मुश्किलें साथ लाता है. इसमें हॉट फ्लैश यानी तेज गर्मी महसूस करना, मूड में बदलाव, नींद न आना, सिर दर्द, वजन बढ़ना जैसे लक्षण शामिल होते हैं. कामकाजी महिलाएं इस दौरान दोहरी चुनौती का सामना करती हैं.
मेनोपॉज के कारण नौकरी छोड़ती महिलाएं
2022 में फार्मा कंपनी एबॉट और मार्केट रिसर्च कंपनी इप्सॉस द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक, 82 फीसदी भारतीय कामकाजी महिलाओं का मानना था कि मेनोपॉज उनके काम पर असर डालता है. करीब 26 फीसदी ने बताया कि जब वे मेनोपॉज से गुजर रही थीं तो उन्होंने छुट्टी ली. वहीं, 18 फीसदी ने बताया कि इस दौरान भी वे तकलीफ सहकर काम करती रहीं.
हिमाचल प्रदेश के चंबा की नीलम एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया, "मेनोपॉज होने से पहले महीने में तीन-तीन बार पीरियड्स आ जाते थे. काम पर जाने से बचती थी. मैं काम पर बस से जाती हूं तो डर लगता था कि कहीं कपड़े न खराब हो जाएं. इस दौरान काम पर जाना और काम करना दोनों ही अपने आप में संघर्ष करने जैसा था.”
मेनोपॉज से गुजर रही महिलाओं के लिए चुनौतियां इस कदर बढ़ जाती हैं कि उनमें से कइयों को नौकरी तक छोड़नी पड़ जाती है. ब्रिटेन की कंपनी सिंपली हेल्थ के एक सर्वे के मुताबिक, 23 फीसदी महिलाओं ने मेनोपॉज के कारण अपनी नौकरी से इस्तीफा देने के बारे में गंभीरता से सोचा. वहीं, 14 फीसदी ने बताया कि वे अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला कर चुकी हैं. हर दस में से नौ महिलाएं कार्यस्थल पर मेनोपॉज के दौरान अधिक समर्थन और संवेदनशीलता की उम्मीद करती हैं.
आर्थिक नुकसान और तरक्की के अवसर गंवाती महिलाएं
मेनोपॉज के दौरान कार्यस्थल पर समर्थन न मिलने के कारण महिलाएं न सिर्फ नौकरी छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं बल्कि उन्हें इसका आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. अमेरिका की मेयो क्लिनिक की रिसर्च के अनुसार मेनोपॉज के लक्षणों के कारण महिलाओं के काम के घंटे कम होते हैं, इससे उन्हें सालाना 1.8 अरब डॉलर का नुकसान होता है. अगर महिलाएं नौकरी छोड़ने की हालत में नहीं होती हैं तो उन्हें छुट्टियां लेनी पड़ती हैं, वे अपने काम के घंटे कम कर देती हैं या फिर तरक्की के मौके उनके हाथ से निकल जाते हैं.
कृष्णा कहती हैं, "मैं तो तब घर से क्लासेज ले रही थी तो मैंने तो किसी तरह अपना काम संभाल लिया, उसे बंद नहीं करना पड़ा. सोचिए मेनोपॉज से गुजर रही जिन महिलाओं को हर रोज दफ्तर जाना पड़ता है उन्हें किन परेशानियों से गुजरना पड़ता होगा. मेनोपॉज पर बात नहीं करने से हमारी परेशानी और बढ़ती है. अगर घर और कार्यस्थल पर लोग इन दिक्कतों को समझने लगेंगे तो शायद इससे हमारा कष्ट थोड़ा कम हो जाएगा.”
वक्त से पहले मेनोपॉज की चुनौती
भारत में औसतन 46.2 साल की उम्र में महिलाओं का मेनोपॉज हो जाता है. हालांकि, बड़ी संख्या ऐसी महिलाओं की भी है जिनका मेनोपॉज इस उम्र से काफी पहले हो जाता है. इंस्टिट्यूट फॉर सोशल एंड इकॉनमिक चेंज के एक सर्वे के मुताबिक, भारत में 29 से 34 साल की चार फीसदी महिलाएं वक्त से पहले मेनोपॉज का सामना करती हैं. 35 से 39 साल की करीब आठ फीसदी महिलाएं प्रीमेनोपॉज से गुजरती हैं.
संपूर्णा कुंडू जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्यूनिटी हेल्थ में पीएचडी स्कॉलर हैं. मेनोपॉज पर अपना शोध पत्र छाप चुकी कुंडू ने बताया कि वे महिलाएं जो वक्त से पहले मेनोपॉज से गुजरती हैं उनकी चुनौतियां कहीं अधिक हैं. वो कहती हैं, "कई तो बिल्कुल भी काम नहीं कर पातीं. कार्यस्थल पर इससे जुड़ी कोई नीति भी नहीं है तो इसके लिए सिक लीव भी नहीं ली जा सकती, ना ही हेल्थ इनश्योरेंस इसे कवर करता है."
मेनोपॉज पर क्या टूट रही है चुप्पी
2021 में भारत में नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज आई थी ‘बॉम्बे बेगम्स.' इसमें पूजा भट्ट ने ऐसी महिला का किरदार निभाया था जो मेनोपॉज से गुज रही थी. इस किरदार ने मेनोपॉज को पॉप कल्चर की डिबेट का हिस्सा जरूर बना दिया था. बीते कुछ सालों में मिशेल ओबामा, ओपरा विन्फ्रे, सलमा हायक जैसी मशहूर हस्तियों ने खुलकर अपने मेनोपॉज के अनुभव साझा किए हैं. आम कामकाजी महिलाएं भी धीरे धीरे इस बारे में खुलकर बात करने लगी हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में कुंडू कहती हैं, "मेनोपॉज का मतलब है प्रजनन क्षमता का खत्म होना. अगर किसी का मेनोपॉज वक्त से पहले हो जाए तो उसका मतलब है कि वह युवा महिला बच्चे पैदा नहीं कर सकती. और जो महिलाएं बच्चे पैदा नहीं कर पातीं उनके लिए हमारा समाज बहुत घटिया सोच रखता है."
कार्यस्थल पर मेनोपॉज से जुड़ी नीतियां बनाना क्यों जरूरी
अमेरिका के जॉर्जिया में रहने वाली अलीशा कोलमन का एक जाना माना केस देखिए. साल 2017 में उन्हें निजी स्वच्छता का ध्यान न रखने का हवाला देते हुए नौकरी से निकाल दिया गया था. इस घटना के समय वह प्रीमेनोपॉज से गुजर रही थीं और हेवी ब्लीडिंग के कारण उनसे दफ्तर की कुर्सी गंदी हो गई थी. इसके खिलाफ कोलमन ने अपने नियोक्ता के खिलाफ मुकदमा दायर किया लेकिन जज ने यह कहते हुए केस खारिज कर दिया था कि कोलमन के साथ जो हुआ वह लैंगिक भेदभाव नहीं था.
मेनोपॉज से जुड़ीं नीतियां लागू करने की पहल कुछ कंपनियों ने जरूर की है. अंतरराष्ट्रीय बैंक एचएसबीसी ने ब्रिटेन में अपने कर्मचारियों के लिए मेनोपॉज नीति लागू की है. इसके तहत कार्यस्थल पर मेनोपॉज के पहले या उसके बाद भी महिलाओं को हर तरह का समर्थन दिया जाता है. बैंक स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने भी कहा था कि वित्तीय संस्थाएं सीनियर और काबिल वर्कफोर्स को गंवा रही हैं क्योंकि कार्यस्थल पर मेनोपॉज से गुजर रही महिलाओं के लिए समर्थन की कमी है.
जेंडर के मुद्दे पर काम करने वाली नीलम कहती हैं कि अगर कार्यस्थल पर नीतियां नहीं बन सकतीं तो कम से कम कामकाजी महिलाओं को इस दौरान छुट्टी तो मिलनी ही चाहिए. आंकड़े बताते हैं कि जिस उम्र में महिलाएं मेनोपॉज से गुजरती हैं, उसी दौरान वे अपने करियर के शीर्ष पर भी होती हैं. लेकिन उचित समर्थन और सुविधा न मिलने के कारण उनके आगे बढ़ने के मौके सीमित हो जाते हैं. अगर कार्यस्थल पर मेनोपॉज से जुड़ी नीतियां लागू होती हैं तो मुमकिल है कि ज्यादा से ज्यादा अनुभवी महिलाएं वर्कफोर्स का हिस्सा बनी रहेंगी.