जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने अफगानिस्तान की स्थिति पर दिए अपने भाषण में कुछ अहम बातें कहीं. उन्होंने कहा कि जर्मनी समयसीमा के बाद भी अफगानों की मदद करता रहेगा.
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जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भरोसा दिलाया है कि देश की सेना के साथ काम करने वाले अफगानों को निकालने के लिए पूरी तत्परता से काम किया जा रहा है. बुधवार को जर्मन संसद में एक बयान में मैर्केल ने कहा कि 31 अगस्त की समयसीमा के बाद भी जर्मनी अफगान लोगों की मदद करता रहेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान छोड़ने की समयसीमा बढ़ाने की संभावना से इनकार कर दिया है जिसके बाद कई देश इस उलझन में हैं कि 31 अगस्त के बाद भी छूट गए लोगों का क्या होगा. जर्मन रक्षा मंत्रालय के मुताबिक उसने अब तक 4,600 से ज्यादा लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया है. इनमें जर्मन नागिरकों के अलावा स्थानीय कर्मचारी रहे लोग भी शामिल हैं.
मैर्केल के भाषण की मुख्य बातें
बुधवार को मैर्केल ने संसद को बताया कि जर्मनी 31 अगस्त के बाद भी उन लोगों की मदद करता रहेगा जिन्होंने अभियान के दौरान जर्मन सेना के साथ काम किया था और अब देश से निकलना चाहते हैं. मैर्केल ने कहा, "कुछ दिन में हवाई संपर्क की समयसीमा खत्म हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि हमारी मदद करने वाले और तालिबान के नियंत्रण के बाद बड़ी समस्या में फंसे अफगान लोगों को लोगों की मदद की कोशिशें भी खत्म हो जाएंगी.”
चांसलर मैर्केल ने देश के अब तक के सबसे बड़े निकासी अभियान में जुटी जर्मन सेना को धन्यवाद कहा. उन्होंने अपने भाषण में कुछ बातों की ओर ध्यान दिलाया.
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अब कड़वी सच्चाई है तालिबान
अंगेला मैर्केल ने कहा कि तालिबान सत्ता में लौट चुके हैं यह एक "एक कड़वी सच्चाई है जिसका हमें सामना करना है.” उन्होंने कहा, "इतिहास में बहुत सी चीजें लंबा वक्त लेती हैं. इसलिए हमें अफगानिस्तान को नहीं भूलना चाहिए, और हम नहीं भूलेंगे. क्योंकि, अभी इस कड़वे समय में दिखाई भले ना दे रहा हो, मुझे पूरा यकीन है कि कोई ताकत या विचारधारा शांति और न्याय की इच्छा को रोक नहीं सकती.”
देखेंः अमेरिका की 7 गलतियां
अफगानिस्तान में अमेरिका की 7 गलतियां
जिस तालिबान को हराने के लिए अमेरिका ने 20 साल जंग लड़ी, आज वह अफगानिस्तान पर काबिज है. अमेरिकी संस्था स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन ने इसी महीने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें सात सबक बताए गए हैं.
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स्पष्ट रणनीति नहीं
सिगार के मुताबिक विदेश और रक्षा मंत्रालय के पास कोई स्पष्ट रणनीति नहीं थी. तालिबान का खात्मा, देश का पुनर्निर्माण जैसे लक्ष्यों में कोई स्पष्टता नहीं थी.
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संस्कृति और राजनीति की समझ नहीं
सिगार की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका अफगानिस्तान की संस्कृति और राजनीति को समझ नहीं पाया. इस कारण गलतियां हुईं. जैसे कि वहां ऐसी न्याय व्यवस्था बना दी जिसके अफगान आदि नहीं थे. या फिर अनजाने में एक पक्ष का साथ देकर स्थानीय विवादों को और उलझा दिया.
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दूरदृष्टि नहीं
अमेरिका के फैसलों में दूरदृष्टि की कमी को सिगार की रिपोर्ट ने रेखांकित किया है. सफलता के लिए कितना वक्त चाहिए, कितना धन चाहिए, कहां कितने लोग चाहिए इसकी कोई रणनीति नहीं थी. इस कारण ‘20 साल लंबी एक कोशिश’ के बजाय अभियान ‘एक-एक साल लंबी 20 कोशिशों’ में तब्दील हो गया.
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अधूरी योजनाएं
सिगार कहता है कि बहुत सारी विकास योजनाएं शुरू तो हुईं लेकिन पूरी नहीं की गईं. सड़कें, अस्पताल, बिजली घर आदि बनाने पर अरबों डॉलर खर्चे गए लेकिन उनकी देखभाल के लिए कोई जवाबदेही नहीं थी. लिहाजा वे या तो अधूरे रह गए या बर्बाद हो गए.
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कुशल लोगों की कमी
सिगार की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिकी सेना और मददगार संस्थाओं के पास जमीन पर कुशल लोगों की कमी थी. इस कारण एक साल बाद जब एक दल घर गया तो नए लोग आए जिनके पास समुचित अनुभव नहीं था. इस कारण प्रशिक्षण में कमी रह गई.
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परेशान लोग
अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर लोग हिंसा से परेशान और डरे हुए थे जो आर्थिक विकास के रास्ते में बड़ी बाधा बना. अफगान सेना को तैयारी का कम समय मिला और उसकी तैनाती जल्दबाजी में हुई.
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गलतियों से सीख नहीं
सिगार का आकलन है कि अमेरिकी सरकार ने योजनाओं की समीक्षा पर समय नहीं बिताया और गलतियों से सबक नहीं लिया. इसलिए वही गलतियां दोहराई जाती रहीं.
तस्वीर: Shah Marai/AFP/Getty Images
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मैर्केल ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि तालिबान के साथ बातचीत करे ताकि नाटो अभियान के दौरान जो प्रगति हासिल हुई है, उसे बचाया जा सके. उन्होंने कहा, "हमारा मकसद होना चाहिए कि जितना ज्यादा हो सके, 20 वर्ष में अफगानिस्तान में बदलाव के तौर पर हमने जो हासिल किया है उसका जितना हो सके बचा सकें. इसके बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान से बात करनी चाहिए.”
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खूब बरसा विपक्ष
अफगानिस्तान जिस तेजी से तालिबान के हाथों में गया, उसने जर्मन सरकार को हैरान कर दिया था. अब उसकी आलोचना इस बात के लिए हो रही है कि उसने ऐसी स्थिति के लिए तैयारी क्यों नहीं की. मैर्केल ने बताया कि लोगों को निकालने का काम पहले से शुरू नहीं किया जा सकता था क्योंकि इससे अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार पर लोगों का भरोसा कम होता. बुधवार को हुआ जर्मन संसद का यह सत्र अद्वितीय था क्योंकि सरकार संसद से एक हफ्ता पहले शुरू हो चुके निकासी अभियान की पुष्टि चाहती थी. कैबिनेट ने संसद की मंजूरी से पहले ही अभियान को शुरू करने का फैसला काबुल पर तालिबान के अचानक हुए नियंत्रण के चलते लिया था.
सांसदों ने इस अभियान के पक्ष में मतदान तो किया लेकिन विपक्ष ने सरकार की आलोचना में भी कसर नहीं छोड़ी. बहस के दौरान सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी के मुखिया डिएटमार बार्ट्ष ने कहा बतौर चांसलर मैर्केल के 16 साल के कार्यकाल में ‘विफल अफगानिस्तान अभियान' सबसे "निम्नतम स्थिति” है.
जानेंः अफगान औरतों के लिए 20 साल में क्या बदला
अफगान औरतों के लिए 20 साल में क्या बदला
पिछले 20 साल अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा नहीं था. उसके शासन में औरतों की स्थिति बेहद खराब बताई जाती है. क्या बीते 20 साल में महिलाओं के लिए कुछ बदला है?
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वाकई कुछ बदला क्या?
अफगानिस्तान में महिलाएं अब अलग-अलग भूमिकाएं निभाती नजर आती हैं. लेकिन वाकई उनके लिए पिछले 20 साल में कुछ बदला है या नहीं, आइए जानते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini
काम के अवसर
ब्रिटेन के नेशनल स्टैटिस्टिक्स एंड इन्फॉरमेशन अथॉरिटी के आंकड़ों के मुताबिक 2004 में 51,200 महिलाएं सरकारी दफ्तरों में काम कर रही थीं. 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 87 हजार हो गई.
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पुरुषों से ज्यादा कर्मचारी
सरकारी दफ्तरों में काम करने में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा बढ़ी है. सरकारी कर्मचारी पुरुषों की संख्या जबकि 41 प्रतिशत बढ़ी, महिलाओं की संख्या में 69 प्रतिशत का इजाफा हुआ.
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images
राजनीति में महिलाएं
2018 के आम चुनाव में 417 महिला उम्मीदवार थीं, जो एक रिकॉर्ड है. तालिबान के नियंत्रण से पहले की संसद में 27 प्रतिशत महिला सांसद थीं, जो अंतरराष्ट्रीय औसत (25 फीसदी) से ज्यादा है.
तस्वीर: Stringer/REUTERS
न्यायपालिका में महिलाएं
2007 में अफगानिस्तान में 5 फीसदी महिला जज थीं जिनकी संख्या 2018 में बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई.
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कॉलेजों में लड़कियां
अफगान सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2002 से 2019 के बीच सरकारी कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या सात गुना बढ़ी. यह इजाफा लड़कों की संख्या से ज्यादा था.
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शिक्षक महिलाएं
अफगानिस्तान में अब पहले से कहीं ज्यादा महिला शिक्षक हैं. 2018 में देश के कुल शिक्षकों का लगभग एक तिहाई महिलाएं थीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
स्कूलों में लड़कियां
ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट कहती है कि 2001 में 90 हजार बच्चे स्कूल जाते थे जो 2017 में बढ़कर 92 लाख हो गए. इनमें से 39 प्रतिशत लड़कियां थीं.
तस्वीर: Paula Bronstein/Getty Images
कानूनी हक
2009 में अफगानिस्तान में एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट विमिन कानून पास किया गया जिसके तहत 22 गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में डाला गया. इन गतिविधियों में महिलाओं को मारना, बलात्कार, जबरन शादी आदि शामिल हैं.
तस्वीर: REUTERS
पुलिस में महिलाएं
अमेरिका सरकार की लैंगिक समानता पर रिपोर्ट के मुताबिक 2005 में अफगानिस्तान में 180 महिला पुलिसकर्मी थीं जो 2019 में बढ़कर 3,560 हो गईं.
तस्वीर: DW/S. Tanha
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ग्रीन पार्टी की ओर से आगामी चुनावों में चांसलर पद की उम्मीदवार आनालेना बेयरबॉक ने पूरी स्थिति को विदेश नीति की असफलता करार दिया. बाजारवाद की समर्थक मानी जाने वाली फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी ने भी सरकार पर गैरजिम्मेदारी और अकर्मण्यता का आरोप लगाया.
सोशल डेमोक्रैट्स पार्टी के संसद में प्रमुख रॉल्फ म्युत्सेनिष ने तो सरकार की पूरी स्थिति को संभालने के मामले की जांच की भी मांग की. संसद में विदेश मामलों की समिति की अध्यक्ष सेविम डागडेलेन ने सरकारी रेडियो डॉयचलांडफुंक से बातचीत में कहा कि जर्मन सेना द्वारा दसियों हजार लोगों को काबुल एयरपोर्ट के रास्ते बाहर निकालने का विचार ही ख्याली पुलाव है. उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत कर्मचारी तो एयरपोर्ट पहुंच ही नहीं पाए हैं.