लड़ाइयों ने छीना तीन करोड़ लोगों के मुंह से निवाला
३१ मार्च २०१७
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में जारी भयानक संकटों की वजह से तीन करोड़ लोगों को खाने के लाले पड़ रहे हैं.
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संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, "पिछले पांच साल के दौरान नियर ईस्ट (मध्य पूर्व) और उत्तरी अफ्रीका के इलाके में खाद्य सुरक्षा और पोषण के स्तर में भारी गिरावट आई है." रिपोर्ट कहती है, "वयस्क आबादी के बीच खाद्य असुरक्षा का स्तर 2014-2015 में लगभग 9.5 प्रतिशत रहा है, जिसका मतलब है लगभग तीन करोड़ लोग."
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के अनुसार, "दुनिया के जिन इलाकों में खाद्य असुरक्षा सबसे ज्यादा है, उनमें इराक, सूडान, सीरिया और यमन के नाम भी शामिल हैं. इसका मतलब है कि इन देशों में जारी संकटों का असर सीधे लोगों की खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति पर पड़ रहा है."
एफएओ के महानिदेशक और क्षेत्रीय प्रतिनिधि अब्देसलाम ओल्द अहमद ने कहा कि क्षेत्र के बहुत से देशों में पानी की किल्लत खेतीबाड़ी पर बुरा असर डाल रही है और हालात से निपटने की कोशिशों में संकट बाधा बन रहे हैं. उन्होंने कहा, "अगर शांतिपूर्ण और स्थिर माहौल होगा, तभी किसान पानी की किल्लत और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौती से निपटने की दिशा में कोशिश कर सकते हैं."
बच्चों पर सबसे भारी पड़ता है युद्ध
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक यमन में कम से कम 1.4 करोड़ लोगों को खाने की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है और इसमें 3.7 लाख बच्चे बेहद मुश्किल हाल में है.
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भूख की मार
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यमन में जंग के कारण पांच लाख बच्चों को खाने की कमी झेलनी पड़ रही है जबकि 3.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से भूखमरी के शिकार हैं.
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जान पर बनी
आहार का संकट झेल रहे बच्चों की उम्र पांच साल से भी कम है जबकि इनमें से दो तिहाई बच्चे ऐसे हैं जिन तक तुरंत मदद पहुंचाए जाने की जरूरत है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ये बच्चे इस कदर बीमार हो चुके हैं कि इनकी जान खतरे में आ गई है.
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हड्डियों का ढांचा
यमन में 2015 के मुकाबले 2016 में खाने की कमी झेल रहे बच्चों की संख्या में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है. ज्यादातर बच्चों का वजन उनकी कद काठी के हिसाब से कम है और इसीलिए वे हड्डियों का ढांचा नजर आते हैं.
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डेढ़ करोड़ प्रभावित
संयुक्त राष्ट्र के नए आंकड़ों के अनुसार यमन की आधी आबादी खाने का संकट झेल रही है और यह तादाद लगभग 1.4 करोड़ बनती है. इन प्रभावित लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव भी झेलना पड़ रहा है.
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बीमारियों का खतरा
जंग से जूझ रहे इस देश में हैजे जैसी बीमारियां भी फैल रही हैं. सिर्फ अदन शहर में हैजे के 190 मरीजों को अस्पताल लाया गया है.
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सूखे का गणित
यमन के कई इलाकों में सूखे का खतरा पैदा हो रहा है. सूखे का एलान तब किया जाता है जब किसी इलाके के तीस प्रतिशत परिवारों के सामने खाने का संकट हो और प्रति 10 हजार लोगों में हर दिन दो मौतें या प्रति 10 हजार बच्चों में हर दिन चार मौतें होने लगें.
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आयात पर निर्भरता
खाद्य सामग्री और दवाओं के लिए यमन ज्यादातर आयात पर निर्भर है, लेकिन देश में जारी लड़ाई की वजह से बाहर से जहाज ना के बराबर आ रहे हैं जिससे देश की अस्सी फीसदी आबादी को किसी न किसी रूप में जरूरी सामानों की कमी झेलनी पड़ रही है.
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یمن کا اقتصادی ڈھانچہ درہم برہم ہو چکا ہے۔ بینکاری کا شعبہ بھی سخت متاثر ہوا ہے۔ تجارتی حلقوں کے مطابق دو سو ملین ڈالر سے زیادہ رقم بینکوں میں پھنسی ہوئی ہے، جس کی وجہ سے درآمد کنندگان اَشیائے خوراک بالخصوص گندم اور آٹے کا نیا سٹاک منگوا نہیں پا رہے۔
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अर्थव्यवस्था ठप
यमन की आर्थिक व्यवस्था अस्त व्यस्त हो चुकी है. बैंकिंग प्रणाली पर भी बहुत असर हुआ है. जानकारों का कहना है कि 20 करोड़ डॉलर की रकम बैंकों में फंसी हुई है जिसके चलते अनाज और आटे का नया स्टॉक मंगाने में भी दिक्कतें आ रही हैं.
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यमन अरब दुनिया का सबसे गरीब देश है. उसके भूमिगत जल संसाधन लगभग खत्म हो गए हैं. यही नहीं, दो साल से जारी गृह युद्ध के कारण खाद्य सुरक्षा की स्थिति भी बेहद खराब हो गई है. राजधानी सना समेत देश के बड़े हिस्से पर काबिज हूथी बागियों के खिलाफ सऊदी अरब वहां हवाई हमले कर रहा है.
यूएन के खाद्य और कृषि कार्यक्रम का कहना है कि यमन के 22 प्रांतों में से एक तिहाई अकाल के मुहाने पर खड़े हैं. देश की 1.7 करोड़ की आबादी में से 60 प्रतिशत लोगों के सामने भूखे रहने के हालात पैदा हो गए हैं.
एफएओ का कहना है कि सीरिया में छह साल से जारी गृह युद्ध के कारण वहां लोगों को पर्याप्त खाना नसीब नहीं हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, "2015-2016 के दौरान सीरिया में संकट खासतौर से गहरा गया. इसलिए वहां आधी से ज्यादा आबादी को खाद्य मदद की जरूरत है."
एके/आरपी (एएफपी)
टाइम बम जैसे विवाद
दुनिया भर में कुछ ऐसे विवाद हैं जो कभी भी युद्ध भड़का सकते हैं. ये सिर्फ दो देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को लड़ाई में खींच सकते हैं.
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दक्षिण चीन सागर
बीते दशक में जब यह पता चला कि चीन, फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और कंबोडिया के बीच सागर में बेहद कीमती पेट्रोलियम संसाधन है, तभी से वहां झगड़ा शुरू होने लगा. चीन पूरे इलाके का अपना बताता है. वहीं अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल चीन के इस दावे के खारिज कर चुका है. बीजिंग और अमेरिका इस मुद्दे पर बार बार आमने सामने हो रहे हैं.
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पूर्वी यूक्रेन/क्रीमिया
2014 में रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप को यूक्रेन से अलग कर दिया. तब से क्रीमिया यूक्रेन और रूस के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है. यूक्रेन क्रीमिया को वापस पाना चाहता है. पश्चिमी देश इस विवाद में यूक्रेन के पाले में है.
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कोरियाई प्रायद्वीप
उत्तर और दक्षिण कोरिया हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहते हैं. उत्तर कोरिया भड़काता है और दक्षिण को तैयारी में लगे रहना पड़ता है. दो किलोमीटर का सेनामुक्त इलाका इन देशों को अलग अलग रखे हुए हैं. उत्तर को बीजिंग का समर्थन मिलता है, वहीं बाकी दुनिया की सहानुभूति दक्षिण के साथ है.
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कश्मीर
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटा कश्मीर दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य मौजूदगी वाला इलाका है. दोनों देशों के बीच इसे लेकर तीन बार युद्ध भी हो चुका है. 1998 में करगिल युद्ध के वक्त तो परमाणु युद्ध जैसे हालात बनने लगे थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Khan
साउथ ओसेटिया और अबखासिया
कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन इलाकों पर जॉर्जिया अपना दावा करता है. वहीं रूस इनकी स्वायत्ता का समर्थन करता है. इन इलाकों के चलते 2008 में रूस-जॉर्जिया युद्ध भी हुआ. रूसी सेनाओं ने इन इलाकों से जॉर्जिया की सेना को बाहर कर दिया और उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे दी.
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नागोर्नो-काराबाख
नागोर्नो-काराबाख के चलते अजरबैजान और अर्मेनिया का युद्ध भी हो चुका है. 1994 में हुई संधि के बाद भी हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. इस इलाके को अर्मेनिया की सेना नियंत्रित करती है. अप्रैल 2016 में वहां एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बने.
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पश्चिमी सहारा
1975 में स्पेन के पीछे हटने के बाद मोरक्को ने पश्चिमी सहारा को खुद में मिला लिया. इसके बाद दोनों तरफ से हिंसा होती रही. 1991 में संयुक्त राष्ट्र के संघर्षविराम करवाया. अब जनमत संग्रह की बात होती है, लेकिन कोई भी पक्ष उसे लेकर पहल नहीं करता. रेगिस्तान के अधिकार को लेकर तनाव कभी भी भड़क सकता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Batiche
ट्रांस-डिनिएस्टर
मोल्डोवा का ट्रांस-डिनिएस्टर इलाका रूस समर्थक है. यह इलाका यूक्रेन और रूस की सीमा है. वहां रूस की सेना तैनात रहती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिम और मोल्डोवा की बढ़ती नजदीकी मॉस्को को यहां परेशान कर सकती है.