सैन्य अभ्यासों के मामले में चीन से बहुत आगे है अमेरिका
३१ मई २०२४
चीन ने ताइवान के पास सैन्य अभ्यास किया तो पूरी दुनिया में प्रतिक्रिया हुई. लेकिन एक रिपोर्ट बताती है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में सैन्य अभ्यास करने के मामले में चीन पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका से बहुत पीछे है.
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पिछले कुछ सालों में अमेरिका और चीन ने एशिया पैसिफिक क्षेत्र में जमकर सैन्य अभ्यास किए हैं. अमेरिका ने भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जापान और यहां तक कि जर्मनी के साथ भी एशिया प्रशांत क्षेत्र के सागर में कई सैन्य अभ्यास किए हैं. बदले में चीन भी इस इलाके में अपनी सैन्य ताकत दिखाता रहा है. पिछले हफ्ते ही उसने ताइवान की खाड़ी में सैन्य अभ्यास किया था. लेकिन एक ताजा अध्ययन बताता है कि चीन सैन्य अभ्यास के मामले में अमेरिका से काफी पीछे है.
लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्ट्रैटिजिक स्ट्डीज (आईआईएसएस) ने एशिया में 2003 से 2022 के बीच किए गए सैन्य अभ्यासों का सर्वेक्षण किया है. उसकी रिपोर्ट कहती है कि इस क्षेत्र में सैन्य अभ्यासों की संख्या में खासी वृद्धि हुई है और उसकी सबसे बड़ी वजह चीन और अमेरिका हैं जो अपनी-अपनी सैन्य क्षमताओं को परख रहे हैं.
अमेरिका कहीं आगे है
आईआईएसएस ने शुक्रवार को ‘स्क्रिप्टेड ऑर्डर' नाम से अपनी रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 20 साल में अमेरिका ने अन्य एशियाई देशों के साथ मिलकर 1,113 सैन्य अभ्यास किए जबकि चीन ने सिर्फ 130.
शीत युद्ध के बाद यूरोप में नाटो का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास
30 साल बाद यूरोप में नाटो और उसके साथियों ने सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास किया है. दो महीने लंबी मिलिट्री एक्सरसाइज का मकसद क्या था?
तस्वीर: Jöran Steinsiek/IMAGO
डिफेंडर 23
अमेरिका, उसके नाटो सहयोगी और अन्य पार्टनर देशों के साथ पूरे यूरोप में 22 अप्रैल से 23 जून तक सैन्य अभ्यास चला. आइसलैंड से बाल्टिक सागर तक फैले इस सैन्य अभ्यास के दौरान यूरोप पर हमला होने की स्थिति से निपटने का अभ्यास किया गया.
तस्वीर: Jöran Steinsiek/IMAGO
कितने देश और सैनिक शामिल
डिफेंडर 23 में अमेरिका के 7,000 सैनिक और 20 से ज्यादा देशों के 17,000 से ज्यादा सैनिक शामिल हुए. सैन्य अभ्यास के दौरान हर तरह के इलाके में मिलिट्री एक्सरसाइज की गई.
तस्वीर: Press Office, Albania Ministry of Defence
पूर्वी यूरोप पर मुख्य फोकस
सैन्य अभ्यास, रूस और बेलारूस से सटे पूर्वी यूरोप में खासा केंद्रित रहा. इस दौरान अमेरिका, यूरोप और अफ्रीकी देशों की सेनाओं ने दिखाया कि वे कितनी जल्दी इस इलाके में ऑपरेशन के लिए तैयार हो सकती हैं.
तस्वीर: Press Office, Albania Ministry of Defence
कॉकपिट में चांसलर
डिफेंडर 23 सैन्य अभ्यास में शामिल सभी देशों की वायुसेनाओं ने भी मिलकर आक्रमण, बचाव और कवरिंग का अभ्यास किया. सैन्य अभ्यास में 250 से ज्यादा विमान शामिल थे. इस दौरान जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स भी सैनिकों का मनोबल बढ़ाने पहुंचे.
तस्वीर: AFP via Getty Images
नागरिक उड़ानों पर असर
लड़ाकू विमानों, ईंधन टैंकरों और बड़े सैन्य विमानों के अभ्यास की वजह से जर्मनी और उसके पड़ोसी देशों में नागरिक यातायात कुछ हद तक प्रभावित हुआ. 12 जून से 23 जून के बीच कई उड़ानों का रूट बदलना पड़ा.
तस्वीर: INA FASSBENDER/AFP
सैन्याभ्यास का मकसद
यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप के कई देश असुरक्षित महसूस करने लगे हैं. बेलारूस में रूसी एटमी हथियारों की तैनाती ने भी तनाव को बढ़ाया है. इन हालातों के बीच नाटो का यह सैन्य अभ्यास यूरोप को आत्मविश्वास दिलाने के लिए था.
तस्वीर: Sascha Steinach/IMAGO
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अध्ययन में इस बात को रेखांकित किया गया है कि सैन्य क्षमता के मामले में खासकर एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन भविष्य में अमेरिका पर भारी पड़ सकता है लेकिन इस बात पर भी जोर दिया गया है कि चीनी सैनिकों के पास युद्ध का अनुभव बहुत कम है. रिपोर्ट कहती है कि चीन के अभ्यास "क्षेत्रीय विवाद होने पर अविकसित और जरूरत से ज्यादा औपचारिक नजर आते हैं."
रिपोर्ट में लिखा है, "अमेरिका लगभग सभी क्षेत्रीय देशों के साथ मिलकर सैन्य अभ्यास के जरिए अपनी बढ़त बनाए रखना चाहेगा. चीन कम क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ सैन्य समझौतों के जरिए अपने अभ्यास में अंतर को पाटने की कोशिश करेगा.”
सैन्य अभ्यासों की जरूरत
एशिया, और खासतौर पर प्रशांत क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से सेनाओं की तैनाती लगातार बढ़ रही है. ताइवान को लेकर चीन के लगातार आक्रामक होते रवैये ने इस चलन को और जोर दिया है. इसके अलावा भी समुद्री मार्गों को लेकर पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवाद बढ़े हैं.
टकराने से बचे अमेरिकी और चीनी युद्धपोत
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कूटनीतिज्ञ और विश्लेषक कहते हैं कि वे इस चलन पर करीबी नजर बनाए हुए हैं. वे कहते हैं कि सैन्य अभ्यासों के कई फायदे हैं. मसलन ये विवादित समुद्री मार्गों पर मुक्त परिवहन को बढ़ाते हैं, किसी को भी आक्रामक होने से रोकते हैं और इनके कारण कूटनीति में सुधार होता है.
नाम ना छापने की शर्त पर बातचीत को राजी हुए तीन सैन्य अधिकारियों ने कहा कि सैन्य अभ्यास सामने वाली सेना की क्षमताओंऔर संवाद के आकलन में भी मदद करते हैं. चीन और अमेरिका दोनों के ही विमान और जहाज एक दूसरे के आसपास पहुंचते रहते हैं.
चीन, उत्तर कोरिया और रूस तीनों ने ही यह शिकायत की है कि क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य अभ्यासतनाव को बढ़ा रहे हैं और हथियारों की होड़ भी तेज हो रही है. अमेरिका की सफाई है कि ये सैन्य अभ्यास आत्मविश्वास और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने की क्षमता बढ़ाते हैं.
चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वू कियान ने गुरुवार को कहा था कि उनका मकसद ‘आक्रमण के खिलाफ' अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करना और क्षेत्र में भरोसा बढ़ाना है.
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चीन और अमेरिका में फर्क
चीन और अमेरिका के सैन्य अभ्यासों के बीच बड़ा फर्क यह है कि अमेरिका अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ मिलकर सैन्य अभियानों का अभ्यास करता है जबकि चीन जब किसी अन्य देश के साथ अभ्यास करता है तो वह समानांतर होता है, ना कि मिलजुल कर.
2023 में चीन ने अरब सागर में पाकिस्तान के साथ अभ्यास किया था जिसमें उसकी सबसे आधुनिक टाइप-052डी विनाशक नौकाओं को शामिल किया गया था.
कोबरा गोल्ड कंमाडो ट्रेनिंग
थाईलैंड के जंगलों में अमेरिकी सेना की प्रशांत कमांड के सैनिक थाई सेना के साथ खास कंमाडो ट्रेनिंग करते हैं. देखिए, कितनी मुश्किल होती है ये ट्रेनिंग. इसकी कुछ तस्वीरें विचलित कर सकती हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
कोबरा गोल्ड कही जाने वाली इस ट्रेनिंग में 2019 में अमेरिका और थाईलैंड के साथ करीब 29 देशों की सेनाओं ने हिस्सा लिया. ट्रेनिंग के दौरान सैनिक जंगल में सांप, बिच्छू और मकड़ी समेत कई विषैले कीटों के साथ रहते हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
इस तस्वीर में सैनिक ने एक सांप को अपने दांतों से काटा. सांप का विष भरा दांत पहले ही निकाला जा चुका है. इस ट्रेनिंग का मकसद सैनिकों के मन से सांप के डर को धीरे धीरे भगाना है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
सैनिक अभ्यास के दौरान सैनिकों के ट्रेन करने के लिए शिविर में 29 कोबरा लाए गए थे. हालांकि इन सभी की दांतों से विष निकाल लिया गया था.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
अभ्यास का लक्ष्य है विषम परिस्थितियों में जीवित रहना. जंगल में कंमाडो ऑपरेशन के दौरान सैनिकों को अक्सर आस पास मौजूद चीजों को खाना पड़ता है, फिर वह मकड़ी ही क्यों न हो.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
जंगल में जिंदा रहने के लिए सांप को भी काटकर खाना पड़ सकता है. सैनिक अक्सर सांप का खून भी पी जाते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
सांप का खून पीने के बाद उसका मांस खाने की बारी आती है. सैनिकों को एक के बाद एक बाइट लेनी पड़ती है.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
कैंप के दौरान सैनिकों को जंगल में मिलने वाले कई तरह के भोजन की जानकारी दी जाती है. यह तस्वीर मकड़ी के अंडों की है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
इस तस्वीर में सैन्य अभ्यास में शामिल सैनिकों को सांप पकड़ने की ट्रेनिंग दी जा रही है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
पानी सिर्फ जलधाराओं में ही नहीं होता. कई पेड़ और पत्ते भी पानी स्टोर किए रहते हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
इस तस्वीर में कमांडर सैनिकों को सिखा रहा है कि अलग अलग चीजों में मुट्ठी भर चावल कैसे पकाया जाए. 12 दिनों की ट्रेनिंग के दौरान हर सैनिक के पास थोड़ा बहुत चावल होता है.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
यह सैनिक मिट्टी में मिलने वाले कीड़े को खा रहा है. युद्ध के दौरान जंगल में क्या मिलेगा, ये किसी को नहीं पता इसीलिए हर तरह का खाना खाने का अभ्यास होना चाहिए.
तस्वीर: Reuters/S. Z. Tun
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चीन के दक्षिण-पूर्व एशिया में अन्य सेनाओं के साथ संपर्क पर स्वतंत्र अध्ययन करने वाले सिंगापुर स्थित विश्लेषक इयान स्टोरी कहते हैं कि 2023 में चीन का अन्य देशों के साथ मेलजोल बढ़ा है और आने वाले समय में यह और तेज होने की संभावना है.
आईएसईएएस-यूसुफ इशाक इंस्टिट्यूट के स्टोरी कहते हैं कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ चीन का बढ़ता सैन्य संपर्क प्रभावशाली लगता है लेकिन इसे परिप्रेक्ष्य में समझे जाने की जरूरत है, क्योंकि अमेरिका का संपर्क और अभ्यासों की संख्या कहीं ज्यादा है.