ब्रिटेन में एक महिला ने नाजी यातना शिविर के नाम से सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. इस महिला के साथ साथ तीन और लोगों को यहूदी विरोधी आतंकवादी संगठन का हिस्सा होने के आरोप में सजा सुनाई गई है.
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ब्रिटेन में एक पूर्व "मिस हिटलर" और तीन अन्य नियो नाजियों को जेल की सजा सुनाई गई है. ये सभी लोग उग्र दक्षिणपंथी संगठन नेशनल एक्शन (एनए) के सदस्य थे जिस पर ब्रिटेन में प्रतिबंध है.
एलिस कटर नाम की इस लड़की की उम्र 24 साल है और वह ब्रिटेन में एक रेस्तरां में वेटर का काम करती थी. उसने मिस हिटलर नाम के ब्यूटी कॉन्टेस्ट में "मिस बूखेनवाल्ड" के नाम से हिस्सा लिया था. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बूखेनवाल्ड में एक नाजी यातना शिविर हुआ करता था. मालगाड़ियों में जानवरों की तरह भर भर कर यहूदियों को वहां ले जाया जाता था और गैस चेंबर में उनकी जान ले ली जाती थी.
अदालत में एलिस के फोन के वे मेसेज दिखाए गए जिनमें उसे यहूदी प्रार्थना घरों में गैस भरने के बारे में मजाक करते हुए पाया गया. इसके अलावा एक मेसेज में उसने यहूदी व्यक्ति के सिर को फुटबॉल की तरह इस्तेमाल करने की बात भी की. एक अन्य मेसेज में वह सांसद जो कॉक्स की मौत पर अभद्र भाषा में टिप्पणी करती पाई गई. एलिस कटर के अलावा उसके 25 साल के बॉयफ्रेंड मार्क जोंस को साढ़े पांच साल की कैद की सजा सुनाई गई है. इनके अलावा 24 साल के गैरी जैक को साढ़े चार साल और 19 साल के कॉनर स्कॉदर्न को 18 महीने की सजा सुनाई गई है.
2013 में बने नेशनल एक्शन पर दिसंबर 2016 में ब्रिटेन के टेररिज्म एक्ट के अंतर्गत प्रतिबंध लगा दिया गया था. अदालत में जज पॉल फैरर ने चारों दोषियों से कहा, "आप लोग इस संगठन की नीच विचारधारा से खुद को अलग करने को तैयार नहीं थे और इसीलिए आपने प्रतिबंध का भी उल्लंघन किया और इसके सदस्य बने रहे." जज ने कहा कि इस संगठन में भले ही एलिस कटर की कोई अहम भूमिका ना रही हो लेकिन वह संगठन के एक नेता के बेहद करीब थी.
नाजियों के प्रोपेगैंडा स्टीकर्स
सार्वजनिक जगहों पर स्टीकर्स चिपका कर, उनमें राजनीतिक संदेश देने का चलन तकरीबन एक शताब्दी पहले शुरू हुआ. जर्मन हिस्टोरिकल म्यूजियम में एक प्रदर्शनी में नाजी दौर के स्टीकर्स को दिखाया जा रहा है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
'गुरिल्ला' तरीका
मार्केटिंग स्ट्रेटेजिस्ट स्टीकर्स के जरिए प्रचार करने की रणनीति को 'गुरिल्ला मार्केटिंग' कहते हैं. कहीं भी, कभी भी स्टीकर्स जल्द से जल्द बांटे या चिपकाए जा सकते हैं. इनका इस्तेमाल ब्रांडिंग या प्रचार के लिए होता है, साथ ही राजनीतिक विचारों के प्रचार प्रसार के लिए भी इन्हें भरपूर इस्तेमाल किया जाता है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
राजनीतिक जोड़-तोड़
प्रदर्शनी में शामिल दस्तावेज दर्शाते हैं कि नाजियों ने राजनीतिक मतभेदों को बढ़ाने और नस्लवादी प्रोपेगैंडा करने के लिए किस तरह स्टीकर्स का इस्तेमाल किया. स्टीकर्स में मौजूद यहूदी विरोधी नारे नाजी दौर की मानसिकता बताते हैं. इनका मकसद यह दिखाना है कि आसानी से बांटा जा सकने वाला स्टिकर क्या क्या कर सकता है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
प्रोपेगैंडा स्टीकर्स
नाजियों ने जानबूझकर लोगों के बीच जाकर इन यहूदी विरोधी स्टीकर्स के जरिए अपना नफरत भरा संदेश बांटा था. 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के तुरंत बाद, बर्लिन में नाजी संगठनों एसए और एसएस पैराट्रूपर्स ने यहूदियों के बीच दहशत फैलाने के लिए उनकी दुकानों के बाहर नफरत भरे स्टीकर्स चिपकाए.
तस्वीर: bpk Bildagentur
नाजी विरोधी प्रोपेगैंडा
यहूदी संगठनों ने भी नाजियों के दमन से खुद को बचाने के लिए इन्हीं तरीकों को इस्तेमाल करने की कोशिश की. 1930 के दशक के शुरुआती सालों में उन्होंने भी इसी तरह के एंटी—प्रोपेगेंडा स्टीकर्स छापे. यहूदी धर्म मानने वाले जर्मन नागरिकों के केंद्रीय संगठन की ओर से जारी ये स्टीकर कहता है, ''नाजी हमारी त्रासदी हैं.''
तस्वीर: The Wiener Library for the Study of the Holocaust & Genocide, London
नफरत भरे प्रेम पत्र
यहां तक कि 1933 से 1945 के बीच, यहूदी विरोधी स्टीकर्स को निजी संदेशों और प्रेम पत्रों में भी इस्तेमाल किया गया. एक राजनीतिक मुहर के बतौर. अक्सर इन पत्रों के लिफाफों को ऐसे सजाया जाता कि पाने वाला तुरंत समझ जाए कि भेजने वाले का राजनीति रुझान क्या है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
सोशल मीडिया से पहले
1970 और 80 के दशक में खासकर जर्मनी में राजनीतिक स्टीकर्स का बहुत इस्तेमाल हुआ. सोशल मीडिया को आए अभी कुछ ही साल हुए हैं लेकिन उससे पहले कई पीढ़ियां राजनीतिक विचारों के प्रसार के लिए स्टीकर्स पर ही निर्भर थीं. इस प्रदर्शनी का एक बड़ा हिस्सा, वोल्फगांग हानी के निजी कलेक्शन का हिस्सा है. उन्होंने 19 वीं सदी के उत्तरार्ध से आज तक इन स्टीकर्स को जमा किया है.
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मौजूदा दौर
खासकर ऐतिहासिक संदर्भों पर केंद्रित यह प्रदर्शनी मौजूदा हालातों पर भी आलोचनात्मक नजर डालती है. शरणार्थियों का संकट और उससे पैदा हुई राजनीतिक बहस भी स्टीकर्स की इस प्रदर्शनी का हिस्सा है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
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एलिस के ऐसी रैलियों में शामिल होने के सबूत मिले हैं जिनमें हिस्सा लेने वाले "हिटलर सही था" का प्रचार करते हैं. इसके बावजूद कटर ने एनए से जुड़े होने का खंडन किया. सरकारी वकील ने अदालत में बताया कि कटर और जोन्स के घर में नाजी विचारधारा से जुड़ी बहुत सी चीजें मिलीं जैसे तस्वीरें, चाकू और तरह तरह के हथियार. कॉनर स्कॉदर्न के पास करीब 1500 ऐसे स्टिकर मिले जिन पर "फाइनल सल्यूशन" की मांग की गई थी. ये शब्द हिटलर द्वारा यहूदियों के नरसंहार के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. अदालत में कहा गया कि ये लोग ना केवल यहूदी विरोधी हैं, बल्कि होलोकॉस्ट के समर्थक भी.
नेशनल एक्शन को भले ही 2016 के अंत में बैन कर दिया गया था लेकिन ऐसी रिपोर्टें हैं कि यह संगठन आज भी सक्रिय है और इसके सदस्य छिप छिप कर मिलते हैं. ये लोग मीटिंग आयोजित करने के लिए अलग नामों का इस्तेमाल करते हैं. यह संगठन 18 से 20 साल के युवाओं को अपना निशाना बनाता है जिन्हें बहकाना आसान होता है. ब्रिटेन की कई यूनिवर्सिटियों में भी यह अपना प्रचार करता रहा है.
ब्रिटेन के टेररिज्म एक्ट 2000 ने अनुरूप सरकार ने यह कह कर इस पर बैन लगाया था कि यह "नस्लवादी, यहूदी विरोधी और समलैंगिक विरोधी संगठन है जो नफरत और हिंसा को बढ़ावा देता है और नीच विचारधारा रखता है."
सबसे क्रूर नाजी नेताओं में शुमार हाइनरिष हिमलर की एक डायरी सार्वजनिक हुई, जिसमें उसने 1937-38 और 1944-45 यानि दूसरे विश्व युद्ध के पहले और अपने आखिरी दिनों का ब्यौरा दर्ज किया था.
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मॉस्को स्थित जर्मन इतिहास संस्थान (डीएचआई) अगले साल हिमलर की उन डायरियों को प्रकाशित करने जा रहा है जिसमें दूसरे विश्व युद्ध के ठीक पहले और बाद के दिनों में उसकी ड्यूटी के दौरान जो भी घटा वो दर्ज है. कुख्यात नाजी संगठन एसएस के राष्ट्रीय प्रमुख की यह आधिकारिक डायरी 2013 में मॉस्को के बाहर पोडोल्स्क में रूसी रक्षा मंत्रालय ने बरामद की थी.
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डायरी में हिमलर अपने अगले दिन की योजना के बारे में टाइप करके लिखता था. इसे देखकर जाना जा सकता है कि तब हिमलर के दिन कैसे गुजरते थे. इसमें तमाम अधिकारियों, एसएस के जनरलों के साथ रोजाना होने वाली बैठकों के अलावा मुसोलिनी जैसे विदेशी नेताओं से मुलाकात की बात दर्ज है. इसके अलावा आउशवित्स, सोबीबोर और बूखेनवाल्ड जैसे यातना शिविरों के दौरे का भी जिक्र है.
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हिमलर की सन 1941-42 की डायरी 1991 में ही बरामद हो गई थी और उसे 1999 में प्रकाशित किया गया था. हिमलर को अडोल्फ हिटलर के बाद नंबर दो नेता माना जाता था. 23 मई 1945 को ल्यूनेबुर्ग में ब्रिटिश सेना की हिरासत में आत्महत्या करने वाले हिमलर ने अपने जीवनकाल में एसएस प्रमुख के अलावा, गृहमंत्री और रिप्लेसमेंट आर्मी के कमांडर के पद संभाले थे.
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सभी यातना शिविरों के नेटवर्क के अलावा घरेलू नाजी गुप्तचर सेवा का काम भी हिमलर देखता था. हिमलर के अलावा ऐसी डायरी नाजी प्रोपगैंडा प्रमुख योसेफ गोएबेल्स रखता था. इन डायरियों से होलोकॉस्ट के नाम से प्रसिद्ध यहूदी जनसंहार में हिमलर की भूमिका साफ हो जाती है. डायरी में दिखता है कि उसने यातना शिविरों और वॉरसॉ घेटो का भी दौरा किया और वहां यहूदियों की सामूहिक हत्या करवाई.
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जर्मन दैनिक "बिल्ड" में प्रकाशित इस डायरी के कुछ अंशों में दिखता है कि 4 अक्टूबर, 1943 को हिमलर ने पोजनान में एसएस नेताओं के एक समूह को संबोधित किया. इस तीन घंटे के भाषण में हिमलर ने "यहूदी लोगों के सफाए" की बात कही थी. आधिकारिक तौर पर किसी नाजी नेता के होलोकॉस्ट का जिक्र करने के प्रमाण दुर्लभ ही मिले हैं. हिमलर यूरोप के साठ लाख यहूदियों के खात्मे का गवाह और कर्ताधर्ता रहा.
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नाजी काल के विशेषज्ञों को पूरा भरोसा है कि यह डायरी और दस्तावेज सच्चे हैं. रूस की रेड आर्मी के हाथ लगी इस डायरी के 1,000 पेजों को 2017 के अंत तक दो खंडों वाली किताब के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.
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पोडोल्स्क आर्काइव में करीब 25 लाख पेजों वाले ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं जिन्हें युद्ध के दौरान रेड आर्मी ने बरामद किया था. अब इन्हें डिजिटलाइज किया जा रहा है और रूसी-जर्मन संस्थानों द्वारा प्रकाशित भी.
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डायरी में एक दिन की एंट्री देखिए- 3 जनवरी, 1943: हिमलर अपने डॉक्टर के पास "थेरेपी मसाज" के लिए गया. मीटिंग्स कीं, पत्नी और बेटी से फोन पर बातें कीं और उसी रात मध्यरात्रि को अनगिनत पोलिश परिवारों को मरवा दिया.
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इन दस्तावेजों से हिमलर की विरोधाभासी तस्वीर उभरती है. एक ओर वो सबका ख्याल रखने वाला पारिवारिक व्यक्ति था तो दूसरी ओर अवैध संबंध के तहत मिस्ट्रेस रखता था और उसकी नाजायज संतान भी थी. वो ताश खेलने और तारे देखने का शौकीन था तो यातना शिविरों में आंखों के सामने लोगों को मरते देखने का भी.
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हिमलर की अपनी सेक्रेटरी हेडविग पोटहास्ट के साथ भी दो संतानें थीं. डायरी में उसने 10 मार्च, 1938 को नाजी प्रोपगैंडा प्रमुख योसेफ गोएबेल्स के साथ जाक्सेनहाउजेन के यातना शिविर का दौरा करने और 12 फरवरी, 1943 को सोबीबोर में तबाही को देखने जाने का ब्यौरा लिखा है. ऐसी विस्तृत और पक्की जानकारी पहली बार हिमलर की डायरी के कारण ही सामने आई है.