व्हाइट हाउस में ट्रक चढ़ाने वाले भारतीय ने कबूला गुनाह
१४ मई २०२४
अमेरिका के मिजूरी में रहने वाले भारतीय नागरिक ने वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस के बैरियर को जानबूझकर टक्कर मारने का दोष कबूल कर लिया है.
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20 साल के भारतीय नागरिक साई वर्षित कंडूला ने व्हाइट हाउस के बैरियर पर ट्रक चढ़ाने का दोष कबूल कर लिया है. कंडूला ने पिछले साल मई में व्हाइट हाउस के बैरियर पर ट्रक चढ़ा दिया था. इस घटना में कोई घायल नहीं हुआ था.
मिजूरी राज्य में रहने वाले 20 साल के कंडूला ने अधिकारियों से हुए एक समझौते के तहत अपना दोष कबूल किया है. उसने माना है कि उसने ट्रक से जानबूझकर टक्कर मारी थी क्योंकि वह "नवनाजी की विचारधारा से प्रभावित था" और अमेरिकी सरकार का तख्ता पलट करना चाहता था.
वो बहादुर लोग जिन्होंने हिटलर को रोकने की कोशिश की
जर्मनी के इतिहास में कुछ ऐसे लोगों के नाम भी दर्ज हैं जिन्होंने नाजियों से लड़ने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. बर्लिन के जर्मन रेजिस्टेंस मेमोरियल सेंटर में ऐसे लोगों की यादों को संजो कर रखा गया है.
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हिटलर की हत्या की कोशिश, जुलाई 20, 1944
75 साल पहले अडोल्फ हिटलर के मुख्यालय 'वूल्फ्स लेयर' में एक बम फटा. धमाका करने वालों का इरादा हिटलर की हत्या कर देने का था, लेकिन वो कोशिश नाकाम रही और हिटलर बच गया. उसके कुछ ही दिनों के अंदर उस हमले में शामिल रेजिस्टेंस लड़ाकों को ढूंढ लिया गया और खत्म कर दिया गया.
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इस कोशिश के पीछे कौन था
क्लाउस ग्राफ शेंक फॉन श्टाउफेन्बर्ग ने इस कोशिश में अग्रणी भूमिका निभाई थी. वो हिटलर की सेना वेयरमाख्ट के ही अधिकारी थे जिन्हें 1942 में ही अहसास हो गया था कि जर्मनी द्वितीय विश्व युद्ध नहीं जीत पाएगा. जर्मनी की बर्बाद तय लग रही थी लेकिन ऐसा होने से रोकने के लिए श्टाउफेन्बर्ग और वेयरमाख्ट के अन्य अधिकारियों ने हिटलर का तख्तापलट करने की ठान ली.
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क्रेसाउ सर्कल
क्रेसाउ सर्कल का लक्ष्य था जर्मनी में मूलभूत राजनीतिक सुधार. हेल्मुट जेम्स ग्राफ फॉन मोल्टके और पीटर ग्राफ यॉर्क फॉन वारटेनबर्ग इस आंदोलन के पीछे के मुख्य चेहरे थे. सर्कल के कुछ सदस्य 1944 में 20 जुलाई की योजना में शामिल हो गए. हत्या की कोशिश विफल होने के बाद उन पर मुकदमा चलाया गया और मौत की सजा दी गई.
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हान्स और सोफी शोल
1942 से ही हान्स और सोफी शोल नामक भाई-बहन की जोड़ी के नेतृत्व में म्यूनिख के कुछ छात्रों ने नाजियों का विरोध करने की कोशिश की. खुद को 'द व्हाइट रोज' कहने वाले इस समूह ने नाजी शासन के अपराधों की निंदा करने वाले हजारों पर्चे बांटे. फरवरी 1943 में खुफिया नाजी पुलिस गेस्तापो ने उन्हें पकड़ लिया और मौत की सजा दे दी.
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जॉर्ज एल्सर
1939 में बढ़ई जॉर्ज एल्सर ने म्यूनिख बुर्गरब्राऊ ब्रूअरी में हिटलर के भाषण-मंच के पीछे ही विस्फोटक लगा दिए थे. बम तय समय पर फटा जरूर लेकिन हिटलर बच गया, क्योंकि वह उम्मीद से छोटा भाषण दे कर हॉल से जा चुका था. धमाके में सात लोग मारे गए और 60 घायल हो गए. एल्सर को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया और दखाऊ कंसंट्रेशन कैंप ले जाया गया. 1945 में उसकी वहीं मृत्यु हो गई.
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नेत्रहीन लोगों के लिए वर्कशॉप
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्लिन में रहने वाले व्यवसायी ऑटो वीट ने मुख्य रूप से दृष्टिहीन और बधिर यहूदियों को नौकरी पर रखा हुआ था. चूंकि उसके व्यवसाय को "महत्वपूर्ण डिफेंस व्यवसाय" माना जाता था, नाजी उसे बंद नहीं कर सकते थे. वीट ने पूरे युद्ध के दौरान अपने यहूदी कर्मचारियों का ख्याल रखा और उन्हें निर्वासन से भी बचाया.
तस्वीर: Gedenkstätte Deutscher Widerstand
कलाकारों और बुद्धिजीवियों की कोशिशें
कई कलाकार और बुद्धिजीवी तो 1933 में हिटलर के सत्ता में आते ही उसके शासन के खिलाफ हो गए थे. कई तो देश छोड़ कर चले गए लेकिन बर्लिन के एक कैबरे समूह 'काटाकॉम्बे' ने खुलेआम शासन की आलोचना की. 1935 में गेस्तापो ने समूह को बंद कर दिया और उसके संस्थापक वेर्नर फिंक को एस्टरवेगन कंसंट्रेशन कैंप में बंद कर दिया.
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'डाई स्विंग यूथ'
'द स्विंग यूथ' अमेरिकी-अंग्रेजी जीने के ढंग को कहा जाता था. स्विंग संगीत और डांस को इसका प्रतिनिधि माना जाता था, जो नाजी शासन और 'द हिटलर यूथ' के ठीक विपरीत था. अगस्त 1941 में स्विंग यूथ के कई लोगों को गिरफ्तार किया, विशेष रूप से हैम्बर्ग में. उनमें से कइयों को या तो हिरासत में ले लिया गया या युवाओं के लिए विशेष कंसंट्रेशन कैंपों में भेज दिया गया.
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रेड ऑर्केस्ट्रा रेजिस्टेंस समूह
'रोटे कपेल' नाम का रेजिस्टेंस समूह हारो शुल्ज-बॉयसन और आर्विड हारनैक के नेतृत्व में नाजियों के अपराधों को दर्ज करने में यहूदियों की मदद करना और पर्चे बांटने का काम करता था. 1942 में समूह के 120 से भी ज्यादा सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया. उनमें से 50 से भी ज्यादा को मौत की सजा दे दी गई.
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जर्मन रेजिस्टेंस मेमोरियल केंद्र
19 जुलाई, 1953 को बर्लिन की बेंडलरब्लॉक बिल्डिंग में जर्मन रेजिस्टेंस मेमोरियल केंद्र का उद्घाटन किया गया. यह वही जगह थी जहां हिटलर की हत्या की योजना के असफल हो जाने के बाद श्टाउफेन्बर्ग को मौत की सजा दे दी गई थी. यह मेमोरियल उन सभी बहादुर पुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने हिटलर के शासन के आगे खड़े होने की हिम्मत दिखाई. (डीडब्ल्यू ट्रैवेल)
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
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कंडूला पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज हुआ था. इस दोष में उसे 10 साल की कैद हो सकती है. कंडूला को सजा अगस्त में सुनाई जाएगी.
तख्तापलट करना चाहता था
अधिकारियों से बातचीत में कंडूला ने माना कि उसने इस मंशा से बैरियर पर ट्रक चढ़ाया था कि वह "लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को नात्सी जर्मनी की विचारधारा से प्रेरित तानाशाही में बदल सके और खुद को अमेरिका का शासक बना सके.”
जब कंडूला को गिरफ्तार किया गया तो वह नवनाजी झंडा उठाए हुए था. उसने यह भी कबूल किया कि "अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए जरूरत पड़ने पर वह अमेरिकी राष्ट्रपति और अन्यों की हत्या करवा सकता था.”
अदालती दस्तावेजों के मुताबिक गिरफ्तारी के बाद कंडूला को स्कित्सोफ्रेनिया नाम की बीमारी से ग्रस्त पाया गया था. चूंकि वह भारत का नागरिक है इसलिए सजा पूरी करने के बाद उसे अमेरिका से डिपोर्ट भी किया जा सकता है.
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सरकार विरोधी माहौल
2020 में डॉनल्ड ट्रंप को हराकर जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. उसके बाद से ही ट्रंप समर्थकों में सरकार विरोधी माहौल रहा है. कई लोग तो बाइडेन को अमेरिका का राष्ट्रपति मानने से ही इनकार करते हैं और डॉनल्ड ट्रंप को ही राष्ट्रपति कहते हैं.
6 जनवरी 2021को, यानी बाइडेन के पद की शपथ लेने से कुछ दिन पहले वॉशिंगटन में कैपिटोल हिल के बाहर 'चुनाव की चोरी' रोकने आए ट्रंप समर्थकों का हुजूम उमड़ा था. फिर कई समर्थक कैपिटोल हिल में घुसे और उन्होंने वहां तोड़फोड़ की.
पहली बार नहीं हुआ है संसद या सरकारी भवन पर हमला
अमेरिकी संसद भवन कैपिटॉल पर ट्रंप समर्थकों के घेराव और उत्पात की तस्वीरों ने दुनिया को हिला कर रख दिया है. हालांकि दुनिया में इस तरह की घटना ना तो पहली बार हुई है और शायद ना ही आखिरी बार.
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1789: बास्टिले में घुसे प्रदर्शनकारी
निरंकुश राजशाही के दौर में आजादी और समानता की मांग को लेकर पेरिस के प्रदर्शनकारियों की भीड़ मध्यकाल के दुर्ग में घुस गई. इस जगह आजादी चाहने वाले कई राजनीतिक कैदियों को रखा गया था. इस घटना ने फ्रांसीसी क्रांति की लौ जलाई. 14 जुलाई 1789 को बास्टिले भीड़ के हाथों में चला गया. लोगों के इस विद्रोह का उत्सव मनाने के लिए अब फ्रांस में इस दिन सार्वजनिक छुट्टी रखी जाती है.
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1917: विंटर पैलेस में विद्रोह
रूस की अक्टूबर क्रांति विंटर पैलेस में बोल्शेविक के धावा बोलने के साथ शुरू हुई. उस वक्त इस इमारत में प्रांतीय सरकार का दफ्तर था. फरवरी में रूसी जार की सत्ता हटाने के बाद बोल्शेविक विद्रोह को रेड अक्टूबर भी कहा जाता है. राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग में जब इसने सरकार की सत्ता उखाड़ने में सफलता पा ली तो इसे क्रांति कहा जाने लगा.
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1958: इराकी सैन्य क्रांति
जुलाई 1958 में लोगों की भीड़ ने इराक के बगदाद में किंग फैसल के महल पर हमला कर उसमें आग लगा दी. यह कदम देश में राजशाही को हटा कर एक गणतांत्रिक सरकार बनाने की सेना की कोशिशों का हिस्सा था. फैसल और उनके करीबी सहयोगी इस दौरान मारे गए. फैसल की मौत के साथ ही इराक से राजशाही का अंत हो गया.
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1973: चिली में सैन्य क्रांति
लोकतांत्रिक रूप से चुने गए राष्ट्रपति सल्वाटोरे आलेंदे तीन साल तक सत्ता में रहने के बाद सैन्य विद्रोह में पद से हटा दिए गए. 11 सितंबर 1973 को भारी हथियारों से लैस सैनिक राष्ट्रपति के महल में घुस गए. इसके बाद आलेंदे ने आत्महत्या कर ली और देश पर जनरल ऑगस्तो पिनोचेट की क्रूर सैन्य तानाशाही का दौर शुरू हुआ.
तस्वीर: OFF/AFP/Getty Images
1981: स्पेन में तख्तापलट की कोशिश
23 फरवरी 1981 को लेफ्टिनेंट गवर्नर अंटोनियो तेजेरो मोलिना स्पेन की संसद में 200 सैन्य पुलिस और सैनिकों के साथ घुस गए. लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए सांसदों को 18 घंटे के लिए बंधक बना लिया गया. किंग खुआन कार्लोस ने दखल दे कर फ्रांको का शासन खत्म होने के बाद एक स्थिरता के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाने पर जोर दिया. विद्रोह दबा दिया गया और मोलिना को उसके बाद 15 साल जेल में बिताने पड़े.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
राइषटाग में विद्रोह
राइषटाग या जर्मन संसद को 1933 में जला कर ध्वस्त कर दिया गया था और यह लंबे समय से विरोध प्रदर्शन या विद्रोह का ठिकाना रहा है. अगस्त 2020 में भी कोरोना वायरस रोकने के लिए लगी पाबंदियों का विरोध करने वाले लोगों ने संसद में घुसने की कोशिश की जिन्हें पुलिस ने पीछे धकेला. अमेरिकी के कैपिटॉल पर हुए हमले की तरह ही यहां भी प्रदर्शनकारियों में ज्यादातर लोग धुरदक्षिणपंथी धारा के समर्थक थे.
तस्वीर: Reuters/C. Mang
अमेरीकी संसद पर आक्रमण
वॉशिंगटन डीसी में "स्टॉप द स्टील" रैली के लिए कैपीटॉल के पास जमा हुए सैकड़ों उग्र प्रदर्शनकारी अचानक से संसद भवन की तरफ कूच कर गए. ये लोग राष्ट्रपति के चुनाव में धांधली के दावों से उत्तेजित थे. संसद भवन में मौजूद पुलिस हिंसक प्रदर्शनकारियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं थी. सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में घुस कर उत्पात मचाया.
तस्वीर: Shannon Stapleton/REUTERS
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इस घटना को अमेरिका के लोकतंत्र पर हमला माना गया और बहुत से लोगों को सजा हुई. ऐसा डॉनल्ड ट्रंप के चुनावी नतीजों को अस्वीकार करने जैसे बयानों के बाद हुआ था, इसलिए ट्रंप पर भी राजद्रोह जैसे मामले दर्ज करने की कोशिश चल रही है.
नात्सी समर्थक है कंडूला
हालांकि कंडूला के हमले का इस माहौल से संबंध स्थापित नहीं हुआ है. उसने व्हाइट हाउस के पास लाफायेट स्क्वेयर के नॉर्थ बैरियर पर टक्कर मारी थी. नात्सी समर्थक कंडूला ने पूछताछ में बताया कि वह हिटलर से काफी प्रभावित है, क्योंकि "वह एक ताकतवर नेता था.”
ट्रक से कोई हथियार या विस्फोटक नहीं मिला था. घटना के एक चश्मदीद क्रिस जाबोजी ने पत्रकारों को बताया था कि ड्राइवर ने दो बार बैरियर पर टक्कर मारी. घटना के बाद व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी ज्याँ पियरे ने कहा था कि घटना के वक्त राष्ट्रपति बाइडेन व्हाइट हाउस में ही थे.