डेमोक्रैटिक रिपलब्कि ऑफ कॉन्गो की राजधानी किंशासा में भारतीय समुदाय पर हमला हुआ है. भीड़ ने भारतीयों की दुकानें और वाहन फूंक दिए.
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डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में एक भीड़ ने भारतीय मूल के लोगों के व्यापारिक प्रतिष्ठानों और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. गुरुवार को हुई इस घटना के बारे मे पुलिस ने कहा पिछले हफ्ते भारत के बेंगलुरु में कॉन्गो के रहने वाले एक छात्र की मौत के कारण हुआ है.
पिछले हफ्ते भी किंशासा में ऐसी ही घटना हुई थी जब कई भारतीयों की दुकानें लूट ली गई थीं. भीड़ बेंगलुरु में पुलिस की हिरासत में कॉन्गलीज छात्र जोएल मालू की मौत का विरोध कर रहे थे.
पुलिस ने बताया कि गुरुवार को कॉन्गो में कई भारतीय दुकानों और गोदामों को लूटा गया, एक कार को आग लगा दी गई. तीन अन्य वाहनों पर पत्थर फेंके गए. यहे घटनाएं किंशासा के लिमेटे इलाके में तब हुई जब ऐसी अफवाह फैल गई कि भारत में कॉन्गलीज मूल के एक और युवक की मौत हो गई है.
किन्शासा के पुलिस आयुक्त सिल्वानो कासोंगो ने बताया, "असभ्य लोग, विशेषकर कुछ युवा भारतीयों द्वारा चलाई जा रहीं दुकानों और गोदामों को लूट रहे हैं."
पुलिस ने इस संबंध में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है. उसे पत्थर फेंकने के लिए तैयार की गईं कपड़े की बनाई 40 बेलें भी मिली हैं. पुलिस ने अपने बयान यह नहीं बताया कि इस घटना में किसी को चोट लगी है या नहीं.
क्या हुआ बेंगलुरु में?
जोएल मालू की मौत बेंगलुरु में पुलिस हिरासत में हुई थी. उन्हें 1 अप्रैल को पुलिस ने नशीली दवाएं रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था. पुलिस के मुताबिक मालू ने सीने में दर्द की शिकायत की, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई.
इस घटना के बाद बेंगलुरू में रहने वाले अफ्रीकी मूल के कुछ लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था. पुलिस ने उन लोगों पर लाठी चार्ज भी किया था. बाद में पुलिस ने पांच प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेकर उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था.
तस्वीरों मेंः एक जैसा है कूड़ा बीनने वालों का हाल
भारत हो या अफ्रीका, एक जैसा है कूड़ा बीनने वालों का हाल
अफ्रीका के सेनेगल में दुनिया के सबसे बड़े कूड़े के ढेरों में से एक स्थित है. यह इलाका पर्यावरण के लिए खतरनाक है, लेकिन हजारों कूड़ा बीनने वाले यहां रोज प्लास्टिक और अन्य बेचने लायक कचरे की तलाश में भटकते हैं.
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प्लास्टिक और धातुओं की तलाश
सेनेगल की राजधानी डकार के बाहर मबोस कचरा भराव क्षेत्र में करीब 2,000 कचरा बीनने वाले काम करते हैं. लोहे के एक कांटे की मदद से वे कूड़े में रीसाइकल होने योग्य प्लास्टिक ढूंढते हैं. कीमती धातुओं की तलाश में वे कूड़े को जलाते भी हैं.
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थोक व्यापारियों की भूमिका
कूड़ा बीनने वाले रीसाइकल होने योग्य सामान को थोक विक्रेताओं को बेच कर पैसा कमाते हैं. गैर सरकारी संगठन वीगो के मुताबिक इनमें से कुछ लोग लोग एक लाख पश्चिमी अफ्रीकी सीएफए फ्रैंक (हर महीने करीब 150 से 180 यूरो) कमा पाते हैं, जो कि सेनेगल में कमाई के स्तर के हिसाब से काफी कम है. कई कचरा बीनने वाले इससे बहुत कम कमाते हैं.
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नए कूड़े की गंध
इस थोड़ी सी कमाई के लिए, इन्हें ना सिर्फ भारी गर्मी बल्कि कचरा भराव क्षेत्र की गंध का भी सामना करना पड़ता है. वे रोज कचरे के ट्रकों का इंतजार करते हैं जो कचरा क्षेत्र के बीचोबीच स्थित कचरे के ऊंचे पहाड़ पर नया कचरा डाल जाते हैं. उसके बाद वे जल्दी जल्दी कचरा बीनना शुरू कर देते हैं.
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मवेशियों का साथ
यहां कुल 230 ट्रक रोज लगभग 1,300 टन कचरा लाते हैं. यह कचरा मवेशियों और पंछियों को भी आकर्षित करता है, जो 280 एकड़ में फैले इस क्षेत्र में खाना ढूंढने के लिए भटकते रहते हैं.
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एक घाटे का सौदा
कचरा बीनने वालों के संगठन के प्रवक्ता पापे दिआये कहते हैं कि मबोस में जीविका चलाना मुश्किल होता जा रहा है. प्रतिस्पर्धा के अलावा कचरे की थोक कीमतों का लंबे समय से ना बढ़ना भी एक समस्या है. दिआये कहते हैं कि वो लोग कचरे को रीसाइकल करने में मदद कर पर्यावरण की सेवा भी करते हैं, लेकिन वो "हमेशा घाटा उठाने वाले" ही बने रहते हैं.
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पर्यावरण के लिए खतरा
मबोस पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा है. जब यहां कचरे को जलाया जाता है तो उसका जहरीला धुंआ पूरे क्षेत्र में फैल जाता है और आस पास के रिहायशी इलाकों तक भी पहुंच जाता है. क्षेत्र के बाहर की तरफ मौजूद एक तालाब प्रदूषण की वजह से लाल रंग का हो गया है.
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जल्द होगा बंद
दशकों से मबोस को नजरअंदाज करने के बाद, सेनेगल सरकार ने अब इसे बंद करने का फैसला कर लिया है. 2025 में इसे एक कचरा अलग करने के केंद्र में बदल दिया जाएगा. इसी के साथ कचरा बीनने वालों के लिए जीविका के साधन का भी अंत हो जाएगा. (जॉन वेसेल्स, बीट्रीस क्रिस्टोफारो)
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3 अगस्त को डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो के दिल्ली स्थित दूतावास से कुछ अधिकारी बेंगलुरु पुहंचे थे और पुलिस से घटना की जानकारी ली थी. इसके बाद राज्य सरकार ने मालू की मौत के मामले की जांच सीआईडी की सौंप दी थी.
भारत में नस्लभेद के आरोप
अफ्रीका में कई बार कूटनीतिज्ञ इस बात की शिकायत कर चुके हैं कि भारत में रहने वाले अफ्रीकी मूल के लोगों के खिलाफ नस्लभेद होता है. 2016 में भी कॉन्गलीज मूल के एक युवक की दिल्ली में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी.
ऐसी ही घटना 2014 में भी हुई थी जब गैबोन और बुरकीना फासो के रहने वाले तीन छात्रों को दिल्ली में एक मेट्रो स्टेशन पर घेर लिया गया था. अफ्रीकन स्टूडेंट्स इन इंडिया (AASI) के मुताबिक भारत में अफ्रीकी मूल के लगभग 25 हजार छात्र हैं जो देश के 500 सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं.
इनमें सबसे ज्यादा छात्र सूडान और नाईजीरिया से आते हैं. इसके बाद केन्या, तंजानिया, युगांडा, रवांडा, जांबिया और इथियोपिया जैसे देश हैं जहां से बड़ी संख्या में छात्र भारत पढ़ने जाते हैं.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)
देखिएः गुलामी के भंवर में भारत के लोग
गुलामी के भवर में आज भी फंसे हैं भारत के कई लोग
भारत और अफ्रीका जैसे देशों को आजादी सालों पहले मिल गई, लेकिन फिर भी कई लोग आज भी अलग-अलग रूपों में गुलामों वाली जिंदगी जी रहे हैं.
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भारत में दुर्दशा
80 लाख की संख्या के साथ भारत में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं. इसके बाद 38.6 लाख के साथ चीन इस मामले में दूसरे स्थान पर आता है. पाकिस्तान में 31.9 लाख, उत्तर कोरिया में 26.4 लाख और नाइजीरिया में 13.9 लाख लोग आज भी गुलाम हैं.
मुनाफे के लिए लोगों से हर तरह का काम कराया जा रहा है. उन्हें देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी और अपराधों की दुनिया में धकेला जा रहा है. कहीं उनसे भीख मंगवाई जा रही है, तो कहीं घरों में उनका शोषण हो रहा है. जबरन शादी और अंगों के व्यापार में भी उन्हें मुनाफे का जरिया बनाया जा रहा है.
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कुल कितने गुलाम
दुनिया में कम से 4.03 करोड़ लोग गुलामों की तरह रह रहे हैं. इसमें से दो करोड़ से खेतों, फैक्ट्रियों और फिशिंग बोट्स पर काम लिया जा रहा है. 1.54 करोड़ को शादी के लिए मजबूर किया जाता है जबकि पचास लाख लोग देह व्यापार में धकेले गए हैं.
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यूएन का लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इंसानों की तस्करी तेजी से बढ़ते हुए अपराध उद्योग की जगह ले रही है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक बंधुआ मजदूरी और जबरी विवाह को खत्म करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन यह काम बहुत ही चुनौतीपूर्ण है.
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इंसानी तस्करी विरोधी दिवस
कहां पर कितने लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है, इस पर कहीं विश्वसनीय आंकड़े नहीं मिलते. लेकिन कुछ आंकड़े और तथ्य इतना जरूर बता सकते हैं कि समस्या कितनी गंभीर है. इसी की तरफ ध्यान दिलाने के लिए यूरोपीय संघ 18 अक्टूबर को इंसानी तस्करी विरोधी दिवस मनाता है.
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महिलाएं और लड़कियां निशाना
आधुनिक गुलामों में हर दस लोगों में सात महिलाएं और लड़कियां हैं जबकि इनमें एक चौथाई बच्चे शामिल हैं. वैश्विक स्तर पर देखें तो हर 185 लोगों में से एक गुलाम है. आबादी के हिसाब से उत्तर कोरिया में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं.
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कहां क्या स्थिति
उत्तर कोरिया में 10 प्रतिशत आबादी को गुलाम बनाकर रखा गया है. इसके बाद इरिट्रिया में 9.3 प्रतिशत, बुरुंडी में चार प्रतिशत, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 2.2 प्रतिशत और अफगानिस्तान में 2.2 प्रतिशत लोग गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं.
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तो किसे अपराध कहेंगे?
2019 की शुरुआत तक 47 देशों में इंसानी तस्करी को अपराध घोषित नहीं किया गया था. 96 देशों में बंधुआ मजदूरी अपराध नहीं थी जबकि 133 देशों में जबरन शादी को रोकने वाला कोई कानून नहीं था.
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विकसित देश भी पीछे नहीं
अनुमान है कि इंसानी तस्करी से हर साल कम से कम 150 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया जा रहा है. विकासशील ही नहीं, विकसित देशों में भी आधुनिक गुलाम मौजूद हैं. ब्रिटेन में 1.36 लाख और अमेरिका में चार लाख लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है. (स्रोत: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, वॉक फ्री फाउंडेशन)