आपने बहुत से लोगों को कहते सुना होगा कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है. लेकिन वैज्ञानिकों ने अब तक के सबसे व्यापाक अध्ययन के बाद कहा है कि यह सिर्फ एक मिथक है.
विज्ञापन
अक्सर कहा जाता है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर हो सकता है. बहुत लंबे समय से ऐसी बातें कही जाती हैं, क्योंकि फोन को सिर के पास रखा जाता है और इससे रेडियो तरंगें (नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन) निकलती हैं. इसी वजह से लोगों में यह डर पैदा हुआ कि कहीं मोबाइल फोन से कैंसर का खतरा तो नहीं. मोबाइल फोन और वायरलेस तकनीक आज जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं, इसलिए इनसे होने वाले रेडियो तरंगों के प्रभाव को समझना जरूरी हो गया है.
मोबाइल की आंधी में उड़ गई चीजें
तकनीक, लोगों का व्यवहार बड़ी तेजी से बदलती है. एक दौर में बहुत अहम मानी जाने वाली कई मशीनों की छुट्टी आज मोबाइल फोन ने कर दी है. एक नजर तकनीक की मार झेलने वाली इन चीजों पर.
तस्वीर: picture-alliance/landov
तुम्हारे खत
"आदरणीय/प्यारे...., यहां सब कुशल है." इन शब्दों के साथ शुरू होने वाली चिट्ठियां भी तकनीक की आंधी में उड़ गई. टेलीफोन और उसके बाद आई मोबाइल क्रांति ने खतों को सिर्फ आधिकारिक दस्तावेज में बदल दिया. चिट्ठियां खत्म होने के साथ उनका इंतजार करने की आदत भी गुम हो गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Ebener
पॉकेट कैमरा
आज बाजार में अच्छे कैमरे से लैस कई मोबाइल फोन हैं. फोटो और वीडियो रिकॉर्ड करना अब पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान हो चुका है. इनके चलते पॉकेट साइज कैमरे गायब होते जा रहे हैं.
तस्वीर: TOSHIFUMI KITAMURA/AFP/Getty Images
फोटो एल्बम
किसी आत्मीय परिवार से बहुत समय बाद मिलने पर फोटो एल्बम देखना बहुत सामान्य बात होती थी. आज तस्वीरें इंटरनेट और कंप्यूटर पर होती हैं. उन्हें देखने के लिए यात्रा करने की भी जरूरत नहीं पड़ती. फोटो एल्बम अब शादियों तक सिमट चुकी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Hendrik Schmidt
टेप और वॉक मैन
1990 के दशक तक घरों में टेप रिकॉर्डर गूंजता था तो स्टाइलिश युवा वॉक मैन की धुन पर थिरकते हुए कदम बढ़ाते थे. MP3 के आविष्कार ने कैसेट वाले युग को भी इतिहास के गर्त में डाल दिया. आज म्यूजिक लाइब्रेरी मोबाइल फोन में समा चुकी है.
तस्वीर: Joost J. Bakker IJmuiden/Creative Commons
वीडियो कैसेट प्लेयर
एक जमाना था जब किराये पर वीसीआर या वीसीपी लेकर परिवार व पड़ोसियों के साथ फिल्म देखना सामान्य बात होती थी. कैसेट बीच बीच में अटकती भी थी. फिर वीसीडी प्लेयर आया. अब तो कंप्यूटर, यूएसबी और वीडियो फाइलों ने वीसीआर, वीसीपी और वीसीडी को भुला सा दिया है.
टॉर्च की जरूरत अक्सर पड़ा करती है, लेकिन हर वक्त इसे लेकर घूमना, बैटरी बदलना या चार्ज करना झमेले से कम नहीं. मोबाइल फोन के साथ आई फ्लैश लाइट ने परंपरागत टॉर्च के कारोबार को समेट दिया है. हालांकि स्पेशल टॉर्चों की मांग आज भी है.
तस्वीर: Solar4Charity
कलाई की घड़ी
समय के साथ चलने के लिए कभी कलाई पर घड़ी बांधना जरूरी समझा जाता था. लेकिन मोबाइल फोन ने घड़ी को भी सिर्फ आभूषण सा बना दिया. आज कलाई पर घड़ी न हो, लेकिन जेब में मोबाइल फोन हो तो बड़े आराम से काम चलता है.
तस्वीर: Fotolia/blas
अलार्म घड़ी
कभी छात्र जीवन और नौकरी पेशा लोगों को इसकी बड़ी जरूरत हुआ करती थी. यही सुबह जगाती थी, लेकिन अब यह काम मोबाइल फोन बड़ी आसानी से करता है, वो भी स्नूज के ऑप्शन के साथ. स्टॉप वॉच भी तकनीकी विकास की भेंट चढ़ी है.
तस्वीर: Fotolia/Fabian Petzold
कैलकुलेटर
सन 2000 तक हिसाब किताब या पढ़ाई लिखाई से जुड़े हर शख्स के पास कैलकुलेटर आसानी से देखा जा सकता था, लेकिन मोबाइल फोन ने कैलकुलेटर को भी बहुत ही छोटे दायरे में समेट दिया. आज कैलकुलेटर का इस्तेमाल करते बहुत कम लोग दिखते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नोट पैड
किसी के साथ हुई बातचीत में प्वाइंट बनाना, फटाफट लिखना और बाद में दूसरों से पूछना कि कुछ मिस तो नहीं हुआ, मोबाइल फोन के रिकॉर्डर ने इस परेशानी को भी हल किया है. किसी के भाषण या लेक्चर को रिकॉर्ड किया और बाद में आराम से पूरा जस का तस सुना.
तस्वीर: Rawpixel/Fotolia
कैलेंडर
कागज का कैलेंडर आज शो के काम ज्यादा आता है. असली काम मोबाइल के कैलेंडर में हो जाता है. इसमें पेज पलटने की भी जरूरत नहीं पड़ती. रिमाइंडर भी सेट हो जाता है. और यह वक्त साथ भी रहता है.
तस्वीर: womue - Fotolia.com
कंपास
कभी दिशाज्ञान के लिए चुंबक वाले कंपास का सहारा लिया जाता था, फिर नेवीगेशन सिस्टम आए. आज स्मार्टफोन ही दिशाओं की सटीक जानकारी देता है. स्मार्टफोन ने नेवीगशन सिस्टम और ट्रैवल मैप की भी हालत खस्ता कर दी है.
तस्वीर: FikMik/Fotolia
पीसीओ
1990 के दशक में भारत में दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति सी हुई. छोटे कस्बों और गांवों तक सार्वजनिक टेलीफोन बूथ पहुंच गए. एसटीडी और आईएसडी कॉल करना जोरदार अनुभव से कम नहीं था. फिर घर घर टेलीफोन लगे. आज मोबाइल फोनों ने इन पर धूल जमा दी है.
तस्वीर: picture alliance/empics
13 तस्वीरें1 | 13
अब एक नए व्यापक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल और ब्रेन कैंसर के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं है. यह अध्ययन अब तक का सबसे बड़ा और विस्तृत विश्लेषण है, जिसमें 1994 से 2022 के बीच प्रकाशित 63 अध्ययनों को शामिल किया गया है.
कैसे पैदा हुआ कैंसर का डर
2011 में अंतर्राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (आईएआरसी) ने रेडियो तरंगों को "संभवतः मानव के लिए कार्सिनोजेन" के रूप में वर्गीकृत किया था. इस वर्गीकरण का मतलब यह नहीं था कि मोबाइल फोन सीधे कैंसर का कारण बनते हैं, लेकिन इसे और जांचने की जरूरत बताई गई थी. फिर भी, इस वर्गीकरण ने लोगों में डर पैदा कर दिया, खासकर इसलिए क्योंकि उस वक्त मोबाइल फोन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा था.
हालांकि, वैज्ञानिकों का मत लगातार यही रहा कि मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो तरंगों और ब्रेन कैंसर के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है. और इस नए अध्ययन ने भी यही बात साबित की है, जो ‘एनवायर्नमेंट जर्नल' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
विज्ञापन
नया अध्ययन क्या कहता है?
यह नया अध्ययन 22 देशों के डेटा पर आधारित है. इसमें 5000 से ज्यादा अध्ययनों की समीक्षा के बाद 63 को अंतिम विश्लेषण के लिए चुना गया. इन अध्ययनों में मोबाइल फोन के उपयोग और ब्रेन ट्यूमर जैसे ग्लियोमा, मेनिंजियोमा, एकॉस्टिक न्यूरोमा, पिट्यूटरी ट्यूमर और सलाईवरी ग्लैंड ट्यूमर के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं पाया गया.
ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के केन कैरिपिडिस और वोलोनगॉन्ग यूनिवर्सिटी की सेरा लूगरान द्वारा किए गए अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों और न करने वालों के बीच कैंसर के खतरे में कोई खास अंतर नहीं है. यहां तक कि जिन लोगों ने 10 साल या उससे ज्यादा समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया, उनमें भी कैंसर का खतरा नहीं बढ़ा.
आपको भी स्मार्टफोन का नशा तो नहीं
लोवा स्टेट यूनिवर्सिटी के मुताबिक कई लोगों में नोमोफोबिया की समस्या बढ़ रही है. नोमोफोबिया यानि इस बात का डर कि आपका फोन आपके हाथ में नहीं है. ये कुछ संकेत हैं जो बताते हैं कि आपको स्मार्टफोन की लत है.
तस्वीर: Fotolia/Picture-Factory
बैटरी
फोन आपके हाथ में है लेकिन आपको लगातार चिंता लगी रहती है कि ना जाने कब स्मार्टफोन की बैटरी खत्म हो जाएगी.
तस्वीर: picture-alliance/chromorange
इंटरनेट
आपका 3जी या 4जी स्मार्टफोन काम नहीं कर रहा या वाईफाई से कनेक्ट नहीं हो रहा और आप लगातार ढूंढते रहते हैं कि क्या आसपास कोई वाई फाई कनेक्शन है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Schutt
खोने का डर
अगर आपके पास आपका स्मार्टफोन नहीं है तो आपको लगातार डर लगा रहता है कि अंजानी जगह में आप कहीं खो ना जाएं.
तस्वीर: Colourbox
सोशल नेटवर्किंग
फेसबुक या अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट पर खुद का स्टेटस अपलोड ना कर पाने या दूसरों के स्टेटस ना पढ़ पाने पर आपको बेचैनी होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Lei
फोन और एसएमएस
अगर आप तक मेसेज या कॉल नहीं पहुंच रहे तो आप परेशान होने लगते हैं, आपको तनाव होने लगता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
जानकारी
अगर आप स्मार्टफोन से जरूरी जानकारी नहीं निकाल पा रहे तो आप परेशान हो जाते हैं. जैसे कि किसी न्यूज ऐप या मौसम बताने वाले ऐप का काम ना करना.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
घबराहट
अगर आपके पास प्रीपेड कनेक्शन है तो स्मार्टफोन में बैलेंस कम होते ही आपको घबराहट होने लगती है.
तस्वीर: PeJo/Fotolia
अकेलापन
स्मार्टफोन के बगैर आपको बेचैनी रहती है और समझ नहीं आता कि इसके अलावा और क्या करें. आप सोते समय भी इसे हाथ में रखते हैं.
यह अध्ययन विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कमिशन किया गया था और न्यूजीलैंड के स्वास्थ्य मंत्रालय व अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा इसके लिए धन उपलब्ध कराया गया. अध्ययन के लेखक कहते हैं, "अगर कोई व्यक्ति 10 साल या उससे ज्यादा समय तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करता है, तब भी कैंसर का खतरा नहीं बढ़ता. कितनी बार और कितनी देर तक फोन इस्तेमाल किया गया, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता."
अध्ययन में यह भी पाया गया कि कॉर्डलेस फोन का उपयोग भी ब्रेन ट्यूमर के खतरे को नहीं बढ़ाता. इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में भी मोबाइल फोन इस्तेमाल और ब्रेन ट्यूमर के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया.
लेखकों ने लिखा, "कुल मिलाकर, नतीजे काफी आश्वस्त करने वाले हैं. इसका मतलब यह है कि हमारे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानक काफी सुरक्षित हैं. मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो तरंगें इन मानकों के अंदर आती हैं और इससे मानव स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है."
गलत धारणाओं का सामना
यह अध्ययन मोबाइल फोन की सुरक्षा को साबित करता है, फिर भी वैज्ञानिक मानते हैं कि कुछ गलतफहमियों को दूर करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है. 2011 में IARC के वर्गीकरण के बाद से, मोबाइल फोन से कैंसर होने की आशंकाओं ने कई तरह की अफवाहों को जन्म दिया है. इन अफवाहों के चलते कई लोगों को लगा कि मोबाइल फोन खतरनाक हो सकते हैं, जबकि विज्ञान इसका समर्थन नहीं करता.
लेखकों ने इस बारे में कहा, "अब हमारी चुनौती यह है कि इस नए शोध के जरिए मोबाइल फोन और ब्रेन कैंसर को लेकर फैली गलतफहमियों और गलत जानकारी का मुकाबला किया जाए."
गजब ट्रांसलेटरः इधर बोले, उधर ट्रांसलेशन
चीन के बीजिंग में शीत ओलंपिक के दौरान विदेशी मेहमानों से पैसा कमाने में एक छोटी सी डिवाइस स्थानीय व्यापारियों की खूब मदद कर रही है. देखिए यह कमाल का ट्रांसलेटर...
तस्वीर: Yiming Woo/REUTERS
कमाल का ट्रांसलेटर
बीजिंग में अंग्रेजी ना जानने वाले दुकानदारों को विदेशी ग्राहकों से बात करने में कोई दिक्कत नहीं होती. यह फोन जैसी डिवाइस उनके काम आती है.
तस्वीर: Yiming Woo/REUTERS
इधर बोला, उधर अनुवाद हाजिर
ग्राहक और दुकानदार एक दूसरे से इसी डिवाइस के जरिए बात करते हैं. कोई एक अपनी भाषा में बोलता है और यह डिवाइस फौरन उसे दूसरे की भाषा में ट्रांसलेट करके सुना देती है.
तस्वीर: Yiming Woo/REUTERS
स्मार्ट ट्रांसलेटर
यह डिवाइस स्मार्ट ट्रांसलेटर है जिसे चीन में ही विकसित किया गया है. यह ट्रांसलेटर मैंडरिन से कई भाषाओं में अनुवाद कर सकता है, मसलन, अंग्रेजी, जर्मन, नॉर्वेजियन, फ्रेंच और रशियन.
तस्वीर: Yiming Woo/REUTERS
बीजिंग ओलंपिक में प्रयोग
बीजिंग में ओलंपिक के लिए पहुंचे विदेश खिलाड़ी, कोच, पत्रकार, तकनीशियन आदि हजारों लोग हैं जो इसी डिवाइस के चलते स्थानीय व्यापारियों के आसान ग्राहक बन गए हैं.
तस्वीर: Yiming Woo/REUTERS
पहले से ज्यादा ग्राहक
कोविड के कारण कई महीनों से ग्राहकों की कमी झेल रहे व्यापारियों को बड़ी राहत पहुंची है. आइसक्रीम बेचने वाले वांग जियांशिन बताते हैं, “पिछले कुछ दिनों में हमें पहले से कहीं ज्यादा ग्राहक मिले हैं. और उनसे बात करने के लिए हम स्मार्ट फोन पर ही निर्भर हैं.” रॉयटर्स के पत्रकार को यह बात भी जियांशिन ने स्मार्ट ट्रांसलेटर से ही बताई.
तस्वीर: Yiming Woo/REUTERS
कभी कभी गड़बड़ भी
ट्रांसलेटर आखिर है तो मशीन ही. कई बार गड़बड़ भी कर देता है. जैसे कि मशरूम को फंगस यानी फफूंदी बता दिया. एक बार एक जर्मन पत्रकार ने काओ मिल्क मांगा तो ट्रांसलेटर ने कफ यानी खांसी समझ लिया.
तस्वीर: Yiming Woo/REUTERS
6 तस्वीरें1 | 6
अध्ययन के लेखक चाहते हैं कि इस नई जानकारी के आधार पर जनता में मोबाइल फोन की सुरक्षा को लेकर विश्वास बढ़ाया जाए. वे उम्मीद करते हैं कि इस अध्ययन के नतीजे आम लोगों की गलतफहमियों को खत्म करेंगे और उन्हें यह यकीन दिलाएंगे कि मोबाइल फोन का इस्तेमाल सुरक्षित है.
वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि इस बारे में आगे और भी रिसर्च की जरूरत हो सकती है, खासकर कुछ खास और दुर्लभ मामलों में. इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के रेडिएशन के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने के लिए और गहन अध्ययन की जरूरत हो सकती है.